Lok Adalat in Hindi: लोक अदालत क्या है और इसके क्या उद्देश्य हैं?

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Lok Adalat in Hindi

Lok Adalat in Hindi: लोक अदालत एक ऐसी अदालत है जहाँ विवादों को हल करने के लिए दो पक्ष आपसी समझौते से मामले सुलझाते हैं। इसमें वकील और अदालत के फैसले की जरूरत नहीं होती, बल्कि दोनों पक्ष एक साथ बैठकर समस्या का समाधान निकालते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को जल्दी और सस्ता न्याय देना है, ताकि अदालतों में केस का बोझ कम हो और लोग समय और पैसे की बचत कर सकें। लोक अदालत का विषय UPSC परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था का एक अहम हिस्सा है। इसलिए इस ब्लॉग में लोक अदालत (Lok Adalat in Hindi) के बारे में विस्तार से बताया गया है।

लोक अदालत क्या है?

लोक अदालत का अर्थ है लोगों का न्यायालय। यह एक ऐसा मंच है जहां विवादों को आपसी समझौते से सुलझाया जाता है। इसमें सिविल मामलों के साथ-साथ कुछ आपराधिक मामले भी निपटाए जा सकते हैं, जिनमें समझौता करना मुमकिन हो। लोक अदालत का फैसला अंतिम होता है, और इसके खिलाफ कहीं भी अपील नहीं की जा सकती। अगर मामला लोक अदालत में सुलझता है, तो जमा की गई कोर्ट फीस वापस कर दी जाती है। सभी जिलों में स्थायी लोक अदालतें हैं, जहां विवाद सुलझाने के लिए आवेदन किया जा सकता है। जो मामले अभी अदालत में नहीं गए हैं, उन्हें भी लोक अदालत में बिना मुकदमा दायर किए सुलझाया जा सकता है, बशर्ते दोनों पक्ष सहमत हों। यह प्रक्रिया आसान, तेज और सस्ती है।

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लोक अदालतों का स्तर और संरचना

लोक अदालतों की संरचना और स्तर इस प्रकार है: 

राज्य स्तर पर

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव लोक अदालतों की पीठ का गठन करते हैं। हर पीठ में ये लोग शामिल होते हैं:

  • एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (जो कार्यरत या सेवानिवृत्त हो सकते हैं)।
  • एक न्यायिक अधिकारी (जो कार्यरत या सेवानिवृत्त हो सकते हैं)।
  • एक विधिक पेशेवर, जो कानूनी क्षेत्र से जुड़ा हो।
  • एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए काम करता हो।
  • एक व्यक्ति, जो विधिक सेवाओं और कार्यक्रमों में रुचि रखता हो।

उच्च न्यायालय स्तर पर

उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के सचिव लोक अदालत की पीठों का गठन करते हैं। इस स्तर पर पीठ में ये सदस्य होते हैं:

  • एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश (जो कार्यरत या सेवानिवृत्त हो सकते हैं)।
  • एक विधिक पेशेवर।
  • एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो कमजोर वर्गों के उत्थान में काम करता हो।
  • एक व्यक्ति, जो विधिक सेवाओं के कार्यान्वयन में रुचि रखता हो।

जिला स्तर पर 

जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव लोक अदालत की पीठ का गठन करते हैं। इस पीठ में ये लोग होते हैं:

  • एक कार्यरत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी।
  • एक विधिक पेशेवर।
  • एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो कमजोर वर्गों के उत्थान में काम करता हो।
  • एक महिला सदस्य, जो विधिक सेवाओं के कार्यान्वयन में रुचि रखती हो या क्षेत्र की अर्ध-विधिक गतिविधियों से जुड़ी हो।

तालुका स्तर पर 

तालुका विधिक सेवा समिति के सचिव लोक अदालत की पीठ का गठन करते हैं। इस पीठ में ये लोग शामिल होते हैं:

  • एक कार्यरत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी।
  • एक विधिक पेशेवर।
  • एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो कमजोर वर्गों के उत्थान में काम करता हो।
  • एक महिला सदस्य, जो विधिक सेवाओं के कार्यान्वयन में रुचि रखती हो। 

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लोक अदालत के प्रकार 

भारत में लोक अदालत के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनका उद्देश्य जल्दी और सस्ता न्याय प्रदान करना है। आईये जानते हैं इन प्रकारों के बारे में : 

स्थायी लोक अदालत

यह अदालत हमेशा चलने वाली होती है और सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं जैसे परिवहन, डाक, और टेलीफोन से संबंधित विवादों को हल करती है। यह अदालत समय-समय पर आयोजित नहीं होती, बल्कि लगातार काम करती रहती है।

