पढ़िए हिंदी की महान कविताएं, जो आपके भीतर साहस का संचार करेंगी

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हिंदी की महान कविताएं

हिंदी की महान कविताएं आज भी विश्व के किसी भी कोने में रहने वाले हिंदी भाषा के प्रेमी को प्रेरित करने का कार्य कर रही हैं। कविताएं साहित्य का श्रृंगार करती हैं, कविताएं ही मानव को साहस के साथ जीना सिखाती हैं, कविताएं ही मानव को सद्मार्ग दिखाती हैं। यह कहना कुछ अनुचित नहीं होगा कि कविताएं ही समाज की कुरीतियों के खिलाफ विद्रोह के स्वर को मजबूती देने का काम करती हैं।

हिंदी की महान कविताएं विद्यार्थियों के जीवन पर एक सकारात्मक प्रभाव डालती हैं, कविताएं ही विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को सही मार्गदर्शन देने का कार्य करती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप हिंदी की महान कविताएं पढ़कर निज जीवन के लिए प्रेरणा प्राप्त कर पाएंगे। इस ब्लॉग में आपको सुप्रसिद्ध कविताओं से लेकर कुछ स्वरचित कविताएं भी पढ़ने को मिल जाएंगी, जिसके लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक पढ़ना पड़ेगा।

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हिंदी की महान कविताएं

हिंदी भाषा के साहित्य का श्रृंगार करती हिंदी की महान कविताएं आपके जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। इस ब्लॉग में आपको हिंदी की महान कविताएं पढ़ने का शुभावसर प्राप्त होगा, जिसमें सुप्रसिद्ध कवियों से लेकर कुछ स्वरचित रचनाएं भी शामिल होंगी। इन कविताओं में कुछ इस प्रकार हैं; 

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
वीरों का कैसा हो वसंतसुभद्रा कुमारी चौहान
मातृभूमिसोहन लाल द्विवेदी
कलम, आज उनकी जय बोलरामधारी सिंह ‘दिनकर’
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूलभारतेंदु हरिश्चंद्र
ओ गगन के जगमगाते दीप!हरिवंश राय बच्चन
मैं अनंत पथ में लिखती जोमहादेवी वर्मा
पुष्प की अभिलाषामाखनलाल चतुर्वेदी
ज्ञान का खजाना हैमयंक विश्नोई (स्वलिखित)
युवा शक्तिमयंक विश्नोई (स्वलिखित)
रंग बरस रहे हैंमयंक विश्नोई (स्वलिखित)

वीरों का कैसा हो वसंत

हिंदी की महान कविताएं आपके साहस को जागृत करने का कार्य करेंगी। इस सूची में सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता “वीरों का कैसा हो वसंत” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत

गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

-सुभद्रा कुमारी चौहान

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से सुभद्रा कुमारी चौहान वीरों के वसंत का वर्णन करती हैं। कविता के आरंभ में वह हिमालय से प्रश्न करती हैं कि वीरों का वसंत कैसा होगा? कविता के माध्यम से वह कहती हैं कि वीरों का वसंत सामान्य लोगों के वसंत से अलग होता है। कविता के माध्यम से वह आगे कहती हैं कि वीरों का वसंत रणभूमि में होगा, जहाँ वीर रक्त बहाते हुए अपने देश की रक्षा करेंगे। कविता में कवयित्री आगे कहती हैं कि वीरों का वसंत सुगंध से भरा नहीं, बल्कि बारूद की गंध से भरा होगा। कविता अंत तक यही बताने का सफल प्रयास करती है कि वीरों का वसंत देशभक्ति, बलिदान, गर्व और सम्मान से भरा होगा। यह कविता स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वर्ष 1923 में लिखी गई थी।

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मातृभूमि

हिंदी की महान कविताएं आपके साहस को बढ़ाने का प्रयास करेंगी। इस सूची में सोहन लाल द्विवेदी की कविता “मातृभूमि” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।

गंगा यमुन त्रिवेणी
नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली
पग पग छहर रही है।

वह पुण्य भूमि मेरी,
वह स्वर्ण भूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

झरने अनेक झरते
जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं,
हो मस्त झाड़ियों में।

अमराइयाँ घनी हैं
कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,
तन मन सँवारती है।

वह धर्मभूमि मेरी,
वह कर्मभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

जन्मे जहाँ थे रघुपति,
जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता।

गौतम ने जन्म लेकर,
जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई,
जग को दिया दिखाया।

वह युद्ध-भूमि मेरी,
वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी।

-सोहन लाल द्विवेदी

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से सोहन लाल द्विवेदी जी ने मातृभूमि को अपने जीवन का आधार माना है। यह कविता मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण भाव को व्यक्त करती है, कविता में कवि मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। कवि के अनुसार मातृभूमि की मिट्टी में ही उनके जीवन का सार है। कविता के माध्यम से कवि ने भारत की पुण्यभूमि की विशेषता बताकर, इस महान राष्ट्र के लिए अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित की है। यह कविता भारत राष्ट्र के प्रति श्रद्धा के सुमन अर्पित करती है।

