International Labour Organization in Hindi: हमारे समाज की असली रीढ़ अगर कोई है, तो वो हैं हमारे श्रमिक – फिर चाहे वो खेतों में पसीना बहाने वाले किसान हों, फैक्टरी में मशीनों के शोर के बीच काम करने वाले मजदूर, या फिर निर्माण स्थलों पर ईंटों से इमारतें खड़ी करने वाले कामगार। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन मेहनतकश लोगों के अधिकारों की रक्षा कौन करता है? क्या कोई ऐसा संगठन है जो यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें सही मजदूरी मिले, सुरक्षित माहौल मिले, और उनके साथ इंसाफ हो? यदि आप नहीं जानते तो बता दें कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ऐसा ही एक संगठन है, जो श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी और रक्षा करता है। इस संगठन को ILO (International Labour Organization) के नाम से भी जाना जाता है। तो आइए जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization in Hindi) के बारे में।
नाम | अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization – ILO) |
क्या करता है ? | दुनिया भर में जो लोग (मजदूर, कर्मचारी) काम करते हैं, उनके अधिकारों और उनकी हित की रक्षा के लिए काम करता है। |
कब बना ? | 1919 |
कहाँ है ? | जिनेवा, स्विट्जरलैंड |
किससे जुड़ा है ? | UN(United Nation) यूनाइटेड नेशन का एक हिस्सा है। |
लक्ष्य क्या है ? | लोगों के अच्छे काम के अवसर हों, जहाँ उनके साथ न्याय हो और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखा जाए। |
कैसे काम करता है ? | यह सारे देशों की सरकारों, काम करने वालों के संगठनों को एक साथ लाता है ताकि काम से जुड़े नियम और नीतियाँ बना सके। |
क्यों जरुरी है ? | सबको एक समान तरीके से काम मिले और कोई भेदभाव न किया जाए। |
पुरुस्कार | नोबल प्राइज |
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ), एक ऐसा संगठन है जो समान रूप से सभी कर्चारियों को अवसर और अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने का मौका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह अधिकारियों को कार्यस्थल पर उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है। बता दें कि यह सयुंक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहमति से श्रम अधिकारों को बढ़ावा देना है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का इतिहास
वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने सौ वर्ष पूरे होने पर गोल्डन जुबली मनाई थी। यह संयुक्त राष्ट्र की इकलौती ऐसी संस्था है जिसमें सरकारें, मालिक और मजदूर तीनों मिलकर काम करते हैं। इसका काम है श्रम के नियम बनाना, अच्छी नीतियाँ बनाना और ऐसे कार्यक्रम चलाना, जिससे सभी औरतों और मर्दों को अच्छा काम मिल सके। इसमें 187 देश सदस्य हैं।
बताना चाहेंगे मई 2022 में ILO ने एक रिपोर्ट निकाली थी जिसके अनुसार वर्ष 2021 के आखिर में काम के घंटों में जो बढ़ोतरी हुई थी, वह वर्ष 2022 के पहले तीन महीनों में कम हो गई। दुनिया भर में काम के घंटे कोविड-19 से पहले के मुकाबले 3.8 प्रतिशत कम हो गए थे।
ILO की शुरुआत वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के बाद राष्ट्र संघ की एक एजेंसी के तौर पर हुई थी। वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र का पहला खास संगठन बन गया। इसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में है। इसे इसलिए बनाया गया था क्योंकि यह माना गया कि दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए सामाजिक न्याय जरूरी है।
ILO अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों के काम करने के हक और मजदूरों के अधिकारों को बढ़ावा देता है। वर्ष 1969 में ILO को अलग-अलग सामाजिक वर्ग के लोगों के बीच शांति बनाए रखने, मजदूरों के लिए अच्छे काम और न्याय की वकालत करने और दूसरे विकासशील देशों को तकनीकी मदद देने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला था।
