Chai Par Kavita: चाय केवल एक पेय पदार्थ नहीं, बल्कि यह एक एहसास है, जो हमारे दिन की शुरुआत को खास बनाती है। चाय हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। चाहे सर्दी हो या गर्मी, बारिश हो या सर्द हवाएँ, चाय हर मौसम में लोगों की पसंद बनी रहती है। चाय पर आज तक अनगिनत ऐसी कविताएँ लिखी गई हैं, जिन्होंने हमारे जीवन में इसके महत्व को उजागर किया है। चाय सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि भावनाओं का भी एक अनोखा संगम है। बता दें कि चाय पर कविता के माध्यम से आप अपनी भावनाओं को बड़ी ही सरलता के साथ प्रकट कर सकते हैं। इस लेख में कुछ लोकप्रिय चाय पर कविता (Chai Par Kavita) दी गई हैं, जो इसके हर घूंट में बसी एक नई कहानी को आप तक पहुंचाएगी।
This Blog Includes:
चाय पर कविता – Chai Par Kavita
चाय पर कविता (Chai Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
चाय चक्रम | काका हाथरसी |
चाय बनाओ | बालकवि बैरागी |
एक प्याली चाय | वत्सला पाण्डेय |
गर्म- चाय सी | कविता भट्ट |
चाय पीते हुए | राधावल्लभ त्रिपाठी |
एक कप चाय | राजकिशोर सिंह |
चाय का मग्गा | अंजना वर्मा |
चाय चक्रम
एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय,
दूध- दही- फल अन्न-जल, छोड़ पीजिए चाय।
छोड़ पीजिए चाय, अमृत बीसवीं सदी का,
जग-प्रसिद्ध जैसे गंगाजल गंग नदी का।
कहँ ‘काका’, इन उपदेशों का अर्थ जानिए,
बिना चाय के मानव-जीवन व्यर्थ मानिए।
चाय चक्रम
कविता लिखने के लिए ‘मूड’ नहीं बन पाए,
एक सांस में पीजिए चार- पांच कप चाय।
चार- पांच कप चाय, अगर रह जाए अधूरी,
इतने ही लो, और हो गई कविता पूरी।
कहं ‘काका’ कवि, खंडकाव्य को पंद्रह प्याला,
पचपन कप में महाकाव्य हमने लिख डाला।
चाय चक्रम
प्लेटफार्म पर यात्री, पानी को चिल्लाय,
पानी वाला है नहीं, चाय पियो जी चाय।
चाय पियो जी चाय, हिलाकर बोला दाढ़ी,
पैसे लेउ निकाल, छूट जाएगी गाड़ी।
‘काका’ पीकर चाय विरोधी दल का नेता,
धुआंधार व्याख्यान सभा-संसद में देता।
चाय चक्रम
लक्ष्मण के शक्ति लगी, विकल हुए भगवान,
संजीवनी लेने गए, पवन – पुत्र हनुमान।
पवन – पुत्र हनुमान, आ गए लेकर बूटी,
सेवन करके लखनलाल की निद्रा टूटी।
कहं ‘काका’ कवि, जब खोली अक्क्ल की खत्ती,
समझ गए हम, इस चाय की थीं कुछ पत्ती।
– काका हाथरसी
चाय बनाओ
बड़े सवेरे सूरज आया,
आकर उसने मुझे जगाया,
कहने लगा, ‘बिछौना छोड़ो
मैं आया हूँ सोना छोड़ो!’
