कविताएं समाज का आईना होती हैं, कविताओं को ही समाज की प्रेरणा माना जाता है। जब-जब मातृभूमि, संस्कृति और माटी पर संकट का समय आता है, या जब-जब सभ्य समाज कहीं नींद गहरी सो जाता है। तब-तब कविताएं समाज की सोई चेतना को जगाती हैं, तब-तब कविताएं मानव को साहस से लड़ना सिखाती हैं। हर दौर में-हर देश में अनेकों महान कवि हुए हैं, जिन्होंने मानव को सदैव सद्मार्ग दिखाया है। उन्हीं में से एक कुमार विश्वास भी हैं, जिनकी लिखी कविता आज तक भारत के युवाओं को प्रेरित कर रहीं हैं। इस पोस्ट के माध्यम से आप कुमार विश्वास की कविताएं पढ़ पाएंगे, जिसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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कुमार विश्वास कौन हैं?
कुमार विश्वास का जन्म उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में एक ब्राह्मण परिवार में 10 फरवरी 1970 को हुआ था। उन्होंने लाला गंगा सहाय स्कूल, पिलखुवा से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज, पिलखुवा से अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उन्होंने हिंदी साहित्य में परास्नातक और पीएचडी पूरा किया। कुमार विश्वास जी का हिन्दी साहित्य के लिए दिया गया योगदान अकल्पनीय और अविस्मरणीय है।
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
कुमार विश्वास की कविताएं आपके चरित्र को निखारने का प्रयास करेंगी, जिसमें उनकी लिखी कविता में से एक “बच्चों के क्या नाम रखे हैं?” है। यह एक ऐसी कविता है, जो एक तरफ़ा प्रेम में एक लंबे इंतज़ार के बाद, पूछे गए सवालों को दर्शाती है।
भाषण देने कभी गया था
मथुरा के कोई कॉलिज में
रस्ते भर खाने के पैसे बचा लिए थे।
और ख़रीदे थे जो मैंने
जन्मभूमि वाले मंदिर से,
मुझे देख जो मुस्काते थे
नटखट शोख़ इशारे करके,
तुम्हें देख जो शरमाते थे,
सहज रास आँखों में भरके,
आले में चुपचाप अधर पर वेणु टिकाए,
अभी तलक क्या वो छलिया घनश्याम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
आँसू की बारिश में भीगे
ठोड़ी के जिस तिल को मैंने
विदा-समय पर चूम लिया था
और कहा था ‘मन मत हारो’
तुम से अनगाया गाया है
तुमको खो कर भी पाया है
चाहे मैं दुनिया भर घूमूँ,
धरती भोगूँ, अंबर चूमूँ
इस तिल को दर्पण में जब भी कभी देखना,
यही समझना—
ठोड़ी पर यह तिल थोड़ी है,
जग-भर की नज़रों से ओझल,
मेरी भटकन रखी हुई है,
मेरे चारों धाम रखे हैं।
सच बतलाओ, नए प्रसाधन के लेपन में
चेहरे की चमकीली परतों के ऊपर भी
जिसमें तुमको ‘मैं’ दिखता था।
गोरे मुखड़े वाली
चाँदी की थाली में अब तक भी
क्या मेरे शालिग्राम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
सरस्वति पूजन वाले दिन,
मेरा जन्म-दिवस भी है जो,
बाँधी थी जो रंग-बसंती वाली साड़ी,
फाल ढूँढ़ने को जिसका मैं
तीन-तीन बाज़ारों तक ख़ुद
दौड़-दौड़ कर फैल गया था,
बी.एड. की गाइड हो या हो
लव-स्टोरी की वी.सी.डी.,
मौसी के घर तक जाने को,
सीट घेरनी हो जयपुर की बस में चाहे,
ऐसे सारे ग़ैर-ज़रूरी काम, ज़रूरी हो जाते थे,
एक तुम्हारे कहने भर से।
अब जिसके संग निभा रही हो,
हँस-हँस कर अनमोल जवानी,
उस अनजाने, उस अनदेखे,
भाग्यबली के हित भी तुमने
ऐसे ही क्या ग़ैर-ज़रूरी काम रखे हैं?
बच्चों के क्या नाम रखे हैं?
–कुमार विश्वास
तुम्हें मुझसे पूछना था!
कुमार विश्वास की कविताएं आपमें उठ रहे भावनाओं के तूफानों को शांत करने का काम करेंगी, इस श्रेणी में उनकी लिखी एक कविता “तुम्हें मुझसे पूछना था!” भी है, इस कविता को उस प्रेम के इज़हार पर लिखा गया है, जो अक्सर हम करना जाते हैं।
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
पूछना जगह देना होता है
तुम्हें मुझसे पूछना था कि
इससे तुम्हें भी जगह मिलती
पर तुमने सोचा होगा
कि पूछकर कहीं जगह तो न खो दूँगा?
मुझे ही पूछने देते अगर तुम
तो पूछती मैं कि कुछ पूछना तो नहीं तुम्हें?
सब ओर से चिने अपने कवच में भी
इतने असुरक्षित क्यूँ हो तुम?
कि पूछने भर के अंदेशे से ढह जाते हो?
