Titli Par Kavita: फूलों की सखी तितली पर लोकप्रिय कविताएँ

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Titli Par Kavita

Titli Par Kavita: प्रकृति की गोद में कई सुंदर रचनाएँ बिखरी हुई हैं, लेकिन जब बात कोमलता, सौंदर्य और स्वतंत्रता की आती है, तो तितली से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता। फूलों पर मंडराती, हल्की हवा के साथ नृत्य करती तितली, हमें यह सिखाती है कि जीवन में परिवर्तन ही सबसे बड़ी सच्चाई है। तितली के जीवन से हम यह सीख पाते हैं कि कठिनाइयों के बाद सफलता का एक सुंदर रूप हमारा इंतजार करता है। 

तितली केवल एक कीट नहीं, बल्कि जीवन का एक सुंदर रूपक है। जब हम तितली को देखते हैं, तो हमारा मन भी उड़ान भरने को करता है। उसकी हल्की-सी चपलता, फूलों पर मंडराने का तरीका और उसकी नाजुकता कवियों के हृदय को भी छू जाती है। इसलिए, हिंदी साहित्य में तितली पर अनेकों कविताएँ लिखी गई हैं, जो इसकी सुंदरता और जीवन दर्शन को दर्शाती हैं। इस लेख में तितली पर कविता (Titli Poem in Hindi) दी गई हैं, जो आपके मन को आनंद से भर देंगी और आपको प्रकृति के इस छोटे से चमत्कार को और करीब से देखने के लिए प्रेरित करेंगी।

तितली पर कविता – Titli Par Kavita

तितली पर कविता (Titli Par Kavita) की सूची इस प्रकार है;-

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
तितलीसुमित्रानंदन पंत
तितली सेमहादेवी वर्मा
तितली उड़ती, चिड़िया उड़तीप्रभुदयाल श्रीवास्तव
तितली के पंखजगदीश गुप्त
मैं तितली हूँसूर्यकुमार पांडेय
तितलीनर्मदाप्रसाद खरे
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखापरवीन शाकिर
तितली और बचपनमयंक विश्नोई

तितली

नीली, पीली औ’ चटकीली
पंखों की प्रिय पँखड़ियाँ खोल,
प्रिय तिली! फूल-सी ही फूली
तुम किस सुख में हो रही डोल?
चाँदी-सा फैला है प्रकाश,
चंचल अंचल-सा मलयानिल,
है दमक रही दोपहरी में
गिरि-घाटी सौ रंगों में खिल!
तुम मधु की कुसुमित अप्सरि-सी
उड़-उड़ फूलों को बरसाती,
शत इन्द्र चाप रच-रच प्रतिपल
किस मधुर गीति-लय में जाती?
तुमने यह कुसुम-विहग लिवास
क्या अपने सुख से स्वयं बुना?
छाया-प्रकाश से या जग के
रेशमी परों का रंग चुना?
क्या बाहर से आया, रंगिणि!
उर का यह आतप, यह हुलास?
या फूलों से ली अनिल-कुसुम!
तुमने मन के मधु की मिठास?
चाँदी का चमकीला आतप,
हिम-परिमल चंचल मलयानिल,
है दमक रही गिरि की घाटी
शत रत्न-छाय रंगों में खिल!
–चित्रिणि! इस सुख का स्रोत कहाँ
जो करता निज सौन्दर्य-सृजन?
’वह स्वर्ग छिपा उर के भीतर’–
क्या कहती यही, सुमन-चेतन?

सुमित्रानंदन पंत
साभार – कविताकोश

तितली से

मेह बरसने वाला है
मेरी खिड़की में आ जा तितली।

बाहर जब पर होंगे गीले,
धुल जाएँगे रंग सजीले,
झड़ जाएगा फूल, न तुझको
बचा सकेगा छोटी तितली,
खिड़की में तू आ जा तितली!

नन्हे तुझे पकड़ पाएगा,
डिब्बी में रख ले जाएगा,
फिर किताब में चिपकाएगा
मर जाएगी तब तू तितली,
खिड़की में तू छिप जा तितली।

महादेवी वर्मा
साभार – कविताकोश

तितली उड़ती, चिड़िया उड़ती

तितली उड़ती, चिड़िया उड़ती,
कौये कोयल उड़ते।
इनके उड़ने से ही रिश्ते,
भू सॆ नभ के जुड़ते। ।

धरती से संदेशा लेकर,
पंख पखेरु जाते।
गंगा कावेरी की चिठ्ठी,
अंबर को दे आते।

पूरब से लेकर पश्चिम तक,
उत्तर दक्षिण जाते।
भारत की क्या दशा हो रही,
मेघों को बतलाते।

संदेशा सुनकर बाद‌लजी,
हौले से मुस्कराते,
पानी बनकर झर-झर-झर-झर,
धरती की प्यास बुझाते।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
साभार – कविताकोश

