Krishna Par Kavita: भगवान कृष्ण की लीलाओं पर आधारित सुंदर कविताएँ

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Krishna Par Kavita

Poem on Krishna in Hindi: भगवान श्रीकृष्ण केवल पूजा और आराधना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनके विचार और शिक्षाएं हर युग में मानवता को सही मार्ग दिखाती रही हैं। जब भी जीवन में निराशा के बादल घिरते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं, विचारों और शिक्षाओं पर लिखी कविताएं आशा और प्रकाश की किरण बनकर प्रेरणा देती हैं। कृष्ण पर लिखी कविताएँ हमें उनके बाल स्वरूप की अद्भुत लीलाओं, उनकी प्रेम भक्ति और उनके गहरे ज्ञान से जोड़ती हैं। इस लेख में आपके लिए भगवान कृष्ण पर कविता (Krishna Par Kavita) दी गई हैं, जो उनकी दिव्य लीलाओं और उपदेशों को समझने में सहायक होंगी।

कृष्ण पर कविता – Krishna Par Kavita

कृष्ण पर कविता (Krishna Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
अब कै माधव, मोहिं उधारिसूरदास
गोकुल की गैल-गैल गोप ग्वालिन कौजगन्नाथदास ’रत्नाकर’
फिर कोई कृष्ण सा ग्वाला होराजेश चड्ढा
छबि आवन मोहनलाल कीरहीम
माधव दिवाने हाव-भावमाखनलाल चतुर्वेदी
माधव ई नहि उचित विचारविद्यापति
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोईमीराबाई
कृष्णविष्णु विराट
कृष्णमंजुला सक्सेना
रात यदि श्याम नहीं आये थेगुलाब खंडेलवाल

अब कै माधव, मोहिं उधारि

अब कै माधव, मोहिं उधारि।
मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥
नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।
लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥
मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार।
पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह सिबार॥
काम क्रोध समेत तृष्ना, पवन अति झकझोर।
नाहिं चितवत देत तियसुत नाम-नौका ओर॥
थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल, सुनहु करुनामूल।
स्याम, भुज गहि काढ़ि डारहु, सूर ब्रज के कूल॥

– सूरदास

गोकुल की गैल-गैल गोप ग्वालिन कौ

गोकुल की गैल-गैल गोप ग्वालिन कौ,
गोरस के काज लाज-बस कै बहाइबौ।
कहैं रतनाकर रिझाइबो नवेलिनि कौं,
गाइबौ गवाइबौ औ नाचिबौ नचाइबौ॥
कीबौं स्रमहार मनुहार कै बिबिध विधि,
मोहिनी मृदुल मंजु बाँसुरी बजाइबौ।
ऊधौ सुख-संपति-समाज ब्रज-मंडल के,
भूलैं हूँ न भूलै, भूलैं हमकौं भुलाइबौ॥

– जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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फिर कोई कृष्ण सा ग्वाला हो

फिर कोई कृष्ण सा ग्वाला हो,
फिर मीराँ फिर प्याला हो।

फिर चिड़िया कोई खेत चुगे,
फिर नानक रखवाला हो।

फिर सधे पाँव कोई घर छोड़ें,
फिर रस्ता गौतम वाला हो।

फिर मरियम की कोख भरे,
फिर सूली चढ़ने वाला हो।

हम घर छोड़ें या फूँक भी दें,
जब साथ कबीरा वाला हो।

– राजेश चड्ढा

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छबि आवन मोहनलाल की

छबि आवन मोहनलाल की।
काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल की॥
बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल की।
बिसरत नाहिं सखी मो मन ते चितवनि नयन विसाल की॥
नीकी हँसनि अधर सुधरन की छबि छीनी सुमन गुलाल की।
जल सों डारि दियो पुरैन पर डोलनि मुकता माल की॥
आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल की।
यह सरूप निरखै सोइ जानै इस ’रहीम’ के हाल की॥

– रहीम

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माधव दिवाने हाव-भाव

माधव दिवाने हाव-भाव
पै बिकाने
अब कोई चहै वन्दै
चहै निन्दै, काह परवाह
वौरन ते बातें जिन
कीजो नित आय-आय
ज्ञान, ध्यान, खान, पान
काहू की रही न चाह

भोगन के व्यूह, तुम्हें
भोगिबो हराम भयो
दुख में उमाह, इहाँ
चाहिये सदा ही आह,
विपदा जो टूटै
कोऊ सब सुख लूटै
एक माधव न छूटै
तो कराह की सदा सराह!

– माखनलाल चतुर्वेदी

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माधव ई नहि उचित विचार

माधव ई नहि उचित विचार।
जनिक एहनि धनि काम-कला सनि से किअ करु बेभिचार।।
प्रनहु चाहि अधिक कय मानय हदयक हार समाने।
कोन परि जुगुति आनके ताकह की थिक तोहरे गेआने।।
कृपिन पुरुषके केओ नहि निक कह जग भरि कर उपहासे।
निज धन अछइत नहि उपभोगब केवल परहिक आसे।।
भनइ विद्यापति सुनु मथुरापति ई थिक अनुचित काज।
मांगि लायब बित से जदि हो नित अपन करब कोन काज।।

– विद्यापति

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥

– मीराबाई

विष्णु विराट की कविता : कृष्ण

एक गीता भर नहीं व्यक्तित्व जिसका,
भागवत से भी बड़ा है कृष्ण॥

वेद कहते नेति, श्रुतियां मौन रहती,
अमृत का कंचन घड़ा है कृष्ण॥

चीखता कुरुक्षेत्र घायल कह रहा है,
नीति के रथ पै चढ़ा है कृष्ण॥

विश्व का विष आचमन कर श्याम है जो,
नाग के फन पर खड़ा है कृष्ण॥

एक हीरा मां यशोदा के हृदय का,
गोपियों की नथ जड़ा है कृष्ण॥

मात्र ब्रजबाला नहीं, मुनि व्यास जैसे,
पूंछते किसने गढ़ा है कृष्ण॥

शोधता ब्रह्माण्ड जिसको युग युगों से,
गोपियों के पद-तल पड़ा है कृष्ण॥

– विष्णु विराट

मंजुला सक्सेना की कविता : कृष्ण

जिसके मात्र स्मरण से ही हर संताप बिसर जाता है
वह तो केवल एक कृष्ण हैं!

जिसकी स्वप्न झलक पाते ही
हर आकर्षण बिखर जाता है
जो सबके दुःख का साथी है
सबका पालक, जनक, संहर्ता
वह तो केवल एक कृष्ण हैं!

साक्षी सबके पाप पुण्य का,
न्यायमूर्ति सृष्टि का भरता,
वह अवतार प्रेम का मधु का,
अनघ, शोक मोह का हरता
वह तो केवल एक कृष्ण हैं!

– मंजुला सक्सेना

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रात यदि श्याम नहीं आये थे

रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!

गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर
किसने फिर वे रास मनोहर
वन में रचवाये थे!

शंका क्यों रहने दें मन में!
चलकर सखि! देखें मधुवन में
पथ के काँटों ने क्षण-क्षण में
आँचल उलझाये थे

मुझे याद है हरि ने छिपकर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझपर
क्यों अंगों में सिहर रही भर
भेंट न यदि पाये थे!

रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!

– गुलाब खंडेलवाल

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