Angaro Ki Holi 2025: भारत और दुनियाभर में हर वर्ष होली का त्योहार बड़ी धूमधाम और भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस साल 13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च को शुक्रवार के दिन होली मनाई जाएगी। वहीं पूरे देश को अनेकता में एकता के रंग में रंगने वाली होली को देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। कहीं लट्ठमार होली तो कहीं फूलों की होली तो कहीं पत्थर मार होली खेली जाती है। इसके अतिरिक्त भारत में कई स्थानों पर अंगारों की होली भी खेली जाती है। जी हाँ कुछ लोग रंगों के बजाय अंगारों से होली खेलते हैं। मुख्यतौर पर इस प्रकार की होली राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में खेली जाती है। चलिए आपको अंगारों की होली (Angaro Ki Holi) के बारे में बताते हैं।
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अंगारों की होली के बारे में
अंगारों की होली, जिसे “अग्नि होली” भी कहा जाता है, वीरता और आस्था से जुड़ी एक अनोखी परंपरा है। यह परंपरा कई वर्षों पुरानी मानी जाती है और इसके पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। अंगारों की होली में लोग धधकते अंगारों पर चलते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार सालभर निरोगी और खुशहाल रहता है।
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अंगारों की होली का इतिहास
शौर्य और वीरता से भरी अंगारों की होली एक अनोखी परंपरा है, जिसे “अग्नि होली” भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह परंपरा पिछले 500 सालों से चली आ रही है। इस परंपरा के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं-
- भगवान शिव की भक्ति: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा भगवान शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने एक बार अपने भक्तों को बुराई से बचाने के लिए अंगारों से स्नान किया था। जिसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई।
- बुराई पर अच्छाई की जीत: एक अन्य कहानी के अनुसार, यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है। कहा जाता है कि इस दिन राक्षसों के राजा ने अपनी बहन होलिका की मदद से अपने बेटे प्रह्लाद को मारने की कोशिश की थी। लेकिन भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को बचा लिया था। इसके बाद से ही होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।
- सूर्य देव की पूजा: कुछ लोगों का मानना है कि यह परंपरा सूर्य देव की पूजा का प्रतीक है। अंगारों से होली खेलना सूर्य देव की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपनी पूरी शक्ति के साथ चमकते हैं।
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अंगारों की होली का महत्व
साहस और वीरता का प्रतीक माने जाने वाले इस होली के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व निम्नलिखित है;-
धार्मिक महत्व
- यह होली भगवान शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
- यह होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
- सूर्य देव की पूजा का प्रतीक माना जाता है।
सांस्कृतिक महत्व
- भारत की विविधता को दर्शाता है।
- सभी धर्मों, वर्गों के लोगों को एकजुट करता है।
सामाजिक महत्व
- साहस और वीरता का प्रदर्शन
- आत्मविश्वास और आत्म-बल का प्रदर्शन
- नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक
- सामाजिक एकता का प्रतीक
अंगारों की होली कहाँ मनाई जाती है?
मध्य प्रदेश और कर्नाटक के अतिरिक्त मुख्य रूप से अंगारों की होली राजस्थान के अजमेर जिले के केकड़ी शहर में मनाई जाती है। आपको बता दें कि यह शहर अजमेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। वहीं इसके अलावा, इस तरह की होली राजस्थान के अन्य शहरों और गांवों में भी मनाई जाती है, जैसे कि-
- नागौर
- पाली
- जोधपुर
- बीकानेर
- जयपुर
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अंगारों की होली क्यों मनाई जाती है?
अंगारों की होली (Angaro Ki Holi) मनाने के पीछे कई कारण हैं, जैसे कि-
- इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।
- यह परंपरा भारत की विविधता को दर्शाती है।
- जीवन में नई शुरुआत का संकेत देता है।
अंगारों की होली कैसे मनाई जाती है?
राजस्थान के अजमेर जिले के केकड़ी शहर में मनाई जाने वाली अंगारों की होली, होली के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग लकड़ी के ढेर को जलाकर अंगारे इकट्ठा करते हैं और फिर एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। इस दौरान अंगर्रों के बचने के लिए लोग लोग मोटे कपड़े, जूते और चश्मा पहनते हैं।
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अंगारों की होली के बारे में खास बातें
अंगारों वाली होली के बारे में खास बातें इस प्रकार से हैं:
- अंगारों की होली खेलने की परंपरा पिछले 500 सालों से चली आ रही है।
- अंगारों की होली, होली के अगले दिन मनाई जाती है।
- यह परंपरा भगवान शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक है।
- ऐसी मान्यता है कि यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- अंगारों की होली के दौरान, लोग “बाबा भैरू” के जयकारे लगाते हैं।
- इस परंपरा में शामिल होने वाले लोगों को “भैरू के भक्त” माना जाता है।
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FAQs
होली हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो मार्च के आसपास होती है।
अंगारों वाली होली राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में खेली जाती है।
अंगारों वाली होली के खतरे निम्नलिखित हैं- अंगारों से जलने का खतरा होता है, अंगारों से आग लगने का खतरा होता है, अंगारों से निकलने वाले धुएं से सांस लेने में तकलीफ और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं आदि।
रिपोर्ट्स के अनुसार होली का त्योहार 50 से अधिक देशों में मनाया जाता है।
इस साल 13 मार्च, 2025 को होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च, 2025 को होली मनाई जाएगी।
होली के दिन विशेष रूप से एक-दूसरे को रंग लगाना, गीत गाना, और खुशी के साथ त्योहार मनाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इसके अलावा, ‘लट्ठमार होली’, ‘पत्थर मार होली’ और ‘फाग उत्सव’ जैसे स्थानीय रीति-रिवाज भी प्रचलित हैं।
आशा है कि आपको इस आर्टिकल में अंगारों की होली (Angaro Ki Holi) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही होली और ट्रेंडिंग इवेंट्स से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।