Janmashtami katha: पढ़िए श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा और जानिए कैसे मनाए जन्माष्टमी का महापर्व?

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा

धरती पर जब-जब क्रूरता मानवता को हानि पहुंचाने लगती है, जब-जब अधर्म अपना विस्तार करने लगता है, तब-तब मानव को सद्मार्ग दिखाने, क्रूरता से मानवता को बचाने और अधर्म का अंत करके धर्म का राज स्थापित करने के लिए, भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा ऐसी ही एक ऐतिहासिक और पौराणिक घटना है, जब भगवान श्री हरि विष्णु द्वापर युग में पृथ्वी पर अवतरित हुए और मानवता का उत्थान किया। Janmashtami katha को पढ़ने के लिए आपको Krishna Birth Story in Hindi का यह ब्लॉग अंत तक पढ़ना चाहिए।

जानिए क्या है Krishna Birth Story in Hindi

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा के बारे में जानने से पहले आपको इसकी पृष्ठभूमि के बारे में जान लेना चाहिए, जिसका लक्ष्य द्वापर युग में मानव की क्रूरता और अधर्म से सनातन संस्कृति का संरक्षण करना था। श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा का आरंभ भगवान श्री कृष्ण के पृथ्वी पर अवतरण के साथ होता है। पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर यह माना जाता है कि रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को मथुरा के कारागार में, देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।

जिस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, जिसको युगों-युगों से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता आ रहा है। श्री कृष्ण के जनमोत्स्व की कथा को ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा, विधिवत तरीके से की जाती है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के समय श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा सुनने से सुख-समृद्धि, धन और वैभव की प्राप्ति होती है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा

भागवत पुराण के अनुसार, द्वापर युग में मथुरा नगरी पर कंस नाम का एक अत्याचारी और क्रूर राजा शासन करता था। अपने पिता राजा उग्रसेन को गद्दी से हटाकर वह स्वयं राजा बन गया था। मथुरा की प्रजा उसके शासन में बहुत दुखी थी, लेकिन वह अपनी बहन देवकी को बहुत प्यार करता था। उसने देवकी का विवाह अपने मित्र वासुदेव से कराया था। जब वो देवकी और वासुदेव को उनके राज्य लेकर जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई – ‘हे कंस! जिस बहन को तू उसके ससुराल छोड़ने जा रहा है, उसके गर्भ से पैदा होने वाली आठवीं संतान ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगी।’

आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और वसुदेव को मारने बढ़ा। तभी देवकी ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कहा कि उनकी जो भी संतान जन्म लेगी, उसे वो कंस को सौंप देगी। कंस ने बहन की बात मान कर दोनों को कारागार में डाल दिया। कारागार में देवकी ने एक-एक करके सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कंस ने उन सभी का वध कर दिया। हालांकि सातवीं संतान के रूप में जन्में शेष अवतार बलराम को योगमाया ने संकर्षित कर माता रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसलिए ही बलराम को संकर्षण भी कहा जाता है।

आकाशवाणी के अनुसार, माता देवकी की आठवीं संतान के रूप में स्वयं भगवान विष्णु, कृष्ण अवतार के रूप में पृथ्वी पर जन्मे थे। उसी समय माता यशोदा ने एक पुत्री को जन्म दिया। इस बीच कारागार में अचानक प्रकाश हुआ और भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने वसुदेव से कहा कि आप इस बालक को अपने मित्र नंद जी के यहां ले जाओ और वहां से उनकी कन्या को यहां ले आओ।

भगवान विष्णु के आदेश से वसुदेव जी भगवान कृष्ण को सूप में अपने सिर पर रखकर नंद जी के घर की ओर चल दिए। भगवान विष्णु की माया से सभी पहरेदार सो गए, कारागार के दरवाजे खुल गए, यमुना ने भी शांत होकर वसुदेव जी के जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। वसुदेव भगवान कृष्ण को लेकर नंद जी के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए। जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली। वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा। लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई। फिर कन्या ने कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तूझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है। अब तुझे जल्द ही तेरे पापों का दंड मिलेगा।’ वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं।

कृष्ण जन्म किस युग में हुआ और द्वापर युग कितने वर्षों का था?

कृष्ण भगवान का जन्म द्वापर युग में माना जाता है। अब बात आती है द्वापर युग की क्योंकि अक्सर लोगों को यह ही नहीं पता होता कि द्वापर युग कौनसा है या युग कितने प्रकार के होते हैं, इस पूरी कथा में भी आपने युग का वर्णन सुना होगा। हम आपको बता दें कि एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि को ही युग कहा जाता है। युगों के अनुसार ही मानव जीवन की आयु, कद-काठी इत्यादि निर्धारित होती है। सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के अनुसार चार युग होते हैं, जिनके नाम क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग हैं। इनके काल-अवधि निम्नलिखित है-

  1. सतयुग : लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष
  2. त्रेतायुग : लगभग 12 लाख 96 हजार वर्ष
  3. द्वापरयुग : लगभग 8 लाख 64 हजार वर्ष
  4. कलयुग : लगभग 4 लाख 32 हजार वर्ष

कैसे मनाएं श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व?

Janmashtami katha जानने के बाद श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाने के लिए आप अपने घर में पूरी आस्था के साथ लड्डू गोपाल की सेवा करने का संकल्प ले सकते हैं, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास रख कर और दही-हांडी उत्सव के माध्यम से भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व मना सकते हैं। दही-हांडी बाल कृष्ण की लीलाओं का प्रतीक मानी जाती, इसलिए इस लीला से मिलने वाला रस आपको कृष्णमय कर देता है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा से सीखने योग्य बातें

Krishna Birth Story in Hindi के माध्यम से आप श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा को आत्मसात कर सकते हैं, जिसके परिणाम स्वरुप श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा आपके जीवन में साकारात्मक परिवर्तन लाएगी। श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा से आप निम्नलिखित बातें सीख सकते हैं-

  • अन्याय, अधर्म और क्रूरता का नाश करने के लिए भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।
  • भगवान मानव शरीर में रहकर, मानव जैसे कष्टों को सहकर ही नर से नारायण बनते हैं।
  • धर्म का अर्थ है धारण करना, धारण करना सद्कर्मों को, धारण करना सद्गुणों को।
  • मानव को मानवता के मार्ग पर चलकर ही मुक्ति मिलती है।
  • भक्ति भाव और समर्पण भाव के माध्यम से ही ईश्वर को पाया जाता है।

आशा है कि आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा का यह ब्लॉग जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार के इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बनें रहें।

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