प्रकृति के संरक्षण की जब भी कहीं भी कभी भी बात होती है, यह तब तक अधूरी है जब तक आदिवासी समाज के महान योगदान को याद न कर कर लिया जाए। आदवासी संस्कृति ने न केवल प्रकृति का संरक्षण किया बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति का भी संरक्षण किया है। आदिवासी समाज का मूल मंत्र “जल, जंगल-जमीन” होता है। इस पोस्ट में आप आदिवासी संस्कृति शायरी पढ़कर आदिवासी संस्कृति के बारे में जानेंगे, जिसके लिए आपको यह पोस्ट अंत तक पढ़ने पड़ेगी।
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आदिवासी संस्कृति शायरी
आदिवासी संस्कृति को निम्नवत माध्यम से पढ़ा जा सकता है, जिसके बाद आप आदिवासी समाज के योगदान को आसानी से समझ सकते हैं-
“प्रकृति है जननी हम सब की, इससे गहरा जिसका नाता है
हर जीव का कल्याणकारी ही आदिवासी कहलाता है…”
-मयंक विश्नोई
“जल की अविरल धारा सा बहता वीरत्व है
संघर्षों में जूझता हर आदिवासी प्रकृति भक्त है…”
-मयंक विश्नोई
“मानव जाति पर उपकार है जिनका वह समाज आदिवासी है
जिनके संघर्षों से तपती माटी है, वह समाज आदिवासी है…”
-मयंक विश्नोई
“समस्याओं से घिरने पर हार न मानी, फिर चाहे जैसी भी बाधाएं आई
प्रकृति से केवल पाई ममता, फिर चाहे कैसी भी ऋतु हो छाई…”
-मयंक विश्नोई
“आकाश को मान तन का लिवास, वीर पुरुष धरा पर रहते हैं
जल, जंगल और ज़मीन को अपनी जिम्मेदारी पहली कहते हैं…”
-मयंक विश्नोई
“इच्छाओं को त्यागकर ही जीवन सुखद बन पाता है
जल, जंगल-जमीन का प्रहरी, आदिवासी कहलाता है…”
-मयंक विश्नोई
“बड़े चलो मेरे आदिवासी बंधुओं, शिक्षा तुम्हारा अधिकार है
तुम्हारे स्वागत को बाहें फैलता आज सारा संसार है…”
-मयंक विश्नोई
“हौसलों की हुंकार हो तुम, तुम ही मातृभूमि की जयकार हो
सुनो! मेरे प्रकृति के रक्षक, तुम ही भगवान बिरसा मुंडा का अवतार हो…”
-मयंक विश्नोई
“तुम ही से सृष्टि ने सारी सीखा करना प्रकृति का सम्मान
तुम से ही संरक्षित हुई सभ्यताएं, तुम से ही विकसित हुआ इंसान…”
-मयंक विश्नोई
“साहस की सही संज्ञा तुम, प्रेम की तुम परिभाषा हो
प्रकृति का उचित सार हो तुम, तुम ही परिवर्तन की एक आशा हो…”
-मयंक विश्नोई
आदिवासी संस्कृति शायरी हिन्दी में
आदिवासी संस्कृति हिन्दी में पढ़ने के लिए आप नीचे दी गई कुछ शायरियों के माध्यम से आदिवासी समाज के योगदान को जान सकते हैं-
“खुली आँखों से देखा तुम वो सपना हो मेरे आदिवासी समाज
जिसने अपना बलिदान देना ठीक समझा, प्रकृति की रक्षा के लिए…
-मयंक विश्नोई
“तुम्हारे अस्तित्व को जो ललकारता या दुत्कारता है
समय आ गया है कि शिक्षित हो जाओ और समाज को नई दिशा दो एक…”
-मयंक विश्नोई
“संस्कृति में हमारी प्रेम अपार है, प्रेम से ही सुगन्धित सारा संसार है
आदिवासी समाज ने पहल की प्रकृति की, प्रकृति के बिना खवाबों का न कोई आकार है…”
-मयंक विश्नोई
“समय आने पर दिखा देना कि आपने क्या किया है मानवता की खातिर
जरूरत से ज़्यादा मौन आपके पक्ष को कमज़ोर साबित करता है…”
-मयंक विश्नोई
“जंगल के जीवों से आपका उचित है व्यवहार
जिससे आपके यश का होता है विस्तार…”
-मयंक विश्नोई
“माटी ने आवाज़ दी है साथियों, आज फिर एक रण लड़ा जाए
प्रकृति के संरक्षण हेतु एक कदम आगे अब और बढ़ा जाए…”
-मयंक विश्नोई
“वनों सा विशाल है अस्तित्व हमारी संस्कृति का
इसकी शरण में जो आया, इसने उन पर ममता लुटाई…”
-मयंक विश्नोई
“हर प्रकार की बुरी नज़र से बचाकर रखेंगे हम हमारी आस्था को
जिस आस्था द्वारा हम में करुणता का भाव उत्पन्न हो पाया…”
