साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। वास्तविकता यही है कि हर दौर में कुछ ऐसे कवि, शायर, ग़ज़ल लिखने वाले हुए हैं, जिनकी साहित्य की समझ ने समाज को एक अलग ही नज़रिया दिया है। ऐसे ही शायरों में से एक “कैफ़ी आज़मी” भी थें, जिन्होंने हिंदी-उर्दू साहित्य को नए आयाम पर ले जाने का काम किया है। कैफ़ी आज़मी का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं विद्यार्थियों का परिचय उनकी विचारधारा से करवा सकती हैं। देखा जाए तो कविताएं ही सभ्यताओं का गुणगान करते हुए मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। इसी कड़ी में Kaifi Azmi Poetry in Hindi (कैफ़ी आज़मी की कविताएं) भी आती हैं, जिन्हें पढ़कर विद्यार्थियों को प्रेरणा मिल सकती है, जिसके बाद उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
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कौन थे कैफ़ी आज़मी?
Kaifi Azmi Poetry in Hindi (कैफ़ी आज़मी की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको कैफ़ी आज़मी जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय हिंदी-उर्दू साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कैफ़ी आज़मी भी हैं, जिन्होंने हिंदी-उर्दू के संगम से समाज को मार्गदर्शित किया। उनकी शायरियां, नज़्में और ग़ज़लें आज के युवा शायरों को प्रेरित करती हैं।
कैफ़ी आज़मी का मूल नाम सय्यद अतहर हुसैन रिज़वी था। कैफ़ी आज़मी को उर्दू के प्रसिद्ध प्रगतिवादी शायर और गीतकार के रूप में देखा जाता है। 14 जनवरी 1919, को कैफ़ी आज़मी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में हुआ था। कैफ़ी आज़मी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मजहब के मदरसे से प्राप्त की। उनके पिता उन्हें दीन की तालीम दिलाना चाहते थे, लेकिन कैफ़ी आज़मी के इंकलाबी व्यवहार ने मदरसे की स्थूल और दक़ियानूसी व्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई।
कैफ़ी आज़मी ने कम उम्र से ही शायरियां, नज़्में इत्यादि लिखना शुरू कर दिया था। उनकी प्रमुख रचनाओं में आखिरी खत, झंकार, आवारा सादे, सरमाया, मेरी आवाज़ सुनो इत्यादि शामिल हैं। साहित्य में अपने सर्वश्रेष्ठ योगदान के कारण कैफ़ी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 10 मई 2002 को सदी के सुप्रसिद्ध शायर कैफ़ी आज़मी का मुंबई में निधन हुआ।
मकान
Kaifi Azmi Poetry in Hindi (कैफ़ी आज़मी की कविताएं) आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। कैफ़ी आज़मी जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “मकान” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ये ज़मीन तब भी निगल लेने पे आमादा थी पाँव जब टूटी शाख़ों से उतारे हम ने इन मकानों को ख़बर है न मकीनों को ख़बर उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हम ने हाथ ढलते गये साँचे में तो थकते कैसे नक़्श के बाद नये नक़्श निखारे हम ने की ये दीवार बुलन्द, और बुलन्द, और बुलन्द बाम-ओ-दर और ज़रा, और सँवारे हम ने आँधियाँ तोड़ लिया करती थीं शमों की लौएं जड़ दिये इस लिये बिजली के सितारे हम ने बन गया क़स्र तो पहरे पे कोई बैठ गया सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश-ए-तामीर लिये अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ए-पैहम की थकन बंद आँखों में इसी क़स्र की तस्वीर लिये दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक रात आँखों में ख़टकती है स्याह तीर लिये आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है आज की रात न फ़ुट-पाथ पे नींद आयेगी सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी
-कैफ़ी आज़मी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कैफ़ी आज़मी ने मकान को केवल एक इमारत न मानकर, उसे उसमें रहने वाले लोगों के सपनों, आशाओं और यादों का प्रतीक बताया है। इस कविता की शैली सरल और सहज है, जिसमें प्रयोग होने वाले शब्दों का प्रयोग करके कैफ़ी साहब ने गहरे भावों को व्यक्त किया है। इस कविता के माध्यम से कैफ़ी साहब बताना चाहते हैं कि मकान सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले लोगों के जीवन का प्रतीक है। मकान नष्ट हो सकता है, लेकिन मनुष्य के सपने और आशाएं हमेशा जीवित रहती हैं।
