गोपालदास नीरज एक ऐसे भारतीय कवि थे, जिनकी रचनाओं ने आज की पीढ़ी को भी प्रेरित करने का कार्य किया है। गोपालदास नीरज की कविताएं सही मायनों में समाज का दर्पण हैं, जो आज भी बदलते युग में प्रासंगिक हैं। कविताओं को पढ़कर युवाओं को एक सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है, जिसका लक्ष्य युवाओं को उनके संकल्पों के प्रति प्रेरित करना होता है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कविताओं ने हमेशा समाज का मार्गदर्शन किया है, समाज को सभ्य बनाने में कविताओं का अहम योगदान रहा है। हर दौर में-हर देश में संसार को सद्मार्ग दिखाने वाले अनेकों महान कवि और कवियत्री हुए हैं, जिनमें से एक भारतीय कवि गोपालदास नीरज भी हैं। गोपालदास नीरज की कविताएं भारतीय समाज के साथ-साथ पूरे विश्व को प्रेरित करती हैं। इस पोस्ट के माध्यम से आप Gopaldas Neeraj ki Kavitayen पढ़ पाएंगे, जिसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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गोपालदास नीरज का संक्षिप्त जीवन परिचय
Gopaldas Neeraj ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको गोपालदास नीरज का जीवन परिचय होना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक कवि गोपालदास नीरज जी भी थी, जिन्होंने हिंदी साहित्य के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में हुआ था। एटा से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया, फिर एक सिनेमाघर में नौकरी की। कई छोटी-मोटी नौकरियाँ करते हुए उन्होंने वर्ष 1953 में हिंदी साहित्य से एम.ए. किया और अध्यापन कार्य से संबद्ध हुए।
गोपालदास नीरज का पहला काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ वर्ष 1944 में प्रकाशित हुआ था। गोपालदास नीरज के प्रमुख काव्यों में अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए आदि भी हैं।
गोपालदास नीरज जी को विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार और यश भारती से भी सम्मानित किया गया था। वर्ष 1991 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पदम् श्री और वर्ष 2007 में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था।
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गोपालदास नीरज की रचनाएं
गोपालदास नीरज की कविताएं पढ़ने से पहले आपको गोपालदास नीरज की रचनाएं अवश्य पढ़नी चाहिए, जो आपको सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। गोपालदास नीरज की कविताएं उस समय के सामाजिक परिपेक्ष्य में स्वतंत्रता, शिक्षा और समाज में उनकी भूमिका को दर्शाने वाली हैं। गोपालदास नीरज की रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं;
संघर्ष
संघर्ष को वर्ष 1944 में प्रकाशित किया गया था जो कि गोपालदास नीरज जी द्वारा रचित एक प्रमुख काव्य है, जिसके माध्यम से कवि संघर्ष की परिभाषा को बताते हैं।
अन्तर्ध्वनि
वर्ष 1946 में यह काव्य गोपालदास नीरज जी द्वारा रचित उन प्रमुख काव्यों में से एक है, जिसमें वे अंतर्ध्वनि पर आधारित बेहतर प्रस्तुति करते हैं।
प्राणगीत
प्राणगीत को वर्ष 1951 में प्रकाशित किया गया था, इस काव्य में कवि प्राणों को एक गीत के माध्यम से सुसज्जित किया है।
मेरा नाम लिया जाएगा
इस कविता में कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि उनके शब्द और कर्म लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे, भले ही उनका भौतिक शरीर रहे न रहे। यह कविता एक आशावादी कविता है।
फिर दीप जलेगा
फिर दीप जलेगा एक प्रेरणादाई कविता है, जो मानव को आशा और प्रेरणा का संदेश देती है। यह कविता हमें निज जीवन से अंधकार को मिटाकर प्रकाश का स्वागत करने की प्रेरणा देती है, यह कविता वर्ष 1949 में लिखी गई थी।
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आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ
Gopaldas Neeraj ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ” भी है, जो कि निम्नलिखित है;
आज की रात तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ
कौन जाने यह दिया सुबह तक जले न जले?