–कुमार विश्वास
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह
कुमार विश्वास की कविताएं समाज को एक आईना दिखने का काम करती हैं, इस ब्लॉग में आप कुमार विश्वास द्वारा रचित कविता “ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह” को पढ़ सकते हैं, जिसका उद्देश्य इस सवाल का जवाब ढूंढना है, कि आखिर इंसान किस की तलाश में है।
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
ढेर-सी चमक-चहक चेहरे पर लटकाए हुए
हँसी को बेचकर बेमोल वक़्त के हाथों
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते है सुबह-सुबह?
ये इतने पाँव सड़क को सलाम करते हैं
हरारतों को अपनी बक़ाया नींद पिला
उसी उदास और पीली-सी रौशनी में लिपट
रात तक उन ही मकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग, कि जिनमें कभी मैं शामिल था
ये सारे लोग जो सिमटें तो शहर बनता है
शहर का दरिया क्यों सुबह से फूट पड़ता है
रात की सर्द चट्टानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
शाम तक उन ही थकानों में लौटने के लिए
ये इतने लोग, क्या इनमें वो लोग शामिल हैं
जो कभी मेरी तरह प्यार जी गए होंगे
या इनमें कोई नहीं ज़िंदा, सिर्फ़ लाशें हैं
ये भी क्या ज़िंदगी का ज़हर पी गए होंगे
ये सारे लोग निकलते हैं घर से, इन सबको
इतना मालूम है, जाना है, लौट आना है
ये सारे लोग भले लगते हों मशीनों से
मगर इन ज़िंदा मशीनों का इक ठिकाना है
मुझे तो इतना भी मालूम नहीं जाना है कहाँ?
मैंने पूछा नहीं था, तूने बताया था कहाँ?
ख़ुद में सिमटा हुआ, ठिठका-सा खड़ा हूँ ऐसे
मुझपे हँसता है मेरा वक़्त, तेरे दोनों जहाँ
जो तेरे इश्क़ में सीखे हैं रतजगे मैंने
उन्हीं की गूँज पूरी रात आती रहती है
सुबह जब जगता है अंबर तो रौशनी की परी
मेरी पलकों पे अंगारे बिछाती रहती है
मैं इस शहर में सबसे जुदा, तुझसे, ख़ुद से
सुबह और शाम को इकसार करता रहता हूँ
मौत की फ़ाहशा औरत से मिला कर आँखें
सुबह से ज़िंदगी पर वार करता रहता हूँ
मैं कितना ख़ुश था चमकती हुई दुनिया में मेरी
मगर तू छोड़ गया हाथ मेरा मेले में
इतनी भटकन है मेरी सोच के परिंदों में
मैं ख़ुद से मिलता नहीं भीड़ में, अकेले में
जब तलक जिस्म ये मिट्टी न हो फिर से, तब तक
मुझे तो कोई भी मंज़िल नज़र नहीं आती
ये दिन और रात की साज़िश है, वगरना मेरी
कभी भी शब नहीं ढलती, सहर नहीं आती
तभी तो रोज़ यही सोचता रहता हूँ मैं
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह?
-कुमार विश्वास
बोलो रानी क्या नाम करूँ?
कुमार विश्वास की कविताएं साहित्य के प्रेम के उचित रंगों से समाज को रंगने का काम करती हैं। कुमार विश्वास द्वारा रचित कविता “बोलो रानी क्या नाम करूँ?” को पढ़कर आप इसकी अनुभूति कर सकते हैं, जिसका उद्देश्य प्रेम को उचित सम्मान देना है।
बोलो रानी क्या नाम करूँ?
क्या गोपन-गोपन नाद सुनूँ?
या जनम-जनम बदनाम करूँ?
किरणों की सुर्ख़ अलगनी पर
जिस दिन तुम टाँग गई थीं दिन,
उस दिन से आँखों का सूरज,
रातों में कभी नहीं बदला,
आँगन में बिछे हुए मौसम
और उसकी गर्म साज़िशों से,
अंबर पिघला, तारे पिघले
ये सपना कभी नहीं पिघला
अब तुम बोलो इस क़िस्से में
क्या ख़ास रखूँ, क्या आम करूँ?
–कुमार विश्वास
कुमार विश्वास द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ
कुमार विश्वास की कविताएं आपको हमेशा एक नया मार्ग देंगी, जिससे आप जीवन को एक सही दिशा दे पाएं। कुमार विश्वास द्वारा रचित विशेष पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं, जो सही मायनों में प्रेम को परिभाषित करती नज़र आएंगी।
तुम्हीं पे मरता है ये दिल, अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है, बगावत क्यों नहीं करता
–कुमार विश्वास
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूबकर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
–कुमार विश्वास
सूरज पर प्रतिबंध अनेकों और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं हँसना झूठी बातों पर
–कुमार विश्वास
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है
–कुमार विश्वास
कुछ छोटे सपनों के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पड़े हैं पांव अभागे, जाने कौन डगर ठहरेंगे
–कुमार विश्वास
तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं
मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा
–कुमार विश्वास
इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता है
मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है
–कुमार विश्वास
क़ोशिशें मुझको मिटाने की मुबारक़ हों मगर
मिटते-मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा
–कुमार विश्वास
आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुमार विश्वास की कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।