क्या आप जानते हैं पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ?

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पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ

पानीपत जिसके पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही आधार पर बड़े मायने हैं। प्राचीनकाल में पानीपत महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित पांच शहरों (प्रस्थ) में से एक था, इसका ऐतिहासिक नाम पांडुप्रसथ है। पानीपत ने इतिहास भारतीय इतिहास में तीन प्रमुख लड़ाइयों / युद्धों की क्रूरता, नरसंहार और इससे होने वाली पीड़ाओं को झेला है। इस पोस्ट के माध्यम से आपको पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ और इस युद्ध के परिणामों को जानने को मिलेगा।

युद्ध चाहे किसी भी कालखंड में क्यों न हुए हों, युद्धों से मानव ने भयंकर त्रासदी ही झेली है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो युद्धों ने सभ्यताओं के साथ-साथ, मानवता और मानव-जाति को भी उजाड़ने का काम किया है। यह युद्ध मराठा साम्राज्य की शक्ति के क्षीण होने का, भारतीय संस्कृति पर विदेशी आक्रमणकारियों की क्रूरता और मानवता के साथ होने वाले अन्याय का कारण बना।

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पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ?

अटक से कटक तक छत्रपति शिवजी महाराज के मराठा साम्राज्य ने अपनी जड़ें मजबूत की, एक समय ऐसा आया कि दिल्ली पर मुग़ल सत्ता कमजोर पढ़ने लगी और मराठाओं ने अपनी साहस के आधार पर भारत का एकीकरण शुरू कर दिया। 

पानीपत का युद्ध में एक ओर सदाशिवराव भाऊ पेशवा के  नेतृत्व में वीर मराठा योद्धा थे, तो वहीं दूसरी ओर अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और उसका क्रूर लश्कर था। अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली एक क्रूर शासक था, जिसका मकसद जिहाद और भारतीय समाज को गुलाम बनाना था। तो वहीं वीर मराठा योद्धा मातृभूमि और मानवता के संरक्षण के लिए युद्ध में उतरे थे।

यह युद्ध वर्तमान के हरियाणा के पानीपत नामक स्थान पर हुआ था, जहाँ पहले भी दो भीषण युद्ध हो चुके थे। इसी कारण से इस युद्ध को पानीपत का तृतीय युद्ध कहा जाने लगा। यह एक भीषण युद्ध था जिसने इतिहास की दिशा और दशा बदल दी थी।

कब हुआ था पानीपत का तृतीय युद्ध?

इतिहासकारों की माने तो सन 1761 में पानीपत का तृतीय युद्ध अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली और पुणे के सदाशिवराव भाऊ पेशवा के बीच हुआ था। यह युद्ध भी पानीपत के प्रथम युद्ध और पानीपत के द्वितीय युद्ध की तरह ही भीषण था, जिसमें एक बड़ा नरसंहार हुआ।

क्या रहे पानीपत के तृतीय युद्ध के परिणाम?

इस युद्ध के बाद एक नई शक्ति का जन्म हुआ, जिसके बाद से भारत में अग्रेजों की विजय के रास्ते खुल गए। कई इतिहासकारों की माने तो अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली की क्रूरता ने भारत की सभ्यता पर चोट पहुंचाने का काम किया। शाह अब्दाली की क्रूरता का ऐसा हाल था कि उसके भारत आने पर हुए रक्तपात से यमुना नदी का पानी खून से लाल हो गया था। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठाओं ने अब्दाली को कड़ी टक्कर दी, इस युद्ध के बाद अब्दाली की अफगान में पकड़ कमजोर हो गयी थी। इस युद्ध में मराठा सेना को हराने के बाद भी अब्दाली के हाथ भी हताशा ही लगी।

पानीपत के तृतीय युद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें

पानीपत के प्रथम युद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें भी है जो आपके ज्ञान को बढ़ाएंगी। जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है;

  • पानीपत के तृतीय युद्ध दुर्रानी साम्राज्य का प्रमुख अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ा गया था।
  • यह युद्ध अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ था, जिसने भारत के उत्तरी हिस्से पर आक्रमण किया था।
  • इस युद्ध के समय, महाराजा रणजीत सिंह, जो कि नानकशाही सिख साम्राज्य के राजा थे और उन्होंने मराठों का साथ दिया था।
  • यह युद्ध अहमद शाह अब्दाली की जीत से समाप्त हुआ और उन्होंने दिल्ली को लूटकर और नवाब शाह आलम द्वितीय को पानीपत में हार का सामना करना पड़ा।
  • इस युद्ध में मराठों की बड़ी हानि हुई, जिससे मराठा साम्राज्य की शक्ति क्षीण होने लगी।

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आशा है कि आप पानीपत का तृतीय युद्ध किसके बीच हुआ का कारण, इस ब्लॉग के माध्यम से जान पाए होंगे और यह ब्लॉग आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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