Vishnu Prabhakar Poems : विष्णु प्रभाकर की कविताएं, जिन्होंने बनाई हिंदी साहित्य में अपनी अमिट पहचान

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Vishnu Prabhakar Poems in Hindi

विष्णु प्रभाकर की कविताएं युवाओं को राष्ट्रवाद की परिभाषा बताकर सामाजिक उत्थान के लिए प्रेरित करती हैं। विष्णु प्रभाकर हिंदी साहित्य के उन प्रसिद्ध लेखकों में से एक थे, जिन्होंने अपने जीवन में अनेक लघु कथाएँ, उपन्यास, नाटक और यात्रा वृत्तांत लिखे। समाज को जागरूक करती विष्णु प्रभाकर की रचनाएं समाज को देशभक्ति, राष्ट्रवाद और सामाजिक उत्थान के संदेश देती हैं, ये रचनांए आज के समय में भी पूरी तरह से प्रासंगिक हैं। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को विष्णु प्रभाकर की कविताएं पढ़कर मातृभूमि को सशक्त और समृद्ध करने के लिए समर्पित हो जाना चाहिए। इस ब्लॉग में आप विष्णु प्रभाकर की कविताएं (Vishnu Prabhakar Poems in Hindi) पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करेंगी।

विष्णु प्रभाकर की कविताएं – Vishnu Prabhakar Poems in Hindi

विष्णु प्रभाकर की कविताएं (Vishnu Prabhakar Poems in Hindi) आपको देशभक्ति से ओतप्रोत कर देंगी, विष्णु प्रभाकर की रचनाएं नीचे दी गई सूची में सूचीबद्ध है-

कविता का नामकवि का नाम
प्रिय आत्मनविष्णु प्रभाकर
मौन ही मुखर हैविष्णु प्रभाकर
आग का अर्थविष्णु प्रभाकर
एक छलावाविष्णु प्रभाकर
शब्द और शब्दविष्णु प्रभाकर
कड़वा सत्यविष्णु प्रभाकर
निकटताविष्णु प्रभाकर

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प्रिय आत्मन

विष्णु प्रभाकर की कविताएं (Vishnu Prabhakar Poems in Hindi) समाज को संगठित करके समाजिक उत्थान का प्रयास करेंगी, विष्णु प्रभाकर की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “प्रिय आत्मन” है जो कुछ इस प्रकार है:

धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम
लो आ गया एक और नया वर्ष
ढोल बजाता, रक्त बहाता
हिंसक भेड़ियों के साथ
ये वे ही भेड़िए हैं
डर कर जिनसे
की थी गुहार आदिमानव ने
अपने प्रभु से-

'दूर रखो हमें हिंसक भेड़ियों से'
हाँ, ये वे ही भेड़िए हैं
जो चबा रहे हैं इन्सानियत इन्सान की
और पहना रहे हैं पोशाकें उन्हें
सत्ता की, शैतान की, धर्म की, धर्मान्धता की
और पहनकर उन्हें मर गया आदमी
सचमुच

जीव उठी वर्दियाँ और कुर्सियाँ
जो खेलती हैं नाटक
सद्भावना का, समानता का
निकालकर रैलियाँ लाशों की,
मुबारक हो, मुबारक हो,
नई रैलियों का यह नया युग
तुमको, हमको और उन भेड़ियों को भी
सबको मुबारक हो,
धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधम

-विष्णु प्रभाकर

मौन ही मुखर है

विष्णु प्रभाकर की कविताएं मौन की मुखरता का भी एक विशेष ढंग से चित्रण करती हैं, विष्णु प्रभाकर की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “मौन ही मुखर है” है जो कुछ इस प्रकार है:

कितनी सुन्दर थी
वह नन्हीं-सी चिड़िया
कितनी मादकता थी
कण्ठ में उसके
जो लाँघ कर सीमाएँ सारी
कर देती थी आप्लावित
विस्तार को विराट के

कहते हैं
वह मौन हो गई है-
पर उसका संगीत तो
और भी कर रहा है गुंजरित-
तन-मन को
दिगदिगन्त को

इसीलिए कहा है
महाजनों ने कि
मौन ही मुखर है,
कि वामन ही विराट है।

-विष्णु प्रभाकर

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आग का अर्थ

इस ब्लॉग में लिखित की लोकप्रिय श्रेणी में “आग का अर्थ” भी शामिल है, जो कुछ इस प्रकार है:

मेरे उस ओर आग है,
मेरे इस ओर आग है,
मेरे भीतर आग है,
मेरे बाहर आग है,
इस आग का अर्थ जानते हो?

क्या तपन, क्या दहन,
क्या ज्योति, क्या जलन,
क्या जठराग्नि-कामाग्नि,
नहीं! नहीं!!!
ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
जीवन की पाठशाला के नहीं,

जैसे जीवन,
वैसे ही आग का अर्थ है,
संघर्ष,
संघर्ष- अंधकार की शक्तियों से
संघर्ष अपने स्वयं के अहम् से
संघर्ष- जहाँ हम नहीं हैं वहीं बार-बार दिखाने से
कर सकोगे क्या संघर्ष?
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से?

पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
नहीं कर सके तो
लपलपाती लपटें-ज्वालामुखियों की
रुद्ररूपां हुंकारती लहरें सातों सागरों की,
लील जाएँगी आदमी
और
आदमीयत के वजूद को

शेष रह जाएगा, बस वह
जो स्वयं नहीं जानता
कि
वह है, या नहीं है।
हम
हम प्रतिभा के वरद पुत्र

हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते ब्लात्कार
देते उपदेश ब्रह्मचर्य का
हर संध्या को
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम दिन भर करते पोषण
जातिवाद का
निर्विकार निरपेक्ष भाव से
करते उद्घाटन
सम्मेलन का
विरोध में वर्भेगद के
हर संध्या को

हम प्रतिभा के वरद पुत्र
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम जनता के चाकर सेवक
हमें है अधिकार
अपने बुत पुजवाने का
मरने पर
बनवाने का समाधि
पाने को श्रद्धा जनता की।

हम जनता के चाकर
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
जनता भूखी मरती है
मरने दो
बंगलों में बैठ हमें
राजसी भोजन करने दो, राजभोग चखने दो
जिससे आने पर अवसर
हम छोड़ कर चावल
खा सकें केक, मुर्ग-मुसल्लम

हम नेताओं के वंशज
हम सिद्धहस्त आत्मगोपन में
हम प्रतिपल भजते
रघुपति राघव राजा राम
होते हैं जिसके अर्थ
चोरी हिंसा तेरे नाम

-विष्णु प्रभाकर

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एक छलावा

विष्णु प्रभाकर की कविता “एक छलावा” को Vishnu Prabhakar Poems in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार है:

बापू !
तुम मानव तो नहीं थे
एक छलावा थे
कर दिया था तुमने जादू
हम सब पर
स्थावर-जंगम, जड़-चेतन पर
तुम गए—
तुम्हारा जादू भी गया
और हो गया
एक बार फिर
नंगा।
यह बेईमान
भारती इनसान।

-विष्णु प्रभाकर

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शब्द और शब्द

विष्णु प्रभाकर की कविताएं (Vishnu Prabhakar Poems in Hindi) शब्दों की शक्ति और भावनाओं की भक्ति को एक विशेष ढंग से प्रस्तुत करती हैं। विष्णु प्रभाकर की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “शब्द और शब्द” है जो कुछ इस प्रकार है:

समा जाता है
श्वास में श्वास
शेष रहता है
फिर कुछ नहीं
इस अनंत आकाश में
शब्द ब्रह्म ढूँढ़ता है
पर-ब्रह्म को

शब्द में अर्थ नहीं समाता
समाया नहीं
समाएगा नहीं
काम आया है वह सदा
आता है
आता रहेगा
उछालने को
कुछ उपलब्धियाँ
छिछली अधपकी

-विष्णु प्रभाकर

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कड़वा सत्य

Vishnu Prabhakar Poems in Hindi की श्रेणी में एक लोकप्रिय कविता “कड़वा सत्य” भी है। यह कविता जीवन के कड़वे सत्य को भी सरलता से कहने का प्रयास करती है, जो कुछ इस प्रकार है:

एक लंबी मेज
दूसरी लंबी मेज
तीसरी लंबी मेज
दजीवारों से सटी पारदर्शी शीशेवाली अलमारियाँ
मेजों के दोनों ओर बैठे हैं व्यक्ति
पुरुष-स्त्रियाँ
युवक-युवतियाँ
बूढ़े-बूढ़ियाँ
सब प्रसन्न हैं

कम-से-कम अभिनय उनका इंगित करता है यही
पर मैं चिंतित हूँ
देखकर उस वृद्धा को
जो कभी प्रतिमा भी लावण्य की
जो कभी तड़प थी पूर्व राग की
क्या ये सब युवतियाँ
जो जीवन उँड़ेल रही हैं
युवक हृदयों में
क्या ये सब भी
बूढ़ी हो जाएँगी
देखता हूँ पारदर्शी शीशे में
इस इंद्रजाल को
सोचता हूँ—
सत्य सचमुच कड़वा होता है।

-विष्णु प्रभाकर

निकटता

Vishnu Prabhakar Poems in Hindi की श्रेणी में एक लोकप्रिय कविता “निकटता” भी है। यह कविता एक लघु कविता है, जो कुछ इस प्रकार है:

त्रास देता है जो
वह हँसता है
त्रसित है जो
वह रोता है
कितनी निकटता है
रोने और हँसने में

-विष्णु प्रभाकर

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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप Vishnu Prabhakar Poems in Hindi (विष्णु प्रभाकर की कविताएं) पढ़ पाए होंगे, विष्णु प्रभाकर की कविताएं युवाओं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करेंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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