ILO ने महामंदी के दौरान मजदूरों के अधिकारों को बचाने, उपनिवेशवाद खत्म करने, पोलैंड में सॉलिडैरिटी जैसे मजदूर संगठन की स्थापना और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को हराने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजकल यह एक ऐसी दुनिया बनाने में मदद कर रहा है जहाँ तरक्की सबके लिए फायदेमंद हो और काम करने के नियम सही हों।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की समयरेखा
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization in Hindi) की समयरेखा कुछ इस प्रकार है:
1712: पहले व्यावहारिक भाप इंजन का आविष्कार, औद्योगिक क्रांति की शुरुआत, जिसने काम और समाज को बदला।
1838: चार्ल्स डिकेंस का उपन्यास “ओलिवर ट्विस्ट” प्रकाशित, 19वीं सदी के इंग्लैंड में औद्योगीकरण के बुरे पहलुओं को उजागर करता है, खासकर बच्चों की दुर्दशा को दर्शाता है।
1840-1848: अल्साटियन निर्माता डैनियल लेग्रैंड द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानून की पहली वकालत, सरकारों से श्रमिकों के शोषण को संबोधित करने का आग्रह।
1864: लंदन में मार्क्स और एंगेल्स द्वारा “पहला अंतर्राष्ट्रीय” की स्थापना, श्रमिकों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन का पहला प्रयास।
1883-1889: जर्मनी में विकलांगता, स्वास्थ्य और वृद्धावस्था बीमा पर पहले सामाजिक बीमा कानूनों को अपनाया गया, जिसने अन्य यूरोपीय देशों की कल्याणकारी नीतियों को प्रभावित किया।
1890: बर्लिन श्रम सम्मेलन, 15 यूरोपीय सरकारों ने पहली बार बाल श्रम विनियमन जैसे श्रम मानकों पर चर्चा की।
1900: बेसल में अंतर्राष्ट्रीय श्रम विधान संघ (IALL) की स्थापना, महिलाओं के रात्रि कार्य को सीमित करने और मैच निर्माण में खतरनाक सफेद फास्फोरस पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकारों को प्रभावित करने का प्रयास।
1901: राष्ट्रीय व्यापार संघ केंद्रों के अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय (IS NTUC) का जन्म, जो बाद में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ महासंघ (IFTU) बना, पहला अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ निकाय।
1911: न्यूयॉर्क शहर में त्रिकोण शर्ट कमर फैक्टरी में आग, 146 ज्यादातर युवा आप्रवासी महिला परिधान श्रमिकों की मौत।
1914-1918: प्रथम विश्व युद्ध, यूरोपीय शक्तियों के बीच साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा के कारण, लाखों नागरिकों की मृत्यु और कठिनाई, श्रम कानूनों का निलंबन।
1917: रूस में बोल्शेविक क्रांति, ज़ारशाही शासन का अंत और सोवियत संघ का निर्माण।
1919-1920: पेरिस शांति सम्मेलन और वर्साय की संधि, प्रथम विश्व युद्ध का आधिकारिक अंत और राष्ट्र संघ का निर्माण।
1919: पेरिस शांति सम्मेलन में ILO के संविधान का मसौदा तैयार किया गया, जो वर्साय की संधि का भाग XIII बना। ILO राष्ट्र संघ की एजेंसियों में से एक थी।
1920: ILO सचिवालय का जिनेवा में स्थायी स्थानांतरण और फ्रांसीसी अल्बर्ट थॉमस की पहले ILO निदेशक के रूप में नियुक्ति।
1926: राष्ट्र संघ द्वारा दासता सम्मेलन को अपनाया गया, जिसका उद्देश्य दास श्रम और दास व्यापार पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगाना था, और ILO द्वारा मानकों के कार्यान्वयन पर एक पर्यवेक्षी प्रणाली की स्थापना।
1929: वॉल स्ट्रीट क्रैश और विश्व आर्थिक संकट की शुरुआत, जिसके कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और आर्थिक कठिनाई हुई।
1933: जर्मनी में हिटलर का सत्ता पर कब्जा, अंतर्राष्ट्रीयता के प्रति शत्रुतापूर्ण राष्ट्रवादी तानाशाही की स्थापना।
1934: संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ILO में शामिल हुए, जबकि जर्मनी ने सदस्यता छोड़ दी।
