Jalvayu ke Prakar: जलवायु के प्रकार और क्षेत्र

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जलवायु के प्रकार

जब हम अपने आसपास के वातावरण को देखकर आने वाले पल में सर्दी, गर्मी या बारिश का अनुमान लगाते हैं, तो हम उस समय मौसम की बात कर रहे होते हैं। लेकिन यदि यही बात हम किसी जगह के लंबे समय तक के तापमान, वर्षा और मौसम के औसत व्यवहार के बारे में करते हैं, तो यह जलवायु पर सार्थक चर्चा को जन्म देती है या आसान भाषा में कहा जाए तो यह हमें जलवायु के बारे में विस्तृत जानकारी देता है। यह न केवल परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आपको भारत और विश्व की भौगोलिक समझ को जानने का भी एक अवसर देता है। यह समझने से आपको यह भी पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन क्यों इतना बड़ा मुद्दा बन गया है। इस लेख में आपके लिए जलवायु के प्रकार (Jalvayu ke Prakar) से संबंधित जानकारी दी गई है, जो आपके ज्ञान में वृद्धि करने का काम करेगी।

जलवायु की परिभाषा

जब हम किसी स्थान के मौसम की लंबे समय तक की स्थिति को समझते हैं, तो उसे जलवायु कहते हैं। बता दें कि मौसम तो हर दिन बदलता है- कभी धूप, कभी बारिश, तो कभी ठंड के रूप में, लेकिन जलवायु उस क्षेत्र की औसतन मौसमीय स्थिति होती है, जो वर्षों तक एक जैसी बनी रहती है। उदाहरण के लिए, राजस्थान की जलवायु शुष्क और गर्म मानी जाती है, जबकि केरल की जलवायु नम और उष्णकटिबंधीय होती है। जलवायु को समझने में तापमान, वर्षा, आर्द्रता, हवा की गति और दिशा जैसे तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों की जलवायु अलग-अलग होती है, जिसका मुख्य कारण सूर्य की किरणों का कोण, समुद्र तल से ऊँचाई, स्थलाकृतिक बनावट और समुद्र की नज़दीकी होना है।

विश्व में जलवायु के प्रकार (Vishav me Jalvayu ke Prakar)

विश्व में निम्नलिखित प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं, जिनकी जानकारी इस प्रकार हैं:

  • भूमध्यरेखीय जलवायु (Equatorial Climate)
  • मरुस्थलीय जलवायु (Desert Climate)
  • टुंड्रा जलवायु (Tundra Climate)
  • महाद्वीपीय जलवायु (Continenta Climatel)
  • समुद्री जलवायु (Oceanic Climate)

यह भी पढ़ें : भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?

भूमध्यरेखीय जलवायु

भूमध्यरेखीय जलवायु पृथ्वी के भूमध्य रेखा के पास स्थित क्षेत्रों में पाया जाता है, जहाँ साल भर तापमान लगभग समान और गर्म बना रहता है। यहाँ अधिक वर्षा होती है और मौसम में ज्यादा बदलाव नहीं होता। इस जलवायु क्षेत्र में अमेज़न वर्षावन जैसे घने जंगल मिलते हैं। लगातार नमी और गर्मी के कारण यहाँ जैव विविधता बहुत अधिक होती है। बताना चाहेंगे कि इस जलवायु में सर्दी का कोई स्थान नहीं होता है, यह जलवायु क्षेत्र विशेष रूप से गर्म और आर्द्र होता है। इसके साथ ही इस जलवायु में दिन और रात की लगभग बराबर ही रहती है।

इस जलवायु की विशेषताएं ये हैं: भूमध्यरेखीय जलवायु क्षेत्रों में साल भर तापमान में बहुत कम बदलाव होता है, इसके साथ ही यहाँ औसत मासिक तापमान लगभग 26-28 डिग्री सेल्सियस रहता है। बता दें कि वार्षिक तापमान सीमा के बहुत कम रहने से यहाँ बादल छाए रहते हैं और इसलिए ही यहाँ भारी वर्षा होती है। इस जलवायु में आर्द्रता बहुत ज़्यादा होती है, इसी कारण से यहाँ दैनिक तापमान में कमी देखी जाती है।