राष्ट्रीय लोक अदालत

यह अदालत 2015 में शुरू हुई थी और हर महीने आयोजित की जाती है। इसका उद्देश्य देश भर में लंबित मामलों को सुलझाना है और न्याय प्रणाली पर बोझ कम करना है। इसमें खास मामलों या विषयों पर ध्यान दिया जाता है।

मेगा लोक अदालत

यह बहुत बड़े पैमाने पर आयोजित होती है, जिसमें एक दिन में कई मामलों का समाधान किया जाता है। इसमें अलग-अलग प्रकार के मामले आते हैं और ये अदालतें कई बेंचों के माध्यम से एक साथ कई मामलों का समाधान करती हैं।

मोबाइल लोक अदालत

ये अदालतें दूरदराज इलाकों में न्याय पहुँचाने के लिए बनाई गई हैं। ये अदालतें एक जगह से दूसरी जगह जाती हैं, ताकि उन लोगों तक न्याय पहुँच सके जो पारंपरिक अदालतों तक नहीं पहुँच पाते।

दैनिक लोक अदालत

यह अदालत रोजाना काम करती है और नियमित रूप से विवादों का समाधान करती है। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिससे लोग जल्दी और समय पर न्याय प्राप्त कर सकते हैं।

सतत लोक अदालत

ये अदालतें निरंतर चलती रहती हैं और किसी खास समय पर सीमित नहीं होतीं। इनका उद्देश्य विवादों को जल्दी हल करने के लिए एक स्थायी मंच प्रदान करना है, ताकि पारंपरिक अदालतों की देरी से बचा जा सके।

लोक अदालत का उद्देश्य क्या है?

इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • यह विवादों को आपसी सहमति से हल करने का एक मंच प्रदान करती है, जहां दोनों पक्ष बिना न्यायालय में लंबी प्रक्रिया के समाधान पर पहुंच सकते हैं।
  • लोक अदालतों के माध्यम से न्यायालयों पर आने वाले मामलों की संख्या कम होती है, जिससे न्यायिक कार्यों में सुधार आता है।
  • न्याय प्रक्रिया को सस्ता और तेज़ बनाने के उद्देश्य से लोक अदालत का आयोजन किया जाता है, ताकि गरीब और सामान्य लोग भी इसका लाभ उठा सकें।
  • यह नागरिकों को एक दूसरे के साथ विवादों का समाधान सहयोग से करने का अवसर देती है, जिससे सामाजिकता को बढ़ावा मिलता है।
  • लोक अदालतें समाज में कानूनी जागरूकता फैलाने का कार्य करती हैं, ताकि लोग अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में अधिक जान सकें।

लोक अदालत का महत्व

लोक अदालत का महत्व इस प्रकार से है : 

  • लोक अदालत लोगों को जल्दी न्याय देती है, जिससे उन्हें लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से बचने का मौका मिलता है।
  • यहां विवादों को आपसी सहमति से हल किया जाता है, जिससे समाज में शांति बनी रहती है और लोग बिना झगड़े के अपने मामले सुलझा पाते हैं।
  • लोक अदालतों के जरिए लोग अपने अधिकारों के बारे में ज्यादा जान पाते हैं, जिससे वे सही तरीके से अपनी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं।
  • लोक अदालतों में मुकदमे की लागत कम होती है, जिससे गरीब लोग भी आसानी से न्याय पा सकते हैं।
  • लोक अदालतों के चलते पारंपरिक अदालतों पर बोझ कम होता है, जिससे वो महत्वपूर्ण मामलों पर ध्यान दे सकती हैं।
  • लोक अदालतें दूरदराज के इलाकों में भी न्याय उपलब्ध कराती हैं, ताकि सभी लोग आसानी से अपने मामले सुलझा सकें।

भारत में लोक अदालत की शुरुआत कब हुई?

भारत में लोक अदालत की शुरुआत 1982 में हुई थी। पहली लोक अदालत का आयोजन गुजरात में हुआ था। इसका उद्देश्य था लोगों को जल्दी, सस्ता और आसान न्याय देना। बाद में, 1987 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम (NALSA Act) को लागू किया गया, जिससे लोक अदालतों को कानूनी पहचान मिली और इन्हें पूरे भारत में स्थापित किया गया।

लोक अदालत के लाभ 

लोक अदालत के लाभ निम्नलिखित है : 

  1. इससे समय की बचत होती है, और मामले जल्दी सुलझ जाते हैं।
  2. कानूनी प्रक्रिया कम खर्चीली होती है।
  3. विवाद आपसी समझौते के जरिए सुलझाए जाते हैं।
  4. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए सुलभ है।
  5. फैसले के बाद कोर्ट फीस वापस कर दी जाती है।
  6. लोक अदालत का फैसला अंतिम होता है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।
  7. प्री-लिटीगेशन स्तर पर मामले बिना मुकदमा दायर किए सुलझाए जा सकते हैं।
  8. प्रक्रिया तनाव-मुक्त और अनौपचारिक होती है।
  9. सरकार का कानूनी बोझ कम होता है।
  10. पर्यावरण के लिए अनुकूल है क्योंकि कागजी कार्रवाई कम होती है।

