Gandhi Jayanti Poem 2024 : इस गाँधी जयंती स्कूल में सुनाएँ ये प्रेरित करने वाली शानदार कविताएं

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Gandhi Jayanti Poem in Hindi

आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी के जन्मदिवस को उनकी जन्मजयंती के रूप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था, इसलिए हर साल उनकी जयंती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य आज की पीढ़ी का परिचय गांधी जी के विचारों और उनके आदर्शों से करवाना है। भारतीय समाज को अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले और अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसक आंदोलनों को बल देने वाले महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लिया और भारतीय समाज की शक्ति को संगठित करने का काम किया। इस ब्लॉग में आपको गांधी जयंती पर कविता (Gandhi Jayanti Poem in Hindi) दी गई हैं, ये Gandhi Jayanti Poem in Hindi आपको गांधी जी की जीवनगाथा, संघर्ष, योगदान आदि के बारे में बताएंगी।

गांधी जयंती पर कविता – Gandhi Jayanti Poem in Hindi

गांधी जयंती पर कविता (Gandhi Jayanti Poem in Hindi) पढ़कर आप गांधी जी के बारे में गंभीरता से जान पाएंगे। साथ ही आजादी की लड़ाई में उनकी भूमिका के बारे में भी आप इन कविताओं के माध्यम से जानेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं –

गांधी जी की गाथा

सत्य का पुजारी, अहिंसा का दूत, देशभक्ति की ज्वाला, मन में सदा लूट।
दांडी की यात्रा से, तोड़ी नमक की जंजीर, गांधी जी ने जगाई, स्वतंत्रता की पीर।

छोटे से गांव में, जन्म लिया इस वीर ने, सपने थे बड़े, भारत को बदलने की तीर ने।
अफ्रीका की धरती पर, अन्याय से लड़े, सत्याग्रह की राह पर, कष्ट कभी न तले।

खादी की चादर में, लिपटा था स्वाभिमान, स्वदेशी को अपनाया, दिया आत्मसम्मान।
छोटे से चरखे में, क्रांति की मशाल जली, गांधी जी ने दिखाया, स्वतंत्रता का असली मार्ग।

अस्पृश्यता के खिलाफ, उठाई थी आवाज, हरिजन को सम्मान दिया, तोड़ी सामाजिक बाज।
सादा जीवन, उच्च विचार, यही था उनका मंत्र, गांधी जी ने दिया हमें, सत्य का प्रखर मंत्र।

भारत छोड़ो आंदोलन, दिया आजादी का नारा, गांधी जी की पुकार पर, देश हुआ एकजुट सारा।
31 जनवरी 1948, एक दुखदाई दिन था, गांधी जी की हत्या ने, सबको रुलाया गहन था।

आज भी उनके आदर्श, देते हमें प्रेरणा, सत्य और अहिंसा, यही है हमारी धरोहर।
गांधी जी की गाथा, सदा रहेगी अमर, उनके संघर्ष और योगदान को, देश देगा सम्मान भर।

महात्मा गांधी के जन्मदिन पर, उन्हें नमन हमारा, उनके आदर्शों पर चलकर, बनेगा भारत प्यारा।

गांधी जयंती पर कविता

गांधी की ज्योति

पोरबंदर की भूमि पर, जन्म लिया उस महान ने,
सत्य और अहिंसा के मार्ग पर, जीवन को साधा अनमोल गान ने।
मोहनदास से महात्मा बने, विश्व ने देखा एक नई रीत,
उनके संघर्षों की गाथा, हर दिल में है अतीत।

बचपन से ही निडर, सच्चाई का था साथ,
दुश्मन भी झुकते थे, उनकी सत्य की परवाज़।
विदेश में जाकर भी, स्वदेश की याद रही,
अफ्रीका की गलियों में, न्याय की मशाल जली।

अहिंसा का पथ अपनाया, सविनय अवज्ञा का राग,
नमक सत्याग्रह की लहर ने, अंग्रेजों को किया त्रस्त भाग।
खादी का संदेश दिया, स्वदेशी को अपनाया,
स्वतंत्रता की राह पर, नए भारत को सजाया।

भारत छोड़ो का बिगुल बजा, जनता को किया एकजुट,
गांधी जी की आवाज़ पर, हर कोई हुआ अडिग।
छोटे से चरखे में, बुनते थे स्वप्न आजादी के,
उनकी प्रेरणा से ही, मिली हमें स्वर्णिम आजादी के।

छूआछूत का विरोधी, हर दिल को अपनाया,
हरिजन को सम्मान देकर, मानवता का पाठ पढ़ाया।
उनकी सरलता में छिपी, थी महानता की पहचान,
गांधी जी की शिक्षाओं ने, दिया देश को नवप्राण।

30 जनवरी का दिन आया, एक दुखदाई शाम,
गांधी जी के जाने से, कांपा सारा धाम।
आज भी उनके आदर्श, जलाते हैं मन में दीप,
उनकी ज्योति से प्रकाशित, होता है सत्य का सीप।

