Poem on Mango in Hindi: फलों के राजा आम पर हिंदी में लोकप्रिय कविताएं

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Poem on Mango in Hindi

Poem on Mango in Hindi: आम, जिसे फलों का राजा कहा जाता है। यह केवल एक फल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, स्वाद और यादों का एक अभिन्न हिस्सा है। बता दें कि ग्रीष्म ऋतु की तपिश में जब आम की मिठास हमारी जुबान पर उतरती है, तब मन एक सुखद अनुभव की अनुभूति करता है। आसान भाषा में समझें तो आम सिर्फ स्वाद की नहीं, बल्कि भावनाओं की भी सौगात है, जिसकी महक से हम बचपन की यादों में पहुँच कर प्रकृति के सौंदर्य को खुद में समेट पाते हैं। 

बताना चाहेंगे समय-समय पर फलों के राजा आम पर कई लोकप्रिय कवियों ने शानदार रचनाएं लिखी हैं, जिनमें से कुछ लोकप्रिय कविताएं यहाँ इस लेख में दी गई हैं। आम पर लिखी कुछ बेहतरीन कविताएं (Poem on Mango in Hindi) हमें इसकी मिठास, महत्व और इससे जुड़ी हमारी भावनाओं को बल देने का काम करती हैं। पढ़ें आम पर कविता। 

आम पर कविता – Aam Par Kavita

नीचे दी गई टेबल में आम पर कविता (Aam Par Kavita) की सूची दी गई है:-

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
आम की पेटीअशोक चक्रधर
आम की चटनीप्रभुदयाल श्रीवास्तव
मेरे युवा-आम में नया बौर आया हैगिरिजाकुमार माथुर
रस भरे आमप्रभुदयाल श्रीवास्तव
आमगुलज़ार
सोच रहा हूँ घर आँगन में एक लगाऊँ आम का पेड़अनवर जलालपुरी
आम के पत्तेरामदरश मिश्र
गुठली आम कीरंजना जायसवाल
आम आएयोगेन्द्र दत्त शर्मा

आम की पेटी

गांव में ब्याही गई थी
बौड़म जी की बेटी,
उसने भिजवाई एक आम की पेटी।
महक पूरे मुहल्ले को आ गई,
कइयों का तो दिल ही जला गई।

कुछ पड़ौसियों ने द्वार खटखटाया
एक स्वर आया-
बौड़म जी, हमें मालूम है कि आप
आम ख़रीद कर नहीं लाते हैं,
और ये भी पता है कि
बेटी के यहां का कुछ नहीं खाते हैं।
हम चाहते हैं कि
आपका संकट मिटवा दें,
इसलिए सलाह दे रहे हैं कि
आप इन्हें पड़ौस में बंटवा दें।
हम लोग ये आम खाएंगे,
और आपकी बेटी के गुन गाएंगे।

श्रीमती बौड़म बोलीं-
वाह जी वाह!
अपने पास ही रखिए अपनी सलाह!
इन आमों को हम
बांट देंगे कैसे?
बेटी को भेज देंगे इनके पैसे।
क्या बात कर दी बच्चों सी!

जवाब में बोला दूसरा पड़ौसी-
भाभी जी गुस्सा मत कीजिए,
देखिए ध्यान दीजिए!
ये गाँव के उम्दा आम हैं
लंगड़ा और दशहरी,
और हम लोग ठहरे शहरी।
इन आमों के तो
बाज़ार में दर्शन ही नहीं हुए हैं,
और अगर हो भी जाएं
तो भावों ने आसमान छुए हैं।
अब आपको कोई कैसे समझाए
कि अगर आपने ये आम खाए
तो मार्केट रेट लगाने पर
ये पेटी खा जाएगी पूरी तनख़ा
ऊपर से जंजाल मन का
कि बेटी को अगर भेजे कम पैसे,
तो स्वर्ग में स्थान मिलेगा कैसे?


श्रीमती बौड़म फिर से भड़कीं
बिजली की तरह कड़कीं-
ठीक है, हमें नर्क मिलेगा मरने के बाद,
लेकिन आप चाहें
तो यहीं चखा दूं उसका स्वाद ?
पड़ौसी ये रूप देखकर डर गए,
एक एक करके अपने घर गए।

ये बात मैंने आपको इसलिए बताई,

कि बेटी की आम की पेटी
बौड़म दम्पति के लिए बन गई दुखदाई।
एक तो आमों की महक जानलेवा
फिर सुबह से किया भी नहीं था कलेवा।
हाय री बदनसीबी,
गुमसुम लाचार मियां-बीबी!
बार-बार पेटी को निहारते,
आखिर कब तलक मन को मारते!
अचानक बिना कुछ भी बोले,
उन्होंने पेटी के ढक्कन खोले।
जमकर आम खाए और गुठलियां भी चूंसीं,
एक दूसरे को समझाया-
ये सब बातें हैं दकियानूसी!
बेटी हमारी है
और ये पेटी भी हमारी है।
खुद खाएंगे
जिसको मन चाहेगा खिलाएंगे
पड़ौसियों को जलाएंगे,
और बेटी को सम्पत्ति में हिस्सा देंगे।
आमों के पैसे नहीं भिजवाएंगे।
ये आम ख़ास हैं नहीं हैं आम,
बेटी का प्यार हैं ये
और प्यार का कैसा दाम? 
– अशोक चक्रधर