1939-1945: द्वितीय विश्व युद्ध, एक वैश्विक संघर्ष जिसमें 100 मिलियन से अधिक लोग मारे गए, महिलाओं ने युद्धकालीन प्रयासों में अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
1944: फिलाडेल्फिया की घोषणा, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ILO के कार्यों के लिए प्रमुख सिद्धांतों की स्थापना।
1945: संयुक्त राष्ट्र का जन्म, जिसने राष्ट्र संघ का स्थान लिया।
1946: ILO संयुक्त राष्ट्र की पहली विशेष एजेंसी बनी।
1947: भारत की स्वतंत्रता और पहले (प्रारंभिक) एशियाई क्षेत्रीय सम्मेलन, विकासशील दुनिया की ILO में बड़ी भूमिका के लिए भारत का प्रयास।
1948: अमेरिकी डेविड मोर्स ILO के 5वें महानिदेशक नियुक्त। उनके नेतृत्व में, शीत युद्ध के कठिन समय में तकनीकी सहयोग ILO की एक नई गतिविधि बनी।
1963: मार्टिन लूथर किंग जूनियर का “आई हैव ए ड्रीम” भाषण, नस्लीय भेदभाव से मुक्ति और समानता का आह्वान।
1964: रंगभेद की नीति पर घोषणा को अपनाया गया, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध।
1969: ILO को नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
1980: पोलैंड में पहली स्वतंत्र व्यापार संघ (सॉलिडार्नोść) का निर्माण।
1982: लैटिन अमेरिकी ऋण संकट की शुरुआत, मेक्सिको द्वारा विदेशी ऋणों पर चूक।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने कितने संधिपत्रों (Treaties) को अपनाया है ?
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 191 संधिपत्रों (जिन्हें सम्मेलन या कन्वेंशन कहा जाता है) को अपनाया है। इसके अतिरिक्त, ILO ने 6 प्रोटोकॉल और 208 सिफारिशें भी जारी की हैं।
यहां इन उपकरणों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
- संधिपत्र (कन्वेंशन): ये कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौते होते हैं जिन्हें सदस्य राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित (रैटिफाई) किया जा सकता है।
- प्रोटोकॉल: ये कन्वेंशनों को संशोधित या उनमें अतिरिक्त प्रावधान जोड़ते हैं।
- सिफारिशें: ये गैर-बाध्यकारी दिशानिर्देश होते हैं जो राष्ट्रीय नीतियों और कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं।
ILO के प्रोटोकॉल
ILO ने 6 प्रोटोकॉल और 206 सिफारिशें भी जारी की हैं।
- संधिपत्र (कन्वेंशन): ये कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौते होते हैं जिन्हें सदस्य राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित (ratify) किया जा सकता है।
- प्रोटोकॉल: ये कन्वेंशनों को संशोधित या पूरक करते हैं।
- सिफारिशें: ये गैर-बाध्यकारी दिशानिर्देश होते हैं जो राष्ट्रीय नीतियों और कार्यों को निर्देशित करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रमुख कार्य
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO- International Labour Organization in Hindi) के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:
- ILO मिलकर ऐसे नियम और कानून बनाता है ताकि दुनिया भर में काम करने की अच्छी परिस्थितियाँ हों और सबके साथ सही व्यवहार हो।
- यह संगठन लोगों के अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, जिससे की सबको काम करने का अधिकार मिले, अपनी यूनियन बनाने की आजादी हो, और किसी के साथ भेदभाव न हो जिससे की लोगों के हकों की रक्षा हो।
- ILO अलग-अलग देशों को सामाजिक और काम से जुड़ी समस्याओं को हल करने में सहायता करता है।
- यह संगठन काम और समाज से जुड़े मुद्दों पर खोज करता है और अपनी जानकारी लोगों तक पहुँचाता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का उद्देश्य
