कुमार विश्वास की कविताएं आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ, समाज को हिंदी भाषा का महत्व समझाने का काम करती हैं। कुमार विश्वास की कविताएं मुख्य रूप से प्रेम, रोमांस, देशभक्ति, सामाजिक मुद्दे, दर्शन और आध्यात्मिकता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित हैं। कुमार विश्वास की कविताएं समाज का दर्पण बनकर युवाओं को प्रेरित करने का काम करती हैं, कुमार विश्वास एक ऐसे भारतीय कवि हैं, जिन्होंने हिंदी भाषा के प्रति समर्पित होकर हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुमार विश्वास की कविताएं पढ़कर विद्यार्थियों के दृष्टिकोण का व्यापक विस्तार हो सकता है, इसके लिए विद्यार्थियों को उनकी कविताएं अवश्य पढ़नी चाहिए। इस ब्लॉग में आपके लिए कुमार विश्वास की कविताएं लिखी हुई हैं, जिन्हें पढ़कर आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है।
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कुमार विश्वास कौन हैं?
कुमार विश्वास का जन्म उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में एक ब्राह्मण परिवार में 10 फरवरी 1970 को हुआ था। उन्होंने लाला गंगा सहाय स्कूल, पिलखुवा से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज, पिलखुवा से अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उन्होंने हिंदी साहित्य में परास्नातक और पीएचडी पूरा किया। कुमार विश्वास जी का हिन्दी साहित्य के लिए दिया गया योगदान अकल्पनीय और अविस्मरणीय है।
कुमार विश्वास की कविताएं
कुमार विश्वास की कविताएं समाज को सकारात्मक दिशा दिखाने का काम करती हैं, जिनमें से कुछ कविताओं के नाम निम्नलिखित हैं;
- कोई दीवाना कहता है
- भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
- बाँसुरी चली आओ
- मुक्तक
- मेरे पहले प्यार
- आना तुम
- उनकी ख़ैरो-ख़बर नही मिलती
- सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
- बादडियो गगरिया भर दे
- मै कवि हूँ
- मै तुम्हे ढूंढने
- मै तुम्हे अधिकार दूँगा
- ये वही पुरानी राहें हैं
- पिता की याद
- है नमन उनको
- सब तमन्नाएँ हों पूरी
- तुम अगर नहीं आयीं इत्यादि।
कुमार विश्वास की प्रेम कविता
कुमार विश्वास की प्रेम कविता समाज के सामने प्रेम को परिभाषित करने का प्रयास करेगी, कुमार विश्वास की प्रेम कविता कुछ इस प्रकार है;
कोई दीवाना कहता है
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा
-कुमार विश्वास
मेरे पहले प्यार
ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसु मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मूझे पता चला मधुरे तू भी पागल बन रोती है,
जो पीङा मेरे अंतर में तेरे दिल में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचिंत भी अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते गाते स्वीकार
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार
मुझे तू याद न आया कर
-कुमार विश्वास
आना तुम
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
तन-मन की धरती पर
झर-झर-झर-झर-झरना
साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये
तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी
लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी
सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना
एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
जब तुम आओगी तो घर आँगन नाचेगा
अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी
बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम
पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये
आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये
-कुमार विश्वास
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
कुमार विश्वास की कविताएं आपके चरित्र को निखारने का प्रयास करेंगी, जिसमें उनकी लिखी कविता में से एक “बच्चों के क्या नाम रखे हैं?” है। यह एक ऐसी कविता है, जो एक तरफ़ा प्रेम में एक लंबे इंतज़ार के बाद, पूछे गए सवालों को दर्शाती है।
भाषण देने कभी गया था
मथुरा के कोई कॉलिज में
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे।
और ख़रीदे थे जो मैंने
जन्मभूमि वाले मंदिर से,
मुझे देख जो मुस्काते थे
नटखट शोख़ इशारे करके,
तुम्हें देख जो शरमाते थे,
सहज रास आँखों में भरके,
आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाए,
अभी तलक क्या वो छलिया घनश्याम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
आँसू की बारिश में भीगे
ठोड़ी के जिस तिल को मैंने
विदा-समय पर चूम लिया था
और कहा था ‘मन मत हारो’
तुम से अनगाया गाया है
तुमको खो कर भी पाया है
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ,
धरती भोगूँ, अंबर चूमूँ
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना,
यही समझना—
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है,
जग-भर की नज़रों से ओझल,
मेरी भटकन रखी हुई है,
मेरे चारों धाम रखे हैं।
सच बतलाओ, नए प्रसाधन के लेपन में
चेहरे की चमकीली परतों के ऊपर भी
जिसमें तुमको ‘मैं’ दिखता था।
गोरे मुखड़े वाली
चाँदी की थाली में अब तक भी
क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
सरस्वति पूजन वाले दिन,
मेरा जन्म-दिवस भी है जो,
बाँधी थी जो रंग-बसंती वाली साड़ी,
फाल ढूँढ़ने को जिसका मैं
तीन-तीन बाज़ारों तक ख़ुद
दौड़-दौड़ कर फैल गया था,
बी.एड. की गाइड हो या हो
लव-स्टोरी की वी.सी.डी.,
मौसी के घर तक जाने को,
सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे,
ऐसे सारे ग़ैर-ज़रूरी काम, ज़रूरी हो जाते थे,
एक तुम्हारे कहने भर से।
अब जिसके संग निभा रही हो,
हँस-हँस कर अनमोल जवानी,
उस अनजाने, उस अनदेखे,
भाग्यबली के हित भी तुमने
ऐसे ही क्या ग़ैर-ज़रूरी काम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
–कुमार विश्वास
तुम्हें मुझसे पूछना था!
