भारत में हर साल 14 नवंबर को मनाए जाने वाला बाल दिवस भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के अवसर पर बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य बच्चों की मासूमियत, खुशियों और उनके उज्ज्वल भविष्य के महत्व को रेखांकित करना है। बाल दिवस पर भारत के स्कूलों और शैक्षणिक संस्थाओं में बच्चों के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो बच्चों को बचपन का महत्व बताने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। कविताएं समाज का दर्पण होती हैं, साथ ही इनके माध्यम से बाल दिवस के उत्सव को एक नए आयाम पर ले जाया सकता है। इस अवसर पर आपके लिए बाल दिवस पर कविताएं (Poems on Children’s Day in Hindi) दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आप अपने जीवन में बाल कविताओं की भूमिका के बारे में जान पाएंगे।
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कब है बाल दिवस?
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बच्चों से अत्यंत स्नेह होने के कारण, हर वर्ष 14 नवंबर को उनके जन्मदिन की तिथि पर बाल दिवस मनाया जाता है। बाल दिवस के रूप में पंडित नेहरू के जन्मदिन को चुनने का विचार, वर्ष 1950 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा दिया गया था। यह विचार इतना लोकप्रिय हुआ कि वर्ष 1954 को पहली बार “बाल दिवस” बनाया गया और तभी से हर वर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भी पूरे देश में 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाएगा, जिसका उद्देश्य बच्चों की अच्छी देखरेख और शिक्षा हेतु समाज को प्रेरित करना होता है।
बाल दिवस पर प्रसिद्ध कवियों की लिखी बाल कविताएं – Poems on Children’s Day in Hindi
बाल दिवस पर प्रसिद्ध कवियों की लिखी बाल कविताएं (Poems on Children’s Day in Hindi) पढ़कर आप बचपन की यादों को फिर से ताजा कर पाएंगे। बाल कविताएं विशेषतः बच्चों के लिए और बचपन पर लिखीं कविताएं होती हैं, जो आपके बचपन से जुड़े किस्से कहानियों को परिभाषित करती हैं। बाल कविताएं यूँ तो कई प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखीं जा चुकी हैं, जिनमें से कुछ के बारे में यहाँ बताया गया है;
बचपन
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बचपन के यादगार लम्हों को फिर से जी पाएंगे, यह कविता बचपन के शानदार लम्हों की यादों को फिर से ताजा कर देगी।
“ज़िंदगी का हर लम्हा बड़ा शानदार रहा बचपन की छाया में जीवन बड़ा खुशहाल रहा गिरते-गिरते जिसने उठना सिखाया खुल कर रोना और खुलकर हसना सिखाया वो बचपन एक ऐसा सफर था जिस सफर ने खुश खुश रहना सिखाया तुतलाहट बोली ने बोलना सिखाया लड़खड़ाते कदमों ने चलना सिखाया वो बचपन शरारतों का पिटारा है जिसने नदियों सा अविरल बहना सिखाया जहाँ माँ की ममता का आँगन मिला जहाँ साफ-सुथरा मन का दामन मिला ये बचपन वो बचपन है, जिसमें झूमता शहर और गांव मिला…”
–मयंक विश्नोई
चांद का कुर्ता
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर आधारित कविताओं को पढ़ सकते हैं, जिसमें से “चांद का कुर्ता” भी एक प्रसिद्ध कविता है।
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला, सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला। सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं, ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं। आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का, न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का। बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने! कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने। जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ, एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ। कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा, बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा। घटता-बढ़ता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है, नहीं किसी की भी आंखों को दिखलाई पड़ता है। अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएं, सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए।
–रामधारी सिंह ‘दिनकर’
सबसे पहले
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर रचित कविता “सबसे पहले” को पढ़ सकते हैं, यह भी एक सुप्रसिद्ध कविता है।
आज उठा मैं सबसे पहले! सबसे पहले आज सुनूँगा, हवा सवेरे की चलने पर, हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’ देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले, लाल, सुनहले! आज उठा मैं सबसे पहले! सबसे पहले आज सुनूँगा, चिड़िया का डैने फड़का कर चहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’ देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले, लाल सुनहले! आज उठा मैं सबसे पहले! सबसे पहले आज चुनूँगा, पौधे-पौधे की डाली पर, फूल खिले जो सुंदर-सुंदर देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले लाल, सुनहले आज उठा मैं सबसे पहले! सबसे कहता आज फिरूँगा, कैसे पहला पत्ता डोला, कैसे पहला पंछी बोला, कैसे कलियों ने मुँह खोला कैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले, लाल, सुनहले! आज उठा मैं सबसे पहले!