बम बारूद के इस दौर में मालूम नहीं
ऐसी रंगीन हवा फिर कभी चले न चले।
ज़िंदगी सिर्फ़ है ख़ुराक टैंक तोपों की
और इंसान है एक कारतूस गोली का
सभ्यता घूमती लाशों की इक नुमाइश है
और है रंग नया ख़ून नई होली का।
कौन जाने कि तेरी नर्गिसी आँखों में कल
स्वप्न सोए कि किसी स्वप्न का मरण सोए
और शैतान तेरे रेशमी आँचल से लिपट
चाँद रोए कि किसी चाँद का कफ़न रोए।
कुछ नहीं ठीक है कल मौत की इस घाटी में
किस समय किसके सबेरे की शाम हो जाए
डोली तू द्वार सितारों के सजाए ही रहे
और ये बारात अँधेरे में कहीं खो जाए।
मुफ़लिसी भूख ग़रीबी से दबे देश का दुख
डर है कल मुझको कहीं ख़ुद से न बाग़ी कर दे
ज़ुल्म की छाँह में दम तोड़ती साँसों का लहू
स्वर में मेरे न कहीं आग अंगारे भर दे।
चूड़ियाँ टूटी हुई नंगी सड़क की शायद
कल तेरे वास्ते कंगन न मुझे लाने दे
झुलसे बाग़ों का धुआँ खोए हुए पात कुसुम
गोरे हाथों में न मेहँदी का रंग आने दें।
यह भी मुमकिन है कि कल उजड़े हुए गाँव गली
मुझको फ़ुर्सत ही न दें तेरे निकट आने की
तेरी मदहोश नज़र की शराब पीने की
और उलझी हुई अलकें तेरी सुलझाने की।
फिर अगर सूने पेड़ द्वार सिसकते आँगन
क्या करूँगा जो मेरे फ़र्ज़ को ललकार उठे?
जाना होगा ही अगर अपने सफ़र से थक कर
मेरी हमराह मेरे गीत को पुकार उठे।
इसलिए आज तुझे आख़िरी ख़त और लिख दूँ
आज मैं आग के दरिया में उतर जाऊँगा
गोरी-गोरी-सी तेरी संदली बाँहों की क़सम
लौट आया तो तुझे चाँद नया लाऊँगा।
–गोपालदास नीरज
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आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है
Gopaldas Neeraj ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है” भी है। जो कि निम्नलिखित हैं;
आज की रात बड़ी शोख़ बड़ी नटखट है
आज तो तेरे बिना नींद नहीं आएगी
आज तो तेरे ही आने का यहाँ मौसम है
आज तबियत न ख़यालों से बहल पाएगी।
देख! वह छत पै उतर आई है सावन की घटा
खेल खिलाड़ी से रही आँख मिचौनी बिजली
दर पै हाथों में लिए बाँसुरी बैठी है बाहर
और गाती है कहीं कोई कुयलिया कजली।
पीऊ पपीहे की, यह पुरवाई, यह बादल की गरज
ऐसे नस-नस में तेरी चाह जगा जाती है
जैसे पिंजरे में छटपटाते हुए पंछी को
अपनी आज़ाद उड़ानों की याद आती है।
जगमगाते हुए जुगनू—यह दिए आवारा
इस तरह रोते हुए नीम पै जल उठते हैं
जैसे बरसों से बुझी सूनी पड़ी आँखों में
ढीठ बचपन के कभी स्वप्न मचल उठते हैं।
और रिमझिम ये गुनहगार, यह पानी की फुहार
यूँ किए देती है गुमराह, वियोगी मन को
ज्यूँ किसी फूल की गोदी में पड़ी ओस की बूँद
जूठा कर देती है भौंरों के झुके चुंबन को।
पार ज़माना के सिसकती हुई विरहा की लहर
चीरती आती है जो धार की गहराई को
ऐसा लगता है महकती हुई साँसों ने तेरी
छू दिया है किसी सोई हुई शहनाई को।
और दीवानी-सी चंपा की नशीली ख़ुशबू
आ रही है जो छन-छन के घनी डालों से
जान पड़ता है किसी ढीठ झकोरे से लिपट
खेल आई है तेरे उलझे हुए बालों से!