महात्मा गांधी की गाथा, हर युग में गूंजेगी,
उनके संघर्ष और योगदान की, गाथा सदा पूजेगी।
गांधी जयंती पर हम सब, उन्हें शत-शत नमन करें,
उनके सपनों का भारत, हम सब मिलकर साकार करें।

अहिंसा के पुजारी की जयंती

किसी भी उत्सव से कम नहीं है
किसी भी पर्व से कम नहीं है
अहिंसा के पुजारी की जयंती

किसी भी बदलाव से कम नहीं है
किसी भी इंकलाब से कम नहीं है
अहिंसा के पुजारी की जयंती

महात्मा उनको नाम दिया हमने
उनके आदर्शों को सम्मान दिया हमने
ये बात किसी से छिपी नहीं
ये बात कहीं भी दबी नहीं
कि उनके विचारों को आत्मसात किया हमने
उनके अहिंसा के मार्ग को भी स्वीकार किया हमने

राष्ट्र की चेतना को जागृत करती है
अहिंसा के पुजारी की जयंती
युवाओं में नया जोश भरती है
अहिंसा के पुजारी की जयंती

न्याय की जय-जयकार हुई
अन्याय भरी आजादी ना स्वीकार हुई
क्रांति की जब अलख जगी हर घर से
देश में स्वराज की माँग उठी
गांधी फिर एक विचारधारा बने
भारत की विश्व में पुनः जय-जयकार हुई

स्वच्छ भारत का संकल्प दोहराती
अहिंसा के पुजारी की जयंती
भारत को विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प याद कराती
अहिंसा के पुजारी कीजयंती…

-मयंक विश्नोई

गांधी जयंती पर कविता

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आ रहा है गाँधी फिर से

सुनकर चीख दुखांत विश्व की
तरुण गिरि पर चढकर शंख फूँकती
चिर तृषाकुल विश्व की पीर मिटाने
गुहों में, कन्दराओं में बीहड़ वनों से झेलती
सिंधु शैलेश को उल्लासित करती
हिमालय व्योम को चूमती, वो देखो!
पुरवाई आ रही है स्वर्गलोक से बहती

लहरा रही है चेतना, तृणों के मूल तक
महावाणी उत्तीर्ण हो रही है,स्वर्ग से भू पर
भारत माता चीख रही है, प्रसव की पीर से
लगता है गरीबों का मसीहा गाँधी
जनम ले रहा है, धरा पर फिर से

अब सबों को मिलेगा स्वर्णिम घट से
नव जीवन काजीवन-रस, एक समान
क्योंकि तेजमयी ज्योति बिछने वाली है
जलद जल बनाकर भारत की भूमि
जिसके चरण पवित्र से संगम होकर
धरती होगी हरी, नीलकमल खिलेंगे फिर से

अब नहीं होगा खारा कोई सिंधु, मानव वंश के अश्रु से
क्योंकि रजत तरी पर चढकर, आ रही है आशा
विश्व -मानव के हृदय गृह को, आलोकित करने नभ से
अब गूँजने लगा है उसका निर्घोष, लोक गर्जन में
वद्युत अब चमकने लगा है, जन-जन के मन में

-तारा सिंह

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बापू फिर आओ एक बार

बैठे युद्धों के कगार पर
मानव का बल क्षीण हुआ है
आज मानवता
निर्बल, नि:स्वर. निस्तेज
अशरण है
जगत के इस बंजर क्यारी में
बेल खुशियों की उगाने आओ
और आकर पीड़ित विश्व को
दो नव शक्ति की ललकार
बापू फिर आओ एक बार।

मानव की दबाई गई
चुसी गई चेतना को
कौन देगा विश्वास यहाँ?
कौन मिटाएगा अशांति
और भय का घोर अंधियारा?

त्राण दिलाने हिंसा से कब आओगे
सत्य अहिंसा के दिनमान?
आओ
नये संसार का रच डालो नये आधार
बापू फिर आओ एक बार।

यहाँ दलित-दुखियों के
त्राता कहाँ?
कौन यहाँ पोंछेगा विवश अश्रुकण असहाय जनों के?
है युग के नयनों का तारा
जन जीवन को नव आलोक देने के हेतु
फिर ले लो अवतार
बापू फिर आओ एक बार।

आज विश्व में स्वार्थता,
पृथकता
और क्षुद्रता का फैल रहा है अंगार
सत्य की सत्ता मिट रही है
पीड़ितों की सहायता छिन रही है
सम्पत्ति की सत्ता के आगे
रौंदा जा रहा है आत्मा का संसार
बापू फिर आओ एक बार।

है यहाँ कोई प्रकाश-पूरित व्यक्तित्व
जो लोगों में सच्चाई की लौ जगा दे?