आम की चटनी

आवाज़ आ रही खटर पटर,
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।

अमियों के टुकड़े टुकड़े कर ,
मां ने सिल के ऊपर डाले।
धनियां मिरची भी कूद पड़े,
इस घोर युद्ध में, मतवाले।
फिर हरे पुदेने के पत्ते,
भी मां ने रण में झोंक दिये।
फिर बट्टे से सबको कुचला,
सीने में खंजर भोंक दिये।
मस्ती में चटनी पीस रही,
बैठी मां सन के फट्टे पर
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।


आमों की चटनी वैसे ही,
तो लोक लुभावन होती है।
दादा दादी बाबूजी को,
गंगा सी पावन दिखती है।
भाभी को यदि कहीं थोड़ी,
अमियों की चटनी मिल जाती।
तो चार रोटियों के बदले,
वह आठ रोटियां खा जाती।
भैया तो लगा लगा चटनी,
खाते रहते हैं भुट्टे पर
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।

चटनी की चाहत में एक दिन,
सब छीना झपटी कर बैठे।
भैया भाभी दादा दादी,
चटनी पाने को लड़ बैठे।
छोटी दीदी ने छीन लिया,
भैया से चटनी का डोंगा,
इस खींचातानी में डोंगा,
धरती पर गिरा हुआ ओंधा।
चटनी दीदी पर उछल गई,
दिख रहे निशान दुपट्टे पर
पिस रहे आम सिलबट्टे पर। 
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मेरे युवा-आम में नया बौर आया है

मेरे युवा-आम में नया बौर आया है
ख़ुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है

आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी
छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी
चमकीले, मँजे अंग चेहरा हँसता मयंक
खनकदार स्वर में तेज गमक-ताल फागुनी

मेरा जिस्म फिर से नया रूप धर आया है
ताज़गी बहुत है क्योंकि तुमने सजाया है।

अन्धी थी दुनिया या मिट्टी-भर अन्धकार
उम्र हो गई थी एक लगातार इंतजार
जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्यार
हो गया उजेला-सा रोओं के आर-पार

एक दीप ने दूसरे को चमकाया है
रौशनी के लिए दीप तुमने जलाया है

कम न हुई, मरती रही केसर हर साँस से
हार गया वक़्त मन की सतरंगी आँच से
कामनाएँ जीतीं जरा-मरण-विनाश से
मिल गया हरेक सत्य प्यार की तलाश से

थोड़े ही में मैंने सब कुछ भर पाया है
तुम पर बसंत क्योंकि वैसा ही छाया है 
गिरिजाकुमार माथुर

रस भरे आम

रस भरे आम कितने मीठे।
पत्तों के नीचे लटके हैं।
आँखों में कैसे खटके हैं।
इन चिकने सुंदर आमों पर,
पीले रंग कैसे चटके हैं।
सब आने जाने वालों का,
यह पेड़ ध्यान बरबस खींचे।
रस भरे आम कितने मीठे।
मिल जाएँ आम यह बहुत कठिन।
पहरे का लठ बोले ठन-ठन।
रखवाला मूँछों वाला है,
मारेगा डंडे दस गिन-गिन।
सपने में ही हम चूस रहे,
बस खड़े-खड़े आँखें मीचे।
रस भरे आम कितने मीठे।
पापा के ठाठ निराले थे।
बचपन के दिन दिलवाले थे।
उन दिनों पके आमों पर तो,
यूं कभी न लगते ताले थे।
खुद बागवान ही भर देते,
थे उनके आमों से खींसे।
रस भरे आम कितने मीठे। 
प्रभुदयाल श्रीवास्तव

आम

मोड़ पे देखा है वो बूढ़ा-सा इक आम का पेड़ कभी?
मेरा वाकिफ़ है बहुत सालों से, मैं जानता हूँ

जब मैं छोटा था तो इक आम चुराने के लिए
परली दीवार से कंधों पे चढ़ा था उसके
जाने दुखती हुई किस शाख से मेरा पाँव लगा
धाड़ से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने
मैंने खुन्नस में बहुत फेंके थे पत्थर उस पर

मेरी शादी पे मुझे याद है शाखें देकर
मेरी वेदी का हवन गरम किया था उसने
और जब हामला थी बीबा, तो दोपहर में हर दिन
मेरी बीवी की तरफ़ कैरियाँ फेंकी थी उसी ने

वक़्त के साथ सभी फूल, सभी पत्ते गए

तब भी लजाता था जब मुन्ने से कहती बीबा
‘हाँ उसी पेड़ से आया है तू, पेड़ का फल है।’

अब भी लजाता हूँ, जब मोड़ से गुज़रता हूँ
खाँस कर कहता है,”क्यूँ, सर के सभी बाल गए?”