तितली के पंख

इन्द्रधनुष के टुकड़ों जैसे
तितली के रँग भर चटुल पँखों की सुन्दरता से बिन्धकर
ओ बेसुध हो जाने वालो !
तितली केवल पँख नहीं है !
तितली में है जान एक नन्हीं प्यारी-सी
जो उड़ते-उड़ते थक जाती
एक फूल पर रुकते-रुकते तैर और फूलों तक जाती
जो पराग से प्रान पोसती
जो मरन्द से हृदय जुड़ाती।
फिर भी जिसकी भूख न मिटती
फिर भी जिसकी प्यास न जाती।
उसके दो रँगभीने पर हैं।
मानो वे बेहद सुन्दर हैं।
फिर भी तितली पँख नहीं है।
तितली केवल पँख नहीं है।

पल भर सोचो
अगर किसी अनजान चोट से
यह तितली घायल हो जाए
और टूटकर दोनों नाज़ुक पर गिर जाएँ।
तो क्या होगा?
रँग-रूप की रेखाओं से रचे रँगीले
लाल सुनहले नीले पीले
इन्द्रधनुष के टुकड़ों जैसे
पँख बिचारे
फिर आपस में जुड़ न सकेंगे
प्रात पवन की सुरभि लुटाती हिलकोरों पर
थिरक-थिरक कर उड़ न सकेंगे !
और लगेगा
यह तितली भी कीड़ा है बस
वैसा ही जैसे धरती पर बहुत रेंगते
सने धूल से
जो आए दिन घायल होते
कभी किसी की ठोकर खाकर
कभी किसी की क्रूर भूल से।

यह तितली के पँख रँगीले
सिर्फ़ सत्य का एक रूप हैं
वह भी ऐसा जो छूने से ही मिट जाए
उँगली के पोरों से पूछो
कभी जिन्होंने कहीं छुए हों तितली के पर
छूत-छूते हाथों में रँगीन चित्र सब सन जाएँगे
बिखर न जाने कहाँ सुनहले नीले-पीले कन जाएँगे
बस ढाँचा ही शेष रहेगा
बने रहेंगे रँग न वैसे
और न वैसा वेश रहेगा
इसीलिए तो मैं कहता हूँ
थिरक-थिरक कर उड़ने वाली
प्रात पवन की सुरभि लुटाती साँसों के संग मुड़ने वाली
चटुल रँगीली
नीली पीली
तितली केवल पँख नहीं है।

जगदीश गुप्त
साभार – कविताकोश

मैं तितली हूँ

मैं उड़ी इधर, मैं उड़ी उधर,
मैं तितली हूँ, उड़ती दिन-भर।

हर फूल मुझे रंगीन लगा
हर डाली मुझको प्यारी है,
जब भी मैं यहाँ-वहाँ उड़ती
तब संग-संग हँसती क्यारी है।
मैं उड़ी कल्पना के नभ में-
अपने सतरंगे पंखों पर।

मैं यहाँ गयी, मैं वहाँ गयी
लेकर पराग घर आयी हूँ,
मैं सबको अच्छी लगती हूँ
मैं सबके मन को भायी हूँ।
मैं सुन्दर सपने देख रही-
इन पंखुड़ियों के बिस्तर पर।

सूर्यकुमार पांडेय
साभार – कविताकोश

तितली पर अन्य कविताएं – Titli Poem in Hindi

यहाँ तितली पर कविता (Titli Poem in Hindi) दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आप तितली के बारे में आसानी से जान पाएंगे। तितली पर कविता (Titli Par Kavita) इस प्रकार हैं;-

तितली

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं,
कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं, फूल देख मुसकाते हैं!

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे सबका मन ललचाते हैं,
तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं!

पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?
फूल-फूल के कानों में जा-जाकर क्या कहती हो?

सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो!
इतनी बात बता दो हमको, हाथ नहीं क्यों आती हो?

इस डाली से उस डाली पर, उड़-उड़ कर क्यों जाती हो?
फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो!

नर्मदाप्रसाद खरे
साभार – कविताकोश

तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा
इस ज़ख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा

इस बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश
फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा

यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं
जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा

काँटों में घिरे फूल को चूम आयेगी तितली
तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा

किस तरह मेरी रूह हरी कर गया आख़िर
वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा

परवीन शाकिर
साभार – कविताकोश

तितली और बचपन

बसंत की बहार लाई है
तितली पराग लेने आई है
आज फिर मेरे आँगन में
बचपन की घटाएं छाई हैं

यादों का संदूक खुला है
तमस छांटता सूर्य उगा है
बचपन की देख तस्वीरें
नयनों से बहता नीर मिला है
क्यारी का हर फूल खिला है
प्रकृति ने जग का भाग्य लिखा है
माटी की सौंधी महक को पाकर
तितली ने हर फूल छुआ है

पंखों में भरकर आशाएं
तितली संग हर ख्वाब उड़ा है
थोड़े खट्टे-थोड़े मीठे किस्सों में
बचपन का हर रंग जुड़ा है
नींद निराली दस्तक देने
देहलीज पर मेरी आई है
तितली के मनमोहक दृश्यों में
मैंने फिर से खुशियां पाई हैं

मयंक विश्नोई

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