रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता, युवाओं को साहित्य के माध्यम से प्रेम की महिमा से परिचित करवाती हैं। प्रेम की पवित्रता की अनुभूति कराने वाली कविताएं सही मायनों में समाज के सौहार्द को बढ़ाने की उत्तरदायी होती हैं। हिन्दी साहित्य के स्वर्णिम इतिहास में ऐसे कई कवि हुए हैं, जिन्होंने साहित्य के प्रति नई पीढ़ी को प्रेरित करने का काम किया है। हिंदी साहित्य के अनमोल रत्नों में से एक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी थे, दिनकर जी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने समाज में उठ रहे हर सवाल और हर भाव को अपने शब्दों में एक उचित स्थान दिया। दिनकर जी का जन्म वर्ष 1908 में बिहार के सिमरिया गांव में हुआ था। मुख्य रूप से रामधारी सिंह दिनकर जी की कविताएँ और काव्यग्रंथ भारतीय संस्कृति, धर्म, और समाज के मुद्दों पर आधारित थे, लेकिन उन्होंने प्रेम की पवित्रता पर भी बहुत गंभीरता के साथ अपने भाव प्रकट किये। इस पोस्ट के माध्यम से आप रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता को पढ़ पाएंगे।
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रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं
रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं युवाओं को विभिन्न पहलुओं पर व्यापकता के साथ सोचने और समझने के लिए प्रेरित करती हैं। रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं पढ़कर आप उनके साहित्य में किए गए योगदान को अच्छे से जान पाएंगे, जिसमें रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता एक मुख्य भूमिका निभाएंगी। रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता पढ़ने के लिए ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।
प्रेम
“प्रेम” नामक यह कविता, रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता के माध्यम से हिंदी साहित्य का श्रृंगार करती है, जिसने समाज को प्रेम की एक नई परिभाषा दी है। यह कविता आपको प्रेम के वास्तविक रूप से मिलवाएगी।
प्रेम की आकुलता का भेद
छिपा रहता भीतर मन में,
काम तब भी अपना मधु वेद
सदा अंकित करता तन में।
सुन रहे हो प्रिय?
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ।
और जब नारी किसी नर से कहे,
प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ,
तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर,
प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
मंत्र तुमने कौन यह मारा
कि मेरा हर कदम बेहोश है सुख से?
नाचती है रक्त की धारा,
वचन कोई निकलता ही नहीं मुख से।
पुरुष का प्रेम तब उद्दाम होता है,
प्रिया जब अंक में होती।
त्रिया का प्रेम स्थिर अविराम होता है,
सदा बढता प्रतीक्षा में।
प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता,
एक कोने में न रुक
सारे हृदय को घेर लेता है।
पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा,
नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है।
प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है,
प्रेम उसकी जिन्दगी की साँस है;
प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं फिर चाहती।
शब्द जब मिलते नहीं मन के,
प्रेम तब इंगित दिखाता है,
बोलने में लाज जब लगती,
प्रेम तब लिखना सिखाता है।
पुरुष प्रेम संतत करता है, पर, प्रायः, थोड़ा-थोड़ा,
नारी प्रेम बहुत करती है, सच है, लेकिन, कभी-कभी।
स्नेह मिला तो मिली नहीं क्या वस्तु तुम्हें?
नहीं मिला यदि स्नेह बन्धु!
जीवन में तुमने क्या पाया।
फूलों के दिन में पौधों को प्यार सभी जन करते हैं,
मैं तो तब जानूँगी जब पतझर में भी तुम प्यार करो।
जब ये केश श्वेत हो जायें और गाल मुरझाये हों,
बड़ी बात हो रसमय चुम्बन से तब भी सत्कार करो।
प्रेम होने पर गली के श्वान भी
काव्य की लय में गरजते, भूँकते हैं।
प्रातः काल कमल भेजा था शुचि, हिमधौत, समुज्जवल,
और साँझ को भेज रहा हूँ लाल-लाल ये पाटल।
दिन भर प्रेम जलज सा रहता शीतल, शुभ्र, असंग,
पर, धरने लगता होते ही साँझ गुलाबी रंग।
उसका भी भाग्य नहीं खोटा
जिसको न प्रेम-प्रतिदान मिला,
छू सका नहीं, पर, इन्द्रधनुष
शोभित तो उसके उर में है।
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
भावार्थ: इस कविता में कवि द्वारा प्रेम की महान शक्ति और उसके विविध रूपों का अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया गया है। यह कविता प्रेम के विभिन्न पहलुओं जैसे: आकर्षण और सौंदर्य, त्याग और बलिदान, पीड़ा और वेदना, परिवर्तन और आत्म-सुधार, अमरता और अनंतता को छूने का प्रयास किया है। यह कविता प्रेम को जीवन का सार और ईश्वर की प्राप्ति का साधन मानती है, इस कविता का उद्देश्य समाज के समक्ष प्रेम को परिभाषित करती है।
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सौन्दर्य
“सौन्दर्य” नामक यह कविता, रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता की श्रेणी में दर्ज एक लोकप्रिय कविता है, जिसने समाज के समक्ष प्रेम के सौन्दर्य का वर्णन किया है। यह कविता आपके सामने सौन्दर्य की सम्मानित परिभाषा देगी।
निस्सीम शक्ति निज को दर्पण में देख रही,
तुम स्वयं शक्ति हो या दर्पण की छाया हो?
तुम्हारी मुस्कुराहट तीर है केवल?
