makhanlal chaturvedi ki kavita पढ़कर युवाओं में साहित्य के प्रति सम्मान भाव और रूचि को जागृत किया जा सकता है। माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं मानव को मानवता से जोड़ने वाले एक सेतु के रूप में कार्य करती हैं, उस सेतु को साहित्य कहना अनुचित नहीं होगा। सही अर्थों में देखा जाए तो कविताएं ही मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं पढ़कर प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। कविताओं के माध्यम से समाज की चेतना को जागृत करने वाले कवि “माखनलाल चतुर्वेदी” की लेखनी ने सदा ही समाज के हर वर्ग को प्रेरित करने का काम किया है। Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi (माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं) विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
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माखनलाल चतुर्वेदी का संक्षिप्त जीवन परिचय
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi (माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको माखनलाल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि माखनलाल चतुर्वेदी भी हैं, जिनकी लेखनी आज के आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक हैं। अपनी महान लेखनी और साहित्य की समझ से माखनलाल चतुर्वेदी को हिंदी कवियों की श्रेणी में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
4 अप्रैल 1889 को माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के बावई में हुआ था। चतुर्वेदी जी ने गंभीर अध्ययन और स्वतंत्र चिंतन की ओर प्रेरित हुए। ठाकुर प्रसाद चतुर्वेदी और शारदा देवी जी के घर जन्मे माखनलाल चतुर्वेदी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बाबई में ही प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने होशंगाबाद के राजकीय महाविद्यालय में प्रवेश लिया। होशंगाबाद राजकीय महाविद्यालय से माखनलाल चतुर्वेदी ने संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और इतिहास जैसे विषयों में अपना अध्ययन पूरा किया।
माखनलाल चतुर्वेदी ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिसमें वह कई बार जेल भी गए। जीवन में साहित्य के आँगन में एक ऐसा बीज बोया, जिसने समाज को साहित्य के अनुकूल बनाया। माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाओं में “पुष्प की अभिलाषा”, “झांसी की रानी”, “जय जय जय वंदे मातरम”, “आनंद भवन”, “प्रकृति की गोद में” और “प्रकृति का संगीत” आदि सुप्रसिद्ध हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी जी द्वारा हिंदी साहित्य में किए गए अप्रतिम योगदान को देखते हुए, वर्ष 1995 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसकी स्थापना वर्ष 1953 में हुई थी। वर्ष 1964 में पद्म भूषण तथा उनके डाक टिकट को भी जारी किया गया। हिंदी के एक महान कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी का निधन 30 जनवरी 1968 को मध्य प्रदेश के भोपाल में हुआ था।
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पुष्प की अभिलाषा
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi (माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं) आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं। हिंदी साहित्य के महान कविताओं में से एक makhanlal chaturvedi ki kavita “पुष्प की अभिलाषा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥
मुझे तोड़ लेना वनमाली।
उस पथ में देना तुम फेंक॥
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।
जिस पथ जावें वीर अनेक॥
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने एक पुष्प की अभिलाषा को अपने शब्दों में स्थान दिया है। कविता में कवि उस फूल की गाथा लिखते हैं, जो चाहता है कि उसे किसी सुंदर स्त्री के गहनों में न गूंथा जाए, न ही प्रेमी के हाथों में प्यारी को ललचाने के लिए दिया जाए। उस फूल की केवल इतनी इच्छा है कि उसे मातृभूमि के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले वीरों के चरणों में बिछा दिया जाए। कविता के माध्यम से कवि ने अपना स्पष्ट संदेश दिया है कि जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य देश की सेवा करना होता है। कवि समाज को सिखाते हैं कि हमें अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर देना चाहिए। हमें सदैव देशभक्ति और बलिदान की भावना से प्रेरित रहना चाहिए।
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सिपाही
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi (माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं) आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं। हिंदी साहित्य के महान कविताओं में से एक makhanlal chaturvedi ki kavita “सिपाही” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
ख़रीदे हुए विश्व-ईमान!!
अरि-मुंडों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान,
एक पूँजी है तीर-कमान!
मुझे भूलने में सुख पाती,
जग की काली स्याही,
दासो दूर, कठिन सौदा है
मैं हूँ एक सिपाही!
क्या वीणा की स्वर-लहरी का
सुनें मधुरतर नाद?
छिः! मेरी प्रत्यंचा भूले
अपना यह उन्माद!
झंकारों का कभी सुना है
भीषण वाद विवाद?
क्या तुमको है कुरु-क्षेत्र
हलदी घाटी की याद!
सिर पर प्रलय, नेत्र में मस्ती,
मुट्ठी में मनचाही,
लक्ष्य मात्र मेरा प्रियतम है,
मैं हूँ एक सिपाही।
खींचो राम-राज्य लाने को,
भू-मंडल पर त्रेता!
