OPEC UPSC in Hindi: पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों का एक प्रमुख समूह है। इसका उद्देश्य वैश्विक तेल बाजार को स्थिर बनाए रखना और सदस्य देशों के आर्थिक हितों की सुरक्षा करना है। 1960 में स्थापित, ओपेक ऊर्जा बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। UPSC परीक्षा की दृष्टि से, ओपेक एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस ब्लॉग में ओपेक क्या है और इससे जुड़े सभी पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है, ताकि आप इसके महत्व को बेहतर तरीके से समझ सकें।
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ओपेक क्या है?
ओपेक, या पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो प्रमुख तेल उत्पादक देशों के समूह से मिलकर बना है। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में तेल की कीमतों को स्थिर बनाए रखना, तेल की आपूर्ति को नियंत्रित करना, और अपने सदस्य देशों के आर्थिक हितों की सुरक्षा करना है।
1960 में स्थापित ओपेक में वर्तमान में सऊदी अरब, इराक, ईरान, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और कतर जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देश शामिल हैं। संगठन वैश्विक तेल उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा नियंत्रित करता है, जिससे इसका विश्व ऊर्जा बाजार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
ओपेक का मुख्यालय पहले स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित था, जिसे 1965 में ऑस्ट्रिया के वियना में स्थानांतरित कर दिया गया। यह संगठन वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता बनाए रखने और तेल की आपूर्ति एवं कीमतों को संतुलित करने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करता है। ओपेक की भूमिका न केवल आर्थिक, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
ओपेक के अंग कौन-कौन से हैं?
ओपेक के तीन प्रमुख अंग हैं:
- सम्मेलन (Conference)
यह संगठन का सर्वोच्च निर्णय-निर्माण निकाय है, जिसमें ओपेक के सदस्य देशों के प्रतिनिधि भाग लेते हैं। प्रतिनिधियों में एक या अधिक सदस्य और उनके सलाहकार शामिल हो सकते हैं। सम्मेलन में संगठन की नीतियों और प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है और निर्णय लिए जाते हैं। - बोर्ड ऑफ गवर्नर (Board of Governors)
इस बोर्ड में ओपेक के प्रत्येक सदस्य देश द्वारा नामित गवर्नर शामिल होते हैं। यह संगठन की कार्यशैली और नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करता है। बोर्ड की बैठकें तभी शुरू की जा सकती हैं, जब कम से कम दो-तिहाई सदस्य देश उपस्थित हों। - ओपेक का सचिवालय (OPEC Secretariat)
सचिवालय ओपेक का मुख्य कार्यकारी अंग है, जो संगठन के दैनिक कार्यों और प्रशासनिक गतिविधियों को संभालता है। यह सदस्य देशों द्वारा निर्धारित नियमों और सम्मेलन में पारित प्रस्तावों को लागू करने का कार्य करता है। साथ ही, सचिवालय यह सुनिश्चित करता है कि बोर्ड ऑफ गवर्नर द्वारा लिए गए निर्णयों का प्रभावी क्रियान्वयन हो।
यह तीनों अंग मिलकर ओपेक की संरचना और कार्यप्रणाली को प्रभावी ढंग से संचालित करते हैं।
ओपेक का इतिहास
पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) की स्थापना 1960 में तेल उत्पादक देशों द्वारा कच्चे तेल की कीमतों को स्थिर करने और अपने हितों की रक्षा के लिए की गई थी। यह संगठन सऊदी अरब, इराक, ईरान, कुवैत और वेनेजुएला के सहयोग से अस्तित्व में आया। इन देशों ने मिलकर पश्चिमी देशों द्वारा निर्धारित तेल कीमतों और नीतियों का सामना करने के लिए एकजुटता दिखाई।
1962 में, ओपेक को संयुक्त राष्ट्र के संकल्प संख्या 6363 के तहत मान्यता मिली और इसे संयुक्त राष्ट्र सचिवालय में पंजीकृत किया गया। शुरुआत में संगठन का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित था। बाद में, 1 सितंबर 1965 को इसे ऑस्ट्रिया के वियना में स्थानांतरित कर दिया गया।