बता दें कि साल में 2,000 मिमी या उससे ज़्यादा बारिश होने जैसी विशेषताओं के चलते ही भूमध्यरेखीय जलवायु वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वर्षावन पाए जाते हैं, जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े वर्षावनों का घर भी कहा जाता है। बताना चाहेंगे कि भूमध्यरेखीय जलवायु वाले कुछ क्षेत्रों में दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मध्य अफ़्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, कोस्टा रिका, केन्या, बोर्नियो आदि शामिल हैं।

भूमध्यरेखीय जलवायु क्षेत्रों में कांगो बेसिन पहाड़ी गोरिल्ला, तराई गोरिल्ला, चिम्पांजी और कई पक्षी प्रजातियों का घर पाया जाता है। इसके साथ ही ज़हरीले डार्ट मेंढक, मार्गे और कॉलर वाले एंटीटर, सुस्ती, टूकेन, मकड़ी बंदर और उड़ने वाले मेंढक अन्य जानवरों आदि के लिए भी यह सुरक्षित होता है।

मरुस्थलीय जलवायु

धरती पर कई तरह की जलवायु पाई जाती है, जिनमें से एक है मरुस्थलीय जलवायु। मरुस्थलीय जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है और तापमान में दिन और रात के बीच काफी अंतर होता है। ऐसे इलाके अक्सर रेत से ढके होते हैं, जैसे – थार मरुस्थल (भारत) और सहारा मरुस्थल (अफ्रीका)। यहाँ की जलवायु शुष्क होती है और गर्मियों में तापमान 45°C से भी ऊपर पहुँच सकता है। बताना चाहेंगे कि शुष्क भूमि में वनस्पति कम हो जाने और अंततः गायब हो जाने की प्रक्रिया के कारण ही यह जलवायु बेहद गर्म होती है।

बताना चाहेंगे कि यह जलवायु विशेष रूप से पृथ्वी के उन हिस्सों को दर्शाता है जहाँ जीवन कठिन परिस्थितियों में भी बना रहता है। पृथ्वी पर मरुस्थलीय जलवायु मुख्यतः सूखे और शुष्क इलाकों जैसे – थार का मरुस्थल (भारत), सहारा मरुस्थल (अफ्रीका) और अरब का मरुस्थल (मध्य एशिया) में पाई जाती है। इन जगहों पर सालभर में औसतन 250 मिलीमीटर से भी कम वर्षा होती है। दिन में तेज गर्मी और रात में ठंडी हवाएं इस जलवायु की खास पहचान हैं। उदाहरण के तौर पर, थार मरुस्थल में दिन का तापमान 45°C तक पहुंच जाता है, जबकि रात में यह 10°C तक गिर सकता है।

इस प्रकार की जलवायु में वनस्पति बहुत कम होती है, और जो होती भी है, वह कांटेदार झाड़ियाँ और पानी संग्रह करने वाली खास किस्म की होती है, जैसे – कैक्टस और बबूल। जीव-जंतुओं में ऊँट को “रेगिस्तान का जहाज़” कहा जाता है, क्योंकि वह कई दिनों तक बिना पानी के जीवित रह सकता है। बताना चाहेंगे कि पृथ्वी के 14.2% भूभाग पर मरुस्थलीय जलवायु का विस्तार है, जो कि ध्रुवीय जलवायु के बाद दूसरी सबसे विस्तृत जलवायु है।

टुंड्रा जलवायु

टुंड्रा जलवायु पृथ्वी के सबसे ठंडे और कठिन जलवायु क्षेत्रों में से एक है, जो मुख्य रूप से आर्कटिक क्षेत्र और ऊँचे पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है। इस जलवायु को ध्रुवीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक कठोर जलवायु भी कहा जाता है। यहाँ तापमान अधिकांश समय शून्य से नीचे रहता है और इस जलवायु में पेड़ नहीं उग पाते, सिर्फ काई, लाइकेन और झाड़ियों जैसी वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।

इस जलवायु वाले क्षेत्रों में जहाँ एक ओर सर्दियों के महीनों का तापमान आमतौर पर -18 और -50 डिग्री के बीच होता है, तो वही दूसरी ओर इस जलवायु में गर्मियों के दिनों का तापमान 35-50 डिग्री के बीच होता है। इसके पीछे के कारण उच्च अक्षांश पर निम्न तापमान का होना है। बता दें कि इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से अप्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति होती है, इसी कारण से यहाँ का तापमान कभी 50 डिग्री से ऊपर नहीं जाता।

