यह बात आश्चर्यजनक भले ही लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि हमारे ग्रह को जीवित रहने के लिए हमारी सहायता की आवश्यकता है। हमारी पृथ्वी को प्रदूषण और वनों की कटाई जैसी चीजों से बचाने के लिए, हर साल 22 अप्रैल को एक अरब से भी ज़्यादा लोग पृथ्वी दिवस को मनाते हैं। इसे दुनियाभर में अर्थ डे के नाम से जाना जाता है। इस दिन हम सभी कूड़े की सफाई और वृक्षारोपण जैसे कार्यों में संलग्न होकर एक खुशहाल, स्वस्थ दुनिया में योगदान करते हैं। पृथ्वी दिवस का वार्षिक उत्सव पर्यावरण आंदोलन की उपलब्धियों का सम्मान करता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देता है।
पृथ्वी दिवस कब मनाया जाता है?
अर्थ डे 22 अप्रैल को हर साल मनाया जाता है। भारत समेत लगभग 195 से ज्यादा देश पृथ्वी दिवस को मनाते हैं। इस साल 2023 में विश्व पृथ्वी दिवस (Earth Day) का 53वां आयोजन होगा।
पृथ्वी दिवस क्यों मनाया जाता है?
पृथ्वी दिवस मानाने के पीछे उद्देश्य कुछ इस प्रकार हैं –
- पृथ्वी दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य प्रकृति के प्रति जागरूकता फैलाना है।
- प्रकृति के संरक्षण में आने वाली चुनौतियों का सामना करना।
- जनसँख्या वृद्धि, प्रदुषण, वनों की कटाई जैसी मुख्य समस्याओं का समाधान निकालना।
- विकास की दौड़ में पृथ्वी और उसके प्राकर्तिक संसाधनों की रक्षा करना।
- पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न उपायों के बारे में जागरूकता फैलाना।
- पर्यावरण जागरूकता, स्थिरता और संरक्षण को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों का आयोजन और प्रोत्साहन करना।
पृथ्वी दिवस की शुरुआत कैसे हुई?
पृथ्वी दिवस की नींव 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा रखी गई थी। आज यह वैश्विक आंदोलन का रूप ले चुका है जिसमें विश्व के विभिन्न देशों में होने वाली घटनाएँ और गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
पृथ्वी दिवस की सर्वप्रथम कल्पना अमेरिकी पॉलिटिशियन और पर्यावरण एक्टिविस्ट सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन द्वारा की गई थी। वह तत्कालीन समय के बढ़ते पर्यावरण सम्बंधित मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूकता और कार्यवाही को समर्पित एक दिन की कल्पना करते थे।
सबसे पहला पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया था। इसकी वजह से आधुनिक पर्यावरण आंदोलन एक नई चाल में ढला। पृथ्वी दिवस की वजह से पर्यावरण संरक्षण के लिए लाखों लोगों का एक- साथ आना संभव हुआ।
पृथ्वी दिवस 2023 की थीम
हर साल पृथ्वी दिवस एक निर्धारित थीम के तहत मनाया जाता है। इस साल 2023 में पृथ्वी दिवस की थीम है – “ हमारे ग्रह में निवेश करें ” यानि Invest in Our Planet रखी गई है। यह थीम पृथ्वी दिवस के वैश्विक आयोजक Earth Day.org (EDO) द्वारा घोषित की गई है। यह थीम व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और व्यवसायों को प्राथमिकता देने और वर्तमान के साथ- साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह की रक्षा और संरक्षण की दिशा में कार्रवाई करने का सन्देश देती है।
