Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi: आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का नाम अग्रणी माना जाता हैं। वहीं हिंदी साहित्य जगत में वह ‘प्रयोगवाद’ के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी विभिन्न रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य जगत में रोशनियाँ बिखेरी हैं। बता दें कि प्रयोगवाद की शुरुआत ‘अज्ञेय’ के संपादन में वर्ष 1943 में ‘तारसप्तक’ से होती है। जिसमें विविध विचारधारा रखने वाले सात कवियों को एक साथ लिया गया। हिंदी काव्यधारा में चार तारसप्तक प्रकाशित हुए जिनका संपादन ‘अज्ञेय’ ने किया।
‘अज्ञेय’ आधुनिक हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा साहित्यकारों में से एक हैं जिन्होंने सहित्य की सभी विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया हैं। वहीं हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका हैं। बता दें कि अज्ञेय की कई रचनाएँ जिनमें ‘हरी घास पर क्षणभर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के द्वार पर’ (कविता), ‘शेखर: एक जीवनी’ (उपन्यास), ‘अरे यायावर रहेगा याद’ (यात्रा वृतांत), ‘उतरप्रियदर्शी’ (नाटक) आदि को बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं।
वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं, इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय (Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi) और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात साहित्यकार अज्ञेय का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूल नाम | सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय |
उपनाम | ‘अज्ञेय’ |
जन्म | 7 मार्च 1911 |
जन्म स्थान | कुशीनगर, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री हीरानंद वात्स्यायन |
शिक्षा | बी.एस.सी |
पेशा | साहित्यकार, पत्रकार |
भाषा | हिंदी, अंग्रेजी |
विधाएँ | कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा- वृतांत, संस्मरण, निबंध |
उपन्यास | शेखर: एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी आदि। |
कहानी-संग्रह | ये तेरे प्रतिरूप, विपगाथा, कोठरी की बात आदि। |
कविताएँ | ‘हरी घास पर क्षणभर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के द्वार पर’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’ आदि। |
यात्रा वृतांत | अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली |
नाटक | उत्तरप्रियदर्शी |
संपादन | तारसप्तक, दिनमान |
पुरस्कार | ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’। |
निधन | 4 अप्रैल 198, नई दिल्ली |
This Blog Includes:
- कुशीनगर में हुआ था जन्म – Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi
- बीच में ही छोड़नी पड़ी एम.ए
- विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
- देश-विदेश की यात्राएँ
- तारसप्तक का संपादन
- अज्ञेय की प्रमुख रचनाएं – Agyeya Ki Rachnaye
- सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की भाषा शैली – Agyeya Ki Bhasha Shaili
- पुरस्कार एवं सम्मान
- अज्ञेय का निधन
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
कुशीनगर में हुआ था जन्म – Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 07 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर गांव में हुआ था। क्या आप जानते हैं कि ‘कुशीनगर’ वहीं प्राचीन स्थल है जहाँ “गौतम बुद्ध” में निर्वाण प्राप्त किया था। अज्ञेय के पिता का नाम ‘श्री हीरानंद वात्स्यायन’ था जो कि पेशे से ‘भारतीय पुरातत्व विभाग’ में एक उच्च पदाधिकारी थे। वहीं सरकारी नौकरी होने के कारण उनके पिता का देश के कई राज्यों में तबादला होता रहता था जिसके कारण ‘अज्ञेय’ जी का बचपन पटना, नालंदा, जम्मू-कश्मीर, लाहौर, मद्रास, लखनऊ और बड़ौदा आदि स्थानों पर बीता। किंतु इसी कारण उन्हें विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों से मिलने का अवसर भी मिला।
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बीच में ही छोड़नी पड़ी एम.ए
अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही शुरू हुई जहाँ उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, फ़ारसी और हिंदी का ज्ञान मिला। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1925 में हाईस्कूल और वर्ष 1927 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। फिर उन्होंने लाहौर के एक कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की। वर्ष 1929 में अज्ञेय ने लाहौर के ही कॉलेज में एम.ए अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू की लेकिन इसी बीच उनका लाहौर में चल रहे ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन’ से उनके क्रांतिकारी जीवन का आरम्भ हुआ।
जिसके कारण उन्हें अपनों एम.ए की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। बता दें कि इस बीच उन्हें चार वर्षों तक जेल व दो वर्षों तक नजरबंद रहना पड़ा। किंतु इस अवधि के दौरान उनका साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो चुका था तथा वह एक लेखक के रूप में साहित्य जगत में अपनी पहचान बना चुके थे।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का कार्यक्षेत्र विस्तृत और संघर्षमय रहा। नजरबंदी से रिहा होने के बाद जब वह घर आए तो उन्हें अपनी माता और छोटे भाई के निधन का पता चला। वहीं पिताजी की नौकरी से रिटायमेंट आदि घटनाओं से उनके जीवन में हलचल मच गई। अपनी आजीविका चलाने हेतु उन्हें शुरुआत ने आगरा के समाचारपत्र “सैनिक” के संपादकीय विभाग में कार्य करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1937 में ‘बनासीदास चतुर्वेदी’ के आग्रह पर “विशाल भारत”, कलकत्ता के संपादकीय विभाग में कार्य करने लगे। इसी बीच उनका विवाह हुआ जो अधिक समय तक नहीं चल सका और उनका संबंध टूट गया।
वर्ष 1947 में ‘अज्ञेय’ इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) से “प्रतीक” समाचार पत्र का लगे। लेकिन प्रतीक ज्यादा समय तक नहीं चल सका। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक विदेश के विभिन्न देशों की यात्राएं की और वापस देश लौटने के बाद वर्ष 1965 में दिल्ली से प्रकाशित होने वाले “दिनमान” साप्ताहिक का संपादन करने लगे। कुछ महीनों की कड़ी मेहनत के बाद ही “दिनमान” हिंदी का श्रेष्ठ साप्ताहिक पत्र बन गया। इसके अलावा उन्होंने “नवभारत टाइम्स”, “नया प्रतीक” का भी संपादन कार्य किया।
देश-विदेश की यात्राएँ
बता दें कि ‘अज्ञेय’ जी ने वर्ष 1955 में यूनस्को के निमंत्रण पर पश्चिमी यूरोप की यात्रा की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1957 में जापान और फिलीपींस देश की यात्रा की वहीं इन यात्राओं से उन्हें कई रचनाओं की प्रेरणा मिली। स्वदेश लौटने के बाद वह कुछ समय तक दिल्ली में रहे जिसके बाद वर्ष 1960 में उन्होंने दूसरी बार यूरोप की यात्रा पर गए। क्या आप जानते हैं कि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ वर्ष 1961 में अमेरिका के “कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय” में भारतीय संस्कृति और साहित्य के अध्यापक बनकर गए और कुछ वर्षों तक उन्होंने यहाँ रहकर अध्यापन कार्य किया।
तारसप्तक का संपादन
क्या आप जानते हैं कि अज्ञेय ने आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘प्रगतिवाद’ से असंतुष्ट होकर ‘व्यक्ति स्वतंत्र सिद्धांत’ की स्थापना का अभियान ‘प्रयोगवाद’ चलाया। जिसका आरंभ अज्ञेय के संपादन में वर्ष 1943 में ‘तारसप्तक’ से शुरू होता है। प्रत्येक ‘तारसप्तक’ में विविध विचारधारा रखने वाले सात कवियों को एक साथ लिया गया जिनमें उनकी कविताएं संगृहीत है, जो शताब्दी के कई दशकों की काव्य चेतना को प्रकट करती हैं।
प्रथम तार सप्तक एक काव्य संग्रह है जिसका संपादन वर्ष 1943 में अज्ञेय जी ने लिया। यहीं से हिंदी साहित्य में “प्रयोगवाद” का आरंभ माना जाता है। बता दें कि प्रथम तारसप्तक के कवियों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, ‘मुक्तिबोध’, ‘गिरजाकुमार माथुर’, ‘प्रभाकर माचवे’, ‘भारत भूषण अग्रवाल’, ‘रामविलास शर्मा’ और ‘नेमिचंद्र जैन’ शामिल थे। अज्ञेय जी ने वर्ष 1951 में (दूसरा तारसप्तक), वर्ष 1959 में (तीसरा तारसप्तक) व वर्ष 1979 में (चौथे तारसप्तक) का संपादन कार्य किया।
अज्ञेय की प्रमुख रचनाएं – Agyeya Ki Rachnaye
यहाँ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय (Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi) के साथ ही उनकी संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
उपन्यास
- शेखर: एक जीवनी – (दो भाग, क्रमशः वर्ष 1941, 1944)
- नदी के द्वीप – वर्ष 1951
- अपने अपने अजनबी – वर्ष 1961
कहानी-संग्रह
- विपथगा – वर्ष 1937
- परंपरा – वर्ष 1944
- कोठरी की बात – वर्ष 1945
- शरणार्थी – वर्ष 1948