कुमार विश्वास की कविताएं आपमें उठ रहे भावनाओं के तूफानों को शांत करने का काम करेंगी, इस श्रेणी में उनकी लिखी एक कविता “तुम्हें मुझसे पूछना था!” भी है, इस कविता को उस प्रेम के इज़हार पर लिखा गया है, जो अक्सर हम करना जाते हैं।
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
पूछना जगह देना होता है
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
इससे तुम्हें भी जगह मिलती
पर तुमने सोचा होगा
कि पूछकर कहीं जगह तो न खो दूँगा?
मुझे ही पूछने देते अगर तुम
तो पूछती मैं कि कुछ पूछना तो नहीं तुम्हें?
सब ओर से चिने अपने कवच में भी
इतने असुरक्षित क्यूँ हो तुम?
कि पूछने भर के अंदेशे से ढह जाते हो?
–कुमार विश्वास
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह
कुमार विश्वास की कविताएं समाज को एक आईना दिखने का काम करती हैं, इस ब्लॉग में आप कुमार विश्वास द्वारा रचित कविता “ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह” को पढ़ सकते हैं, जिसका उद्देश्य इस सवाल का जवाब ढूंढना है, कि आखिर इंसान किस की तलाश में है।
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
ढेर-सी चमक-चहक चेहरे पर लटकाए हुए
हँसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते है सुबह-सुबह?
ये इतने पाँव सड़क को सलाम करते हैं
हरारतों को अपनी बक़ाया नींद पिला
उसी उदास और पीली-सी रौशनी में लिपट
रात तक उन ही मकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग, कि जिनमें कभी मैं शामिल था
ये सारे लोग जो सिमटें तो शहर बनता है
शहर का दरिया क्यों सुबह से फूट पड़ता है
रात की सर्द चट्टानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग, क्या इनमें वो लोग शामिल हैं
जो कभी मेरी तरह प्यार जी गए होंगे
या इनमें कोई नहीं ज़िंदा, सिर्फ़ लाशें हैं
ये भी क्या ज़िंदगी का ज़हर पी गए होंगे
ये सारे लोग निकलते हैं घर से, इन सबको
इतना मालूम है, जाना है, लौट आना है
ये सारे लोग भले लगते हों मशीनों से
मगर इन ज़िंदा मशीनों का इक ठिकाना है
मुझे तो इतना भी मालूम नहीं जाना है कहाँ?
मैंने पूछा नहीं था, तूने बताया था कहाँ?
ख़ुद में सिमटा हुआ, ठिठका-सा खड़ा हूँ ऐसे
मुझपे हँसता है मेरा वक़्त, तेरे दोनों जहाँ
जो तेरे इश्क़ में सीखे हैं रतजगे मैंने
उन्हीं की गूँज पूरी रात आती रहती है
सुबह जब जगता है अंबर तो रौशनी की परी
मेरी पलकों पे अंगारे बिछाती रहती है
मैं इस शहर में सबसे जुदा, तुझसे, ख़ुद से
सुबह और शाम को इकसार करता रहता हूँ
मौत की फ़ाहशा औरत से मिला कर आँखें
सुबह से ज़िंदगी पर वार करता रहता हूँ
मैं कितना ख़ुश था चमकती हुई दुनिया में मेरी
मगर तू छोड़ गया हाथ मेरा मेले में
इतनी भटकन है मेरी सोच के परिंदों में
मैं ख़ुद से मिलता नहीं भीड़ में, अकेले में
जब तलक जिस्म ये मिट्टी न हो फिर से, तब तक
मुझे तो कोई भी मंज़िल नज़र नहीं आती
ये दिन और रात की साज़िश है, वगरना मेरी
कभी भी शब नहीं ढलती, सहर नहीं आती
तभी तो रोज़ यही सोचता रहता हूँ मैं
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
-कुमार विश्वास
बोलो रानी क्या नाम करूँ?
कुमार विश्वास की कविताएं साहित्य के प्रेम के उचित रंगों से समाज को रंगने का काम करती हैं। कुमार विश्वास द्वारा रचित कविता “बोलो रानी क्या नाम करूँ?” को पढ़कर आप इसकी अनुभूति कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य प्रेम को उचित सम्मान देना है।
बोलो रानी क्या नाम करूँ?
क्या गोपन-गोपन नाद सुनूँ?
या जनम-जनम बदनाम करूँ?
किरणों की सुर्ख़ अलगनी पर
जिस दिन तुम टाँग गई थीं दिन,
उस दिन से आँखों का सूरज,
रातों में कभी नहीं बदला,
आँगन में बिछे हुए मौसम
और उसकी गर्म साज़िशों से,
अंबर पिघला, तारे पिघले
ये सपना कभी नहीं पिघला
अब तुम बोलो इस क़िस्से में
क्या ख़ास रखूँ, क्या आम करूँ?
–कुमार विश्वास
कुमार विश्वास द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ
कुमार विश्वास की कविताएं आपको हमेशा एक नया मार्ग देंगी, जिससे आप जीवन को एक सही दिशा दे पाएं। कुमार विश्वास द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं, जो सही मायनों में प्रेम को परिभाषित करती नज़र आएंगी।
तुम्हीं पे मरता है ये दिल, अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है, बगावत क्यों नहीं करता
–कुमार विश्वास
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
–कुमार विश्वास
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर
–कुमार विश्वास
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है
–कुमार विश्वास
कुछ छोटे सपनों के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
–कुमार विश्वास
तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा
–कुमार विश्वास
इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है
मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है
–कुमार विश्वास
क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा
–कुमार विश्वास
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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुमार विश्वास की कविताएं पढ़ पाए होंगे, कुमार विश्वास की कविताएं पढ़कर आप अपने जीवन में सकारात्मकता का महत्व जान पाएंगे। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।