धनुष का काम तो मादक तुम्हारा रूप करता है।
सौन्दर्य रूप ही नहीं, अदृश्य लहर भी है।
उसका सर्वोत्तम अंश न चित्रित हो सकता।
विश्व में सौन्दर्य की महिमा अगम है
हर तरफ हैं खिल रही फुलवारियाँ।
किन्तु मेरे जानते सब से अपर हैं
रूप की प्रतियोगिता में नारियाँ।
तुम्हारी माधुरी, शुचिता, प्रभा, लावण्य की समता
अगर करते कभी तो एक केवल पुष्प करते हैं।
तुम्हें जब देखता हूँ, प्राण, जानें, क्यो विकल होते,
न जानें, कल्पना से क्यों जुही के फूल झरते हैं।
रूप है वह पहला उपहार
प्रकृति जो रमणी को देती,
और है यही वस्तु वह जिसे
छीन सबसे पहले लेती।
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
भावार्थ: इस कविता में सौन्दर्य की विविधतापूर्ण अभिव्यक्तियों और उसके गहरे प्रभावों का चित्रण करती है। इस कविता में कवि सौन्दर्य को केवल बाहरी रूप-रंग तक सीमित नहीं मानते, बल्कि वे इसे जीवन के हर पहलू में व्याप्त पाते हैं। इस कविता में कवि ने सौन्दर्य की विविधता, आनंद और उसकी शक्ति ने परिभाषित किया है। यह कविता युवाओं को मन के सौंदर्य के बारे में बताती है।
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नर-नारी
“नर-नारी” नामक यह कविता, रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता की श्रेणी में एक प्रसिद्ध कविता है, जिसने नर-नारी के प्रेम का वर्णन किया है। यह कविता आपके सामने नर-नारी के बीच संबंधों का वर्णन करेगी।
क्या पूछा, है कौन श्रेष्ठ सहधर्मिणी?
कोई भी नारी जिसका पति श्रेष्ठ हो।
कई लोग नारी-समाज की निन्दा करते रहते हैं।
मैं कहता हूँ, यह निन्दा है किसी एक ही नारी की।
पुरुष चूमते तब जब वे सुख में होते हैं,
हम चूमती उन्हें जब वे दुख में होते हैं।
तुम पुरुष के तुल्य हो तो आत्मगुण को
छोड़ क्यों इतना त्वचा को प्यार करती हो?
मानती नर को नहीं यदि श्रेष्ठ निज से
तो रिझाने को किसे श्रृंगार करती हो?
कच्ची धूप-सदृश प्रिय कोई धूप नहीं है,
युवती माता से बढ़ कोई रूप नहीं है।
अच्छा पति है कौन? कान से जो बहरा हो।
अच्छी पत्नी वह, न जिसे कुछ पड़े दिखायी।
नर रचते कानून, नारियाँ रचती हैं आचार,
जग को गढ़ता पुरुष, प्रकृति करती उसका श्रृंगार।
रो न दो तुम, इसलिये, मैं हँस पड़ी थी,
प्रिय! न इसमें और कोई बात थी।
चाँदनी हँस कर तुम्हें देती रही, पर,
जिन्दगी मेरी अँधेरी रात थी।
औरतें कहतीं भविष्यत की अगर कुछ बात,
नर उन्हें डाइन बताकर दंड देता है।
पर, भविष्यत का कथन जब नर कहीं करता,
हम उसे भगवान का अवतार कहते हैं।
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
भावार्थ: इस कविता में कवि ने पुरुष और स्त्री के बीच संबंधों की जटिलता और विविधता का एक शक्तिशाली चित्रण प्रस्तुत किया है। यह कविता न केवल प्रेम और आकर्षण के भावों को दर्शाती है, बल्कि लिंग, शक्ति, और सामाजिक रीति-रिवाजों से जुड़े संघर्षों को भी उजागर करती है। इस कविता में कवि ने सामाजिक रीति-रिवाजों की बाधाओं को तोड़कर पुरुष और स्त्री को समानता और स्वतंत्रता के साथ रहने देने की पैरवी की है। यह कविता लिंगभेद का प्रखरता से विरोध करती है।
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विवाह
“विवाह” नामक यह कविता, रामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता की श्रेणी में से एक लोकप्रिय कविता है, जिसने विवाह के खट्टे-मीठे अनुभवों का वर्णन किया है। यह कविता आपके सामने विवाह के संबंध में लोगों की उत्सुकता से एक प्रश्न करती है, जिसका उत्तर ‘प्रेम’ ही है।
शादी वह नाटक अथवा वह उपन्यास है,
जिसका नायक मर जाता है पहले ही अध्याय में।
शादी जादू का वह भवन निराला है,
जिसके भीतर रहने वाले निकल भागना चाहते,
और खड़े हैं जो बाहर वे घुसने को बेचैन हैं।
ब्याह के कानून सारे मानते हो?
या कि आँखें मूँद केवल प्रेम करते हो?
स्वाद को नूतन बताना जानते हो?
पूछता हूँ, क्या कभी लड़ते-झगड़ते हो?
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
भावार्थ: इस कविता के माध्यम से कवि विवाह के सामाजिक और नैतिक पहलुओं का गहन चित्रण करते हैं। कविता के माध्यम से कवि दहेज प्रथा, जातिवाद, और दिखावे की संस्कृति जैसी सामाजिक कुरीतियों पर भी कटाक्ष करते हैं। यह कविता सही मायनों में प्रेम और समर्पण को सफल विवाह की नींव बताती है। यह कविता युवाओं को बताती है कि विवाह को मात्र दो शरीरों का मिलान नहीं है, बल्कि यह तो सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने का एक दायित्व है।
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