Meena Kumari Poems in Hindi: भारतीय सिनेमा में “ट्रेजेडी क्वीन” के नाम से मशहूर ‘मीना कुमारी’ एक प्रसिद्ध अभिनेत्री होने के साथ एक संवेदनशील और गहरी सोच वाली कवयित्री भी थीं। मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था, उनकी कविताओं में उनके जीवन के दर्द, प्रेम, और आत्मा की गहराइयों का अद्भुत चित्रण देखने को मिलता है। मीना कुमारी की शायरी और कविताएं आज भी समाज के हर वर्ग के जनमानस के दिलों को छूती हैं। उनकी कविताएं केवल उनके जीवन के अनुभवों का प्रतिबिंब नहीं हैं, बल्कि इसके साथ-साथ वे समाज के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करती हैं।
मीना कुमारी की कविताओं ने साहित्य जगत में एक अमूल्य योगदान दिया हैं, जिन्हें पढ़कर आप उनके जीवन और उनकी भावनाओं को सरलता से समझ पाएंगे। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘तन्हा चाँद ’ बेहद लोकप्रिय है। इस ब्लॉग में आप दर्द, प्रेम और जीवन का अद्भुत संगम बनती मीना कुमारी की कविताएं (Meena Kumari Poems in Hindi) पढ़ पाएंगे, जो उनके साहित्यिक योगदान और उत्तम काव्य शैली को दर्शाती हैं।
मीना कुमारी की कविताएं – Meena Kumari Poems in Hindi
मीना कुमारी की लोकप्रिय कविताएं (Meena Kumari Poems in Hindi in Hindi) इस प्रकार है:-
- मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
- दिन गुज़रता नहीं आता
- रात सुनसान है
- टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
- यह न सोचो कल क्या हो
- सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
- आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
- यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
- हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
- आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा
- पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
- मुहब्बत बहार की फूलों की तरह
- चांद तन्हा है आसमां तन्हा
- सुबह से शाम तलक
- ये रात ये तन्हाई
- हर मसर्रत
- मेरा माज़ी
- मेरे महबूब
- मुहब्बत इत्यादि।
मीना कुमारी की कविताएं
यहाँ मीना कुमारी की चुनिंदा लोकप्रिय कविताएं (Meena Kumari Poems in Hindi) दी गई हैं:-
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मस्जिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मेरी साँस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हात जो बड़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी
सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा
मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी
– मीना कुमारी
दिन गुज़रता नहीं आता
दिन गुज़रता नहीं आता रात
काटे से भी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उम्र बांटे से भी नही बंटती
अकेलेपन के अन्धेरें में दूर दूर तलक
यह एक ख़ौफ़ जी पे धुँआ बनके छाया है
फिसल के आँख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक पलक ने जिसे राह से उठाया है
शाम का उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख, बड़ जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो ख़ुश है कि जलता जाता है
तेरी आवाज़ में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आँखों की तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आग़ोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है
– मीना कुमारी
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रात सुनसान है
रात सुनसान है
तारीक है दिल का आंगन
आसमां पर कोइ तारा न जमीं पर जुगनू
टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुइ आँखों में
कुछ दिये
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू
दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे
प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन
प्यास – यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद
आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको
– मीना कुमारी
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टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
– मीना कुमारी
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यह न सोचो कल क्या हो
यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो
रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो
बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो
हर छन हो जब आस बना
हर छन फिर निर्बल क्या हो
रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो
आज ही आज की कहें-सुने
क्यों सोचें कल, कल क्या हो
– मीना कुमारी
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
जैसे रात की तारीकी में
किसी ख़ानक़ाह का
खुला और रौशन ताक़
जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो
ख़ामोश
बेज़बान मोमबत्तियाँ
या
वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो
ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़ीब हो
एक पाकीज़ा मंज़र
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
– मीना कुमारी
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आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
जब ज़ुल्फ़ की कालिख़ में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हॊता
हँस- हँस के जवां दिल के हम क्यों न चुनें टुकडे़
हर शख्स़ की किस्मत में ईनाम नहीं होता
बहते हुए आँसू ने आँखॊं से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
– मीना कुमारी
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
काँधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे।
– मीना कुमारी
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