भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की ओर से 22 जुलाई 2019 को GSLV एमके III-एम1 प्रक्षेपण रॉकेट से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। 20 अगस्त, 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित हुआ था।
भूमि से चांद की दूरी 3.84 लाख किलोमीटर है। चंद्रयान-3 इस दूरी को 40 से 50 दिनों में तय करेगा। सबकुछ सही रहा तो 50 दिनों में चंद्रयान-3 का लैंडर चांद की सतह पर होगा।
चंद्रयान-3 के जरिए ISRO का ये लक्ष्य एलवीएम 3 एम4 रॉकेट की सफल अंतरिक्ष यात्रा के साथ पूरा होगा। ये बाहुबली रॉकेट चंद्रयान-3 को लेकर अंतरिक्ष में लेकर जाएगा और इसके साथ लैंडर और रोवर मौजूद होंगे।
लैंडर के लैंड होने के बाद इसमें से रोवर बाहर आएगा और चांद की सतह पर चलेगा। चंद्रमा के 100 किलोमीटर की कक्षा में आने के बाद लैंडर को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग कर दिया जाएगा और इसके बाद लैंडर की चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग हो जाएगी।
ISRO चीफ ने बताया कि चंद्रयान-3 लैंडर की लैंडिंग वेलोसिटी को 2 मीटर/सेकंड से बढ़ाकर 3 मीटर/सेकंड कर दिया गया है। यह एडजस्टमेंट सुनिश्चित करता है कि 3 मीटर/सेकंड की वेलोसिटी पर भी लैंडर दुर्घटनाग्रस्त नहीं होगा।
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क्यों खास है चंद्रयान-3 मिशन?
चंद्रयान-3 मिशन अलग और खास माना जा रहा है क्योंकि अब तक जितने भी देशों ने अपने यान चंद्रमा पर भेजे हैं उनकी लैंडिग उत्तरी ध्रुव पर हुई है, जबकि चंद्रयान 3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला यान होगा। इसके अलावा चंद्रयान 3 इसरो ही नहीं बल्कि पीएम मोदी का भी ड्रीम प्रोजेक्ट है।
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