बताना चाहेंगे कि इस प्रकार की जलवायु में जीव-जंतुओं और इंसानों का जीवन कठिन होता है, फिर भी कुछ ऐसे खास जीव होते हैं जो इस जलवायु में सर्वाइव कर सकते हैं। इस जलवायु में मुख्य रूप से आर्कटिक फॉक्स, कारिबू, पोलर बियर और कस्तूरी बैल जैसे जीव-जंतु पाए जाते हैं।

महाद्वीपीय जलवायु

महाद्वीपीय जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है जो समुद्र से बहुत दूर होते हैं, जैसे- मध्य एशिया, उत्तरी अमेरिका का आंतरिक भाग या रूस के कुछ हिस्से। इन स्थानों पर गर्मियों में तापमान बहुत अधिक और सर्दियों में बहुत कम हो जाता है, क्योंकि समुद्र का तापमान संतुलित करने वाला प्रभाव यहाँ नहीं होता है, यही कारण है कि यहाँ वर्षा भी कम होती है।

बताना चाहेंगे कि महाद्वीपीय जलवायु क्षेत्र वैश्विक कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, जो मक्का और गेहूं जैसी फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण अन्न भंडार के रूप में कार्य करता है। इस जलवायु क्षेत्र को गर्मियों के कारण ही आर्द्र महाद्वीपीय जलवायु में वर्गीकृत किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन के सामने कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है।

महाद्वीपीय लघु (ठंडी) ग्रीष्मकालीन जलवायु क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान, संवहनीय तूफान, सामान्य ही हैं, जिनमें से कई बिजली के साथ गंभीर होते हैं। बता दें कि इस जलवायु में गर्मियों के दौरान तापमान औसत 24 डिग्री सेल्सियस होता है। तो वहीं दूसरी ओर सर्दियों के दौरान इसका औसत तापमान शून्य से नीचे, -12 डिग्री से -11 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।

इस प्रकार की जलवायु क्षेत्र में ठंडी उत्तरी हवा के प्रभाव से, -18 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान की चरम सीमाओं का अनुभव किया जा सकता है, जो कि असामान्य नहीं है। इसके साथ ही यहाँ बढ़ते तापमान के साथ, संवहनीय तूफानों की लंबी अवधि की संभावना भी मौजूद होती है।

समुद्री जलवायु

समुद्री जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है जो महासागरों के नज़दीक होते हैं। इसी कारण से यहाँ का मौसम न तो बहुत गर्म होता है और न ही बहुत ठंडा, बल्कि यहाँ का मौसम साल भर समान्य और नमी भरा रहता है। यह जलवायु विशेष रूप से पश्चिमी यूरोप, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, चिली, जापान का तटीय हिस्सा और भारत का मुंबई जैसे तटीय शहर के कुछ हिस्सों में देखी जाती है। बता दें कि समुद्र की सतह से उठने वाली नमी हवा के तापमान को संतुलित करती है, जिससे यहाँ जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं।

इस प्रकार की जलवायु में बारिश के नियमित रूप से होने के कारण, यहाँ कृषि करना बहुत लाभकारी होता है। इसी कारण से समुद्री जलवायु वाले क्षेत्रों में हरियाली अधिक होती है और यहाँ जीवनशैली ज़्यादा सुकूनदायक मानी जाती है। भूगोल के दृष्टिकोण से देखा जाए आप जानेंगे कि समुद्री जलवायु मुख्यतः पश्चिमी समुद्र तटों जैसे कि यूरोप के पश्चिमी तट या उत्तरी अमेरिका का पेसिफिक कोस्ट पर पाई जाती है। यह जलवायु समुद्री हवाओं के कारण बनती है जो जलवायु को नम और ठंडा बनाए रखती हैं।

बता दें कि समुद्री जलवायु न केवल पर्यावरण के लिए लाभदायक होती है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने संतुलित तापमान और नियमित वर्षा के कारण ही यह दुनिया की सबसे सहज और अनुकूल जलवायु में से एक मानी जाती हैं। यही कारण है कि भारत के तटीय शहरों जैसे मुंबई आदि में इस जलवायु का प्रभाव देखा जाता है, जहाँ गर्मी के मौसम में तापमान बहुत अधिक नहीं होता और सर्दियों में भी बहुत ठंड नहीं पड़ती। इसकी एक प्रमुख वजह समुद्र की नमी और स्थिरता भी है।

भारत में जलवायु के प्रकार (Bharat me Jalvayu ke Prakar)