कोहरे के खेत
Kaifi Azmi Poetry in Hindi (कैफ़ी आज़मी की कविताएं) आपके नज़रिए को नया आयाम देंगी। कैफ़ी आज़मी जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “कोहरे के खेत” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
वो सर्द रात जबकि सफ़र कर रहा था मैं रंगीनियों से जर्फ़-ए-नज़र भर रहा था मैं तेज़ी से जंगलों में उड़ी जा रही थी रेल ख़्वाबीदा काएनात को चौंका रही थी रेल मुड़ती उछलती काँपती चिंघाड़ती हुई कोहरे की वो दबीज़ रिदा फ़ाड़ती हुई पहियों की गर्दिशों में मचलती थी रागनी आहन से आग बन के निकलती थी रागनी पहुँची जिधर ज़मीं का कलेजा हिला दिया दामन में तीरगी के गरेबाँ बना दिया झोंके हवा के बर्फ़ बिछाते थे राह में जल्वे समा रहे थे लरज़ कर निगाह में धोके से छू गईं जो कहीं सर्द उँगलियाँ बिच्छू सा डंक मारने लगती थीं खिड़कियाँ पिछले पहर का नर्म धुँदलका था पुर-फ़िशाँ मायूसियों में जैसे उमीदों का कारवाँ बे-नूर हो के डूबने वाला था माहताब कोहरे में खुप गई थी सितारों की आब-ओ-ताब क़ब्ज़े से तीरगी के सहर छूटने को थी मशरिक़ के हाशिए में किरन फूटने को थी कोहरे में था ढके हुए बाग़ों का ये समाँ जिस तरह ज़ेर-ए-आब झलकती हों बस्तियाँ भीगी हुई ज़मीं थी नमी सी फ़ज़ा में थी इक किश्त-ए-बर्फ़ थी कि मुअल्लक़ हवा में थी जादू के फ़र्श सेहर के सब सक़्फ़-ओ-बाम थे दोश-ए-हवा पे परियों के सीमीं ख़ियाम थे थी ठण्डे-ठण्डे नूर में खोई हुई निगाह ढल कर फ़ज़ा में आई थी हूरों की ख़्वाब-गाह बन-बन के फेन सू-ए-फ़लक देखता हुआ दरिया चला था छोड़ के दामन ज़मीन का इस शबनमी धुँदलके में बगुले थे यूँ रवाँ मौजों पे मस्त हो के चलें जैसे मछलियाँ डाला कभी फ़ज़ाओं में ख़त खो गए कभी झलके कभी उफ़ुक़ में निहाँ हो गए कभी इंजन से उड़ के काँपता फिरता था यूँ धुआँ लेता था लहर खेत में कोहरे के आसमाँ उस वक़्त क्या था रूह पे सदमा न पूछिए याद आ रहा था किस से बिछड़ना न पूछिए दिल में कुछ ऐसे घाव थे तीर-ए-मलाल के रो-रो दिया था खिड़की से गर्दन निकाल के
-कैफ़ी आज़मी
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से कवि कैफ़ी आज़मी ने प्रकृति के सौंदर्य और उसके रहस्यों को बखूबी बयां किया है। इस ग़ज़ल में कैफ़ी साहब प्रकृति का महिमामंडन करते नज़र आते हैं, इस रचना के शब्द सरल और भाव बड़े गहरे हैं। कैफ़ी साहब अपनी इस रचना के माध्यम से बताते हैं कि प्रकृति में अनंत सौंदर्य और रहस्य छिपे हुए हैं। हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसके सौंदर्य का आनंद लेना चाहिए।
कर चले हम फ़िदा
Kaifi Azmi Poetry in Hindi आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य के साथ-साथ देशभक्ति की भावना से करवाएंगी। कैफ़ी आज़मी जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “कर चले हम फ़िदा” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं सर हिमालय का हमने न झुकने दिया मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने के रुत रोज़ आती नहीं हस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं आज धरती बनी है दुलहन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो राह कुर्बानियों की न वीरान हो तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले फतह का जश्न इस जश्न के बाद है ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले बांध लो अपने सर से कफ़न साथि खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर इस तरफ आने पाए न रावण कोई तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे छू न पाए सीता का दामन कोई राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