सुबह से काट रहे हैं वो कमेटी वाले
मोड़ तक जाने की हिम्मत नहीं होती मुझको! 
गुलज़ार

आम पर कविता हिंदी में – Poem on Mango in Hindi

आम पर कविता हिंदी में (Aam Par Kavita) पढ़कर आप फलों के राजा आम के महत्व को जान पाएंगे। यहाँ आपके लिए आम पर कविता हिंदी में (Poem on Mango in Hindi) दी गई हैं:-

सोच रहा हूँ घर आँगन में एक लगाऊँ आम का पेड़

सोच रहा हूँ घर आँगन में एक लगाऊँ आम का पेड़
खट्टा खट्टा, मीठा मीठा यानी तेरे नाम का पेड़

एक जोगी ने बचपन और बुढ़ापे को ऐसे समझाया
वो था मेरे आग़ाज़ का पौदा ये है मेरे अंजाम का पेड़

सारे जीवन की अब इससे बेहतर होगी क्या तस्वीर
भोर की कोंपल, सुबह के मेवे, धूप की शाख़ें, शाम का पेड़

कल तक जिसकी डाल डाल पर फूल मसर्रत के खिलते थे
आज उसी को सब कहते हैं रंज-ओ-ग़म-ओ-आलाम का पेड़

इक आँधी ने सब बच्चों से उनका साया छीन लिया
छाँव में जिनकी चैन बहुत था जो था जो था बड़े आराम का पेड़

नीम हमारे घर की शोभा जामुन से बचपन का रिश्ता
हम क्या जाने किस रंगत का होता है बादाम का पेड़ 
– अनवर जलालपुरी

आम के पत्ते

वह जवान आदमी
बहुत उत्साह के साथ पार्क में आया
एक पेड़ की बहुत सारी पत्तियाँ तोड़ीं
और जाते हुए मुझसे टकरा गया
पूछा-
अंकल जी, ये आम के पत्ते हैं न
नहीं बेटे, ये आम के पत्ते नहीं हैं
कहाँ मिलेंगे पूजा के लिए चाहिए
इधर तो कहीं नहीं मिलेंगे
हाँ, पास के किसी गाँव में चले जाओ
वह पत्ते फेंककर चला गया
मैं सोचने लगा-
अब हमारी सांस्कृतिक वस्तुएँ
वस्तुएँ न रह कर
जड़ धार्मिक प्रतीक बन गई हैं
जो हमारे पूजा-पाठ में तो हैं
किंतु हमारी पहचान से गायब हो रही हैं। 
– रामदरश मिश्र

गुठली आम की

घूरे की सूखी जमीन पर पड़ी
गुठली आम की
याद कर रही है अपना अतीत
जब वह पिता के कन्धे पर चढ़ी
पूरे कुनबे के साथ
मह-मह महक करती थी
मगर कभी आँधी
कभी बन्दर
कभी शैतान बच्चों के कारण
टूटता गया कुनबा
उसकी अनगिनत बहनें
बचपन में ही नष्ट हो गयीं
और अनगिनत जवानी में ही
काट-पीटकर
मिर्च-मसालों के साथ
मर्तबानों में बन्द कर दी गयीं
वह बची रह गयी
कुछ के साथ
पर कहाँ जी पायी पूरा जीवन
भुसौले में दबा-दबाकर
दवा के जोर पर
ज़बरन पैदा किया गया
उसमें रस
और फिर चूसकर उसका सत्व
फेंक दिया गया घूरे पर
निराश नहीं है
फिर भी गुठली
उसमें है सृजन की क्षमता
इन्तजार है उसे
बादलों का
फिर फूटेगा उसमें अंकुर
और वह वृक्ष बन जायेगी। 
– रंजना जायसवाल

आम आए

लौटकर बनवास से
जैसे अवध में राम आए,
साल भर के बाद ऐसे ही
अचानक आम आए!
छुट्टियों के दिन
उमस, लू से भरे होने लगे थे,
हम घनी अमराइयों की
छाँह में सोने लगे थे।
मन मनौती-सी मनाता था
कि जल्दी घाम आए!

गरम लूओं के थपेड़ों से भरा
मौसम बिता कर,
ककड़ियाँ, तरबूज, खरबूजे
चले बिस्तर उठाकर।

सोचते थे हम कि कब
वह बादलों की शाम आए!
बारिशों के साथ फिर आया
हवा का एक झोंका,
देर तक चलता रहा फिर
सिलसिला-सा खुशबुओं का!

लाल पीले हरे-
खुशियों से भरे पैगाम आए

चूस लें या काटकर खा लें
रसीले हैं अजब ये
आम है बरसात के बादाम
ढाते हैं गज़ब ये
दशहरी, तोता परी, लँगड़ा
सफेदा नाम आए! 
– योगेन्द्र दत्त शर्मा

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आशा है कि आपको इस लेख में आम पर कविता (Poem on Mango in Hindi) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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