Poem on India in Hindi: भारत कोई एक जमीन का टुकड़ा नहीं, यह तो जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हमारी मातृभूमि भारत एक ऐसी पुण्यभूमि है, जिसने दुनिया के सताए हुए हर मानव को अपने आँचल में शरण दी। भारत की भूमि वीरों की जननी है, जिसने समय-समय पर ऐसे वीर महापुरुषों को जन्म दिया। इसके साथ ही हमारी मातृभूमि ने सैदव विश्व को ज्ञान का सद्मार्ग दिखाया, भारत ने ही दुनिया के हर जीव-प्राणी को अपना कुटुंब का ही माना और समाज में व्याप्त हर भेदभाव को जड़ से मिटाया। भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ पग-पग पर भाषा, पहनावा, खान-पान और संस्कृति बदलती है, लेकिन फिर भी इनमें कोई तकरार नहीं होती। भारत विविधता में एकता का अनोखा उदाहरण है, जिस पर कविताएं लिखकर आप अपनी मातृभूमि की महानता के बारे में जान पाएंगे। इस लेख में आपके लिए देशप्रेम की भावना जगाने वाली भारत पर कविता (Bharat Par Kavita) दी गई हैं, जो आपको मातृभूमि की महानता के बारे में बताएंगी।
This Blog Includes:
भारत पर कविता – Poem on India in Hindi
महान कवियों द्वारा लिखी कुछ चुनिंदा भारत पर कविता (Bharat Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
प्यारे भारत देश | माखनलाल चतुर्वेदी |
हमारा देश | आरसी प्रसाद सिंह |
भारत | पाश |
भारत अपना देश | श्रीप्रसाद |
यह है भारत देश हमारा | सुब्रह्मण्यम भारती |
भारत महिमा | जयशंकर प्रसाद |
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं | अटल बिहारी वाजपेयी |
एक भारत श्रेष्ठ भारत | विकास पाण्डेय |
भारत तुम्हें पुकार रहा है | आनन्द बल्लभ ‘अमिय’ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ | हरिओम पंवार |
प्यारे भारत देश
प्यारे भारत देश
गगन-गगन तेरा यश फहरा
पवन-पवन तेरा बल गहरा
क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले
चरण-चरण संचरण सुनहरा
ओ ऋषियों के त्वेष
प्यारे भारत देश।।
वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी
प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक
मानो आँसू आये बलि-महमानों तक
सुख कर जग के क्लेश
प्यारे भारत देश।।
तेरे पर्वत शिखर कि नभ को भू के मौन इशारे
तेरे वन जग उठे पवन से हरित इरादे प्यारे!
राम-कृष्ण के लीलालय में उठे बुद्ध की वाणी
काबा से कैलाश तलक उमड़ी कविता कल्याणी
बातें करे दिनेश
प्यारे भारत देश।।
जपी-तपी, संन्यासी, कर्षक कृष्ण रंग में डूबे
हम सब एक, अनेक रूप में, क्या उभरे क्या ऊबे
सजग एशिया की सीमा में रहता केद नहीं
काले गोरे रंग-बिरंगे हममें भेद नहीं
श्रम के भाग्य निवेश
प्यारे भारत देश।।
वह बज उठी बासुँरी यमुना तट से धीरे-धीरे
उठ आई यह भरत-मेदिनी, शीतल मन्द समीरे
बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा
जय प्रयत्न, जिन पर आन्दोलित-जग हँस-हँस जय बोल रहा,
जय-जय अमित अशेष
प्यारे भारत देश।।
- माखनलाल चतुर्वेदी
हमारा देश
हमारा देश भारत है नदी गोदावरी-गंगा,
लिखा भूगोल पर युग ने हमारा चित्र बहुरंगा।
हमारे देश की माटी अनोखी मूर्ति वह गढ़ती,
धरा क्या स्वर्ग से भी जो गगन सोपान पर चढ़ती।
हमारे देश का पानी हमें वह शक्ति है देता,
भरत सा एक बालक भी पकड़ वनराज को लेता।
जहाँ हर साँस में फूले सुमन मन में महकते हैं,