अब तो आजा ओ कंबल—पात चरन, चंद्र बदन
साँस हर मेरी अकेली है, दुकेली कर दे
सूने सपनों के गले डाल दे गोरी बाँहें
सर्द माथे पै ज़रा गर्म हथेली धर दे!
पर ठहर वे जो वहाँ लेटे हैं फ़ुटपाथों पर
सर पै पानी की हरेक बूँद को लेने के लिए
उगते सूरज की नई आरती करने के लिए
और लेखों को नई सुर्ख़ियाँ देने के लिए।
और वह, झोपड़ी छत जिसकी स्वयं है आकाश
पास जिसके कि ख़ुशी आते शर्म खाती है
गीले आँचल ही सुखाते जहाँ ढलती है धूप
छाते छप्पर ही जहाँ ज़िंदगी सो जाती है।
पहले इन सबके लिए एक इमारत गढ़ लूँ
फिर तेरी साँवली अलकों के सपन देखूँगा
पहले हर दीप के सर पर कोई साया कर दूँ
फिर तेरे भाल पे चंदा की किरण देखूँगा।
–गोपालदास नीरज
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सारा जग मधुबन लगता है
Gopaldas Neeraj ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “सारा जग मधुबन लगता है” भी है, जो कि निम्नलिखित है;
दो गुलाब के फूल छू गए जब से होंठ अपावन मेरे
ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है।
रोम-रोम में खिले चमेली
साँस-साँस में महके बेला
पोर-पोर से झरे मालती
अंग-अंग जुड़े जूही का मेला
पग-पग लहरे मानसरोवर डगर-डगर छाया कदंब की
तुम जब से मिल गए उमर का खंडहर राजभवन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
छिन-छिन ऐसा लगे कि कोई
बिना रंग के खेले होली
यूँ मदमाए प्राण कि जैसे
नई बहू की चंदन डोली
जेठ लगे सावन मनभावन और दुपहरी साँझ बसंती
ऐसा मौसम फिरा धूल का ढेला एक रतन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
जाने क्या हो गया कि हरदम
बिना दिए के रहे उजाला
चमके टाट बिछावन जैसे
तारों वाला नील दुशाला
हस्तामलक हुए सुख सारे दुख के ऐसे ढहे कगारे
व्यंग्य-वचन लगता था जो कल वह अब अभिनंदन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
तुम्हें चूमने का गुनाह कर
ऐसा पुण्य कर गई माटी
जनम-जनम के लिए हरी
हो गई प्राण की बंजर घाटी
पाप-पुण्य की बात न छेड़ो स्वर्ग-नर्क की करो न चर्चा
याद किसी की मन में हो तो मगहर वृंदावन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
तुम्हें देख क्या लिया कि कोई
सूरत दिखती नहीं पराई
तुमने क्या छू दिया बन गई
महाकाव्य कोई चौपाई
कौन करे अब मठ में पूजा कौन फिराए हाथ सुमरिनी
जीना हमें भजन लगता है मरना हमें हवन लगता है।
दो गुलाब के फूल॥
–गोपालदास नीरज
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गीत
Gopaldas Neeraj ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “गीत” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
हर नज़र ग़मगीन है, हर होंठ ने धूनी रमाई,
हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई,
ख़ुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में
कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई,
फिर दियों का दम न टूटे,
फिर किरन को तम न लूटे,
हम जले हैं तो धरा को जगमगा कर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे॥
हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज़ बदले,
साज़ ही केवल नहीं अंदाज़ औ’ आवाज़ बदले,
उन फ़क़ीरों-सिरफिरों के हमसफ़र हम, हमउमर हम,
जो बदल जाएँ अगर तो तख़्त बदले ताज बदले,
तुम सभी कुछ काम कर लो,
हर तरह बदनाम कर लो,
हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे॥
नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली सियाही,
दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाही,
थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा पर
है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाही,
आदमी वह फिर न टूटे,
वक़्त फिर उसको न लूटे,
ज़िंदगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे॥
हम न अपने आप ही आए दुखों के इस नगर में,
था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफ़र में,
किंतु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ से
जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नज़र में,
अब भले कुछ भी कहे तू,
ख़ुश कि या नाख़ुश रहे तू,
गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे॥
इस सभा की साज़िशों से तंग आकर, चोट खाकर
गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफ़िर
और वे जो हाथ में मिज़राब पहने मुशकिलों की
दे रहे हैं ज़िंदगी के साज़ को सबसे नया स्वर,
मौर तुम लाओ न लाओ,
नेग तुम पाओ न पाओ,
हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे॥
–गोपालदास नीरज
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कानपुर के नाम पाती
गोपालदास नीरज की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “कानपुर के नाम पाती” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;
कानपुर! आह! आज याद तेरी आई फिर
स्याह कुछ और मेरी रात हुई जाती है,
आँख पहले भी यह रोई थी बहुत तेरे लिए
अब तो लगता है कि बरसात हुई जाती है।
तू क्या रूठा मेरे चेहरे का रंग रूठ गया
तू क्या छूटा मेरे दिल ने ही मुझे छोड़ दिया,
इस तरह ग़म में है बदली हुई हर एक ख़ुशी
जैसे मंडप में ही दुलहिन ने दम तोड़ दिया।
प्यार करके ही तू मुझे भूल गया लेकिन
मैं तेरे प्यार का एहसान चुकाऊँ कैसे,
जिसके सीने से लिपट आँख है रोई सौ बार
ऐसी तस्वीर से आँसू यह छिपाऊँ कैसे।
आज भी तेरे बेनिशान किसी कोने में
मेरे गुमनाम उम्मीदों की बसी बस्ती है,
आज ही तेरी किसी मिल के किसी फाटक पर
मेरी मजबूर ग़रीबी खड़ी तरसती है।
फ़र्श पर तेरे ‘तिलक हॉल’ के अब भी जाकर
ढीठ बचपन मेरे गीतों का खेल खेल आता है,
आज ही तेरे ‘फूल बाग़’ की हर पत्ती पर
ओस बनके मेरा दर्द बरस जाता है।
करती टाइप किसी ऑफ़िस की किसी टेबिल पर
आज भी बैठी कहीं होगी थकावट मेरी,
खोई-खोई-सी परेशान किसी उलझन में
किसी फ़ाइल पै झुकी होगी लिखावट मेरी।
‘कुसरवाँ’ की वह अँधेरी-सी हयादार गली
मेरे ‘गुंजन’ ने जहाँ पहली किरन देखी थी,
मेरी बदनाम जवानी के बुढ़ापे ने जहाँ
ज़िंदगी भूख के शोलों में दफ़न देखी थी।
और ऋषियों के नाम वाला वह नामी कॉलिज
प्यार देकर भी न्याय जो न दे सका मुझको,
मेरी बग़िया कि हवा जो तू उधर से गुज़रे
कुछ भी कहना न, बस सीने से लगाना उसको।
क्योंकि वह ज्ञान का एक तीर्थ है जिसके तट पर
खेलकर मेरी क़लम आज सुहागिन है बनी,
क्योंकि वह शिवाला है जिसकी देहरी पर
होके नत शीश मेरी अर्चना हुई है धनी।
–गोपालदास नीरज
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मेरा नाम लिया जाएगा
गोपालदास नीरज की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, गोपालदास नीरज जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मेरा नाम लिया जाएगा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा
मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा
खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा
काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा
जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा
-गोपालदास “नीरज”
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