ओपेक के गठन के बाद, यह संगठन धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार में एक शक्तिशाली इकाई बन गया। इसकी भूमिका वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा नीतियों और भू-राजनीतिक संबंधों में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
ओपेक के उद्देश्य
ओपेक का मुख्य उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता और संतुलन बनाए रखना है। इसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- सदस्य देशों की नीतियों का समन्वय
सभी सदस्य देशों की तेल से जुड़ी नीतियों को एकीकृत करना और उनके सामूहिक हितों की रक्षा करना। - तेल उत्पादकों के लिए उचित मूल्य
तेल उत्पादक देशों को कच्चे तेल के लिए उचित और स्थिर मूल्य सुनिश्चित करना, जिससे उनकी आर्थिक स्थिरता बनी रहे। - उपभोक्ता देशों को नियमित आपूर्ति
उपभोक्ता देशों को कच्चे तेल की लगातार और भरोसेमंद आपूर्ति सुनिश्चित करना। - अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिरता
वैश्विक तेल बाजार में कीमतों को स्थिर और संतुलित बनाए रखना, ताकि अनावश्यक उतार-चढ़ाव से बचा जा सके।
इन उद्देश्यों के माध्यम से, ओपेक न केवल अपने सदस्य देशों के हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ओपेक के कार्य
ओपेक अपनी भूमिका और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न कार्य करता है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
- तेल उत्पादन का समायोजन
ओपेक तेल उत्पादन को इस तरह नियंत्रित करता है कि वैश्विक पेट्रोलियम बाजार स्थिर बना रहे। यह सुनिश्चित करता है कि उत्पादकों को उचित मुनाफा मिले और बाजार में किसी भी प्रकार की अस्थिरता न हो। - बाजार की स्थिति पर चर्चा
ओपेक के सदस्य देश साल में कम से कम दो बार बैठक करते हैं, जिसमें वे तेल बाजार की वर्तमान स्थिति, मांग और आपूर्ति के रुझान, और भावी रणनीतियों पर विचार-विमर्श करते हैं। - सदस्य देशों के हितों की चर्चा
संगठन के सदस्य देश नियमित रूप से मिलते हैं, अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हैं और साझा हितों को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक निर्णय लेते हैं। - सचिवालय की भूमिका
ओपेक का सचिवालय संगठन के लिए अनुसंधान और प्रशासनिक सहायता प्रदान करता है। यह वैश्विक ऊर्जा बाजार के रुझानों पर अध्ययन करता है और सदस्य देशों को डेटा और नीति संबंधी जानकारी उपलब्ध कराता है।
इन कार्यों के माध्यम से, ओपेक न केवल तेल उत्पादक देशों के हितों की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता बनाए रखने में भी योगदान देता है।
ओपेक का महत्व
ओपेक का वैश्विक ऊर्जा बाजार और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अत्यधिक महत्व है। इसके प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
- सदस्य देशों के बीच सहयोग
ओपेक सदस्य देशों के बीच आर्थिक और ऊर्जा संबंधी मुद्दों पर सहयोग बढ़ाता है, जिससे ये देश अपनी सामूहिक नीतियों और उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से लागू कर सकते हैं। - राजनीतिक संवाद का मंच
यह संगठन सदस्य देशों को राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर बातचीत और समाधान के लिए एक मंच प्रदान करता है, जिससे इनके आपसी संबंध मजबूत होते हैं। - वैश्विक उत्पादन पर प्रभाव
ओपेक तेल उत्पादन और आपूर्ति को नियंत्रित करके अन्य गैर-सदस्य देशों के उत्पादन पर भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकता है। - तेल बाजार की स्थिरता
ओपेक का मुख्य उद्देश्य वैश्विक बाजार में तेल उत्पादन और कीमतों को स्थिर बनाए रखना है। यह ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और तेल की कीमतों में अनावश्यक उतार-चढ़ाव को रोकने में सहायक है।
ओपेक की ये भूमिकाएँ इसे न केवल अपने सदस्य देशों के लिए, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और ऊर्जा बाजार के लिए भी एक महत्वपूर्ण संगठन बनाती हैं।
ओपेक के सदस्य देश
ओपेक की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, इस संगठन में वर्तमानमें कुल 12 सदस्य देश हैं, जो कि निम्नलिखित है:
