नालंदा विश्वविद्यालय : प्राचीन भारत की एक गौरवशाली विरासत

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नालंदा

प्राचीन काल में भारत शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे हुआ करता था। उस समय एक ऐसा विश्वविद्यालय हुआ करता था जो लगभग 10,000 छात्रों को शिक्षा देता था। वह विश्वविद्यालय था नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय), जो उस समय का विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था जहाँ से शिक्षा प्राप्त करने के लिए तिब्बत, तुर्की, चीन, इंडोनेशिया जैसे देशों से लोग विद्या ग्रहण करने आते थे। लेकिन यह केवल 5वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक सक्रिय रह पाया। इसके बारे में अधिक जानने के लिए ये ब्लॉग अंत तक पढ़ें। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको नालंदा महाविहार के इतिहास, शिक्षा प्रणाली, कला -संस्कृति और कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानने को मिलेगा।

नालंदा महाविहार के बारे में

बिहार के नालन्दा में स्थित नालंदा महाविहार एक विश्व प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था। यह एक बौद्ध प्राचीन उच्च-शिक्षा विश्वविद्यालय था जहाँ बौद्ध धर्म के साथ साथ चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शन, और कला जैसे विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी। यह एक विशाल परिसर था जिसमें कई मठ, पुस्तकालय, और अध्ययन के केंद्र थे, लेकिन यह 5वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक ही सक्रिय रह पाया। नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय) में शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था जहँ नागार्जुन, वसुबंधु, धर्मपाल और शांतरक्षित जैसे कई प्रसिद्ध विद्वानों ने अध्ययन कर बौद्ध धर्म के विकास और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन 12वीं शताब्दी तक आते आते तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया था। आज, यह एक खंडहर है, लेकिन अभी भी यह प्राचीन भारत के ज्ञान और शिक्षा की गौरवशाली विरासत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में आईये जानते हैं इसका इतिहास और पतन का कारण। 

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नालंदा महाविहार का इतिहास

प्राचीन भारत का सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र माने जाने वाला नालंदा महाविहार नालंदा महाविहार का इतिहास बहुत समृद्ध है। इसका इतिहास 5वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक फैला हुआ है। इतिहासकारों के मुताबिक, 5वीं शताब्दी में गुप्त राजा कुमारगुप्त प्रथम द्वारा नालंदा महाविहार की स्थापना ने की गयी थी। उस समय यह एक छोटा सा मठ था, वहीं कुमार गुप्त और उनके उत्तराधिकारियों ने इस विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया। जिससे धीरे-धीरे यह एक विशाल शिक्षा केंद्र में विकसित हुआ और साथ ही साथ भारत में शिक्षा का स्तर भी बहुत ऊंचा हो गया। उस समय महिलाओं को भी शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति थी। यहाँ विद्यार्थियों का जीवन बहुत ही अनुशासित हुआ करता था। नालंदा महाविहार का पुस्तकालय प्राचीन भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। यहाँ लाखों पुस्तकें और पांडुलिपियां थीं। इस तरह 9वीं और 10वीं शताब्दी में यह विश्वविद्यालय अपने चरम पर था लेकिन 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारियों ने नालंदा महाविहार पर आक्रमण कर इसे नष्ट कर दिया। वहीं इसके पतन के बाद भारत में शिक्षा का स्तर भी गिर गया।

नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली

नालंदा महाविहार की शिक्षा प्रणाली अपनी विशिष्टता और उच्च स्तर के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध थी। यहाँ पर प्रवेश बहुत कठिन था। छात्रों को प्रवेश के लिए एक परीक्षा उत्तीर्ण करनी आवश्यक थी। और वह परीक्षा बहुत कठिन थी जिसमें केवल योग्य छात्र ही सफल हो पाते थे। ऐस में यहाँ अध्ययन का स्तर भी बहुत ऊंचा था। छात्रों को यहाँ बौद्ध धर्म के साथ साथ विभिन्न विषयों जैसे कि चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शन, और कला का ज्ञान भी दिया जाता था। यहाँ विद्यार्थियों का जीवन बहुत अनुशासित होता था। उन्हें सुबह जल्दी उठने से लेकर नियमित रूप से अध्ययन करना होता था। वहीं यहाँ के शिक्षक बहुत विद्वान और अनुभवी होते थे।

