रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय और शिक्षाएँ

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रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय

भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस की वर्ष 2026 में 190वीं जयंती मनाई जाएगी। आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर संसार में परम तत्व (परमात्मा) का ज्ञान प्राप्त करने के कारण उन्हें ‘परमहंस’ की उपाधि मिली। रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्यों में से एक स्वामी विवेकानंद थे, जिन्होंने अपने गुरु के नाम पर वर्ष 1897 में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की और उनके अनमोल विचारों को देश-दुनिया में फैलाया। इस लेख में रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय और उनकी शिक्षाओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।

मूल नाम गदाधर चट्टोपाध्याय  (Gadadhar Chattopadhyay)
जन्म 18 फरवरी, 1836 
जन्म स्थान कामारपुकुर गांव, पश्चिम बंगाल 
पिता का नाम खुदीराम चट्टोपाध्याय
माता का नाम चंद्रमणि देवी
पत्नी का नाम शारदामणि मुखोपाध्याय
गुरु का नाम तोतापुरी व योगेश्वरी भैरवी ब्राह्मणी
शिष्य स्वामी विवेकानंद
देहावसान 16 अगस्त 1886 काशीपुर, कोलकाता 

कोलकाता के कामारपुकुर गांव में हुआ था जन्म

भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को कोलकाता से लगभग साठ मील उत्तर-पश्चिम में स्थित ‘कामारपुकुर’ गांव में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता का नाम चंद्रमणि देवी था। रामकृष्ण परमहंस का मूल नाम ‘गदाधर चट्टोपाध्याय’ था और वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।

अल्प आयु में हुआ पिता का निधन 

जब रामकृष्ण परमहंस मात्र 7 वर्ष के थे, तब उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया था। माना जाता है कि शुरुआती दिनों से ही उनका औपचारिक शिक्षा और सांसारिक मामलों में अधिक रुचि नहीं थी। हालांकि, वह कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली बालक थे। उन्हें साधु-संतों की सेवा करना और उनके प्रवचन सुनना पसंद था। उन्हें अक्सर आध्यात्मिक मनोदशा में लीन पाया जाता था। इसके साथ ही, अल्पायु में ही उन्होंने ‘रामायण’, ‘श्रीमद्भगवद्गीता’, ‘वेद’, ‘उपनिषद’ कण्ठस्थ कर लिए थे।

परमानंद का अनुभव 

माना जाता है कि बाल्यकाल में ही उन्हें पहली बार परमानंद का अनुभव हुआ था। इसके बाद से उनका मन आध्यात्मिक स्वाध्याय में लगने लगा और दुनिया के प्रति वैराग्य बढ़ने लगा। जब रामकृष्ण परमहंस सोलह वर्ष के थे, तब उनके बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय उन्हें पुरोहित पेशे में सहायता करने के लिए कोलकाता ले गए। वर्ष 1855 में रानी रासमणि द्वारा हुगली नदी के किनारे निर्मित दक्षिणेश्वर काली मंदिर का अनुष्ठान हुआ और रामकुमार उस मंदिर के मुख्य पुजारी बने।

किंतु कुछ वर्ष बाद ही उनके बड़े भाई की आकस्मिक मृत्यु हो गई, जिसके बाद रामकृष्ण परमहंस को मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया। वे माता काली के परम भक्त थे और उन्होंने संपूर्ण जीवन दक्षिणेश्वर काली मंदिर में साधना करते हुए ही बिताया।

23 वर्ष की आयु में हुआ विवाह 

रामकृष्ण परमहंस जब 23 वर्ष के थे, तभी उनका विवाह उनके निकटवर्ती गांव जयरामबती की कन्या शारदामणि मुखोपाध्याय से कर दिया गया। विवाह के समय शारदामणि की आयु मात्र पाँच या छह वर्ष थी और उनके बीच लगभग सत्रह वर्ष का अंतर था। विवाह के बाद भी रामकृष्ण जी संन्यास की ओर अग्रसर रहे, जिससे प्रभावित होकर शारदामणि देवी ने भी आध्यात्मिक मार्ग अपना लिया और संपूर्ण जीवन ईश्वर-भक्ति में लीन रहीं।

योगेश्वरी भैरवी ब्राह्मणी से ली दीक्षा 

क्या आप जानते हैं कि रामकृष्ण परमहंस की तंत्र साधना की पहली गुरु एक महिला थीं, जिनका नाम ‘योगेश्वरी भैरवी ब्राह्मणी’ था? माना जाता है कि जब रामकृष्ण परमहंस 25 वर्ष के थे, तब स्वयं योगेश्वरी भैरवी ब्राह्मणी ने उन्हें खोजकर तंत्र विद्याओं की दीक्षा दी थी। वहीं, कुछ वर्षों बाद रामकृष्ण जी ने महान योगी ‘तोतापुरी’ के मार्गदर्शन में निर्विकल्प समाधि प्राप्त की, जो हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित सर्वोच्च आध्यात्मिक अनुभव माना जाता है।

स्वामी विवेकानंद थे प्रिय शिष्य 

रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्यों में स्वामी विवेकानंद जी प्रमुख थे। रामकृष्ण जी के उपदेशों को सुनकर उनके जीवन को एक नई दिशा मिली और वे लोककल्याण के मार्ग पर अग्रसर हुए। अपने गुरु की शिक्षाओं के प्रसार हेतु उन्होंने वर्ष 1897 में ‘रामकृष्ण मिशन’ (Ramakrishna Mission) की स्थापना की।

कैंसर के कारण हुआ देहावसान 

रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम वर्षों में गहन साधना में लीन रहते थे। इसी दौरान वे गले की सूजन की बीमारी से ग्रसित हो गए, जो बाद में कैंसर की बीमारी के रूप में सामने आई। किंतु वे इस रोग से तनिक भी विचलित नहीं हुए और बिना किसी इलाज के केवल गहन समाधि में लीन रहते। इस कारण उनकी बीमारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गई और 16 अगस्त 1886 को 50 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी देह का त्याग कर परम समाधि को प्राप्त किया।

रामकृष्ण परमहंस के अनमोल विचार 

भारत के महान संत रामकृष्ण परमहंस के कुछ अनमोल विचार इस प्रकार हैं:-

  • परमात्मा का वास सभी इंसानों में है। लेकिन, सभी इंसानों में परमात्मा का भाव भी हो, ये जरुरी नहीं है। इसलिए व्यक्ति अपने कर्मों की वजह से दुखी है। – रामकृष्ण परमहंस
  • जब तक हमारे मन में इच्छाएं रहेगी, तब तक हमें न तो शांति मिल सकती है और ना ही ईश्वर की भक्ति जाग सकती है। – रामकृष्ण परमहंस
  • नाव पानी में ही रहती है, लेकिन कभी भी नाव में पानी नहीं होना चाहिए। ठीक इसी तरह भक्ति करने वाले लोग इस दुनिया में रहें लेकिन उनके मन में यहाँ की चीजों के लिए मोह नहीं होना चाहिए। रामकृष्ण परमहंस

FAQs 

रामकृष्ण परमहंस क्यों प्रसिद्ध है?

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे।

रामकृष्ण परमहंस का वास्तविक नाम क्या था?

श्री रामकृष्ण परमहंस का वास्तविक नाम ‘गदाधर चट्टोपाध्याय’ था। 

रामकृष्ण परमहंस किसकी पूजा करते थे?

रामकृष्ण परमहंस मां काली की पूजा करते थे। 

रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार कैसे हुआ था? 

रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार काशीपुर घाट पर किया गया था।

आशा है कि आपको भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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