मैंने कहा, ‘पधारो आओ,
जाकर पहले चाय बनाओ,
गरम चाय के प्याले लाना
फिर आ करके मुझे जगाना,
चलो रसोईघर में जाओ
दरवाजे पर मत चिल्लाओ।’’
– बालकवि बैरागी
यह भी पढ़ें: प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ
एक प्याली चाय
एक प्याली चाय
दोस्तों के साथ हो, तो गप्पे हो जाती है
एक प्याली चाय
नाते दारों के साथ हो तो घर के मसले हल हो जाते है
एक प्याली चाय
ऑफिस की टेबल पर हो तो फाइलें निपट जाती है
और एक प्याली चाय
तुम्हारे साथ हो तो, मैं सब कुछ भूल जाती हूँ
दिनभर की पीड़ा, चिंता और थकन
एक प्याली चाय…
– वत्सला पाण्डेय
यह भी पढ़ें: बसंत पंचमी पर कविता
गर्म- चाय सी
गर्म- चाय सी
मनभावन चुस्की
प्रीत तुम्हारी।
सर्दी- सा दुःख
दो घूँट जिंदगी की
चाय है; चखो।
सर्द न होना
चाय की प्याली जैसे
अधर धरो।
मैं चाय- प्याली
तू प्लेट हलुए की
जीवन बर्फ।
सर्द हैं रातें
चाय की प्याली बन
मिठास घोलो।
– कविता भट्ट
यह भी पढ़ें: भारतीय संस्कृति की सजीव झलक प्रस्तुत करती रामनरेश त्रिपाठी की कविताएं
चाय पीते हुए
कसैला मधुर स्वाद
हर चुस्की में नया होता हुआ
हाथ में लिए कप में झलकती लगती है
चाय के बगीचों की हरियाली
दूर-दूर तक घाटियों में फैली
आसाम, सिक्किम या दार्जिलिंग में
पीठ पर बाँस की टोकरी टाँगे
तेज़ी से हाथ चलाती
चाय की पत्ती चुनने वाली किसी स्त्री का
अपार श्रम
जो उसने निरन्तर एक-एक पत्ती चुनते हुए किया
चाय में उसकी भी तो गन्ध घुली है
मीठी और कसैली ।
– राधावल्लभ त्रिपाठी
यह भी पढ़ें: बेटियों के प्रति सम्मान के भाव को व्यक्त करती बालिका दिवस पर कविता
एक कप चाय
एक कप चाय
दूध चीनी का केवल घोल नहीं
प्रेम का उपहार है
अतिथियों का स्वागत
आगंतुकों का सत्कार है
एक कप चाय
कुछ नहीं
केवल वार्ता का बहाना है
बराबरी का सूचक यह
प्रेम का ठिकाना है
धनवानों की चाय
गरीबों के लिए उपहार
धनहीनों की चाय
अमीरों का सत्कार
इस अफरा-तफरी संसार में
जहाँ मितव्ययता का बोल-बाला है
वहाँ अतिथियों के स्वागत में
सबसे आगे चाय का प्याला है
थके मांदो का पंथ यह
बूढ़ों की स्फूर्ति है
सभ्यता का प्रतीक यह
भावों की सच्ची प्रतिमूर्ति है
चाय एक बहाना है
मित्रों को घर बुलाने का
घूँट-घूँट में प्यार भरा है
और प्यार लुटाने का
चाय एक मानक है
मानव जीवन स्तर का
कौन बड़ा है, कौन छोटा
और नीचे-ऊपर का
बन जाती अमृत यह
जहाँ प्रेम का होता रूप
बन जाती वही जहर
अगर उपेक्षा की हो धूप
चाय अगर मिली नहीं
गर किसी के दरबार में
उड़ने लगती खिल्ली उसकी
इस भौतिक संसार में।
– राजकिशोर सिंह
चाय का मग्गा
यह चाय का मग्गा
कितना प्यारा है!
मन करता है चूम लूँँ इसे
(वह तो करती ही हूँ चाय पीते हुए)
कितना अपना लगता है यह!
कि जब मैं थकती हूँँ
यह चला आता है मेरे पास
मेरी थकान दूर करने
जब भी लिखते-लिखते
थकती हैं उंगलियाँ
चिकमिक करने लगती है नज़र
और आँखें बंद होने लगती हैं
लपककर भागती हूँ किचेन में
बनाती हूँ चाय
और ढाल देती हूँ इस उजले मग्गे में
फिर कुछ क्षणों के लिए
यह मग्गा होता है मेरे साथ
और मैं रहती हूँ इसको लिए हाथ
हाय रे मग्गे!
तेरी जय हो!
– अंजना वर्मा
यह भी पढ़ें: देश पर लिखी गई प्रसिद्ध कविताओं का संग्रह
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस लेख में चाय पर कविता (Chai Par Kavita) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।