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र ऐसी संस्था है, जिसमें तीन पक्ष “सदस्य देशों की सरकारें, श्रमिकों के संगठन और कर्मचारियों के संगठन” शामिल हैं। यह इन तीनों पक्षों के लिए एक ऐसा मंच है जहाँ वे मिलकर श्रम से जुड़े मानकों को तय करते हैं, नीतियों को बेहतर बनाते हैं और ऐसे कार्यक्रम बनाते हैं जिनका लक्ष्य लोगों के लिए काम को बढ़ावा देना है।
ILO के ‘सभ्य कार्य एजेंडा’ के केंद्र में चार मुख्य रणनीतिक लक्ष्य हैं:
- कार्यस्थलों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों, बुनियादी सिद्धांतों और अधिकारों को बनाना और उन्हें प्रभावी रूप से लागू करवाना।
- यह सुनिश्चित करना कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से अच्छे काम करने का अवसर मिले और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो।
- सभी लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाना और उसे और अधिक प्रभावी बनाना।
- त्रिपक्षीयता (सरकार, श्रमिक और नियोक्ता का साथ आना) और सामाजिक संवाद को मजबूत करना।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की संरचना
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कार्यप्रणाली के तीन प्रमुख पिलर्स हैं। ये आपने कार्य पूरा सरकार, कर्मचारियों और श्रमिकों के प्रतिनिधियों की सहायता से अपने कार्य को पूरा करता है। इसकी संरचना इस त्रिपक्षीय सिद्धांत पर आधारित है, जो सामाजिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन (International Labor Conference)
यह ILO का सर्वोच्च निकाय है और अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों (International Labour Standards) तथा संगठन की व्यापक नीतियों को सही दिशा की ओर निर्धारित करता है। इसे अक्सर ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद’ के रूप में भी जाना जाता है। यह हर साल स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में आयोजित होता है और सामाजिक और श्रम संबंधी सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए एक इंटरनेशनल लेवल पर मंच प्रदान करता है।
शासी निकाय (Governing Body)
यह ILO की कार्यकारी परिषद के रूप में कार्य करता है। इसकी वर्ष में तीन बैठकें जेनेवा में होती हैं। शासी निकाय ILO के नीतिगत निर्णयों का निर्धारण करता है और कार्यक्रमों के साथ-साथ बजट को भी अंतिम रूप देता है, जिसे बाद में स्वीकार के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में प्रस्तुत किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय (International Labor Office)
यह ILO का स्थायी सचिवालय है और संगठन की सभी गतिविधियों के लिए केंद्रीय बिंदु के रूप में कार्य करता है। इसका संचालन महानिदेशक (director general) करते हैं और यह शासी निकाय की देखरेख में काम करता है। कार्यालय व्यावसायिक प्रशिक्षण, प्रबंधन विकास, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, औद्योगिक संबंध, श्रमिकों की शिक्षा तथा महिलाओं और युवा श्रमिकों की विशेष समस्याओं जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करता है, जिसके लिए त्रिपक्षीय समितियों और विशेषज्ञ समितियों द्वारा इसे सहायता मिलती है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का मिशन
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का मिशन सभी मजदूरों और कर्मचारियों के काम को प्रोत्साह करना है जो कि सरकारों, कर्मचारियों के संगठनों और मालिकों के संगठनों को एक साथ लाता है ताकि वे काम से जुड़े मुद्दों पर आपस में बात कर सकें और मिलकर अच्छे समाधान निकाल सकें जिसे सामाजिक संवाद कहते हैं। काम करने की जगह सुरक्षित हो और कर्मचारियों का ध्यान रखा जाए, इस पर ILO जोर देता है और ऐसे काम करता है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए, ILO दुनिया के कई देशों को दूसरे संगठनों के साथ मिलकर मदद करता है और तकनीकी सलाह भी देता है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के सदस्य कौन है और कितने हैं?