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नालंदा महाविहार की कला और संस्कृति

नालंदा महाविहार केवल शिक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि कला और संस्कृति के लिए भी दुनियाभर में प्रसिद्ध था। यहाँ विभिन्न प्रकार की कलाओं जैसे मूर्तिकला, चित्रकला, और स्थापत्य कला का विकास हुआ। यहां बनी मूर्तियां आज भी कला की उत्कृष्ट कृतियां मानी जाती हैं। यहाँ बनी मूर्तियां विभिन्न धातुओं, जैसे कि सोना, चांदी, तांबा, और पत्थर से बनी होती थीं। इन मूर्तियों में भगवान बुद्ध, बौद्ध देवी-देवता, और विभिन्न प्रकार के जानवरों की मूर्तियां शामिल हैं। इसके अलावा यहाँ स्थापत्य कला भी बहुत उत्कृष्ट था। यहां विभिन्न प्रकार के भवनों जैसे कि मठ, विहार, स्तूप, और पुस्तकालय का निर्माण किया गया था। वहीं अगर संस्कृति की बात करें तो यहाँ बौद्ध, हिंदू और जैन संस्कृति का भी विकास हुआ। इसके साथ ही यहाँ विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते थे, जैसे कि बुद्ध पूर्णिमा, दीपावली और महावीर जयंती। बता दें कि नालंदा महाविहार की कला और संस्कृति का प्रभाव भारत के अलावा अन्य देशों में भी पड़ा। ऐसे में कई कलाकार और विचारक यहाँ की कला और संस्कृति से प्रेरित हुए।

वैश्विक धरोहर स्थल में भी शामिल

अपनी शिक्षा प्रणाली, कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध नालंदा महाविहार (नालंदा विश्विद्यालय) को 15 जुलाई, 2016 को यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर सूची’ में शामिल किया गया। आपको बता दें कि अभी तक भारत में कुल 42 विश्व धरोहर स्थल है जिसमें से 33 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक स्थल और 1 मिश्रित विश्व विरासत स्थल हैं। यह भी बता दें कि वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स इन इंडिया में सबसे पहले 1983 में अजंता की गुफाएं, एलोरा की गुफाएं, ताजमहल और आगरा के किले को शामिल किया गया था। उसके बाद धीरे धीरे कई स्थल जुड़ते चले गए। वहीं हाल ही में शांतिनिकेतन और होयसल के पवित्र मंदिर समूह को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 

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नालंदा महाविहार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें

नालंदा महाविहार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित है : 

  • नालंदा महाविहार प्राचीन भारत का सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र था जहाँ बौद्ध धर्म के साथ साथ विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
  • यहां शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था। यहाँ की शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से छात्र आते थे।
  • नालंदा महाविहार ने बौद्ध धर्म के विकास और प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 12वीं शताब्दी में नालंदा महाविहार को तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। 

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FAQs

नालंदा महाविहार की स्थापना किसने की थी?

नालंदा महाविहार की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त राजा कुमारगुप्त प्रथम ने की थी।

नालंदा महाविहार में कौन-कौन से विषय पढ़ाए जाते थे?

नालंदा महाविहार में केवल बौद्ध धर्म ही नहीं बल्कि चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित, दर्शन, और कला जैसे विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी।

नालंदा महाविहार का पतन कैसे हुआ?

नालंदा महाविहार का पतन 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा हुआ था।

नालंदा विश्वविद्यालय को किसने और क्यों जलाया? 

तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी थी।

आशा है कि आपको नालंदा से जुड़ी सभी जानकारी इस लेख में मिल गयी होगी। वैश्विक धरोहर से जुड़े ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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