जो अपने त्याग से
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना
लोगों में भर दे
चारित्रिक हीनता की नींव हिला दे
कुण्ठाओं को मार भगा दे
अनास्था और अश्रद्धा की
कालिमा पोंछ दे?

अब कौन यहाँ पहनाए मानवता के गले में हार
बापू फिर आओ एक बार।

कौन यहाँ निज चिंतन को
कर्म की मथनी से मथ कर
कर पाता है उन्नयन जगत का
अपने पवित्र आचरण द्वारा
कौन कर पाता है

स्थापना उत्तम आदर्श की
है चरितनायक
इंसानी कारवां के नायक
फिर कब सुनाई देगी
वह मानवता के
अमर-आदर्श की झंकार
बापू फिर आओ एक बार।

-मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

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गांधी जयंती

हिंसा और क्रूरता से जब समाज था भयभीत
तब ही अहिंसा का आदर्श पाकर भारत गया था जीत
भारत की वो जीत, जीत थी मानों ऐसी
उस जीत से जैसे जन्मी थी किरण सुनहरी

अन्याय के अघोर तमस में
न्याय का फिर पुनर्जन्म हुआ था
बापू के आदर्शों ने फिर,
भारतीयों के दिल को छुआ था

क्रूरता के कपाल पर बापू ने
अहिंसा का तिलक लगाया था
गांधी के रूप में भारत ने
स्वतंत्रता का सवेरा पाया था

किसी ने उन्हें बापू कहा और किसी ने कहा महात्मा
किसी ने किया स्वीकार उन्हें, किसी ने किया था सामना
आज हम भी गांधी के आदर्शों को अपनाएंगे
आपसी मतभेद मिटाकर हम, गांधी जयंती मनाएंगे…”

-मयंक विश्नोई

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युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,

जिसके शिर पर निज धरा हाथ
उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गये उसी पर कोटि माथ;

हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!

युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खींचते काल पर अमिट रेख;

तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना;

युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक,
युग-संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें
युग-युग तक युग का नमस्कार!

तुम युग-युग की रूढ़ियाँ तोड़
रचते रहते नित नई सृष्टि,
उठती नवजीवन की नींवें
ले नवचेतन की दिव्य-दृष्टि;

धर्माडंबर के खँडहर पर
कर पद-प्रहार, कर धराध्वस्त
मानवता का पावन मंदिर
निर्माण कर रहे सृजनव्यस्त!

बढ़ते ही जाते दिग्विजयी!
गढ़ते तुम अपना रामराज,
आत्माहुति के मणिमाणिक से
मढ़ते जननी का स्वर्णताज!

तुम कालचक्र के रक्त सने
दशनों को कर से पकड़ सुदृढ़,
मानव को दानव के मुँह से
ला रहे खींच बाहर बढ़ बढ़;

पिसती कराहती जगती के
प्राणों में भरते अभय दान,
अधमरे देखते हैं तुमको,
किसने आकर यह किया त्राण?

दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम कालचक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक!

कँपता असत्य, कँपती मिथ्या,
बर्बरता कँपती है थरथर!
कँपते सिंहासन, राजमुकुट
कँपते, खिसके आते भू पर,

हैं अस्त्र-शस्त्र कुंठित लुंठित,
सेनायें करती गृह-प्रयाण!
रणभेरी तेरी बजती है,
उड़ता है तेरा ध्वज निशान!

हे युग-दृष्टा, हे युग-स्रष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष-मंत्र?
इस राजतंत्र के खँडहर में
उगता अभिनव भारत स्वतंत्र!

-सोहनलाल द्विवेदी

अंधकार-युग वह भारत का जब जातीय ज्योति थी क्षीण

अंधकार-युग वह भारत का जब जातीय ज्योति थी क्षीण
द्वाभा के मयंक-सी, दिक्-दिक् हिम की-सी जड़ता थी मौन
महानाश-सी मुँह फैलाये, बढीं तिमिर की लहरें पीन
ग्रस लेंने जब हमें, लकुटिया लिए बचाने आया कौन?

नव प्रभात का अग्रदूत बन, जिसकी सबल गिरा सुनते
शत दशाब्दियों की वह निद्रा भग्न हो गयी ज्यों दु:स्वप्न
विकल रोग-शय्या का, आत्मा बनी अमल गुनते-गुनते
जिसके संदेशों को, चिर आकाश-कुसुम मिल गया अयत्न

वह आकाश-कुसुम जिसको प्रताप ने ढूँढ़ा जीवन भर
अरावली के गिरि-श्रृंगों पर, वह जिसके हित वीर शिवा
फिरा वनों की ख़ाक छानता करतल पर मस्तक लेकर,
वह जो अगणित रसिकों को सूली-शय्या पर गया लिवा,

कौन अमृत-फल वही हमारे मुख के सम्मुख गिरा गया!
फिरा हमें खोयी स्वतंत्रता, हमसे आँखें फिरा गया!

-गुलाब खंडेलवाल

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