भारत वर्ष 1919 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के संस्थापक सदस्यों में से एक था, और 1922 से यह संगठन के शासी निकाय (governing body) का स्थायी सदस्य बना और अब वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 187 सदस्य है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन से जुड़े देशों की लिस्ट निचे दी गई है:
अफ़ग़ानिस्तान | अल्बानिया | एलजीरिया | अंगोला |
अण्टीगुआ और बारबूडा | अर्जेंटीना | आर्मीनिया | ऑस्ट्रेलिया |
ऑस्ट्रिया | आज़रबाइजान | बहामा | बहरीन |
बांग्लादेश | बारबाडोस | बेलोरूस | बेल्जियम |
बेलीज़ | बेनिन | बोलीविया (बहुराष्ट्रीय राज्य) | बोस्निया और हर्जेगोविना |
बोत्सवाना | ब्राज़िल | ब्रूनेइ्र दारएस्सलाम | बुल्गारिया |
बुर्किना फासो | बुस्र्न्दी | काबो वर्डे | कंबोडिया |
कैमरून | कनाडा | केन्द्रीय अफ़्रीकी गणराज्य | काग़ज़ का टुकड़ा |
चिली | चीन | कोलंबिया | कोमोरोस |
कांगो | कुक आइलैंड्स | कोस्टा रिका | कोटे डी आइवर |
क्रोएशिया | क्यूबा | साइप्रस | चेकिया |
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य | डेनमार्क | ज़िबूटी | डोमिनिका |
डोमिनिकन गणराज्य | इक्वेडोर | मिस्र | अल साल्वाडोर |
इक्वेटोरियल गिनी | इरिट्रिया | एस्तोनिया | एस्वतीनी |
इथियोपिया | फिजी | फिनलैंड | फ्रांस |
गैबॉन | गाम्बिया | जॉर्जिया | जर्मनी |
घाना | ग्रीस | ग्रेनेडा | ग्वाटेमाला |
गिनी | गिनी-बिसाऊ | गुयाना | हैती |
होंडुरस | हंगरी | आइसलैंड | भारत |
इंडोनेशिया | ईरान (इस्लामिक गणराज्य) | इराक | आयरलैंड |
इजराइल | इटली | जमैका | जापान |
जॉर्डन | कजाखस्तान | केन्या | किरिबाती |
कुवैट | किर्गिज़स्तान | लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक | लातविया |
लेबनान | लेसोथो | लाइबेरिया | लीबिया |
लिथुआनिया | लक्समबर्ग | मेडागास्कर | मलावी |
मलेशिया | मालदीव | माली | माल्टा |
मार्शल द्वीपसमूह | मॉरिटानिया | मॉरीशस | मेक्सिको |
मंगोलिया | मोंटेनेग्रो | मोरक्को | मोज़ाम्बिक |
म्यांमार | नामीबिया | नेपाल | नीदरलैंड |
न्यूज़ीलैंड | निकारागुआ | नाइजर | नाइजीरिया |
उत्तर मैसेडोनिया | नॉर्वे | ओमान | पाकिस्तान |
पलाउ | पनामा | पापुआ न्यू गिनी | परागुआ |
पेरू | फिलिपींस | पोलैंड | पुर्तगाल |
कतर | कोरिया गणराज्य | मोल्दोवा गणराज्य | रोमानिया |
रूसी संघ | रवांडा | सेंट किट्स और नेविस | सेंट लूसिया |
संत विंसेंट और ग्रेनेडीन्स | समोआ | सैन मारिनो | साओ टोम और प्रिंसिपे |
सऊदी अरब | सेनेगल | सर्बिया | सेशल्स |
सेरा लिओन | सिंगापुर | स्लोवाकिया | स्लोवेनिया |
सोलोमन द्वीप | सोमालिया | दक्षिण अफ़्रीका | दक्षिण सूडान |
स्पेन | श्री लंका | सूडान | सूरीनाम |
स्वीडन | स्विट्ज़रलैंड | सीरियाई अरब गणराज्य | तजाकिस्तान |
थाईलैंड | तिमोर-लेस्ते | टोगो | टोंगा |
त्रिनिदाद और टोबैगो | ट्यूनीशिया | तुर्की | तुर्कमेनिस्तान |