- अल्जीरिया
- इक्वेटोरियल गिनी
- कांगो
- गैबॉन
- इराक
- ईरान
- कुवैत
- लीबिया
- नाइजीरिया
- सऊदी अरब
- संयुक्त अरब अमीरात
- वेनेजुएला
ओपेक से जुड़े मुद्दे
ओपेक की भूमिका और कार्यप्रणाली के कारण इसे कई प्रकार के मुद्दों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। इसके प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं:
- एक उत्पादक संघ की भूमिका
ओपेक एक उत्पादक संघ (cartel) की तरह काम करता है, जो कच्चे तेल के उत्पादन और आपूर्ति को नियंत्रित करता है। यह वैश्विक ऊर्जा बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है। - तेल भंडार पर नियंत्रण
ओपेक देशों के पास दुनिया के कुल तेल भंडार का लगभग 79.4% हिस्सा है। इस वजह से संगठन तेल की कीमतों पर प्रभाव डालने की क्षमता रखता है, जिससे उपभोक्ता देशों को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ता है। - उच्च कीमतों की रणनीति
ओपेक के सदस्य देश अपने आर्थिक लाभ के लिए अक्सर तेल की कीमतें ऊंची रखने की कोशिश करते हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था और उपभोक्ता देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। - लाभ-प्रेरित उद्देश्य
ओपेक का प्राथमिक उद्देश्य अपने सदस्य देशों के लिए अधिक मुनाफा कमाना है। इस कारण यह उत्पादन और कीमतों को नियंत्रित करता है, जिससे ऊर्जा बाजार में अस्थिरता आ सकती है। - भू-राजनीतिक प्रभाव
तेल उत्पादन और कीमतों पर नियंत्रण के कारण ओपेक का अंतरराष्ट्रीय राजनीति और व्यापार पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह कई बार सदस्य देशों के बीच विवाद और तनाव का कारण बनता है।
इन मुद्दों के बावजूद, ओपेक वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, इसके कार्यों और नीतियों पर पारदर्शिता और संतुलन की आवश्यकता बनी रहती है।
ओपेक के साथ भारत की चिंताएं
भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, ओपेक की नीतियों और निर्णयों से सीधे प्रभावित होता है। भारत की चिंताएँ निम्नलिखित हैं:
- तेल आयात पर निर्भरता
भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का लगभग 84% आयात करता है, जिसमें से अधिकांश आपूर्ति ओपेक देशों, विशेष रूप से पश्चिम एशियाई देशों, से होती है। इस निर्भरता के कारण भारत को ओपेक की नीतियों का पालन करना पड़ता है। - ओपेक प्लस के फैसले
ओपेक प्लस देशों के उत्पादन कटौती और मूल्य निर्धारण जैसे फैसलों से भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे उपभोक्ताओं पर महंगे ईंधन का बोझ बढ़ता है। - ऊर्जा विविधीकरण की आवश्यकता
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, अमेरिका और नॉर्वे जैसे देशों में तेल उत्पादन में वृद्धि और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर झुकाव, कच्चे तेल की वैश्विक मांग को प्रभावित कर सकते हैं। यह भारत के लिए ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने का संकेत है। - कोविड-19 के बाद तेल मांग
2020 में कोविड-19 महामारी के कारण तेल की मांग में गिरावट आई। हालांकि, उम्मीद है कि 2025 तक यह मांग पूर्व-कोविड स्तर पर वापस आ जाएगी। यह भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा की योजना बनाने की चुनौती पेश करता है। - सऊदी अरब का उत्पादन कटौती निर्णय
सऊदी अरब द्वारा उत्पादन में कटौती के निर्णय से वैश्विक तेल की कीमतों में वृद्धि हुई, जिससे भारत के ईंधन बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। - पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि
तेल की बढ़ती कीमतों के कारण भारत में 2021 में पेट्रोल और डीजल की कीमतें क्रमशः 19.3% और 21% तक बढ़ गईं, जिससे महंगाई और आर्थिक अस्थिरता बढ़ी।
निष्कर्ष:
ओपेक की नीतियाँ भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत को अपनी ऊर्जा रणनीति में आत्मनिर्भरता और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास पर अधिक जोर देना होगा ताकि ओपेक पर निर्भरता कम की जा सके।
ओपेक प्लस (OPEC+) क्या है?