- जयदोल – वर्ष 1951
कविता-संग्रह
- भग्नदूत – वर्ष 1933
- चिंता – वर्ष 1942
- इत्यलम् – वर्ष 1946
- हरी घास पर क्षण भर – वर्ष 1949
- बावरा अहेरी – वर्ष 1954
- इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये – वर्ष 1957
- अरी ओ करुणा प्रभामय – वर्ष 1959
- आँगन के पार द्वार – वर्ष 1961
- कितनी नावों में कितनी बार – वर्ष 1967
- क्योंकि मैं उसे जानता हूँ – वर्ष 1970
- सागर मुद्रा – वर्ष 1970
- पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ – वर्ष 1974
- महावृक्ष के नीचे – वर्ष 1977
- नदी की बाँक पर छाया – वर्ष 1981
- प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स – अंग्रेज़ी- वर्ष 1946
नाटक
- उत्तरप्रियदर्शी
यात्रा वृतांत
- अरे यायावर रहेगा याद? – वर्ष 1943
- एक बूँद सहसा उछली – वर्ष 1960
आलोचना
- त्रिशंकु – वर्ष 1945
- आत्मनेपद – वर्ष 1960
- अद्यतन – वर्ष 1971
निबंध-संग्रह
- सबरंग
- त्रिशंकु
- आत्मनेपद
- आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य
- आलवाल
- संवत्सर
संस्मरण
- स्मृति लेखा
डायरी
- भवंती
- अंतरा
- शाश्वती
संपादन
- आधुनिक हिंदी साहित्य – (निबंध-संग्रह – वर्ष 1942)
- तार सप्तक (कविता संग्रह) (1943), दूसरा सप्तक (कविता संग्रह) (1951), तीसरा सप्तक (कविता संग्रह) (1959)
- नए एकांकी – वर्ष 1952
- रूपांबरा – वर्ष 1960 एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ।
- पुष्करिणी
- सैनिक
- विशाल भारत
- दिनमान
- नया प्रतीक
- नवभारत टाइम्स
- वाक्
- एवरीमैंस (अंग्रेजी)
अनुवाद
- गोरा उपन्यास (रवींद्रनाथ टैगोर – बांग्ला से)
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की भाषा शैली – Agyeya Ki Bhasha Shaili
सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय प्रकृति-प्रेम और मानव मन के अंतर्द्वंद्वों के कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में शब्दों को नया अर्थ देने का प्रयास करते हुए, हिंदी काव्य भाषा का विकास किया है। आधुनिकता, प्रेम, प्रकृति, अध्यात्म और रहस्य उनकी कविता के विशिष्ट पहलू हैं। हिंदी साहित्य को आधुनिकता की दिशा में नई गति और नया मोड़ प्रदान करने में अज्ञेय का स्थायी महत्व बना रहेगा।
पुरस्कार एवं सम्मान
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (Agyeya in Hindi) को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – (वर्ष 1964 आँगन के पार द्वार काव्य संग्रह के लिए पुरस्कृत किया गया।)
- भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार – (वर्ष 1978 में “कितनी नावों में कितनी” बार काव्य संग्रह के लिए सम्मानित किया गया।)
- भारत भारती सम्मान
- डी.लिट की उपाधि – विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा
- वर्ष 1972 में ‘अज्ञेय’ को उत्तरप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन में “विधावारिधि” उपाधि से सम्मानित किया गया।
अज्ञेय का निधन
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी कई दशकों तक हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया और हिंदी जगत को कई अनुपम रचनाएँ दी। किंतु वृदावस्था में प्रवेश करने के बाद खराब स्वास्थ्य और बीमारी के कारण उनका 04 अप्रैल 1987 को निधन हो गया। लेकिन उनकी रचनाओं के लिए उन्हें हिंदी सहित्य जगत में हमेशा याद किया जाता रहेगा।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय (Sachchidanand Hiranand Vatsyayan in Hindi) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
उनका मूल नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय है। किंतु साहित्य जगत में उन्हें ‘अज्ञेय’ के नाम से जाना जाता है।
अज्ञेय’ का जन्म 07 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर गांव में हुआ था।
बता दें कि उनका प्रथम काव्य संग्रह भग्नदूत वर्ष 1933 में प्रकाशित हुआ था।
‘अज्ञेय’ को वर्ष 1978 में “कितनी नावों में कितनी” बार काव्य संग्रह के लिए “भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।
यह ‘अज्ञेय’ जी का बहुचर्चित उपन्यास है जिसका प्रकाशन दो भागों में, क्रमशः वर्ष 1941 व 1944 को हुआ था।
बता दें कि खराब स्वास्थ्य और बीमारी के कारण उनका 04 अप्रैल 1987 को निधन हो गया था।
अज्ञेय जी ने सप्तक परंपरा का सूत्रपात करते हुए प्रथम तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक का संपादन किया था।
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