UPSC सिविल सर्विसेस प्रीलिम्स एग्जाम 2023 के खिलाफ कुछ असफल कैंडिडेट्स ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि UPSC प्रीलिम्स का पेपर बहुत ही कठिन आया था। परीक्षा में पूछे गए मैथ्स के सवालों का स्तर JEE और CAT जैसे कम्पटीटिव एग्ज़ाम्स के लेवल का था। इसके अलावा अंग्रेजी के प्रश्नों का स्तर भी MA स्तर का था। जबकि प्रीलिम्स एग्जाम का उद्देश्य केवल कैंडिडेट्स की मैथ्स और इंग्लिश की समझ का मूल्यांकन करना आता होता है। इसी को लेकर कुछ कैंडिडेट्स के द्वारा कोर्ट में याचिका दर्ज की गई थी। अब इस सम्बन्ध में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की कैंडिडेट्स की याचिका
दिल्ली हाईकोर्ट ने कैंडिडेट्स के द्वारा UPSC प्रीलिम्स एग्जाम 2023 के खिलाफ दर्ज की गई याचिका को खारिज कर दिया गया है। इस याचिका में कुछ कैंडिडेट्स ने याचिका दायर कर कहा था कि CSAT में पूछे गए मैथ्स और इंग्लिश के क्वेश्चन UPSC सिलेबस से बाहर के थे। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति वी.कामेशवर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि परीक्षा पत्र में क्या शामिल किया जाना चाहिए यह पूरी तरह से अकादमिक विशेषज्ञों का विशिष्ट क्षेत्र है। इसलिए इस बात को आधार बनाकर चुनौती नहीं दी जा सकती कि पेपर में पूछे गए क्वेश्चंस सिलेबस से बाहर के थे।
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कैंडिडेट्स ने कोर्ट के सामने रखा अपना पक्ष
UPSC प्रीलिम्स एग्जाम 2023 के खिलाफ याचिका की सुनवाई के समय हाईकोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कैंडिडेट्स ने कहा कि सीसैट सिलेबस क्लास 10 के लेवल का होना चाहिए जबकि इस बार एग्जाम में इंजीनियरिंग और MBA स्तर के मैथ्स के सवाल पूछे गए थे। ये प्रश्न तो शायद साइंस और मैथ्स बैकग्राउंड के कैंडिडेट्स तो आसानी से हल कर सकते हैं लेकिन आर्ट्स के स्टूडेंट्स के लिए इन प्रश्नों को हल कर पाना बहुत ही मुश्किल है। अत: यह ऐसे कैंडिडेट्स के साथ एक प्रकार से अन्याय है।
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कोर्ट ने कैंडिडेट्स की मांग को बताया आधारहीन
पीठ ने 22 अगस्त 2023 के अपने आदेश में कहा कि क्वेश्चन पेपर पर कैंडिडेट्स द्वारा उठाए गए प्रश्न एकदम आधारहीन हैं। ऐसी याचिका बिलकुल भी तर्कपूर्ण नहीं लगती। यह कहना पर्याप्त होगा कि पेपर में किन प्रश्नों को शामिल किए जाने की आवश्यकता है और उनकी जटिलता का स्तर क्या होगा यह पूरी तरह से परीक्षा से जुड़े विशेषज्ञों पर निर्भर करता है। हमारे सामने इस तरह के निर्णय को समीक्षा में केवल इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि कुछ प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर थे।
पीठ में शामिल जज अनूप कुमार मेंदीरत्ता भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि यह कोर्ट अकादमिक विशेषज्ञों के सोचे समझे निर्णय के खिलाफ तब तक अपील नहीं कर सकती है, जब तक कि वह निर्णय स्पष्ट रूप से मनमाना, दुर्भावपूर्ण या अवैध साबित नहीं हुआ हो। इस प्रकार की कोई भी स्थिति वर्तमान मामले में नहीं दिखाई देती है।
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