शैलेश लोढ़ा की कविताएं, जो आपको देंगी जीवन जीने का खास मकसद

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शैलेश लोढ़ा की कविताएं

कविताएं समाज का आईना होती हैं, कविताओं को ही समाज की प्रेरणा माना जाता है। जब-जब मातृभूमि, संस्कृति और माटी पर संकट का समय आता है, या जब-जब सभ्य समाज कहीं नींद गहरी सो जाता है। तब-तब कविताएं समाज की सोई चेतना को जगाती हैं, तब-तब कविताएं मानव को साहस से लड़ना सिखाती हैं। हर दौर में-हर देश में अनेकों महान कवि हुए हैं, जिन्होंने मानव को सदैव सद्मार्ग दिखाया है। उन्हीं में से एक शैलेश लोढ़ा भी हैं, जिनकी लिखी कविता आज तक भारत के युवाओं को प्रेरित कर रहीं हैं। इस पोस्ट के माध्यम से आप शैलेश लोढ़ा की कविताएं पढ़ पाएंगे, जिसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।

शैलेश लोढ़ा कौन हैं? 

शैलेश लोढ़ा का जन्म राजस्थान के जोधपुर में 8 नवंबर 1969 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जोधपुर में ही हासिल की। इसके बाद उन्‍होंने बीएससी की डिग्री हासिल की। डिग्री हासिल करने के बाद शैलेश लोढ़ा जोधपुर में काम करने लगे। इसके साथ ही वह कविताएं भी लिखा करते थे। जीवन की एक लंबी संघर्ष यात्रा को पूरा करने के बाद शैलेश लोढ़ा ने तारक मेहता जैसे एक शो में अपनी कलाकारी की अमिट छाप छोड़ी। बचपन में ही उन्हें ‘बाल कवि’ की उपाधि मिल गई थी। बचपन से ही कुछ बड़ा करने की चाह के कारण उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी और कवि के रूप में अपनी एक नई पहचान हासिल की।

ज़िंदगी हमें रोज नचाती है

शैलेश लोढ़ा की कविताएं आपके चरित्र को निखारने का प्रयास करेंगी, जिसमें उनकी लिखी कविता में से एक “ज़िंदगी हमे रोज नचाती है” है। यह एक ऐसी कविता है, जो ज़िन्दगी के तजुर्बे को बताती है।

कभी बसों में धकके खिलाती है
कभी ट्रेनों में लाइन में लगाती है
कभी बच्चो के पढाई के चिंता सताती है
कभी तनखा न बढ़ने पर चढाती है ,
कभी माँ की बिमारी रुलाती है ,
कभी पिता की मज़बूरी रुलाती है ,
कभी दूर कड़ी कसमसाती है
कभी चेहरों पर हंसी छोड़ जती है ,
हम धुनों पर नहीं नाच सकते साहब
लेकिन हम मिडिल क्लास लोगो की
ज़िंदगी हमे रोज नचाती है।
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

वो मेरी कौन है?

शैलेश लोढ़ा की कविताएं आपमें उठ रहे भावनाओं के तूफानों को शांत करने का काम करेंगी, इस श्रेणी में उनकी लिखी एक कविता “वो मेरी कौन है?” भी है, इस कविता एक ऐसा सवाल है जो हम सभी को ज़िंदगी भर परेशां करता ही है।

लोकल ट्रेन की भीड़ में गिरा तो
उसने हाथ पकड़ के उठाया
रासन लाइन के भीड़ में
धुन आया तो उसने न्धा थपथपाया
नौकरी के लिए भटकते कदमो का साथ दिया
हर जगह उसने मुझे दलाशा दिया
हर वक्त साथ मुझे दबी सहमी सी मौन है
अपनी जिदगी से पूछा वो मेरी कोन है?
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

माँ

शैलेश लोढ़ा की कविताएं समाज को एक आईना दिखने का काम करती हैं, इस ब्लॉग में आप शैलेश लोढ़ा द्वारा रचित कविता “माँ” को पढ़ सकते हैं, जिसका उद्देश्य पाठक को केवल यह बताना है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन सार का आधार ‘माँ’ होती हैं। माँ की ममता पर यदि कोई ग्रंथ भी लिख दिया जाए तो वो भी कम ही होगा।