पृथ्वी दिवस पर कविता
“सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।”
~ हरिवंशराय बच्चन
ग्रह-ग्रह पर लहराता सागर
ग्रह-ग्रह पर धरती है उर्वर,
ग्रह-ग्रह पर बिछती हरियाली,
ग्रह-ग्रह पर तनता है अम्बर,
ग्रह-ग्रह पर बादल छाते हैं, ग्रह-ग्रह पर है वर्षा होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
पृथ्वी पर भी नीला सागर,
पृथ्वी पर भी धरती उर्वर,
पृथ्वी पर भी शस्य उपजता,
पृथ्वी पर भी श्यामल अंबर,
किंतु यहाँ ये कारण रण के देख धरणि यह धीरज खोती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
सूर्य निकलता, पृथ्वी हँसती,
चाँद निकलता, वह मुसकाती,
चिड़ियाँ गातीं सांझ सकारे,
यह पृथ्वी कितना सुख पाती;
अगर न इसके वक्षस्थल पर यह दूषित मानवता होती।
सब ग्रह गाते, पृथ्वी रोती।
~ हरिवंशराय बच्चन
धीरे-धीरे नष्ट करते हैं
~ रामकुमार तिवारी
जगहें घिरी हैं
कुछ दूर जाता हूँ
होता हूँ इस तरह खड़ा
एक पूरी दिशा में होती है मेरी पीठ
अनजाने में खुले को घेरता हूँ
पाते-पाते खोता हूँ
धीरे-धीरे धरती
जल्दी-जल्दी आकाश
भाग-भाग कर पुकारता हूँ जीवन
देख-भाल कर करता हूँ प्यार
चाहता हूँ
मेरी वजह से सुंदर हो यह दुनिया
कैसी चाहत है हमारी
जिसे चाहते हैं उसे
धीरे-धीरे नष्ट करते हैं
पृथ्वी का मंगल हो
~ अशोक वाजपेयी
सुबह की ठंडी हवा में
अपनी असंख्य हरी रंगतों में
चमक-काँप रही हैं
अनार-नींबू-नीम-सप्रपर्णी-शिरीष-बोगेनबेलिया-जवाकुसुम-सहजन की पत्तियाँ :
धूप उनकी हरीतिमा पर निश्छल फिसल रही है :
मैं सुनता हूँ उनकी समवेत प्रार्थना :
पृथ्वी का मंगल हो!
एक हरा वृंदगान है विलम्बित वसंत के उकसाए
जिसमें तरह-तरह के नामहीन फूल
स्वरों की तरह कोमल आघात कर रहे हैं :
सब गा-गुनगुना-बजा रहे हैं
स्वस्तिवाचन पृथ्वी के लिए।
साइकिल पर एक लड़की लगातार चक्कर लगा रही है
खिड़कियाँ-बालकनियाँ खुली हैं पर निर्जन
एकांत एक नए निरभ्र नभ की तरह
सब पर छाया हुआ है
पर धीरे-धीरे बहुत धीमे बहुत धीरे
एकांत भी गा रहा है पृथ्वी के लिए मंगलगान।
घरों पर, दरवाज़ों पर
कोई दस्तक नहीं देता—
पड़ोस में कोई किसी को नहीं पुकारता
अथाह मौन में सिर्फ़ हवा की तरह अदृश्य
हल्के से धकियाता है हर दरवाज़े, हर खिड़की को
मंगल आघात पृथ्वी का।
इस समय यकायक बहुत सारी जगह है
खुली और ख़ाली
पर जगह नहीं है संग-साथ की, मेल-जोल की,
बहस और शोर की, पर फिर भी
जगह है : शब्द की, कविता की, मंगलवाचन की।
हम इन्हीं शब्दों में, कविता के सूने गलियारे से
पुकार रहे हैं, गा रहे हैं,
सिसक रहे हैं
पृथ्वी का मंगल हो, पृथ्वी पर मंगल हो।
पृथ्वी ही दे सकती है
हमें
मंगल और अभय
सारे प्राचीन आलोकों को संपुंजित कर
नई वत्सल उज्ज्वलता
हम पृथ्वी के आगे प्रणत हैं।
पृथ्वी दिवस पर चित्र
यह था पृथ्वी दिवस पर हमारा आर्टिकल। ऐसी ही अन्य रोचक जानकारी के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट के साथ।