भारत एक विशाल और विविधता से भरपूर देश है, जहाँ की जलवायु हर क्षेत्र में अलग-अलग रूप में देखने को मिलती है। इसका मुख्य कारण भारत की भौगोलिक स्थिति, समुद्र तल से ऊँचाई, पर्वतों की स्थिति और समुद्रों की निकटता है। बता दें कि भारत में निम्नलिखित प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं –

  • उष्णकटिबंधीय नम जलवायु
  • उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु और शुष्क जलवायु
  • समशीतोष्ण जलवायु
  • मानसूनी जलवायु
  • स्थल अंतर्देशीय जलवायु

उष्णकटिबंधीय नम जलवायु

उष्णकटिबंधीय नम जलवायु (Tropical Wet Climate) पृथ्वी के भूमध्य रेखा के आसपास पाए जाने वाला जलवायु क्षेत्र है, जहाँ वर्षभर गरमी और अधिक वर्षा होती है। यह जलवायु क्षेत्र सामान्यतः 0° से 10° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के बीच पाया जाता है, जहाँ का तापमान पूरे साल लगभग 25°C से 30°C के बीच बना रहता है। इस जलवायु का प्रभाव अमेज़न बेसिन (दक्षिण अमेरिका), कांगो बेसिन (अफ्रीका), दक्षिण-पूर्व एशिया के देश (इंडोनेशिया, मलेशिया) आदि क्षेत्रों में बहुत देखा जाता है।

इस प्रकार की जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि यहाँ लगातार गर्मी और अत्यधिक नमी होती है। बता दें कि यहाँ वर्षा की मात्रा भी अत्यधिक होती है, इस जलवायु से प्रभावित कई क्षेत्रों में तो सालाना 2000 मिमी से भी अधिक वर्षा का रिकॉर्ड देखा गया है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में सदाबहार वनों की भरमार होती है, जिन्हें वर्षावन (Rainforests) भी कहा जाता है।

उष्णकटिबंधीय नम जलवायु वाले क्षेत्रों में दिन और रात की लंबाई लगभग समान होती है, और सूर्य की किरणें सालभर सीधी पड़ती हैं। इसके कारण इन क्षेत्रों में वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे बादल तेजी से बनते हैं और बारिश की संभावना बनी रहती है। बता दें कि इस जलवायु क्षेत्र में जैव विविधता सबसे अधिक होती है, लेकिन बढ़ते वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण ये क्षेत्र अब खतरे में हैं, जिनका संरक्षण समाज की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।

उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु और शुष्क जलवायु

उष्णकटिबंधीय शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है और तापमान अधिक रहता है। यह जलवायु मुख्यतः रेगिस्तानी और घास के मैदानों वाले क्षेत्रों में देखी जाती है, जैसे – राजस्थान का थार मरुस्थल और अफ्रीका का सहारा। यहाँ की मिट्टी सूखी होती है और यहाँ वनस्पति बहुत कम मात्रा में पाई जाती है।

यदि बात करें उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु की तो यह ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ सालभर गर्मी बनी रहती है और भारी मात्रा में वर्षा होती है। यह जलवायु प्रकार मुख्यतः भूमध्य रेखा के पास पाए जाते हैं, जैसे – भारत का केरल राज्य, ब्राज़ील का अमेज़न क्षेत्र और इंडोनेशिया। यहाँ की औसत वार्षिक वर्षा 2000 मिमी से अधिक हो सकती है। इन क्षेत्रों में घने वर्षावन, जैव विविधता और नमी युक्त वातावरण आम होता है। तो वहीं दूसरी ओर, शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र अत्यंत कम वर्षा और शुष्कता के लिए जाने जाते हैं। ये इलाके आमतौर पर रेगिस्तानी या अर्द्ध-रेगिस्तानी जैसे – राजस्थान का थार मरुस्थल, मिस्त्र का सहारा रेगिस्तान और ईरान का दश्त-ए-लूत आदि होते हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा 250 मिमी से भी कम हो सकती है और तापमान दिन में बहुत अधिक और रात में बहुत कम हो जाता है।

इन दोनों जलवायु प्रकारों के बीच सबसे बड़ा अंतर नमी और वर्षा का होता है। जहाँ उष्णकटिबंधीय आर्द्र क्षेत्र हरियाली से भरपूर होते हैं, वहीं शुष्क क्षेत्र जल संकट और कम वनस्पति के लिए जाने जाते हैं।