ओपेक प्लस एक अंतरराष्ट्रीय तेल उत्पादक देशों का गठबंधन है, जिसमें ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) के सदस्य देशों के अलावा अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देशों को भी शामिल किया गया है। इसका गठन 2016 में अल्जीयर्स में हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक तेल बाजार में तेल की आपूर्ति और कीमतों को नियंत्रित करना है।
ओपेक और गैर-ओपेक देशों का गठबंधन
ओपेक के सदस्य देश तेल का उत्पादन और निर्यात करते हैं, लेकिन कई अन्य देशों में भी तेल उत्पादन होता है, जो ओपेक का हिस्सा नहीं हैं। इन्हें गैर-ओपेक उत्पादक कहा जाता है। ओपेक और इन गैर-ओपेक देशों ने मिलकर ओपेक प्लस गठबंधन बनाया है, जिससे वे एकजुट होकर वैश्विक तेल आपूर्ति और कीमतों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
गठबंधन का उद्देश्य
ओपेक प्लस का उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्थिरता बनाए रखना है, ताकि तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सके और उत्पादक देशों के आर्थिक हितों की रक्षा की जा सके। यह गठबंधन विशेष रूप से तेल उत्पादन में कटौती और बढ़ोतरी के फैसले करता है, ताकि तेल की कीमतों को संतुलित रखा जा सके।
प्रमुख सदस्य देश
ओपेक प्लस में ओपेक के सदस्य देशों के अलावा कई अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देश भी शामिल हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य वैश्विक तेल आपूर्ति और कीमतों को नियंत्रित करना है। ओपेक प्लस में शामिल प्रमुख देश निम्नलिखित हैं:
- अजरबैजान
- बहरीन
- ब्रुनेई
- कजाखस्तान
- मलेशिया
- मैक्सिको
- ओमान
- रूस
- सूडान
- दक्षिण सूडान
ये सभी देश मिलकर वैश्विक तेल बाजार में उत्पादन की नीति तय करते हैं और तेल की कीमतों को प्रभावित करने वाले फैसले लेते हैं।
ओपेक प्लस अस्तित्व में क्यों आया?
ओपेक प्लस (OPEC+) के अस्तित्व में आने के पीछे के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
- कच्चे तेल की आपूर्ति और कीमतों पर नियंत्रण
ओपेक प्लस का गठन ऐसे देशों के साथ मिलकर किया गया, जो तेल का उत्पादन करते हैं, ताकि वे कच्चे तेल की आपूर्ति और कीमतों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में नियंत्रित कर सकें। इसका उद्देश्य ओपेक की शक्ति को बढ़ाना और उसे वैश्विक तेल बाजार में अधिक प्रभावशाली बनाना था। - रूस का प्रवेश
2016 में, रूस ने ओपेक के साथ समझौता तोड़ा और ओपेक प्लस का हिस्सा बना। रूस का मानना था कि यह कदम उसे 2018 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए वित्तीय मजबूती प्रदान करेगा, क्योंकि उच्च तेल की कीमतें रूस की अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद हो सकती थीं। रूस के लिए, उच्च तेल की कीमतें चुनावी अभियान को सफल बनाने के लिए महत्वपूर्ण थीं, क्योंकि इससे उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती और वह चुनावी मुद्दों को प्रभावी ढंग से संभाल सकता था। - सऊदी अरब का नेतृत्व
सऊदी अरब ने ओपेक प्लस के गठबंधन को स्थिर और औपचारिक रूप दिया, ताकि अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में अस्थिरता से बचा जा सके और सभी देशों के हितों की रक्षा हो सके। ओपेक प्लस ने वैश्विक तेल बाजार में समन्वित नीति बनाने का अवसर प्रदान किया। - रूस का कूटनीतिक लाभ
ओपेक प्लस का औपचारिक रूप रूस के लिए एक अवसर था, जिससे उसे मध्य पूर्व में अपने प्रभाव को बढ़ाने का मौका मिला। इस गठबंधन के द्वारा रूस ने अपने कूटनीतिक और आर्थिक लाभ को मजबूत किया।
ओपेक प्लस ओपेक से अधिक प्रभावशाली कैसे है?