बनने दो आकाश छेदकर
उसको राष्ट्रविजेता,
जाने दो, मेरी किस
बूते कठिन परीक्षा लेता,
कोटि-कोटि कंठों ‘जय-जय’ है
आप कौन हैं, नेता?
सेना छिन्न, प्रयत्न खिन्न कर,
लाये न्योत तबाही,
कैसे पूजूँ गुमराही को
मैं हूँ एक सिपाही?
बोल अरे सेनापति मेरे!
मन की घुंडी खोल,
जल, थल, नभ, हिल-डुल जाने दे,
तू किंचित् मत डोल!
दे हथियार या कि मत दे तू
पर तू कर हुंकार,
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को,
तू इस बार पुकार!
धीरज रोग, प्रतीक्षा चिंता,
सपने बने तबाही,
कह ‘तैयार’! द्वार खुलने दे,
मैं हूँ एक सिपाही!
बदलें रोज बदलियाँ, मत कर
चिंता इसकी लेश,
गर्जन-तर्जन रहे, देख
अपना हरियाला देश!
खिलने से पहले टूटेंगी,
तोड़, बता मत भेद,
वनमाली, अनुशासन की
सूची से अंतर छेद!
श्रम-सीकर, प्रहार पर जीकर,
बना लक्ष्य आराध्य
मैं हूँ एक सिपाही, बलि है
मेरा अंतिम साध्य!
कोई नभ से आग उगलकर
किये शांति का दान,
कोई माँज रहा हथकड़ियाँ
छेड़ क्रांति की तान!
कोई अधिकारों के चरणों
चढ़ा रहा ईमान,
‘हरी घास शूली के पहले
की’—तेरा गुण गान!
आशा मिटी, कामना टूटी,
बिगुल बज पड़ी यार!
मैं हूँ एक सिपाही। पथ दे,
खुला देख वह द्वार!!
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता में कवि ने एक सिपाही के चरित्र को चित्रित करने का प्रयास किया है। कविता में कवि बताते हैं कि सिपाही युद्ध में लड़ते हुए अपनी भावनाओं जैसे: वीरता, देशभक्ति, त्याग और बलिदान की भावना को प्रदर्शित करता है। कवि ने कविता में सिपाही के त्याग और बलिदान की भावना को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है। कवि कहते हैं कि एक सिपाही अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।
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क़ैदी और कोकिला
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं। हिंदी साहित्य के महान कविताओं में से एक makhanlal chaturvedi ki kavita “क़ैदी और कोकिला” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल, बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल, बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यों आली?
क्यों हूक पड़ी?
वेदना-बोझ वाली-सी;
कोकिल, बोलो तो!
क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली-सी,
कोकिल, बोलो तो!
बंदी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का
दिन के दुख का रोना है नि:श्वासों का,
अथवा स्वर है लोहे के दरवाज़ों का,
बूटों का, या संत्री की आवाज़ों का,
या करते गिननेवाले हाहाकार।
सारी रातों है—एक, दो, तीन, चार—!
मेरे आँसू की भरी उभय जब प्याली,
बेसुरा! मधुर क्यों गाने आई आली?
क्या हुई बावली?
अर्द्ध रात्रि को चीख़ी,
कोकिल, बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखी?
कोकिल, बोलो तो!
निज मधुराई को कारागृह पर छाने,
जी के घावों पर तरलामृत बरसाने,
या वायु-विटप-वल्लरी चीर, हठ ठाने,—
दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,
या लेने आई इन आँखों का पानी?
नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी!
खा अंधकार करते वे जग-रखवाली
क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?
तुम रवि-किरणों से खेल,
जगत् को रोज़ जगानेवाली,
कोकिल, बोलो तो,
क्यों अर्द्ध रात्रि में विश्व
जगाने आई हो? मतवाली—
कोकिल, बोलो तो!
दूबों के आँसू धोती रवि-किरनों पर,
मोती बिखराती विंध्या के झरनों पर,
ऊँचे उठने के व्रतधारी इस वन पर,
ब्रह्मांड कँपाते उस उदंड पवन पर,
तेरे मीठे गीतों का पूरा लेखा
मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा।
तब सर्वनाश करती क्यों हो,
तुम, जाने या बेजाने?
कोकिल, बोलो तो!
क्यों तमोपत्र पर विवश हुई
लिखने चमकीली तानें?
कोकिल, बोलो तो!
क्या?—देख न सकती जंज़ीरों का पहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना!
कोल्हू का चर्रक चूँ?—जीवन की तान,
गिट्टी पर अंगुलियों ने लिक्खे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
ख़ाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआँ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में ग़ज़ब ढा रही आली?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल, बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल, बोलो तो!
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल-कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लोह-शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर
मरने को, मदमाती—
कोकिल, बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती?