जिस माँ ने हमे लिखा
उस माँ पर क्या लिखे हम
दिल आँखे बंद करके भी
वो चेहरा देख सकता है
वो तामासायी नहीं है
लेकिन तमाशा देख सकता है
हम खिड़किया-दरवाजे बंद करले
तो भी क्या होगा
जो सूरज है उसे ज़माना देख सकता है
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

हम छंद हैं, वो कविता है

शैलेश लोढ़ा की कविताएं साहित्य के प्रेम के उचित रंगों से समाज को रंगने का काम करती हैं। शैलेश लोढ़ा द्वारा रचित कविता “हम छंद हैं, वो कविता है” को पढ़कर आप इसकी अनुभूति कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य कविता नारी की परिभाषा बताना है।

हम एक शब्द हैं तू तो पूरी भाषा है
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है
बस यही नारी की परिभाषा है,
हम समुद्र का है तेज वेभ
तो हम झरनो का है निर्मल स्वर
हम एक शूल हैं तो वह एक सहस्त्र ढल प्रखर ,
हम दुनिया के है अंग वह उसकी उनुक्रमिका है ,
हम पत्थर के हैं संग वह कंचन की कनिका है
हम बकवास हैं तो वह भासन है
हम सरकार हैं वो शासन है
हम लभक़ुश हैं वो सीता है
हम छंद हैं वो कविता है
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

शैलेश लोढ़ा द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ

शैलेश लोढ़ा की कविताएं आपको हमेशा एक नया मार्ग देंगी, जिससे आप जीवन को एक सही दिशा दे पाएं। शैलेश लोढ़ा द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं, जो सही मायनों में प्रेम को परिभाषित करती नज़र आएंगी।

सुकून जिसे कहते हैं अक्सर नहीं मिला
नींद नहीं मिली कभी बिस्तर नहीं मिला
सारे चमक चेहरे पे पसीने की है ज़नाब
विरसे में हमे कभी कोई जेवर नहीं मिला
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

सच है इरादे हमारे विध्वंसक नहीं है
अकारण युद्ध के हम भी प्रशंसक नहीं है ,
अहिंसा के पुजारी हम है लेकिन,
सुनले दुनिया अहिंसक हैं हम नपुंसक नहीं है
शैलेश लोढ़ा

मजबूत से मजबूत लोहा भी टूट जाता है,
जब कई झूठे इकट्ठे हों, तो सच्चा टूट जाता है।
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

ताले है चाबियाँ है पर उनका आभास खत्म हो गया है,
पड़ोसी है लेकिन उनका विश्वास खत्म हो गया है।
शैलेश लोढ़ा

हम जुल्फ की तारीफ़ में सारी रात गीत गा देते है,
सुबह दाल में एक बाल आ जाएँ मुंह पर खींच कर मार देते है।
शैलेश लोढ़ा

छत नहीं रहती, दहलीज नहीं रहती दीवारों दर नहीं रहता
घर में बुजुर्ग ना हो तो घर, घर नहीं रहता।
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

जिस दिन तू शहीद हुआ ना जाने
किस तरह तेरी माँ सोई होगी
मैं तो बस इतना जानू कि वो गोली भी
तेरे सीने में उतरने से पहले रोई होगी।
शैलेश लोढ़ा

आदमी बन जो धरा का भार कंधो पर उठाये
बाँट दे जग को ना अमृत बूँद अधरों पर लगाये
है जरूरत आज ऐसे आदमी की विश्व को फिर
विश्व का विष सिंधु पी जाए मगर हिचकी ना आये
शैलेश लोढ़ा

सुकून जिसे कहते हैं अक्सर नहीं मिला
नींद नहीं मिली कभी बिस्तर नहीं मिला
सारे चमक चेहरे पे पसीने की है ज़नाब
विरसे में हमे कभी कोई जेवर नहीं मिला
शैलेश लोढ़ा

शैलेश लोढ़ा की कविताएं

आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप शैलेश लोढ़ा की कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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