हाल के दिनों में ओपेक प्लस के अधिक प्रभावशाली होने के कारण निम्नलिखित हैं:
- वैश्विक तेल आपूर्ति पर नियंत्रण
ओपेक प्लस के सदस्य देश दुनिया की 55% तेल आपूर्ति को नियंत्रित करते हैं। - सिद्ध तेल भंडार का नियंत्रण
इसके पास दुनिया के 90% सिद्ध तेल भंडार हैं, जो इसे वैश्विक तेल बाजार में प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम बनाता है। - कच्चे तेल के विकल्प की कमी
कच्चे तेल के सस्ते और व्यवहारिक विकल्प न होने से ओपेक प्लस की भूमिका और अहम हो जाती है। वैश्विक ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में इसका बड़ा योगदान है। - कम लागत में तेल उत्पादन
ओपेक प्लस अन्य देशों की तुलना में कम खर्च में तेल का उत्पादन करता है, जिससे यह वैश्विक बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा बनाए रखता है।
इन सभी कारणों से ओपेक प्लस वैश्विक तेल बाजार में अधिक प्रभावशाली बन गया है।
FAQs
ओपेक का फुल फॉर्म है “पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन” (Organization of the Petroleum Exporting Countries – OPEC)।
वर्तमान में, संगठन में 12 देश सदस्य हैं जिनमें अल्जीरिया, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो, गैबॉन, इराक, ईरान, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, वेनेजुएला शामिल है।
ओपेक की स्थापना 14 सितंबर, 1960 को इराकी राजधानी बगदाद में हुई थी।
ओपेक का मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है।
ओपेक का मुख्य उद्देश्य तेल उत्पादन और निर्यात के मामलों में सहयोग बढ़ाना, तेल की वैश्विक कीमतों को नियंत्रित करना और सदस्य देशों के आर्थिक लाभ को सुनिश्चित करना है।
ओपेक (OPEC) का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह तेल उत्पादन और आपूर्ति को नियंत्रित करता है। जब ओपेक उत्पादन घटाता है, तो तेल की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे परिवहन और ऊर्जा लागत बढ़ती है।
ओपेक सदस्य देश नियमित रूप से बैठकें आयोजित करते हैं, जहां वे उत्पादन स्तर, तेल की कीमतों और अन्य आर्थिक नीतियों पर चर्चा करते हैं। संगठन वैश्विक तेल आपूर्ति के संतुलन को बनाए रखने के लिए उत्पादन में कटौती या वृद्धि का निर्णय लेता है।
OPEC ने कुवैत के हैथम अल घैस को अपना नया महासचिव नियुक्त किया है।
ओपेक का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे वैश्विक ऊर्जा बाजार में बदलाव, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार, और राजनीतिक निर्णय। जहां एक ओर तेल की मांग बढ़ सकती है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरणीय चिंताओं और वैकल्पिक ऊर्जा के बढ़ते उपयोग से ओपेक की भूमिका में बदलाव आ सकता है।
ओपेक सदस्य देशों के लिए सदस्यता के प्रमुख लाभों में तेल उत्पादन पर नियंत्रण, वैश्विक तेल बाजार में अधिक प्रभाव, और सदस्य देशों के बीच सहयोग शामिल हैं। यह देशों को एकजुट होकर अपनी नीतियां तय करने की शक्ति देता है, जिससे वे बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
ओपेक (OPEC) का पूरा नाम “ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़” है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 13 प्रमुख तेल उत्पादक देश शामिल हैं। ओपेक का गठन 1960 में हुआ था, और इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है। इसका उद्देश्य विश्व में कच्चे तेल की कीमतों को नियंत्रित करना और तेल उत्पादक देशों के हितों की रक्षा करना है। ओपेक सदस्य देशों के बीच उत्पादन सीमाएं तय की जाती हैं ताकि तेल की आपूर्ति और कीमतों में स्थिरता बनी रहे। ओपेक का प्रभाव वैश्विक ऊर्जा बाजारों पर काफी है, क्योंकि ये देश वैश्विक तेल उत्पादन का बड़ा हिस्सा नियंत्रित करते हैं।
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