कलम, आज उनकी जय बोल

हिंदी की महान कविताएं, साहित्य के साथ आपका परिचय करवाएंगी। इस सूची में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता “कलम, आज उनकी जय बोल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।

-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत करने का सफल प्रयास करते हैं। कवि ने इस कविता में उन वीर शहीदों का गुणगान किया है, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। इस कविता में कवि कहते हैं कि कलम, आज उन वीर शहीदों की जय बोल, जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान करके क्रांति की भावना जागृत की और देश में नई चेतना फैलाई। इन शहीदों ने बिना किसी मूल्य के कर्तव्य की पुण्यवेदी पर स्वयं को न्योछावर कर दिया, जिस कारण हम सभी स्वतंत्र हवाओं में सांस ले पा रहे हैं।

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

हिंदी की महान कविताएं, आपको हिंदी भाषा के महत्व से अवगत करवाएंगी। इस सूची में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की कविता “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।

इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।

और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।

तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।

भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।

सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।

-भारतेंदु हरिश्चंद्र

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि अपनी भाषा की उन्नति को ही सभी उन्नतियों का मूल आधार मानते है। इस कविता के माध्यम से कवि का उद्देश्य यह बताना है कि बिना अपनी भाषा के ज्ञान के, मन की पीड़ा दूर नहीं हो सकती। इसीलिए मानव को अपनी मातृभाषा से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है। यह कविता युवाओं को उनकी मातृभाषा के पर गर्व करना सिखाती है, साथ ही यह कविता हिंदी भाषा के महत्व को भी समाज के सामने रखती है।

ओ गगन के जगमगाते दीप!

हिंदी की महान कविताएं, हर परिस्थिति में आपको प्रेरित करने का कार्य करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविता “ओ गगन के जगमगाते दीप!” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

-हरिवंश राय बच्चन

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गगन के तारों को जगमगाते हुए दीपक मानते हुए उनसे सवाल पूछते हैं, कि क्या वह उनके टूटे हुए सपनों को लौटा सकते हैं। इस कविता को युवा अवस्था का एक पड़ाव माना जा सकता है, जिसमें हमारे युवाओं के कई सपने कहीं खो जाते हैं। यह कविता समाज का आईना बनने का सफल प्रयास करती है।

मैं अनंत पथ में लिखती जो

हिंदी की महान कविताएं, युवाओं का मार्गदर्शन करने का सफल प्रयास करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवियत्री महादेवी वर्मा जी की कविता “मैं अनंत पथ में लिखती जो” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

मै अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बाते
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें!

उड़् उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल-
में मेरी पीड़ा की रेख!

तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगी अनंत आँखें,
हो कर सीमाहीन, शून्य में
मँडरायेगी अभिलाषें!

वीणा होगी मूक बजाने-
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आ कर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!

जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल!

-महादेवी वर्मा

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवियत्री अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, और शोषण के खिलाफ आवाज उठाती हैं। कवियत्री का मानना है कि लेखन एक शक्तिशाली माध्यम है जो समाज को बदलने की क्षमता रखता है। कविता समाज में युवाओं को भी लेखन के लिए प्रेरित करने का काम करती है। कविता में कवियत्री कहती हैं कि वह अपने लेखन के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाना चाहती हैं। वह एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहती हैं जिसमें सभी लोग समान हों और जिसमें किसी के साथ अन्याय न हो। कवियत्री का मानना है कि लेखन के माध्यम से वह इस सपने को साकार कर सकती हैं।

पुष्प की अभिलाषा

हिंदी की महान कविताएं, साहित्य का सहारा लेकर सामाजिक सद्भावना को बढ़ाने का कार्य करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता “पुष्प की अभिलाषा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक

-माखनलाल चतुर्वेदी

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि स्वयं को उस फूल की भांति मानते हैं, जो मातृभूमि की रक्षा में समर्पित सैनिकों की चरणों की वंदना करता है। यह कविता राष्ट्रहित की भावना का विस्तार करती है। इस कविता का उद्देश्य युवाओं में देशभक्ति की भावना को जागृत करना है। यह कविता अपनी सरल व स्पष्ट भाषा की सहायता से युवाओं को राष्ट्रहित सर्वोपरि का मंत्र देकर, राष्ट्र की रक्षा में स्वयं को समर्पित करने वाले सेनिकों का सम्मान करती है।

ज्ञान का खजाना है

हिंदी की महान कविताएं, आपको विज्ञान का भी महत्व समझाएंगी। इस सूची में स्वलिखित कविता “ज्ञान का खजाना है” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

जिद्द है कि अब ज़माने को आधुनिक बनाना है
सही मायनों में विज्ञान ही ज्ञान का खजाना है