तुवालू | युगांडा | यूक्रेन | संयुक्त अरब अमीरात |
यूनाइटेड किंगडम | तंजानिया | संयुक्त राज्य अमेरिका | उरुग्वे |
उज़्बेकिस्तान | वानुअतु | वेनेज़ुएला | वियतनाम |
यमन | जाम्बिया | ज़िम्बाब्वे |
ILO के प्रमुख संधिपत्र
आईएलओ के मुख्य आठ कन्वेंशन कुछ इस प्रकार हैं:
- बलात् श्रम पर रोक (कन्वेंशन संख्या 29): किसी से भी जबरदस्ती या दबाव डालकर काम करवाना गैरकानूनी है।
- बलात् श्रम को पूरी तरह खत्म करना (कन्वेंशन संख्या 105): राजनीतिक विचारों या सजा के तौर पर भी किसी से जबरन काम नहीं करवाया जा सकता।
- समान काम के लिए समान वेतन (कन्वेंशन संख्या 100): एक ही तरह के काम के लिए महिलाओं और पुरुषों को बराबर पैसे मिलने चाहिए।
- रोजगार और काम में भेदभाव नहीं (कन्वेंशन संख्या 111): नौकरी या काम देने में रंग, लिंग, धर्म आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- काम करने की कम से कम उम्र (कन्वेंशन संख्या 138): बच्चों के काम करने की एक तय उम्र होनी चाहिए, जिससे कम उम्र के बच्चों से काम न करवाया जाए।
- बाल श्रम के सबसे बुरे रूप पर रोक (कन्वेंशन संख्या 182): बच्चों से खतरनाक या हानिकारक काम करवाना पूरी तरह से मना है।
- संगठन बनाने और उसमें शामिल होने की आजादी (कन्वेंशन संख्या 87): कर्मचारियों और मालिकों को अपने हक के लिए संगठन बनाने और उसमें शामिल होने की पूरी आजादी है।
- मिलकर समझौता करने का अधिकार (कन्वेंशन संख्या 98): कर्मचारियों के संगठन को मिलकर वेतन और काम की शर्तों पर समझौता करने का हक है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और भारत
भारत आईएलओ के शुरुआती सदस्यों में से एक है। वर्ष 1922 में, भारत आईएलओ के शासी निकाय का स्थायी सदस्य बन गया। भारत में आईएलओ का पहला कार्यालय 1928 में स्थापित हुआ था। भारत ने आईएलओ के छह मुख्य समझौतों (मौलिक अभिसमयों) को स्वीकार किया है। हालांकि, भारत ने दो महत्वपूर्ण मौलिक अभिसमयों – संगठन बनाने की स्वतंत्रता और संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन, 1948 (संख्या 87), और संगठित होने का अधिकार और सामूहिक सौदेबाजी पर कन्वेंशन, 1949 (संख्या 98) – को अभी तक मंजूरी नहीं दी है।इसका कारण यह है कि इन दोनों समझौतों में कुछ ऐसे अधिकार शामिल हैं जो भारत में सरकारी कर्मचारियों के लिए मौजूदा कानूनी नियमों के तहत प्रतिबंधित हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का भारत में आंदोलन
भारत में मज़दूरों का आंदोलन स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे विकसित हुआ। इसकी शुरुआत 19वीं सदी के आखिर में हुई और जैसे-जैसे भारत में उद्योग बढ़े, यह आंदोलन भी बढ़ता गया। 1850 के दशक में लोगों ने देखा कि मज़दूरों की ज़िंदगी कितनी मुश्किल है। भारत में मज़दूर आंदोलन को दो हिस्सों में बाँटा जा सकता है: पहला हिस्सा 1850 से 1918 तक चला और दूसरा 1918 से आज़ादी तक।