कोकिल, बोलो तो!
तेरे ‘माँगे हुए’ न बैना,
री, तू नहीं बंदिनी मैना,
न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,
तुझे न दाख खिलाये आली!
तोता नहीं; नहीं तू तूती,
तू स्वतंत्र, बलि की गति कूती
तब तू रण का ही प्रसाद है,
तेरा स्वर बस शंखनाद है।
दीवारों के उस पार
या कि इस पार दे रही गूँजें?
हृदय टटोलो तो!
त्याग शुक्लता,
तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,
कोकिल, बोलो तो!
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ भर में संचार,
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रण-भेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?—
कोकिल, बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ?—
कोकिल, बोलो तो!
फिर कुहू!… अरे क्या बंद न होगा गाना?
इस अंधकार में मधुराई दफ़नाना!
नभ सीख चुका है कमज़ोरों को खाना,
क्यों बना रही अपने को उसका दाना?
तिस पर करुणा-गाहक बंदी सोते हैं,
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!
इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भर दोगी? बोलो, निद्रित लाशों में?
क्या घुस जाएगा रुदन
तुम्हारा निःश्वासों के द्वारा?—
कोकिल, बोलो तो!
और सवेरे हो जाएगा
उलट-पुलट जग सारा?—
कोकिल, बोलो तो!
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता में कवि ने एक कैदी और कोकिला के बीच संवाद का वर्णन किया है। कविता में कवि कहते हैं कि कैदी अपनी स्वतंत्रता की कमी पर दुखी है, जबकि कोकिला उसे जीवन में आशा और खुशी ढूंढने के लिए प्रेरित करती है। कविता में कवि का स्पष्ट संदेश है कि मानव को जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। हमें सदैव आशावादी रहना चाहिए और जीवन में खुशी ढूंढने का प्रयास करना चाहिए।
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सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा। हिंदी साहित्य के महान कविताओं में से एक makhanlal chaturvedi ki kavita “सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
आज हिमालय का सर उज्ज्वल
सागर खड़ा बेड़ियाँ तोड़े
कौन तरुण जो उठे
समय के घोड़े का रथ बाएँ मोड़े
आई है व्रत ठान लाड़ली
आज नर्मदा के स्वर बोली
सोचा था वसंत आएगा
और हर्ष ले आया होली
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता में कवि ने सागर की भव्यता और शक्ति का वर्णन किया है। कविता के माध्यम से कवि सागर को एक जीवंत प्राणी के रूप में चित्रित करते हैं, जो अपनी बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता प्राप्त करता है। इस कविता में सागर को एक शक्तिशाली और अजेय प्राणी के रूप में दर्शाया गया है। कवि सागर के माध्यम से प्रकृति की शक्ति और भव्यता का वर्णन करते हैं, वे बताते हैं कि प्रकृति को किसी भी प्रकार की बाधाओं में बांधना असंभव है।
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मरण-ज्वार
Makhanlal Chaturvedi Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा। हिंदी साहित्य के महान कविताओं में से एक makhanlal chaturvedi ki kavita “मरण-ज्वार” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
प्रहारक, बाण हो कि हो बात,
चीज़ क्या, आरपार जो न हो?
दान क्या, भिखमंगों के स्वर्ग!
प्राण तक तू उदार जो न हो?
फेंक वह जीत, या कि वह हार,
मिला बलि में प्रहार जो न हो?
चुनौती किसे? और किस भाँति?
कि अरि के कर कुठार जो न हो?
हार क्या?—कलियों का जी छेद,
बिंधा उनमें दुलार जो न हो?
प्यार क्या? ख़तरों का झूलना
झूलना बना प्यार जो न हो?
लौह बंधन, कि वार पर वार,
मधुर-स्वर क्यों? सितार जो न हो?
रखे लज्जा क्यों संत कपास!
पेर कर, तार-तार जो न हो?
दिखे हरियाली? मेघ श्याम,
कृषक चरणोपहार जो न हो?
शूलियाँ बनें प्रश्न के चिह्न,
देश का चढ़ा प्यार जो न हो?
तुम्हारे मेरे बीचों-बीच,
प्रणय का, बँधा तार जो न हो?
अरे हो जाय रुधिर बेस्वाद,
लाड़ला मरण-ज्वार जो न हो?
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता में कवि ने बड़ी ही सरलता से मृत्यु का वर्णन किया है। कविता में कवि मृत्यु को एक ज्वार के रूप में चित्रित करते हैं जो जीवन को निगल जाता है। कविता में कवि मृत्यु को एक शक्तिशाली और अटल शक्ति के रूप में दर्शाने का कार्य करते हैं। कवि का मानना है कि मृत्यु का ज्वार जीवन के सभी पहलुओं को नष्ट कर देता है। यह कविता हमें जीवन और मृत्यु पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है।
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