–हरिवंशराय बच्चन
मेरा नया बचपन
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद? ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी? बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥ किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया। किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥ रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे। बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥ मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया। झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥ दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे। धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे॥ वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई। लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई॥ लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमँग रँगीली थी। तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी॥ दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी। मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी॥ मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने। अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने॥ सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी हैं। प्यारी, प्रीतम की रँग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं॥ माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है। आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहनेवाला है॥ किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना। चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना॥ आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति। व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति॥ वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप। क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप? मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी। नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी॥ 'माँ ओ' कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आयी थी। कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लायी थी॥ पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतूहल था छलक रहा। मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा॥ मैंने पूछा 'यह क्या लायी?' बोल उठी वह 'माँ, काओ'। हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा - 'तुम्हीं खाओ'॥ पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया। उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया॥ मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ। मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ॥ जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया। भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया॥
-सुभद्राकुमारी चौहान
बच्चे काम पर जा रहे हैं
कुहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं सुबह-सुबह बच्चे काम पर जा रहे हैं हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे? क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें क्या दीमकों ने खा लिया है सारी रंग-बिरंगी किताबों को क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं सारे मदरसों की इमारतें क्या सारे मैदान, सारे बग़ीचे और घरों के आँगन ख़त्म हो गए हैं एकाएक तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में? कितना भयानक होता अगर ऐसा होता भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं।
-राजेश जोशी
बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो॥ हाथ में ध्वजा रहे, बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं, दल कभी रुके नहीं। वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो! सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो तुम निडर हटो नहीं, तुम निडर डटो वहीं। वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो॥ मेघ गरजते रहें, मेघ बरसते रहें बिजलियाँ कड़क उठें बिजलियाँ तड़क उठें वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो॥ प्रात हो कि रात हो, संग हो न साथ हो सूर्य से बढ़े चलो, चंद्र से बढ़े चलो। वीर तुम बढ़े चलो। धीर तुम बढ़े चलो॥
-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
बाल दिवस पर लघु कविताएं – Short Poems on Children’s Day in Hindi
बाल दिवस पर लघु कविताएं (Short Poems on Children’s Day in Hindi) कुछ इस प्रकार हैं, जिन्हें पढ़कर आप बाल दिवस के उत्सव को विशेष ढंग से मना सकते हैं। बाल दिवस पर लघु कविताएं (Short Poems on Children’s Day in Hindi) कुछ इस प्रकार हैं;
चंदा मामा
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर रचित कविता “चंदा मामा” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने बचपन की छवि को खूबसूरती से प्रस्तुत करेगी।
चंदा मामा दौड़े आओ, दूध कटोरा भर कर लाओ। उसे प्यार से मुझे पिलाओ, मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ। मैं तैरा मृग-छौना लूँगा, उसके साथ हँसूँ खेलूँगा। उसकी उछल-कूद देखूँगा, उसको चाटूँगा-चूमूँगा।
–अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर रचित कविता “ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने बचपन के किस्सों को प्रस्तुत करेगी।
ईश्वर ने आकाश बनाया उसमें सूरज को बैठाया अगर नहीं आकाश बनाता चाँद-सितारे कहाँ सजाता? कैसे हम किरणों से जुड़ते? ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
–बालकवि बैरागी
हम उपवन के फूल मनोहर
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर रचित कविता “हम उपवन के फूल मनोहर” को पढ़ सकते हैं, यह कविता बचपन को सही शब्दों से परिभाषित करती है।
हम उपवन के फूल मनोहर सब के मन को भाते। सब के जीवन में आशा की किरणें नई जगाते
–त्रिलोक सिंह ठकुरेला
किससे दुख की बात कहेगी
Poems on Children’s Day in Hindi के माध्यम से आप बाल दिवस पर रचित कविता “किससे दुख की बात कहेगी” को पढ़ सकते हैं, यह कविता बच्चों को साहित्य से परिचित करवाने के लिए एक अच्छा विकल्प है।
आँधी आई जोर शोर से, डालें टूटी हैं झकोर से। उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी
–महादेवी वर्मा
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आशा है कि बाल दिवस पर कविताएं (Poems on Children’s Day in Hindi) के माध्यम से आप बाल कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जिसमें लिखी कविता आपका परिचय बचपन के खूबसूरत लम्हों से करवाएंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।