कवि और उनके द्वारा लिखी गई कविताएं समाज का आईना होती हैं, सुख हो या दुःख, तमस हो या उजाला या फिर कोई पर्व ही क्यों न हो, कविताएं के माध्यम से मानव अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त कर पाता है। कविताएं ही मानव को सही दिशा दिखाती हैं, कविताएं ही जीवन के हर पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाना सिखाती हैं। इसी क्रम में Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप इस दिवाली अपने परिजनों और मित्रों के साथ कुछ खास कविताएं साझा कर सकते हैं, जिसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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कब है दीवाली?
दिवाली खुशियों के आगमन का एक पर्व है, यह पर्व अन्याय पर न्याय की जय का पर्व है। इस दिन भगवान राम वनवास को समाप्त करके अयोध्या धाम पधारे थे, इसी उपलक्ष में अयोध्यावासियों ने नगर में दीपोत्सव मनाया था। इस वर्ष रविवार के दिन 12 नवंबर 2023 को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा, इस पर्व को हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा पूरे विधि विधान और हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
Poem on Diwali in Hindi
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर आधारित कविताएँ पढ़ पाएंगे, इन कविताओं में पर्व का उल्लास और जीवन को प्रेरित करने वाले एहसास समाहित होंगे। ऐसी कुछ कविताएं निम्नलिखित हैं :
दिया और बाती
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दिया और बाती को पढ़ पाएंगे। यह कविता आपको दिया और बाती के बीच के संबंध के माध्यम से, दिवाली के पर्व की शुभकामनाएं देगी।
“जीवन में जब-जब तमस अपनी मर्यादा लांघता है
तब-तब उत्साह भी अंतर्मन में खुलकर झांकता है
खुशियों का नाता मानव से
जीवनभर ऐसा होता है
दिया और बाती का जैसे
मिलन प्रकाशित होता है
तकलीफों का तमस मिटाकर
खुशियों का स्वागत करता है
एक दिया बाती से मिलकर
उत्साह की भाषा कहता है
जीवन के हर एक पहलु में
खुश रहना हमें सिखाता है
दिया और बाती का मिलन,
दुखी मन को भी हंसाता है…”
–मयंक विश्नोई
जगमग-जगमग
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर आधारित कविताओं को पढ़ सकते हैं, जिसमें से “जगमग-जगमग” भी एक प्रसिद्ध कविता है।
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!
पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!
राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
–सोहनलाल द्विवेदी
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर रचित कविता “आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ” को पढ़ सकते हैं, यह भी एक सुप्रसिद्ध कविता है।
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,
है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
मैं तपोमय ज्योति की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,
किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ।
–हरिवंशराय बच्चन
आओ फिर से दिया जलाएं
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर रचित कविता “आओ फिर से दिया जलाएं” को पढ़ सकते हैं, जो प्रेरणा से भर देगी।
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोह-जाल में
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
–अटल बिहारी वाजपेयी
दीप से दीप जले
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर रचित कविता “दीप से दीप जले” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने बचपन के किस्सों को प्रस्तुत करेगी।
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।
वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।
–माखनलाल चतुर्वेदी
दीपदान
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर रचित कविता “दीपदान” को पढ़ सकते हैं, यह कविता दिए के जगमग प्रकाश से आपका परिचय कराएंगी।
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल
बार-बार उलझ जाती हैं,
एक दिया वहाँ भी जलाना;
जाना, फिर जाना,
एक दिया वहाँ जहाँ नई-नई दूबों ने कल्ले फोड़े हैं,
एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
अभी-अभी पहली ही पंखड़ी बस खोली है,
एक दिया उस लौकी के नीचे
जिसकी हर लतर तुम्हें छूने को आकुल है
एक दिया वहाँ जहाँ गगरी रक्खी है,
एक दिया वहाँ जहाँ बर्तन मँजने से
गड्ढा-सा दिखता है,
एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
नये चावल का गंधभरा पानी फैला है,
एक दिया उस घर में –
जहाँ नई फसलों की गंध छटपटाती हैं,
एक दिया उस जंगले पर जिससे
दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
एक दिया वहाँ जहाँ झबरा बँधता है,
एक दिया वहाँ जहाँ पियरी दुहती है,
एक दिया वहाँ जहाँ अपना प्यारा झबरा
दिन-दिन भर सोता है,
एक दिया उस पगडंडी पर
जो अनजाने कुहरों के पार डूब जाती है,
एक दिया उस चौराहे पर
जो मन की सारी राहें
विवश छीन लेता है,
एक दिया इस चौखट,
एक दिया उस ताखे,
एक दिया उस बरगद के तले जलाना,
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
जाना, फिर जाना!
–केदारनाथ सिंह
बुझे दीपक जला लूँ
Poem on Diwali in Hindi के माध्यम से आप दीवाली पर रचित कविता “बुझे दीपक जला लूँ” को पढ़ सकते हैं, यह कविता आपको साहित्य से जोड़ने के साथ-साथ, आप तक सकारात्मकता का अच्छा सन्देश भी पहुचायेगी।
सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!
भीत तारक मूँदते दृग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता,
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!
लय बनी मृदु वर्त्तिका
हर स्वर जला बन लौ सजीली,
फैलती आलोक-सी
झंकार मेरी स्नेह गीली,
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!
देख कर कोमल व्यथा को
आँसुओं के सजल रथ में,
मोम-सी साधें बिछा दी
थीं इसी अंगार-पथ में
स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!
अब तरी पतवार ला कर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना !
ज्वार को तरणी बना मैं; इस प्रलय का पार पा लूँ!
आज दीपक राग गा लूँ !
–महादेवी वर्मा
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