-मयंक विश्नोई
“समय रहते मान लो कि बिना प्रकृति की जीवन संभव नहीं है
तड़प जाओगे देख कर खुद के पतन का मार्ग, जो नासमझों जैसे तुमने व्यवहार किया…”
-मयंक विश्नोई
“प्रकृति प्रेम भावना का श्रृंगार करती है
प्रकृति ही क्रूर भावना का प्रतिकार करती है…”
-मयंक विश्नोई
आदिवासी भील शायरी
आदिवासी भील शायरी कुछ ऐसी शायरी हैं, जिनमें आप आदिवासी भील समुदाय और भील वीरों के योगदान को जान पाएंगे, जो कि कुछ इस प्रकार हैं-
“पहाड़ों के वासी हैं
हम भील मोह माया से परे दूर कहीं
प्रकृति के नज़दीक
मन से सन्यासी हैं…”
-मयंक विश्नोई
“मातृभूमि पर जो उठती ऊँगली हैं, हम हर उस ऊँगली को उखाड़ फेकेंगे
चाहे कोई देखे या न देखे हमें, हम हमारी सभ्यता को जीवन भर देखंगे…”
-मयंक विश्नोई
“हम उन्हीं वीरों की संतान हैं जिन्होंने महराणा प्रताप के साथ
मातृभूमि की रक्षा में शस्त्र उठाया था
हम उन्हीं वीरों की संतान हैं जिन्होंने अपनी देशभक्ति में
अपना सुख चैन हँसकर गवाया था…”
-मयंक विश्नोई
“समय ने हर बार हमारी वीरता को परखा है
हम भी आत्म सम्मान के लिए जीवन भर जूझते रहे…”
-मयंक विश्नोई
“जीत की जयकार हैं, हम प्रकृति का विस्तार हैं
जो रोके हमारे क़दमों को, हम हर उस बुराई का संहार हैं…”
-मयंक विश्नोई
“भीलों ने महत्वकांक्षाओं को कभी माटी से बढ़कर नहीं देखा
जहाँ माटी ने आवाज़ लगाई, हमने हंसकर बलिदान किया…”
-मयंक विश्नोई
“भीलों के अस्तित्व पर इतिहास न मौन रह पाता है
मातृभूमि की मर्यादा पर जैसे गीत शौर्य का गाता है…”
-मयंक विश्नोई
“वीरता बाजारों में बिकने वाला कोई सौदा नहीं
इसके लिए आपको खुद को तपाना पड़ता है, गलाना पड़ता है…”
-मयंक विश्नोई
आदिवासी सुविचार
आदिवासी संस्कृति के ब्लॉग के माध्यम से आप आदिवासी सुविचार पढ़ सकते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-
आदिवासी अपने आरध्या भगवान शिव के समान होते हैं, सहांरक भी और संरक्षक भी।
प्रकृति के प्रति प्रेम भावना आदिवासी समाज के लहू में बहती है।
जल, जंगल-जमीन की बातें महज बातें नहीं हैं क्योंकि इस एक नारे ने आदिवासी समाज को बाकियों से अलग बनाया है।
माँ, माटी और मातृभूमि के लिए बलिदान देना हर एक के बस की बात नहीं होती। इसके लिए समर्पण की भावना होनी चाहिए।
समर्पण और किसी के प्रति सम्मान तब तक नहीं उत्पन्न होता, जब तक मानव उस भावना के लिए खुद को सार्थक साबित न कर दे। आदिवासी समाज ने अपने तप त्याग से खुद को उस सम्मान के लायक बनाया है।
स्वतंत्रता का आधार मातृभूमि का संरक्षण ही होता है, इसके लिए आपको प्रकृति को नजदीक से देखना और महसूस करना पड़ता है, आदिवासियों की तरह।
आदिवासी समाज ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा क्योंकि वह जानते थे कि जल, जंगल-जमीन केवल कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं बल्कि ये तो जीवन की मूल पहचान है।
जीवन की मूलभूत संरचना ही आदि और अनंत है, आदिवासी समाज के लोकगीतों की ही तरह।
प्रकृति से अनमोल खजाना कोई दूसरा नहीं होता, यह वो खजाना है जो मानव को सभ्य बनाता है।
मानवता के अनमोल खजाने यानि कि प्रकृति का संरक्षण भी आदिवासी समाज के द्वारा होता है, इस आधार पर आदिवासियों को योद्धा कहना अनुचित न होगा।
आशा करते हैं कि आपको आदिवासी संस्कृति शायरी पर आधारित यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। इसी प्रकार के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu से जुड़ें रहिए।