हल्दीघाटी युद्ध के कुछ अनसुने तथ्य

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हल्दीघाटी युद्ध के अनसुने तथ्य

हल्दीघाटी युद्ध की कहानी हम सभी ने पढ़ी है। 1576 में होने वाला यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध राणा प्रताप और अकबर के मध्य हल्दीघाटी नामक तंग दर्रे (राजसमंद) में लड़ा गया। हल्दीघाटी का युद्ध इतना घमासान था कि अबुल फजल ने इसे खमनौर का युद्ध, बदायूंनी ने गोगून्दा का युद्ध और कर्नल टॉड ने इसे मेवाड़ की थर्मोपाइले कहा है।

हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की तरफ से सेना नायक कुँवर मानसिंह कछवाहा और राणा प्रताप की तरफ से हाकिम खां सूर थे। इस युद्ध को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों की अलग-अलग राय सामने आती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह युद्ध मुग़ल बादशाह अकबर ने जीता था वहीँ कुछ इतिहासकार महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी के युद्ध का विजेता मानते हैं।

जो भी हो, हल्दीघाटी का युद्ध इतना दिलचस्प था की आज भी इसका नाम लोगो की ज़ुबान पर रहता है। ऐसे में इस युद्ध से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जो बहुत ही कम लोग जानते हैं। ऐसे तथ्य जिन्होंने हमें किताबों में लिखे हुए इतिहास को बदलने पर मजबूर कर दिया। आइये देखते हैं वो क्या हैं।

इस युद्ध में अकबर के पास 80 हज़ार से ज्यादा और राजपूत के पास उनके मुकाबले केवल 20 हज़ार सैनिक थे। राजपूत सेना की अपूर्व वीरता के कारण हल्दीघाटी युद्ध स्थल स्वाधीनता प्रेमियों के लिए तीर्थ स्थल बन गया है। युद्ध की एक खासियत यह भी थी कि इसमें सिर्फ राजपूतों ने ही नहीं बल्कि वनवासी, ब्राह्मण, वैश्य आदि ने भी अपना बलिदान दिया था।

अबुल फजल इस युद्ध में स्वयं उपस्थित नहीं थे किंतु वह अकबर के दरबारी लेखक थे। इसलिए उन्होंने अकबरनामा में हल्दीघाटी युद्ध का भी वर्णन किया। उन्होंने लिखा है- “सरसरी तौर से देखनेवालों की दृष्टि में तो राणा की जीत नजर आती थी, इतने में एकाएक शाही फौज की जीत होने लगी, जिसका कारण यह हुआ कि सेना में यह अफवाह फैल गई कि बादशाह स्वयं आ पहुँचा है। इससे बादशाही सेना में हिम्मत आ गई और शत्रु सेना की, जो जीत पर जीत प्राप्त कर रही थी, हिम्मत टूट गई।”

युद्ध की भयावहता का वर्णन करते हुए अबुल फजल ने काव्यमय शैली में लिखा है-

खून के दो समुद्रों ने एक दूसरे को टक्कर दी,
उनसे उठी उबलती लहरों ने पृथ्वी को रंग-बिरंगा कर दिया।
जान लेने और जान देने का बाजार खुल गया।

अब्दुल कादिर बदायूनी हल्दीघाटी युद्ध में मौजूद थे। उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध का आँखों देखा विवरण अपनी किताब ‘मुन्तखाब उत तवारीख’ में अंकित किया है। बदायूनी एक कट्टर रुढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था। उस समय अकबर ने बाकी धर्मो की भलाई के लिए अपनी नीतियों में कुछ बदलाव किये थे। यह बदायुनी को पसंद नहीं था।

बदायूनी ने अकबर पर यह आरोप लगाया है कि वह इस्लाम जड़ें खोद रहा हैं। हल्दीघाटी युद्ध को आसफ़ ख़ाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी थी। हालाँकि अब्दुल कादिर बदायूनी आसफ़ ख़ाँ के साथ थे, परंतु आसफ़ ख़ाँ के भागने के साथ वह अपने भागने का उल्लेख नहीं करते हैं।

उदयपुर के मीरा कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर और इतिहासकार डॉ. चन्द्र शेखर शर्मा ने अपनी रिसर्च में कहा है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की थी।

डॉ. शर्मा ने अपने शोध में प्रताप की विजय को दर्शाते हुए ताम्र पत्रों से जुड़े प्रमाण पेश किए हैं। उनके अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक प्रताप ने हल्दीघाटी के आस-पास के गांवों के भूमि के पट्टों को ताम्र पत्र जारी किए। उस समय यह अधिकार केवल राजा के पास ही होता था। डॉ. शर्मा के मुताबिक यह दर्शाता है कि युद्ध के बाद हल्दीघाटी का क्षेत्र प्रताप के अधीन था।

डॉ. शर्मा ने विजय को दर्शाने वाले प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए गए हैं।

डॉ. शर्मा ने कहा है कि युद्ध के बाद मुगल सेनापति मान सिंह और आसफ़ ख़ाँ से युद्ध के नतीजों के बारे में जानकर अकबर नाराज़ हुआ था और उन्हें दरबार में ना आने की सजा दी गई थी।

यह हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े हुए ऐसे तथ्य हैं, जो आपको यह सोचने पर मजबूर करेंगे कि अब तक हम जो इतिहास  की किताबों में पढ़ते आए हैं, वो सच है या जो हमें अब जो बताया जा रहा है वो सच है।

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