समशीतोष्ण जलवायु

समशीतोष्ण जलवायु धरती के उन हिस्सों में पाई जाती है जहाँ न तो ज्यादा ठंड होती है और न ही ज्यादा गर्मी। यह जलवायु मुख्यतः 23½° उत्तरी अक्षांश और 66½° उत्तरी अक्षांश तथा 23½° दक्षिणी अक्षांश और 66½° दक्षिणी अक्षांश के बीच पाई जाती है। भारत में इसका उदाहरण हिमालय के कुछ भागों में देखा जा सकता है। इस प्रकार की जलवायु में चार स्पष्ट ऋतुएँ “ग्रीष्म, शरद, शीत और वसंत” होती हैं।

समशीतोष्ण जलवायु से प्रभावित क्षेत्रों में यूरोप के कई देश जैसे फ्रांस, जर्मनी, और इटली आदि आते हैं। इसके साथ ही भारत में हिमालय के दक्षिण और विन्ध्य पर्वतों के उत्तर का कुछ भाग, जैसे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाके भी इस श्रेणी में गिने जा सकते हैं। बताना चाहेंगे कि यहाँ पर खेती के लिए अनुकूल मौसम और वर्षा की उचित मात्रा मिलती है, जिससे फसलें अच्छी होती हैं।

समशीतोष्ण जलवायु एक ऐसी जलवायु भी है, जो न केवल कृषि के लिए आदर्श होती है, बल्कि यह जीवनशैली, पर्यटन और पर्यावरणीय संतुलन के लिहाज से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह जलवायु परिवर्तन को समझने और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देती है।

मानसूनी जलवायु

मानसूनी जलवायु भारत सहित कई एशियाई देशों की पहचान है, जो विशेष रूप से गर्मियों में समुद्र से आने वाली नमी भरी हवाओं के कारण वर्षा लाती है। यह जलवायु खेती, जल आपूर्ति और जनजीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। बता दें कि जून से सितंबर तक मानसून सक्रिय रहता है और देश के अधिकांश हिस्सों में बारिश होती है। जैसे केरल में सबसे पहले मानसून प्रवेश करता है।

मानसून जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता मौसमी वर्षा है। बता दें कि इस जलवायु से प्रभावित क्षेत्रों में भारी वर्षा जून से सितंबर तक होती है। बताना चाहेंगे कि मानसून जलवायु में हवाओं की दिशा में परिवर्तन ऋतु के अनुसार होता है, जो मानसून के दौरान समुद्र से स्थल की ओर और सर्दियों में स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं। मानसूनी जलवायु में ग्रीष्म ऋतु में तापमान बहुत अधिक और शीत ऋतु में अपेक्षाकृत कम होता है।

देखा जाए तो मानसूनी जलवायु का सबसे अच्छा उदाहरण भारत है, जहां दक्षिण-पश्चिम मानसून हर साल जून से सितंबर के बीच सक्रिय होता है। यह हवाएं अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आती हैं और देश के लगभग हर हिस्से में वर्षा पहुंचाती हैं। उदाहरण के तौर पर, मेघालय का मौसिनराम दुनिया का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान माना जाता है।

गौरतलब है कि यह जलवायु केवल वर्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह फसलों की बुवाई, भूजल स्तर, जल विद्युत उत्पादन और यहां तक कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है। यदि मानसून समय पर और संतुलित मात्रा में आता है, तो अच्छी फसल होती है, पर यदि यह असमय हो या कमजोर रहे, तो सूखा या बाढ़ जैसी आपदाएं भी सामने आ सकती हैं।

स्थल अंतर्देशीय जलवायु

भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है, जिनमें से एक है – स्थल अंतर्देशीय जलवायु। यह जलवायु उन क्षेत्रों में देखने को मिलती है जो समुद्र से दूर स्थित होते हैं, जैसे – दिल्ली, भोपाल या नागपुर। इन स्थानों पर गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और सर्दियों में तेज ठंड पड़ती है क्योंकि समुद्र की नमी यहाँ तक नहीं पहुँच पाती।

स्थल अंतर्देशीय जलवायु मुख्यतः बड़े महाद्वीपों के अंदरूनी हिस्सों में पाई जाती है। उदाहरण के लिए देखा जाए तो, भारत के मध्य भाग जैसे मध्य प्रदेश या राजस्थान का कुछ हिस्सा — यहाँ गर्मियों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है, जबकि सर्दियों में तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे आ सकता है। इसी प्रकार रूस, मंगोलिया और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी यह जलवायु देखने को मिलती है।

