Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay: “सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोबिंद सिंह नाम धरावाँ” का उद्घोष करने वाले ‘गुरु गोबिंद सिंह जी’ सिखों के 10वें और अंतिम गुरू थे। उन्होंने ही सिख समुदाय को एकजुट करके “खालसा पंथ” की स्थापना की। इस वर्ष गुरु गोबिंद सिंह जी की 358वी जयंती 06 जनवरी 2025 को सोमवार के दिन मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोग इस दिन को “प्रकाश पर्व”’ के रूप में भी मनाते हैं।
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह की जयंती (Guru Gobind Singh Jayanti 2025) हर साल नानकशाही कैलेंडर के आधार पर पौष माह (Paush Month) के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। बता दें कि यह तिथि कभी जनवरी में तो कभी दिसंबर माह में आती है। बिहार में पटना शहर का तख्त श्री हरि मंदिर साहिब (Takhat Shri Harimandir Ji Patna Sahib) खालसा पंथ के संस्थापक गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज का जन्म स्थान है।
नाम | गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) |
जन्म | 22 दिसंबर 1666 |
जन्म स्थान | पटना, बिहार (पटना साहिब) |
पिता का नाम | श्री गुरु तेग बहादुर जी |
माता का नाम | गुजरी देवी |
पत्नी का नाम | माता सुंदरी |
संतान | ‘बाबा अजीत सिंह’, ‘बाबा जुझार सिंह’ बाबा जोरावर सिंह’ और ‘फतेह सिंह’ |
शिक्षा | चक्क नानकी (आनंदपुर साहिब) |
भाषा | पंजाबी, संस्कृत, अरबी, फ़ारसी |
स्थापना | खालसा पंथ |
रचनाएँ | ‘अकाल स्तुति’, ‘बचित्तर नाटक’, ‘चंडी चरित्र’, ‘ज्ञान प्रबोध’ और ‘ज़फ़रनामा’ |
आत्मकथा | ‘चंडी दी वार’ (Chandi di Var) |
निधन | 7 अक्टूबर 1708, नांदेड, महाराष्ट्र |
This Blog Includes:
- बिहार के पटना शहर में हुआ था जन्म – Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay
- ‘चक्क नानकी’ में प्राप्त की शिक्षा
- अल्प आयु में पिता का हुआ बलिदान
- ‘खालसा पंथ’ की स्थापना
- पंच ककार का सिद्धांत
- क्यों कहाँ जाता है सरबंस दानी?
- कई भाषाओं में निपुण
- जीवनकाल में की कई रचनाएँ
- ‘चण्डी दी वार’ आत्मकथा
- गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादे
- क्यों लिखी विजय की चिट्ठी?
- तख्त श्री हजूर साहिब
- पढ़िए हिंदी साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
बिहार के पटना शहर में हुआ था जन्म – Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर, 1666 को बिहार के पटना शहर में “श्री गुरु तेग बहादुर जी” के घर पर हुआ था, जो सिख धर्म के 9वें गुरु थे। उनकी माता का नाम “गुजरी देवी” था। जिस जगह उनका जन्म हुआ उसे अब “पटना साहिब” नाम से जाना जाता है। क्या आप जानते हैं कि बचपन में गुरुजी (Guru Gobind Singh Ka Mul Naam Kya Tha) ‘गोविंदराय’ के नाम से जाने जाते थे। वहीं अपने जीवन के शुरुआती 4 वर्ष उन्होंने पटना के घर में ही बिताए थे।
‘चक्क नानकी’ में प्राप्त की शिक्षा
1670 ईस्वी में गुरु जी का परिवार पंजाब में ‘आनंदपुर साहिब’ (Anandpur Sahib) नामक स्थान पर रहने आ गया था। जो पूर्व में ‘चक्क नानकी’ नाम से जाना जाता था। यह स्थान हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों मे स्थित है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत चक्क नानकी में ही हुई थी। एक योद्धा बनने के लिये जिन कलाओं की जरूरत पड़ती है, वह सब उन्होंने इसी स्थान से सीखी थी। इसके साथ ही उन्होंने संस्कृत और फारसी भाषा का ज्ञान भी प्राप्त किया था।
अल्प आयु में पिता का हुआ बलिदान
Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay : उन दिनों भारत में मुगलों का शासन था और औरंगज़ेब (Aurangzeb) बादशाह की गद्दी पर काबिज था। वहीं, औरंगज़ेब के शासनकाल में इस्लाम को राजधर्म घोषित करने की कवायद जोरो पर थीं। वह जबरन हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवा रहा था। तब औरंगजेब से प्रताड़ित होकर कश्मीरी पंडित “गुरु तेग बहादुर जी” के पास फरियाद लेकर पहुंचे। पंडितों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करके इस्लाम कबूल कराए जाने की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है कि, अगर धर्म परिवर्तन नहीं किया तो हमें प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे। ऐसा कोई महापुरुष हो, जो इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करे और अपना बलिदान दे सके, तो सबका धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर “गुरु तेग बहादुर जी” ने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ खुद का बलिदान दिया। इसके बाद लोगों को जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने व स्वयं इस्लाम न स्वीकारने के कारण 11 नवंबर 1675 को औरंगज़ेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में आम लोगों के सामने उनके पिता “गुरु तेग बहादुर जी” का सिर धड़ से अलग कर दिया। पिता के निधन के समय गुरु गोबिंद मात्र 9 साल के थे। इसके बाद 29 मार्च, 1676 में गुरु गोबिंद सिंह जी को सिखों का 10वां गुरु घोषित किया गया।
‘खालसा पंथ’ की स्थापना
उसके बाद से गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना संपूर्ण जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया। बाद में गुरु गोबिंद जी ने गुरु प्रथा को समाप्त कर दिया। उन्होंने ‘खालसा पंथ’ की स्थापना आनंदपुर साहिब में 1699 को बैसाखी के दिन की और ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को ही सबसे बड़ा बताया। इसके साथ ही खालसा वाणी भी दी, जिसमें ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ कहा गया। इसके अलावा उन्होंने ‘पंज प्यारे’ को अमृत पान करवाकर खालसा बनाया और खुद भी उनके हाथों से अमृत पान किया। जिसके बाद सिख समुदाय पवित्र ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ की वंदना करने लगे। वहीं गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख समुदाय के इतिहास में सबसे बड़ा फैसला लिया था।
पंच ककार का सिद्धांत
Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay: गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘खालसा पंथ’ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें ‘पंच ककार’ के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब ‘क’ शब्द से शुरु होने वाले पांच सिद्धांत हैं, जिनका अनुसरण करना हर खालसा सिख के लिए अनिवार्य है। ये पंच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा।
क्यों कहाँ जाता है सरबंस दानी?
गुरू गोबिंद सिंह जी ने मुगलों और उनके सहयोगियों के खिलाफ 14 युद्ध लड़े। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया। इसलिए उन्हें “सरबंस दानी” भी कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें बाजावाले, कलगीधर और दशमेश आदि नामों से ही जाना जाता है।
कई भाषाओं में निपुण
Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay: गुरु गोबिंद सिंह जी एक कुशल योद्धा, विचारक और समाज सुधारक होने के साथ ही कई भाषाओं के जानकार, लेखक व कवि भी थे। वह संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषा में निपुण थे। इसके साथ ही उन्हें तलवार, भाला और धनुष-बाण चलाने में महारत हासिल थी।
जीवनकाल में की कई रचनाएँ
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी बाद में छोटी-छोटी पोथियां बना दीं गई। उनके देहांत के बाद उनकी धर्मपत्नी “माता सुंदरी” की आज्ञा से “भाई मणी सिंह” और अन्य खालसा भाइयों ने उनकी सारी रचनाओं को इकट्ठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं :- ‘जाप साहिब’ (Jaap Sahib), ‘अकाल स्तुति’, ‘बचित्तर नाटक’ (Bachitar Natak), ‘चंडी चरित्र’, ‘चंडी दी वार’ (Chandi di Var), ‘ज्ञान प्रबोध’ और ‘ज़फ़रनामा’ (Zafarnama) आदि। इसी के साथ में गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख धर्म के शाश्वत तथा प्राथमिक ग्रंथ यानी कि “गुरु ग्रंथ साहिब” को अंतिम रूप देने का काम भी किया है।
‘चण्डी दी वार’ आत्मकथा
बता दें कि ‘चण्डी दी वार’ (Chandi di Var) गुरू गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रंथ (Dasam Granth) का एक भाग है। दसम ग्रंथ, गुरू गोबिंद सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है। क्या आप जानते हैं कि गुरुजी विद्वानों के संरक्षक भी थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था।
गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादे
गुरु गोबिंद सिंह के चारों साहिबजादों के नाम इस प्रकार हैं:-
- साहिबजादा जोरावर सिंह जी
- साहिबजादा फतेह सिंह जी
- साहिबजादा जोरावर सिंह जी
- साहिबजादा अजीत सिंह जी
क्यों लिखी विजय की चिट्ठी?
