व्यंग्य और यथार्थ को परिभाषित करते हरिशंकर परसाई के विचार

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हरिशंकर परसाई के विचार

“निंदा का उद्गम ही हीनता और कमज़ोरी से होता है।” यह विचार है हरिशंकर परसाई का, जो हिंदी भाषा के एक प्रमुख व्यंग्यकार थे। उनके लेखन में व्यंग्य के माध्यम से समाज की विभिन्न समस्याओं, विसंगतियों और कुरीतियों का प्रखरता से विरोध मिलता है। सही मायनों में हरिशंकर परसाई का व्यंग्य मनोरंजन का नहीं बल्कि समाज में सुधार का एक सशक्त माध्यम भी था। परसाई जी एक ऐसे आलोचक थे, जो अपने व्यंग्य के माध्यम से समाज की विडंबनाओं, राजनीतिक भ्रष्टाचार, धार्मिक पाखंड और सामाजिक अन्याय के विरुद्ध तीखी और बेबाक आलोचना किया करते थे। इस ब्लॉग में हरिशंकर परसाई के विचार (Harishankar Parsai Quotes in Hindi) आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को आईना दिखाने के कार्य करते हैं।

हरिशंकर परसाई के विचार – Harishankar Parsai Quotes in Hindi

हरिशंकर परसाई के विचार (Harishankar Parsai Quotes in Hindi) समाज को दर्पण दिखाने का काम करते हैं, ये विचार कुछ इस प्रकार हैं:

हरिशंकर परसाई के विचार
  • आत्मकथा में सच छिपा लिया जाता है।
  • निंदा का उद्गम ही हीनता और कमज़ोरी से होता है।
  • लेखक को आदरणीय होने से बचना चाहिए। आदरणीय हुआ कि गया।
  • इज़्ज़तदार आदमी ऊँचे झाड़ की ऊँची टहनी पर दूसरे के बनाए घोंसले में अंडे देता है।
  • प्रतिभा पर थोड़ी गोंद तो होनी चाहिए। किसी को चिपकाने के लिए कोई पास से गोंद थोड़े ही ख़र्च करेगा।
  • बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है।
  • नशे के मामले में हम बहुत ऊँचे हैं। दो नशे ख़ास हैं—हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं।
  • इस देश के बुद्धिजीवी सब शेर हैं। पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।
  • जो पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का ख़ून बिना छना पी जाते हैं।
  • अच्छा भोजन करने के बाद मैं अक्सर मानवतावादी हो जाता हूँ।
  • सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है।
  • कुसंस्कारों की जड़ें बड़ी गहरी होती हैं।

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हरिशंकर परसाई के जीवन पर प्रसिद्ध हस्तियों के विचार

हरिशंकर परसाई के जीवन पर प्रसिद्ध हस्तियों के विचार कुछ इस प्रकार हैं:

हरिशंकर परसाई के विचार
  • हरिशंकर परसाई का व्यंग्य समाज का दर्पण है। वे हमें हंसाते हैं, पर साथ ही सोचने पर भी मजबूर करते हैं। उनका लेखन हमारे समाज की विसंगतियों को उजागर करता है। – हरिवंश राय बच्चन
  • परसाई का लेखन हमारी सोच और समाज की वास्तविकता को प्रकट करता है। उनके व्यंग्य में समाज की सच्चाई को उजागर करने की अद्भुत शक्ति है। – राहुल सांकृत्यायन
  • परसाई ने अपने व्यंग्य के माध्यम से समाज की कुरीतियों और विसंगतियों पर करारा प्रहार किया है। उनका लेखन न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि समाज सुधार का संदेश भी देता है। – गोपालदास ‘नीरज’
  • हरिशंकर परसाई का व्यंग्य समाज के अंधेरे कोनों में रोशनी डालता है। वे अपनी लेखनी से समाज के हर वर्ग को प्रभावित करते हैं और हमें आत्ममंथन के लिए प्रेरित करते हैं। – गुलज़ार
  • परसाई का व्यंग्य साहित्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के गहरे प्रश्नों पर गंभीर चिंतन है। उनके लेखन में समाज के प्रति एक गहरी प्रतिबद्धता और जागरूकता देखने को मिलती है। – रामविलास शर्मा

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हरिशंकर परसाई के सामाजिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई के सामाजिक व्यंग्य, समाज को आईना दिखाने के साथ-साथ एक नई दिशा दिखाने का काम करते हैं। इसका उद्देश्य समाज की हर कुरीति को जड़ से मिटाना, ये व्यंग्य कुछ इस प्रकार हैं:

हरिशंकर परसाई के विचार
  • लोकतंत्र में ऐसे स्वर जरूरी हैं जो असहमति के हों। साहित्य, लोकतंत्र के असहमति के स्वरों को व्यक्त भी करता है और दबाता भी है।
  • चंदा माँगने वाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेने वाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देनेवाला भी माँगनेवाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं।
  • समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है। सांप्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया – हिंदू-मुस्लिम, भाई-भाई!
  • दिशाहीन, बेकार, हताशा, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका प्रयोग महत्वकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था।
  • रोटी खाने से ही कोई मोटा नहीं होता, चंदा या घूस खाने से होता है। बेईमानी के पैसे में ही पौष्टिक तत्त्व बचे हैं।
  • सचेत आदमी सीखना मरते दम तक नहीं छोड़ता। जो सीखने की उम्र में ही सीखना छोड़ देते हैं, वे मूर्खता और अहंकार के दयनीय जानवर हो जाते हैं।
  • धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन महा जन कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई।
  • मेरी आत्मा बड़ी सुलझी हुई बात कह देती है कभी-कभी। अच्छी आत्मा ‘फ़ोल्डिंग’ कुर्सी की तरह होनी चाहिए। ज़रूरत पड़ी तब फैलाकर उस पर बैठ गए; नहीं तो मोड़कर कोने में टिका दिया।
  • अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं।
  • जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं है, वह अनंतकाल के प्रति क्या ईमानदार होगा!
  • घाव अच्छी जगह हो और सजा हुआ, तो बड़े लाभ होते हैं।

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हरिशंकर परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई के राजनीतिक व्यंग्य, उस समय की राजनीतिक उथल-पुथल पर अपनी बेबाक राय रखते हैं। हरिशंकर परसाई के राजनीतिक व्यंग्य कुछ इस प्रकार हैं:

हरिशंकर परसाई के विचार
  • शासन का घूँसा किसी बड़ी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है, पर न जाने किस चमत्कार से बड़ी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूँसा पड़ जाता है।
  • विधानसभा के बाहर एक बोर्ड पर ‘आज का बाजार भाव’ लिखा रहे, उन विधायकों की सूची चिपकी रहे जो बिकने को तैयार हैं।
  • हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलखाने में रहना चाहिए वे जिन्दगी भर संसद या विधानसभा में बैठते हैं।
  • दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है। इस देश में दंगे के काम आती है।
  • जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढिय़ा चल रहा है।
  • राजनीतिज्ञों के लिए हम नारे और वोट हैं, बाकी के लिए हम महामारी और बेकारी हैं।
  • प्रजातंत्र में सबसे बड़ा दोष तो यह है कि उसमें योग्यता को मान्यता नहीं मिलती।
  • जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्रिमंडल बनते हैं।
  • राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है।

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आशा है कि आपको इस ब्लॉग में हरिशंकर परसाई के विचार पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ होगा। Harishankar Parsai Quotes in Hindi में पढ़कर आप उनके व्यंग्यों से प्रेरणा पाकर समाज में व्याप्त हर कुरीति का विरोध कर पाएंगे। इसी प्रकार के कोट्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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