बाल गंगाधर तिलक भारत की आज़ादी के अग्रणी नायकों में से एक हैं। उन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई अहिंसक रूप से लड़ने में बड़ी भूमिका अदा की थी। बाल गंगाधर तिलक एक महान राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने मतों से देश की जनता में आज़ादी की अलख जगाने का काम किया था। वे स्वराज के प्रबल समर्थक थे। एक बेहतरीन समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे एक अच्छे लेखक भी थे। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर अक्सर छात्रों को उनके बारे में भाषण देने के लिए कहा जाता है। यहाँ बाल गंगाधर तिलक पर भाषण के कुछ सैंपल दिए गए हैं जिनकी मदद से छात्र बाल गंगाधर तिलक पर भाषण दे सकते हैं।
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बाल गंगाधर तिलक पर भाषण (100 शब्दों में)
यहाँ बाल गंगाधर तिलक पर 100 शब्दों में भाषण दिया गया है –
आदरणीय शिक्षकगण एवं मेरे प्यारे साथियों,
आज मैं यहाँ पर बाल गंगाधर तिलक के बारे में अपने विचार रखने के लिए इस मंच पर प्रस्तुत हुआ हूँ। बाल गंगाधर तिलक भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे। उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि से संबोधित किया गया था,जिसका अर्थ है “लोगों द्वारा मान्य”। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र में हुआ था। तिलक ने स्वराज्य का नारा दिया और जनता को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वे कहते थे, “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा”। उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की, जिससे लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। तिलक की योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते।
अंत में मैं यही कहते हुए अपनी वाणी को विराम देना चाहूंगा कि बाल गंगाधर तिलक जैसे भारत माँ के सपूत के चरणों में मैं शत शत नमन करता हूँ और हम सभी भारतीयों को बाल गंगाधर तिलक के सपनों का भारत बनाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए।
जय हिंद!
बाल गंगाधर तिलक पर भाषण (200 शब्दों में)
यहाँ बाल गंगाधर तिलक पर 200 शब्दों में भाषण दिया गया है –
आदरणीय शिक्षकगण एवं मेरे प्यारे साथियों,
आज मैं आपके सामने भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन और कार्यों पर कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। तिलक जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और आम जनता को स्वराज की भावना से ओत-प्रोत किया।
तिलक जी ने भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए कई समाचार पत्र निकाले, जिनमें ‘केसरी’ और ‘मराठा’ प्रमुख थे। उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जनता को जागरूक किया। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व किया और लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और भारतीय उत्पादों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।
तिलक जी ने ‘गणेशोत्सव’ और ‘शिवजी जयंती’ जैसे धार्मिक उत्सवों को राष्ट्रीय एकता के साधन के रूप में उपयोग किया। उन्होंने इन उत्सवों को बड़े पैमाने पर मनाकर लोगों को एकजुट किया।
तिलक जी के नारे “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा” ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें कई बार जेल भेजा, लेकिन उनका जज्बा कभी कम नहीं हुआ।
तिलक जी एक महान शिक्षक, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति और इतिहास का गहरा अध्ययन किया था। उन्होंने भारतीयों को अपनी संस्कृति और परंपराओं पर गर्व करने के लिए प्रेरित किया।
तिलक जी के जीवन और कार्यों से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें अपने देश के प्रति समर्पित रहना चाहिए और देश की सेवा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
जय हिंद!
बाल गंगाधर तिलक पर भाषण (500 शब्दों में)
यहाँ बाल गंगाधर तिलक पर 500 शब्दों में भाषण दिया गया है –
आदरणीय शिक्षकगण एवं मेरे प्यारे साथियों,
आज मैं आपके सामने भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन और कार्यों पर कुछ शब्द कहना चाहता हूँ। बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें प्यार से “लोकमान्य” कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली गांव में हुआ था। तिलक एक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार और शिक्षक थे। उन्होंने अपने जीवन को भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।
तिलक का पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रत्नागिरी में हुई और बाद में उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की और कानून की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा के प्रति उनकी गहरी रुचि ने उन्हें एक अच्छे शिक्षक और विद्वान के रूप में स्थापित किया।
तिलक ने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ नामक दो प्रमुख समाचार पत्रों की स्थापना की। इन समाचार पत्रों के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की आलोचना की और भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया। तिलक का मानना था कि शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की, ताकि लोगों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो सके।
तिलक ने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” का नारा दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख नारा बन गया। उनका मानना था कि बिना संघर्ष के स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती। तिलक ने कांग्रेस के गरम दल के नेता के रूप में भी कार्य किया और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनका ‘होमरूल लीग’ आंदोलन भारत में स्वशासन की मांग को लेकर एक महत्वपूर्ण आंदोलन था।
बाल गंगाधर तिलक का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त कई कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई। तिलक ने बाल विवाह, सती प्रथा और जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों की भी वकालत की।
ब्रिटिश सरकार ने तिलक को कई बार जेल में डाला। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने भगवद गीता के कर्मयोग के सिद्धांतों का वर्णन किया। तिलक का लेखन और उनके विचार आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणादायक हैं।
बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ, लेकिन उनके विचार और उनका संघर्ष आज भी
बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होंने अपने विचारों और कार्यों से भारतीय जनता को जागरूक किया। उनके योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते। तिलक की जीवन गाथा हमें यह सिखाती है कि देश की स्वतंत्रता और समाज सुधार के लिए निरंतर संघर्ष और समर्पण आवश्यक है।
जय हिंद!
बाल गंगाधर तिलक के बारे में 10 लाइन
यहाँ बाल गंगाधर तिलक के बारे में 10 लाइन दी गयी है –
- बाल गंगाधर तिलक को “लोकमान्य” तिलक भी कहा जाता है।
- बाल गंगाधर तिलक आजादी के प्रमुख नायकों में से एक थे।
- बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रप्रेम की भावना से लोगों को ओत प्रोत करने के लिए “पंजाब केसरी” नामक एक अख़बार भी निकाला था।
- बाल गंगाधर ने “गीता रहस्य” नाम की एक पुस्तक भी लिखी थी।
- बाल गंगाधर तिलक देश की आज़ादी के लिए काफी दिन जेल में भी रहे थे।
- बाल गंगाधर तिलक ने लोगों को संगठित करने के लिए गणेश चतुर्थी के समय एक साथ एकत्रित होकर उत्सव मनाने की प्रथा शुरू की थे जो अभी तक चल रही है।
- “स्वराज (स्व-शासन) मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।” यह नारा बाल गंगाधर तिलक ने ही दिया था।
- बाल गंगाधर तिलक ने भारतीय संस्कृति, इतिहास और हिन्दू धर्म पर कई किताबें लिखीं थीं।
- बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे थे।
- बाल गंगाधर तिलक ने अपने अंतिम दिन मुंबई में बिताए थे।
FAQs
बाल गंगाधर तिलक के गुरु दादा भाई नौरोजी थे।
बाल गंगाधर तिलक का दूसरा नाम “लोकमान्य तिलक” भी था।
वर्ष 1897 में पहली बार बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चला और उन्हें जेल भेज दिया गया। इस मुकदमे और सजा के चलते उन्हें लोकमान्य की उपाधि मिली।
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