स्थल अंतर्देशीय जलवायु की विशेषता है कि इस जलवायु में कम वर्षा, शुष्क हवाएं, और तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। इन क्षेत्रों में खेती करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर उन फसलों के लिए जो अत्यधिक नमी या स्थिर तापमान की मांग करती हैं। हालांकि, गेहूं और जौ जैसी फसलें इस जलवायु में अच्छी तरह उगाई जाती हैं।

भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्या है?

भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु एक विशेष जलवायु प्रणाली है, जो मुख्य रूप से जून से सितंबर तक सक्रिय रहती है। यह जलवायु दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के कारण बनती है, जो अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर आती हैं। इस कारण भारत के अधिकांश हिस्सों में वर्षा होती है, जो कृषि के लिए अत्यंत आवश्यक है। यही कारण है कि भारत की जलवायु को ‘मानसूनी जलवायु’ कहा जाता है।

भारत का मानसून

भारत का मानसून एक ऐसा प्राकृतिक चक्र है जो भारत की जलवायु और कृषि जीवन रेखा को निर्धारित करता है। बताना चाहेंगे कि जहाँ एक ओर हर वर्ष जून से सितंबर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून देश के अधिकतर हिस्सों में वर्षा लेकर आता है, जो नदियों, खेतों और जलस्रोतों को जीवन से भर देता है। तो वहीं दूसरी ओर यह मौसम न केवल किसानों के लिए महत्वपूर्ण होता है, बल्कि आम जीवन, पर्यावरण और आर्थिक गतिविधियों पर भी गहरा प्रभाव डालता है। मानसून का समय, दिशा और मात्रा से ही देश के भूगोल और जलवायु की गहराई को सरलता से समझा जा सकता है।

जलवायु और मौसम में अंतर

मौसम और जलवायु, दोनों शब्द हमारे वातावरण से जुड़े हैं, लेकिन इन दोनों शब्दों का अर्थ और समय-सीमा बिल्कुल अलग-अलग होती है। जलवायु और मौसम में अंतर को निम्नलिखित तालिका के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है,  प्रकार है –

बिंदुमौसम (Weather)जलवायु (Climate)
परिभाषावायुमंडल की एक दिन या कुछ दिनों की स्थितिकिसी क्षेत्र की लम्बे समय तक की औसत स्थिति
समय-सीमाकुछ घंटे से लेकर कुछ दिन तककई वर्षों (30 साल या उससे अधिक) तक
बदलाव की गतिबहुत तेज़ – रोज़ाना बदल सकता है।धीरे-धीरे – वर्षों में बदलाव होता है।
उदाहरणआज बारिश हो रही है।चेन्नई की जलवायु गर्म और नम होती है।
अध्ययन करने वाली शाखामौसम विज्ञान (Meteorology)जलवायु विज्ञान (Climatology)

जलवायु का हमारे जीवन पर प्रभाव

हमारी पृथ्वी पर जीवन की गुणवत्ता और दिशा बहुत हद तक जलवायु पर निर्भर करती है। यह केवल तापमान और बारिश तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे भोजन, रहन-सहन, स्वास्थ्य और आजीविका से गहराई से जुड़ी हुई है। जलवायु का हमारे जीवन पर प्रभाव जानने के लिए आपको निम्नलिखित बिंदुओं को जरूर पढ़ना चाहिए, जो इस प्रकार हैं –

  • जलवायु का सीधा प्रभाव खेती और फसल पर पड़ता है। आसान भाषा में समझें तो अगर मौसम समय पर नहीं बदले या अत्यधिक गर्मी-सर्दी हो, तो फसलें खराब हो सकती हैं। जैसे-कम बारिश से सूखा और ज्यादा बारिश से बाढ़ आती है।
  • इसका हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे अत्यधिक गर्मी में लू लगना, ठंड में निमोनिया जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं।
  • पहनावे और हमारे रहन-सहन पर भी जलवायु का सीधा प्रभाव देखा जा सकता है। इसको कुछ यूँ समझें कि पहाड़ी इलाकों में लोग ऊनी कपड़े पहनते हैं जबकि गर्म क्षेत्रों में हल्के और सूती वस्त्र पहने जाते हैं।
  • जलवायु और संस्कृति का संबंध भी सीधा जलवायु से जुड़ा होता है, जिसके अनुसार रेगिस्तानी इलाकों में जीवनशैली अलग होती है जबकि तटीय क्षेत्रों में मछलीपालन आम होता है।
  • प्राकृतिक आपदाएं जैसे: बाढ़, सूखा, चक्रवात आदि जलवायु परिवर्तन के कारण ही आती हैं।