जहां ऋतुराज के पंछी मधुर स्वर में चहकते हैं।
हमारे देश की धरती बनी है अन्नपूर्णा सी,
हमें अभिमान है इसका कि हम इस देश के वासी।
जहाँ हर सीप में मोती जवाहर लाल पलता है,
जहाँ हर खेत सोना कोयला हीरा उगलता है।
सिकंदर विश्व विजयी की जहाँ तलवार टूटी थी,
जहाँ चंगेज की खूनी रंगी तकदीर फूटी थी।
यही वह देश है जिसकी सदा हम जय मनाते हैं,
समर्पण प्राण करते हैं खुशी के गीत गाते हैं।
उदय का फिर दिवस आया, अंधेरा दूर भागा है,
इसी मधुरात में सोकर हमारा देश जागा है।
नया इतिहास लिखता है हमारा देश तन्मय हो,
नए विज्ञान के युग में हमारे देश की जय हो।
अखंडित एकता बोले हमारे देश की भाषा,
हमारी भारती से है हमें यह एक अभिलाषा।
- आरसी प्रसाद सिंह
यह भी पढ़ें – प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ
भारत
भारत
मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए
बाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते है
इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में है
जो आज भी वृक्षों की परछाइओं से
वक़्त मापते है
उनके पास, सिवाय पेट के, कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते है
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ है मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्ट्रीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ
उसे बताऊँ
के भारत के अर्थ
किसी दुष्यन्त से सम्बन्धित नहीं
वरन खेत में दायर है
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है
- पाश
यह भी पढ़ें – बसंत पंचमी पर कविता
भारत अपना देश
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
भारत बने महान, कामना रहती यही हमारी
भारत की थी शान, विश्व में सबने इसको माना
जब था देश महान, देश को सबने था पहचाना
बदला फिर इतिहास, दुखी फिर हुई धरा यह सारी
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
सोने-चाँदी का भारत था, सचमुच ही धनवाला
पर्वत, नदियाँ, हरे खेत, वन, सब था यहाँ निराला
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
रहे दबाते लोग देश को, फिर भी दबा न पाए
आखिर भारत के अपने दिन, पहले से फिर आए
जीत गई भारत की धरती, जो थी पहले हारी
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
अब स्वतंत्र हैं हम, रहते हैं अपना सीना ताने
अब हम बढ़ते ही जाएँगे, ऐसा मन में ठाने
अपनी मेहनत से मेंटेंगे, हम सबकी लाचारी
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
अपना खड़ा हिमालय हँसता, सूरज हँसता आता
तारे हँसकर रोज चमकते, चाँद हँसी बिखराता
कल-कल-कल लहरों में सागर, तान छेड़ता न्यारी
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
भारत नाम याद आते ही, मन में खुशियाँ आतीं
चिड़ियाँ गातीं गीत, फूल खिलते, कलियाँ मुसकातीं
हवा झूमती, पेड़ नाचते, खुश हो बारी-बारी
भारत अपना देश, देश की माटी कितनी प्यारी
- श्रीप्रसाद
यह भी पढ़ें: भारतीय संस्कृति की सजीव झलक प्रस्तुत करती रामनरेश त्रिपाठी की कविताएं
यह है भारत देश हमारा
चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।
जोड़ नहीं धरती पर जिसका, वह नगराज हमारा ही है।
नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा,
बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?
सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
गाएँगे यश हम सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।
यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
यह है देश मही का स्वर्णिम, ऋषियों ने तप किए जहाँ पर,
यह है देश जहाँ नारद के, गूँजे मधुमय गान कभी थे,
यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।
यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।
विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
अब न रहेंगे दलित-दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,
क्षुद्र स्वार्थ की ख़ातिर हम तो, कभी न ओछे कर्म करेंगे,
पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।
मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,
कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।
- सुब्रह्मण्यम भारती
यह भी पढ़ें: दुष्यंत कुमार की कविताएं, जो आपको प्रेरित करेंगी
भारत महिमा
हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार
जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत
बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत
सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास
सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह
धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं
जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान
जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष
- जयशंकर प्रसाद
यह भी पढ़ें – बेटियों के प्रति सम्मान के भाव को व्यक्त करती बालिका दिवस पर कविता
भारत देश पर कविता
भारत देश पर कविता पढ़कर आप हमारे राष्ट्र के महानता के बारे में जान पाएंगे। भारत देश पर कविता निम्नलिखित हैं –
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।
- अटल बिहारी वाजपेयी
यह भी पढ़ें : सुमित्रानंदन पंत की वो महान कविताएं, जो आपको जीने का एक मकसद देंगी
एक भारत श्रेष्ठ भारत
एक भारत, श्रेष्ठ भारत
ज्ञान सिंधु, विवेक भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
अनेकता में एकता का
दीप निशदिन जल रहा।
विशिष्ट शक्ति, संपदा का
स्वर्ण-पक्षी पल रहा।
चिर सनातन का से
समृद्धि का अतिरेक भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
भगत का, आज़ाद का,
सुभाष चंद्र बोस का।
'लाल' 'बाल' औ पाल' का
स्वराज्य के उद्घोष का।
स्वतंत्रता कि राह में है
क्रांति का अभिषेक भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
गीता की, गुरुग्रंथ की,
वेद और पुराण की।
बुद्ध की, महावीर की,
अवेस्ता और कुरान की।
हर धर्म की सुरभित पवन
पावन बना परिवेश भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
गांधी का सत्याग्रह,
अंबेडकर की कीर्तियाँ।
कलाम और गफ़्फ़ार की
समभाव वाली नीतियाँ।
महानतम विभूतियों का
विश्व में उल्लेख भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
राज्य का और क्षेत्र का
जो भूल कर विभेद हम,
भाषा और प्रदेश का
करें नहीं जो भेद हम।
पुनः विश्व गुरु बनेगा
श्रेष्ठ-निर्मल-नेक भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
एक भारत, श्रेष्ठ भारत
ज्ञान सिंधु, विवेक भारत।
विश्व के मानस-पटल पर
है सुनहरा लेख भारत।
- विकास पाण्डेय
भारत तुम्हें पुकार रहा है
स्वर में सिंह गर्जना रव भर मृदुमय सब संगीत भुला दो
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
शान्ति साधना विफल हो चुकी, समझौतों की डोरी टूटी।
नियम और उपनियमों वाली गंग नीर की गागर फूटी।
कटक सजाकर सैन्य व्यूह को मंत्र-तंत्र उच्चाटन देकर
अहि के फन कुचल मसल दो जो बिष को फुफकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
भस्मसात कर दो अरि दल को, रण चंडी तुम अगवानी कर।
महानाश का उत्सव भर दो रिपुदेश के भूमंडल पर।
किलकारी भरकर रणचंडी योगध्यान से रूद्र जगाओ-
खंडित है कोदंड पिनाकी, पर; अरि पर टंकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
उग्र और नाशक मारक की क्षमता का वरदान माँगते।
मरुद्गणों सप्ती संघी में सैनिक तुमसे स्थान माँगते।
स्थानभ्रष्ट कर दो अरि का अरु महाकाश तर्जन रव भरकर
करो खंड उनचास शत्रु के जो हम पर हुंकार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
प्राण प्रिय जननी, माँ धरती रक्त सना तेरा पट धोएँगे।
ब्याज सहित सैनिक वध की कीमत, है सपथ चुकाएँगे।
नाश-नाश अब महानाश का तांडव नृतन जग देखेगा
जागो अब हे! गणाध्यक्ष यह भारत तुम्हें गुहार रहा है।
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
स्वर में सिंह गर्जना रव भर मृदुमय सब संगीत भुला दो
अलसाये हे! मरुद्गणों अब भारत तुम्हें पुकार रहा है।
- आनन्द बल्लभ 'अमिय'
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
मै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के
जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें
सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला
क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए
दंगे कत्लेआम हुए जितने मजहब के नाम हुए
मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में
सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में
तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के
हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के
ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की
जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है
कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है
कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है
कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है
कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है
इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में
न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में
जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को 'म्याऊं' कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है
कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं
केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है
राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है
पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ।
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ।।
- हरिओम पंवार
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस लेख में भारत पर कविता (Bharat Par Kavita, Poem on India in Hindi) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।