माना जाता है कि भारत में मज़दूरों के आंदोलन की शुरुआत 1860 के दशक में हुई, लेकिन पहला असली आंदोलन 1875 में हुआ था। शुरुआती दौर में मज़दूरों की गतिविधियाँ कहीं-कहीं होती थीं और ठीक से संगठित नहीं थीं, इसलिए उनका ज़्यादा असर नहीं हुआ।
20वीं सदी के दूसरे दशक से मुंबई में ऐसे संगठन बनाने की कोशिशें तेज़ हुईं जो मिलकर विरोध कर सकें। दूसरे दौर में जो छोटे-मोटे विरोध पहले होते थे, उन्होंने एक संगठित रूप ले लिया। इसी समय में आधुनिक तरीके से ट्रेड यूनियन बनने शुरू हुए।
पहला मज़दूर विद्रोह 1875 में मुंबई में एसएस बंगाली के नेतृत्व में हुआ था। इसमें मज़दूरों, खासकर महिलाओं और बच्चों की बुरी हालत पर ध्यान दिलाया गया। इस आंदोलन का नतीजा यह हुआ कि 1875 में पहला फैक्ट्री आयोग बनाया गया। इसके बाद 1881 में पहला कारखाना कानून पास हुआ। 1890 में एमएन लोखंडे ने बॉम्बे मिल हैंड्स एसोसिएशन नाम का संगठन बनाया, जो भारत का पहला ठीक से बना मज़दूर संघ था। 1920 का दशक इसलिए ज़रूरी था क्योंकि कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों ने मज़दूरों को संगठित करने और उनसे जुड़ने की बहुत कोशिश की। पूरे भारत के स्तर पर एक संगठन बनाने की पहली कोशिश भी 1920 के दशक में ही हुई थी।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का भविष्य
आईएलओ का भविष्य के कार्य पर वैश्विक आयोग, आईएलओ की भविष्य के कार्य पहल के अगले कदम को दर्शाता है। इसकी अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा और स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लफ्वेन ने मिलकर की।
यह आयोग एक ऐसे मानव-केंद्रित योजना का ढांचा तैयार करता है जो लोगों की क्षमताओं, संस्थाओं और टिकाऊ काम में निवेश करने पर आधारित है।
इसने भविष्य के कार्य का गहराई से अध्ययन किया है, जो 21वीं सदी में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए एक विश्लेषणात्मक आधार दे सकता है।
यह नई तकनीक, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या में बदलाव से आने वाली चुनौतियों को दिखाता है, और श्रम की दुनिया में होने वाले बदलावों पर एक साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया करने का आह्वान करता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और रोबोटिक्स के कारण रोजगार के अवसर कम होंगे, क्योंकि पुराने कौशल अब काम के नहीं रहेंगे।
FAQs
सन् 1919
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय शांति संधि के भाग XIII थी।
गिल्बर्ट एफ. होंग
अक्टूबर 1919
187 सदस्य है।
मद्रास श्रमिक संघ है।
न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन संख्या 138 और बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों पर कन्वेंशन संख्या 182 है।
नारायण मेघाजी लोखंडे (1848-1897)
जेनेवा (स्विट्जर लैण्ड) में है।
पहला श्रमिक संघ फेडरल सोसाइटी ऑफ जर्नीज़मेन कॉर्डवेनर्स (चमड़ा श्रमिक और मोची)
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