जलवायु के निर्माण में सहायक तत्व

जलवायु के निर्माण में कई प्राकृतिक तत्व मिलकर काम करते हैं, जो किसी क्षेत्र की तापमान, वर्षा, हवा की गति और दिशा, आर्द्रता आदि को प्रभावित करते हैं। जलवायु के निर्माण में सूर्य की ऊष्मा, समुद्र की निकटता, पर्वतों की स्थिति, समुद्र धाराएँ और पवनें आदि तत्व अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, समुद्र के पास स्थित मुंबई में नम और गर्म जलवायु होती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्र शिमला में ठंडी जलवायु पाई जाती है। यह विषय केवल परीक्षा की दृष्टि से नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण को समझने के लिए भी बहुत जरूरी है।

FAQs

भारत में जलवायु के कितने मुख्य प्रकार पाए जाते हैं?

भारत में मुख्य रूप से पाँच प्रकार की जलवायु पाई जाती है: उष्णकटिबंधीय आर्द्र, उष्णकटिबंधीय शुष्क, उपोष्णकटिबंधीय, पर्वतीय और समुद्री जलवायु।

जलवायु और मौसम में क्या अंतर होता है?

मौसम कुछ दिनों या हफ्तों की अवधि के वातावरण की स्थिति को दर्शाता है, जबकि जलवायु किसी क्षेत्र की वर्षों से चली आ रही औसत मौसमी स्थिति को दर्शाती है।

उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु की विशेषताएं क्या हैं?

इस प्रकार की जलवायु में पूरे साल अधिक गर्मी और नमी रहती है। वर्षा अधिक होती है और तापमान में बहुत अधिक अंतर नहीं होता।

शुष्क जलवायु किसे कहते हैं और यह कहाँ पाई जाती है?

शुष्क जलवायु वह होती है जहाँ वर्षा बहुत कम होती है और तापमान अत्यधिक गर्म या ठंडा हो सकता है। यह राजस्थान जैसे क्षेत्रों में देखी जाती है।

पर्वतीय जलवायु किन विशेषताओं से पहचानी जाती है?

पर्वतीय क्षेत्रों की जलवायु ठंडी और शीतल होती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है और वर्षा या हिमपात की संभावना बढ़ जाती है।

समुद्री जलवायु किन क्षेत्रों में देखने को मिलती है?

समुद्र के किनारे बसे क्षेत्रों जैसे मुंबई, चेन्नई और कोच्चि में समुद्री जलवायु पाई जाती है। यहाँ तापमान में ज्यादा अंतर नहीं होता और आर्द्रता अधिक रहती है।

उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में कौन-कौन से मौसम प्रमुख होते हैं?

उपोष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में गर्मी, सर्दी और मानसून तीनों मौसम प्रमुख होते हैं। यह उत्तर भारत के कई हिस्सों में देखने को मिलती है।

जलवायु परिवर्तन का विभिन्न जलवायु प्रकारों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

जलवायु परिवर्तन से सूखा, अत्यधिक वर्षा, हिमनदों का पिघलना, समुद्री जल स्तर में वृद्धि और तापमान में असमानता जैसे प्रभाव विभिन्न जलवायु क्षेत्रों पर देखे जा सकते हैं।

जलवायु का किसी क्षेत्र की कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है?

किसी भी क्षेत्र की जलवायु उसकी कृषि प्रणाली को निर्धारित करती है। जैसे शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में कम जल की फसलें होती हैं जबकि आर्द्र जलवायु में धान जैसी फसलें सफल होती हैं।

भारत में जलवायु के प्रकारों को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?

भारत की जलवायु पर अक्षांश, समुद्र तल से ऊँचाई, स्थलाकृति, समुद्र की निकटता और मानसूनी हवाएं जैसे कई भौगोलिक कारक प्रभाव डालते हैं।

आशा है कि इस लेख में जलवायु के प्रकार से संबंधित संपूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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