-कैफ़ी आज़मी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कैफ़ी आज़मी ने युवाओं में देशभक्ति की भावना का संचार करने के अद्भुत प्रयास किए है। कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित यह एक प्रेरक कविता है, जो देशभक्ति और बलिदान की भावना से ओतप्रोत है। यह कविता भारत-चीन युद्ध (1962) की पृष्ठभूमि में लिखी गई थी। इस कविता के स्पष्ट शब्दों ने युवाओं में देशभक्ति की भावना का संचार किया है, इस कविता के माध्यम से कवि का कहना है कि देशभक्ति और बलिदान की भावना हमारे देश की रक्षा के लिए आवश्यक है। हमें अपने देश के प्रति अटूट निष्ठा और प्रेम रखना चाहिए और जब भी आवश्यकता हो, देश के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्यार का जश्न
Kaifi Azmi Poetry in Hindi आपका परिचय प्रेम के अनूठे स्वरुप से करवाएंगी, साथ ही आपको प्रेम के प्रति निष्ठावान रहना सिखाएंगी। कैफ़ी आज़मी जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “प्यार का जश्न” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:
प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा ग़म किसी दिल में सही ग़म को मिटाना होगा काँपते होंटों पे पैमान-ए-वफ़ा क्या कहना तुझ को लाई है कहाँ लग़्ज़िश-ए-पा क्या कहना मेरे घर में तिरे मुखड़े की ज़िया क्या कहना आज हर घर का दिया मुझ को जलाना होगा रूह चेहरों पे धुआँ देख के शरमाती है झेंपी झेंपी सी मिरे लब पे हँसी आती है तेरे मिलने की ख़ुशी दर्द बनी जाती है हम को हँसना है तो औरों को हँसाना होगा सोई सोई हुई आँखों में छलकते हुए जाम खोई खोई हुई नज़रों में मोहब्बत का पयाम लब शीरीं पे मिरी तिश्ना-लबी का इनआम जाने इनआम मिलेगा कि चुराना होगा मेरी गर्दन में तिरी सन्दली बाहोँ का ये हार अभी आँसू थे इन आँखों में अभी इतना ख़ुमार मैं न कहता था मिरे घर में भी आएगी बहार शर्त इतनी थी कि पहले तुझे आना होगा
-कैफ़ी आज़मी
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से कैफ़ी आज़मी प्रेम के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करते हैं। कैफ़ी आज़मी द्वारा यह रचित एक सुंदर कविता है, जो प्रेम की भावना को व्यक्त करती है। यह कविता प्रेम के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करती है, जैसे कि प्रेम का आनंद, प्रेम का दर्द, और प्रेम की शक्ति आदि। यह कविता प्रेम की भावना को सभी के लिए आवश्यक बताती है। कविता के माध्यम से कवि प्रेम को जीवन कहते हैं।
नई सुब्ह
Kaifi Azmi Poetry in Hindi आपको प्रेरित करेंगी, साथ ही आपका उर्दू साहित्य से करवाएंगी। कैफ़ी आज़मी जी की महान रचनाओं में से एक रचना “नई सुब्ह” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
ये सेहत-बख़्श तड़का ये सहर की जल्वा-सामानी उफ़ुक़ सारा बना जाता है दामान-ए-चमन जैसे छलकती रौशनी तारीकियों पे छाई जाती है उड़ाए नाज़ियत की लाश पर कोई कफ़न जैसे उबलती सुर्ख़ियों की ज़द पे हैं हल्क़े सियाही के पड़ी हो आग में बिखरी ग़ुलामी की रसन जैसे शफ़क़ की चादरें रंगीं फ़ज़ा में थरथराती हैं उड़ाए लाल झण्डा इश्तिराकी अंजुमन जैसे चली आती है शर्माई लजाई हूर-ए-बेदारी भरे घर में क़दम थम-थम के रखती है दुल्हन जैसे फ़ज़ा गूँजी हुई है सुब्ह के ताज़ा तरानों से सुरूद-ए-फ़त्ह पर हैं सुर्ख़ फ़ौजें नग़्मा-ज़न जैसे हवा की नर्म लहरें गुदगुदाती हैं उमंगों को जवाँ जज़्बात से करता हो चुहलें बाँकपन जैसे ये सादा-सादा गर्दूं पे तबस्सुम-आफ़रीं सूरज पै-दर-पै कामयाबी से हो स्तालिन मगन जैसे सहर के आइने में देखता हूँ हुस्न-ए-मुस्तक़बिल उतर आई है चश्म-ए-शौक़ में 'कैफ़ी' किरन जैसे
-कैफ़ी आज़मी
भावार्थ : यह ग़ज़ल एक सुप्रसिद्ध ग़ज़ल है जो कि समाज को प्रेरित करती है। कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित, यह एक प्रेरणादायक कविता है जो आशा और उम्मीद का संदेश देती है। यह कविता एक ऐसे व्यक्ति के दृष्टिकोण से लिखी गई है जो जीवन में अनेक मुश्किलों और चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन हार नहीं मान रहा है और एक नई सुबह की उम्मीद रखता है।
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आशा है कि Kaifi Azmi Poetry in Hindi (कैफ़ी आज़मी की कविताएं) के माध्यम से आप कैफ़ी आज़मी की सुप्रसिद्ध कविताओं को पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।