‘बाबा अजीत सिंह’, ‘बाबा जुझार सिंह’ गुरुजी के बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। वहीं, छोटे साहिबजादों में ‘बाबा जोरावर सिंह’ और ‘फतेह सिंह’ को सरहिंद के नवाब ने 27 दिसंबर, 1704 को जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। जब यह सूचना गुरुजी को मिली तो उन्होंने औरंगजेब को एक ‘ज़फ़रनामा’ यानी (विजय की चिट्ठी) लिखी, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए ‘खालसा पंथ’ तैयार हो गया है।
तख्त श्री हजूर साहिब
अक्टूबर 1707 ईस्वी में जब गुरुजी दक्षिण की ओर गए तो उन्हें औरंगज़ेब की मृत्यु की खबर मिली। माना जाता है कि औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने बहादुर शाह प्रथम को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहिंद का नवाब ‘वजीत खाँ’ घबरा गया। उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर, 1708 ईस्वी में गुरुजी ‘नांदेड’ (Nanded) में 42 वर्ष की आयु में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। उनकी शहादत वाले स्थान पर ‘तख्त श्री हजूर साहिब’ बना है, जो इस समय महाराष्ट्र के नांदेड़ में है।
इस दिन को प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर देश-दुनिया में सिख समुदाय के लोग प्रभात फेरी निकालते हैं। गुरुद्वारों में शबद कीर्तन का आयोजन और गुरबानी का पाठ किया जाता है। इस दिन गुरुद्वारे में लंगर भी लगता है। वहीं सिख इतिहास के सबसे महान योद्धा माने जाने वाले गुरु गोबिंद सिंह की वीरता की कहानियां आज भी लोग याद करते हैं।
पढ़िए हिंदी साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ ‘सरबंस दानी’ गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन परिचय (Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay) के साथ ही हिंदी साहित्य के अन्य साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
वर्ष 2025 में गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती सोमवार 06 जनवरी को मनाई जाएगी।
गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना शहर में “श्री गुरु तेग बहादुर जी” के घर पर हुआ था
गुरु गोबिंद सिंह की माता का नाम गुजरी देवी व पिता का नाम ‘गुरु तेग बहादुर’ था जो सिख घर्म के 9वें गुरु थे।
मात्र 09 वर्ष की अल्प आयु में अपने पिता ‘गुरु तेग बहादुर जी’ की शहादत के बाद उन्होंने गुरु की गद्दी संभाली थी।
गुरु गोबिंद सिंह की आत्मकथा का नाम ‘चण्डी दी वार’ है।
7 अक्टूबर 1708 ईस्वी में गुरुजी ‘नांदेड’ में 42 वर्ष की आयु में दिव्य ज्योति में लीन हो गए थे।
“सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोबिंद सिंह नाम धरावाँ” का उद्घोष करने वाले ‘गुरु गोबिंद सिंह जी’ सिखों के 10वें और अंतिम गुरू थे।
जोरावर सिंह, फतेह सिंह, जुझार सिंह और अजित सिंह गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे।
गुरु गोबिंद सिंह की जयंती हर साल नानकशाही कैलेंडर के आधार पर पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि कभी जनवरी में तो कभी दिसंबर माह में आती है।
पंजाब के सरहिंद में गुरुद्वारा श्री फ़तेहगढ़ साहिब (Gurudwara Shri Fatehgarh Sahib), गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बेटों की शहादत की याद में बना है।
आशा है कि आपको ‘सरबंस दानी’ श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन परिचय (Guru Gobind Singh ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।