भारत एक ऐसा महान देश जिसने अपने ऊपर अनेकों विदेशियों की क्रूरता और अत्याचार को सहकर भी मनावता को नहीं त्यागा। भारत एक ऐसा देश जिसकी सनातन संस्कृति ने वीरता और ज्ञान दोनों को जन्म देकर विश्व का कल्याण किया। इतिहास में देखा जाए तो विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों ने भारत में भीषण नरसंहार किया, इसी युद्ध में से एक सारंगपुर का युद्ध भी था। इस युद्ध के परिणाम ऐसे रहे कि भारत की सोई चेतना पुनः जागृत हुई, असंख्य बलिदानों ने वीरता की अद्भुत गाथाओं का जन्म दिया। सारंगपुर का युद्ध का सम्पूर्ण इतिहास आपको इस ब्लॉग में पढ़ने को मिलेगा।
युद्ध सदैव ही नरसंहार का पर्याय होते हैं, लेकिन इतिहास में कई युद्ध ऐसे भी हुए जिन्होंने मानवता और सभ्यताओं की रक्षा के लिए बलिदानी गाथा लिखने का काम किया। मातृभूमि और मानवता की रक्षा के लिए उन वीरों के शरीर के रक्त की अंतिम बूँद ने भी शौर्य को सम्मानित किया। इस पोस्ट में आप सारंगपुर का युद्ध किसके बीच हुआ, युद्ध के परिणाम और इसका संक्षिप्त इतिहास क्या था, के बारे में जान पाएंगे।
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सारंगपुर का युद्ध किसके बीच हुआ?
भारत की पुण्य भूमि पर जब-जब संकट के बादल छाए, तब-तब मेवाड़ की माटी में जन्मे वीर-वीरांगनाओं ने मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान और वीरता की अमर गाथा लिखी। मेवाड़ की धरती हर उस विदेशी आक्रमणकारी का काल बनी, जिसने भारत को क्रूरता की आग में जलता छोड़ा था। इतिहास में हुआ यह युद्ध मेवाड़ के महाराणा कुंभा और मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ था।
महमूद खिलजी क्रूरता का पर्याय बन चुका था, जिसका लक्ष्य मानवता को निगलना और सभ्यताओं को नष्ट करना था। भारत माँ के पवित्र आँचल को दूषित करने और भयंकर रक्तपात मचाने के उद्देश्य से महमूद खिलजी ने मेवाड़ के महाराणा कुंभा पर आक्रमण करने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप खिलजी और महाराणा कुंभा के बीच सारंगपुर का युद्ध हुआ।
कब हुआ था सारंगपुर का युद्ध?
1437 ई. में सारंगपुर का युद्ध में मेवाड़ के महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ, ये दोनों ही राज्य पड़ोसी राज्य थे। महाराणा कुंभा एक दूरगामी सोच के राजा थे, जो खिलजी की क्रूरता से भलिभाँति परिचित थे। महाराणा कुंभा ने संपूर्ण राजपूताने को एकीकृत कर, मेवाड़ को खिलजी की क्रूरता से बचाने का निर्णय लिया।
कई इतिहासकारों की माने तो खिलजी राज्य विस्तार की इच्छा में हर हद से गुजरने को तैयार था, जिस कारण उसने मेवाड़ के शत्रु महपा पँवार को आश्रय देने का निर्णय लिया। इस एक घटना ने आग में घी डालने का काम किया, जिस कारण एक भीषण युद्ध हुआ।
क्या रहे सारंगपुर का युद्ध के परिणाम?
खिलजी की विस्तारवादी नीति और क्रूरता का नाश करने के लिए महराणा कुंभा की सेना ने युद्ध को ऐसे लड़ा, जैसे युद्धभूमि में स्वयं महाकाल लड़ रहे हों। महाराणा कुंभा के रणबाँकुरों की वीरता के आगे खिलजी की सेना के हौसले पस्त हुए, इस युद्ध में मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी की शर्मनाक हार हुई।
युद्ध के बाद खिलजी को बंदी बनाया गया और महाराणा कुंभा ने खिलजी को छः महीने तक कैद में रखा, जिसको हर्जाना देने के बाद छोड़ा गया। इस अद्भुत विजय की स्मृति में महाराणा कुंभा ने चित्तौड़गढ़ में अपने आराध्यदेव भगवान विष्णु को समर्पित एक विजय स्तम्भ यानि कि कीर्तिस्तम्भ का निर्माण करवाया।
सारंगपुर का युद्ध का संक्षिप्त इतिहास
1437 ई. में सारंगपुर का युद्ध में मेवाड़ के महाराणा कुंभा एवं मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के बीच हुआ था। महाराणा कुंभा एक दूरगामी सोच के राजा थे, जो खिलजी की क्रूरता से भलिभाँति परिचित थे। महाराणा कुंभा ने संपूर्ण राजपूताने को एकीकृत कर, मेवाड़ को खिलजी की क्रूरता से बचाने का निर्णय लिया। इस युद्ध में भीषण रक्तपात हुआ, अंततः इस युद्ध में महाराणा कुंभा विजय हुए। महाराणा कुंभा ने खिलजी को छः महीने तक कैद में रखा, जिसको हर्जाना देने के बाद छोड़ा गया।
अपनी पहली हार से बौखलाए महमूद खिलजी ने मेवाड़ पर हमला करने का फैसला किया, जिसमें उसको नाकामयाबी ही मिली। कई इतिहासकारों की माने तो महमूद खिलजी ने मेवाड़ पर 1437 ई., 1443 ई., 1446 ई., 1456 ई. आदि वर्षों में मेवाड़ पर हमले किये, लेकिन वह क्रूरता के बल पर जीत नहीं पाया।
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आशा है कि आपको इस ब्लॉग के माध्यम से सारंगपुर का युद्ध का अद्भुत इतिहास पढ़ने को मिला होगा, जो आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।