लोक अदालत की चुनौतियां

लोक अदालत की चुनौतियां इस प्रकार से है: 

  • 1. जागरूकता की कमी: बहुत से लोगों को लोक अदालत की कार्यप्रणाली और इसके लाभों के बारे में जानकारी नहीं होती, जिससे लोग इसका लाभ उठाने में असमर्थ रहते हैं।
  • सीमित क्षेत्राधिकार: लोक अदालत केवल कुछ विशेष मामलों का निपटारा कर सकती है। गंभीर और जटिल मामलों में इसका दायरा सीमित होता है।
  • पक्षकारों की सहमति: लोक अदालत में मामले का निपटारा तभी संभव है जब दोनों पक्ष सहमति दें। सहमति न मिलने पर मामला लंबा खिंच सकता है।
  • गुणवत्ता पर समझौता: कई बार न्याय जल्दी प्राप्त करने के लिए लोग उचित निर्णयों पर समझौता कर लेते हैं, जिससे न्याय की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
  • जटिल मामलों का निपटारा: कानूनी और तकनीकी रूप से जटिल मामले लोक अदालत के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।
  • वित्तीय और प्रशासनिक समस्याएं: लोक अदालतों को आवश्यक संसाधन और वित्तीय सहायता नहीं मिलने से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
  • अपील का अधिकार: लोक अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती, जो कुछ मामलों में पक्षकारों के लिए चिंता का विषय बनता है।
  • जनसंख्या और विवादों का बढ़ता दबाव: भारत में बढ़ती जनसंख्या और विवादों की संख्या के कारण लोक अदालतों पर भारी दबाव है, जिससे उनके प्रभावी संचालन में बाधा आती है।

FAQs

लोक अदालत का मतलब क्या होता है?

लोक अदालत का मतलब है लोगों की अदालत। 

लोक अदालत में केस के लिए आवेदन कैसे करें?

जो लोग निःशुल्क कानूनी सहायता चाहते हैं, वे आवेदन करके संबंधित प्राधिकरण या समिति से संपर्क कर सकते हैं। आवेदन लिखित रूप में, फॉर्म भरकर या मौखिक रूप से किया जा सकता है।

लोक अदालत का उद्देश्य क्या है?

लोक अदालत का मुख्य उद्देश्य न्याय की उपलब्धता को सरल और सस्ता बनाना, न्यायालयों पर दबाव को कम करना, और नागरिकों के विवादों का शीघ्र निपटारा करना है।

लोक अदालत में मामलों का समाधान कैसे होता है? 

लोक अदालत में मामले का समाधान आमतौर पर आपसी सहमति और समझौते से किया जाता है। दोनों पक्षों के बीच बातचीत करके एक समझौते पर पहुंचा जाता है, जिसके बाद न्यायधीश मामले का समाधान करते हैं।

लोक अदालत में जाने के लिए क्या प्रक्रिया होती है? 

किसी भी मामले को लोक अदालत में लाने के लिए संबंधित पक्षों को पहले आवेदन करना होता है। इसके बाद, मामला लोक अदालत में भेजा जाता है और वहां सभी पक्षों की बैठक होती है।

लोक अदालत में कितनी फीस लगती है? 

लोक अदालत में किसी भी मामले का समाधान सस्ता होता है। आमतौर पर इसमें कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, और यदि कोई शुल्क लिया जाता है तो वह सामान्य अदालत के मुकाबले बहुत कम होता है।

लोक अदालत किसे आयोजित करती है? 

लोक अदालतों का आयोजन विभिन्न न्यायिक संस्थाएं करती हैं, जैसे कि जिला न्यायालय, राज्य न्यायालय, या सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश पर।

लोक अदालत में कौन भाग ले सकता है? 

लोक अदालत में कोई भी व्यक्ति या संगठन भाग ले सकता है, बशर्ते उसका मामला उपयुक्त हो और वह पक्ष मामले के समाधान के लिए सहमत हो।

लोक अदालत और सामान्य अदालत में क्या अंतर है? 

लोक अदालत में मामले का निपटारा सहमति और समझौते के आधार पर किया जाता है, जबकि सामान्य अदालत में न्यायधीश द्वारा फैसले दिए जाते हैं। लोक अदालत का उद्देश्य प्रक्रिया को शीघ्र और सस्ता बनाना है।

लोक अदालत का लाभ क्या है? 

लोक अदालत का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह सस्ती, शीघ्र और पारदर्शी होती है। इसमें लंबी अदालत प्रक्रियाओं से बचा जा सकता है और दोनों पक्षों के लिए संतोषजनक समाधान पाया जा सकता है।

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