जानिए रणथम्भौर का युद्ध इतिहास और इस युद्ध में मातृभूमि पर मिटने वाले वीरों की वीरगाथा के बारे में

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रणथम्भौर का युद्ध

भारत वीरों की जननी कही जाती है, समय-समय पर हजारों विदेशी आक्रमणकारियों के आक्रमण देखने के बाद भी पुण्यभूमि भारत ने मानवता का संरक्षण किया। इस धरा ने ऐसे शूरवीरों को जन्म दिया, जिन्होंने अपने रक्त की अंतिम बूँद तक मातृभूमि का संरक्षण किया। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो भारत की पुण्य धरा पर एक ऐसा भी युद्ध हुआ, जिसने न केवल रजपूती तलवार और राजपुताना को साहस से भर दिया, बल्कि समूचे भारतीय समाज को वीरता से ओतप्रोत किया। इस पोस्ट के माध्यम से आप आसानी से जान पाएंगे कि रणथम्भौर का युद्ध किस किस के बीच हुआ और इस युद्ध में किसकी जीत हुई।

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कब हुआ था रणथम्भौर का युद्ध?

रणथम्भौर एक ऐसी ऐतिहासिक भूमि है जहाँ मातृभूमि के लिए मर मिटने वाले वीरों ने विदेशी आक्रमणकारी खिलजी वंश की क्रूरता का डटकर प्रतिकार किया। रणथम्भौर राजस्थान का एक राज्य था। इस राज्य का संरक्षण राजपूतों द्वारा किया गया, जिसने राज्य की सीमाएं बुलंद दीवारों से सुरक्षित और ऊंची पहाड़ियों से अभेद्द थी।

रणथम्भौर पर राजा हम्मीर चौहान का एक छात्र राज था, जो कि जैत्र सिंह के तीसरे पुत्र थे। रणथम्भौर पर 1290 से 1301 ई. तक आक्रमण हुए, जिनका प्रतिकार राजा हम्मीर चौहान ने किया। 1290 ई और 1292 ई में दो बार पूरे ताकत के साथ आक्रमण किया लेकिन उसे मुँह की खानी पड़ी। वर्ष 1299 ई में फिर रणथम्भौर पर हमला हुआ लेकिन इस बार भी राजा हम्मीर चौहान का नेतृत्व विजय हुआ।

किन-किन के बीच हुआ रणथम्भौर का युद्ध?

राजा हम्मीर चौहान रणथम्भौर से लेकर पूरे राजस्थान में उनका एक क्षत्र राज था, क्योंकि व्यापारिक दृष्टि से दिल्ली सल्तनत के लिए राजस्थान पर अपना कब्ज़ा करना बेहद जरूरी था। लेकिन वहां राजा हम्मीर चौहान की सत्ता कायम थी, जिनसे मिली हार से बौखलाए खिलजी वंश का सुल्तान अलाऊद्दीन खिलजी राजा हम्मीर चौहान को परास्त करके रणथम्भौर पर कब्ज़ा करना चाहता था। इसी कारण अलाऊद्दीन खिलजी और राजा हम्मीर चौहान के बीच युद्ध हुआ।

किन कारणों से हुआ था रणथम्भौर का युद्ध?

राजा हम्मीर चौहान ने अपने पूरे जीवन काल में 17 लड़ाइयाँ लड़ी, जिनमें उन्होंने अपने जीवन में हमेशा विजय प्राप्त की। अपनी आखिरी लड़ाई में हुई अपनों की गद्दारी के कारण खिलजी ने उन पर युद्ध नीति के विरूद्ध जाकर हमला किया और रणथम्भौर पर कब्ज़ा किया। मुख्य रूप से हुए इस युद्ध के कारण निम्नलिखित हैं-

  • दिल्ली सल्तनत के लिए व्यापारिक दृष्टि से राजस्थान जीतना आवश्यक था, जिससे वह आर्थिक तौर पर सशक्त हो सके।
  • राजा हम्मीर चौहान का बढ़ता वर्चस्व अलाऊद्दीन खिलजी के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं था।
  • रणथम्भौर चौहानों की शक्ति का प्रतीक था जिसे खिलजी क्षीण करना चाहता था और राजपुताने पर अपनी धाक  जमाना चाहता था। 
  • तीसरा कारण यह भी था कि अलाऊद्दीन खिलजी हर बार और हर मोर्चे पर राजा हम्मीर चौहान से हार रहा था, जिसका वह बदला लेना चाहता था।
  • राजा हम्मीर चौहान द्वारा अलाऊद्दीन खिलजी के विद्रोहियों को शरण देना, इस युद्ध का अंतिम कारण माना जाता है।

क्या रहा रणथम्भौर का युद्ध का परिणाम?

हर युद्ध में राजा हम्मीर चौहान के नेतृत्व और रजपूती तलवार से पनपी वीरता की गाथाओं को कोई भी आक्रमणकारी नहीं दबा पाया। हर युद्ध में राजा हम्मीर चौहान की जीत हुई जिससे अलाऊद्दीन खिलजी ने संधि का एक प्रपंच किया। परिणामस्वरूप खिलजी के छल और अपनों से मिलने वाली गद्दारी के चलते राजा हम्मीर चौहान अपने जीवन की आखिरी लड़ाई में पराजित हुए।

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आशा है कि आपको इस ब्लॉग के माध्यम से रणथम्भौर का युद्ध का इतिहास जानने को मिला होगा। साथ ही यह ब्लॉग आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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