ज़िंदगी को जीने का अंदाज़ इसका पुराना है
सदियों से सदियों तक इसका सफर सुहाना है

नकारात्मकताओं को एक पल में ठुकराना है
विज्ञान की शक्ति से ही निराशाओं को झुकाना है

आशाओं के आसरे सफलता का हाथ उठाना है
ये कहना गलत नहीं कि विज्ञान ही ज्ञान का खजाना है

साहस के साथ इसकी संरचना को अपनाना है
निरंतर अनुसंधानों से जीवन का मोल चुकाना है

परिश्रम के दरिया में मिलकर गोते लगाना है
समस्याओं को आज समाधान का राह दिखाना है

उत्सुकता ही जिसका मूल ठिकाना है
वही विज्ञान, ज्ञान का सबसे बड़ा खजाना है…”

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि विज्ञान को ज्ञान का सबसे बड़े खजाने के रूप में देखते हैं, इस कविता का उद्देश्य समाज को विज्ञान का महत्व समझाना है। कविता में मूल रूप से विज्ञान की उपलब्धियां बताकर समाज को ज्ञान के प्रति समर्पित रहने को कहा गया है। इस कविता के माध्यम से कवि विज्ञान को आशाओं का ठिकाना बताते हैं। कविता विज्ञान को उत्सुकता से भरा विषय बताने का सफल प्रयास करती है।

युवा शक्ति

हिंदी की महान कविताएं, युवाओं का उनकी शक्ति से भी परिचय करवाने का प्रयास करेंगी। इस सूची में स्वलिखित कविता “युवा शक्ति” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

ऋतुओं में जैसे बसंत की बहार है
साहस की जैसे धारदार तलवार है
जीवन यात्रा में है प्रयासरत निरंतर
युवा शक्ति के आगे नतमस्तक संसार है

असंख्य असफलताओं से टकराकर
निज सपनों को साहस से बचाकर
ले जाना है जरूरी श्रम की नौका को
निज ज़ख्मों पर जैसे मरहम लगाकर
सच्चे सपनों की उड़ान है
चेहरों पर खिली मुस्कान है
खुशियों की खोज में निरंतर
युवा शक्ति ही सत्य की पहचान है

जीकर जिनके किस्सों में
अमर होती कई कहानियां
आकर पीड़ाओं के हिस्सों में
जैसे पलती हैं कई कहानियां
वो कहानियां जो जीत का आगाज़ हैं
वो कहानियां जो साहसी आवाज़ हैं
युवा शक्ति हैं संघर्षरत निरंतर
वो कहानियां जो सुखों का एहसास हैं…”

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को युवा शक्ति की परिभाषा बताने का प्रयास करते हैं। यह कविता हर प्रकार की नकारात्मकता का नाश करते हुए, सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करती है। इस कविता में कवि युवाओं का परिचय उनकी विस्मृत शक्ति से करवाने का प्रयास करते हैं। इस कविता में युवाओं को शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा गया है।

रंग बरस रहे हैं

हिंदी की महान कविताएं, आपके जीवन में पर्वों के महत्व और होली पर्व में बरसने वाले रंगों के महत्व को भी समझाने का प्रयास करेंगी। इस सूची में स्वलिखित कविता “रंग बरस रहे हैं” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

नयन सुख की आस में लंबें समय से तरस रहे हैं
आशाओं की अंगड़ाई से होली पर रंग बरस रहे हैं

उमंग में उत्सव देखकर
होलिका दहन कर
गीत खुशियों के गाए जा रहें हैं
जयकारें धर्म की जय के लगाए जा रहे हैं
होली की आहट से हर कली चहक रहे हैं
रंगों की खुशबू से शहर की हर गली महक रहे हैं

ऋतुओं का बदलना ही उत्सव के समान है
होली के रंगों की भी अपनी अलग पहचान है
निराशाओं के छाती पर आशाएं चढ़ रही हैं
बाजारों में भी होली की चहल-पहल बढ़ रही है
भीगने को इनमें कई बार तरस रहे हैं
हर्षोल्लास के साथ हम पर होली के रंग बरस रहे हैं

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि होली के रंगों की उस बरसात के बारे में बताते हैं जो सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करती है। कविता में कवि कहते हैं कि आँखें पूरे साल भर रंगों की बरसात का इंतज़ार करती हैं, जो आशाओं की अंगड़ाई लेने के बाद होती है। कविता के माध्यम से कवि होली के इतिहास पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास करते हैं। यह कविता होली के उमंग की भावना को दर्शाने का कार्य करती है, जो मानव को खुश रहने के लिए प्रेरित करती है।

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आशा है कि आपको इस ब्लॉग में आपको हिंदी की महान कविताएं पढ़ने का अवसर मिला होगा, इस ब्लॉग के माध्यम से आपको विभिन्न विषयों पर कुछ प्रेरणादाई रचनाओं को पढ़कर अच्छा लगा होगा। यह कविताएं आपको सदा ही प्रेरित करेंगी, आशा है कि यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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