भील जनजाति भारत की एक प्रमुख और प्राचीन आदिवासी जनजाति है, जिसकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, लोकगीत एवं परंपराएं हैं। यह जनजाति मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। आदिवासी भीलों का उल्लेख देश के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, उपनिषदों और महाकाव्यों में भी मिलता है। इस लेख में भील जनजाति के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है, जो UPSC, SSC के अभ्यर्थियों और स्कूली छात्रों के लिए उपयोगी है।
जनजाति क्या होती है?
जनजाति ऐसे लोगों का समूह होता है जो किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र, जैसे पहाड़ी और वन क्षेत्रों में निवास करते हैं। इनकी अपनी विशिष्ट भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज एवं जीवनशैली होती है। ये लोग आधुनिक सभ्यता से बहुत अधिक प्रभावित हुए बिना पारंपरिक जीवनशैली का पालन करते हैं। बताना चाहेंगे प्रत्येक जनजाति का एक प्रारंभिक राजनीतिक संगठन होता है तथा ये जनजातीय पंचायत द्वारा संचालित होती है।
भील जनजाति का इतिहास
भीलों को भारत की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक माना जाता है। विद्वानों के अनुसार, भील शब्द की उत्पति द्रविड़ भाषा के ‘बिलु’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ ‘कमान’ होता है। माना जाता है कि धनुष विद्या में अत्यधिक निपुण होने के कारण इस जनजाति को यह नाम मिला। इतिहासकार और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी कर्नल जेम्स टोड ने भीलों को ‘वनपुत्र’ नाम दिया था।
भीलों को पश्चिम भारत की द्रविड़ जनजाति के रूप में पहचाना जाता है, जो ऑस्ट्रेलॉयड जनजाति समूह से संबंधित है। इतिहासकारों के अनुसार प्राचीन काल में मालवा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और बिहार के कुछ हिस्सों पर कभी उनका शासन हुआ करता था।
भील जनजाति की संस्कृति एवं जीवन शैली
भील जनजाति मुख्यतः हिंदू धर्म का पालन करती है। वे भगवान शिव और दुर्गा के साथ-साथ वन देवताओं की भी पूजा करते हैं। परंपरागत रूप से यह समुदाय शिकार, खेती और वनोपज पर निर्भर रहा है। भील दिवासा, भगोरिया और होली जैसे त्योहार बड़े उत्साह से मनाते हैं। वे लोक नृत्य, संगीत और चित्रकला में निपुण होते हैं, जिनमें विशेष रूप से ‘पिथौरा पेंटिंग’ प्रसिद्ध है।
भील जनजाति के लोग मृतकों का अंतिम संस्कार अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और मान्यताओं के अनुसार करते हैं। वर्तमान में भील समुदाय में शिक्षा और रोजगार के प्रति रुचि बढ़ी है। देश के कुछ हिस्सों में वे अब अच्छी तरह से साक्षर हैं और आधुनिक जीवनशैली को अपनाने लगे हैं।
भील समुदाय की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भील जनजाति का फैलाव मुख्यतः भारत के चार राज्यों; राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाया जाता है। मध्य प्रदेश में भील मुख्यतः धार, खरगौन, झाबुआ और रतलाम जिलों में निवास करते हैं, जबकि गुजरात में इनकी उपस्थिति पंचमहल जिले में अधिक देखी जाती है। राजस्थान में भीलों की जनसंख्या अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है, और वे विशेष रूप से बांसवाड़ा, उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, सिरोही और बाड़मेर जिलों में निवास करते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे देश में लगभग 1.7 करोड़ भील हैं।
FAQs
गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में भील जनजाति पाई जाती है।
राजस्थान की सबसे बड़ी भील जनजाति बांसवाड़ा जिले में निवास करती है।
रिपोर्ट्स और आंकड़ों के अनुसार, भील जनजाति भारत की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति और मध्य प्रदेश की पहली बड़ी जनजाति है।
भील हिंदू धर्म के अनुयायी होते हैं, साथ ही वे वन देवताओं और लोक-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
इनकी प्रमुख पहचान पिथौरा चित्रकला, भगोरिया उत्सव, पारंपरिक लोक नृत्य और वेशभूषा है।
अब भील समुदाय में शिक्षा, सरकारी नौकरियों, शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली की ओर झुकाव बढ़ा है।
आशा है इस लेख में आपको भील जनजाति का इतिहास एवं समकालीन परिप्रेक्ष्य की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही उपयोगी UPSC लेखों के लिए Leverage Edu से साथ जुड़े रहें।