बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था एवं योगदान और मृत्यु 

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बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था

बिरसा मुंडा एक प्रसिद्ध आदिवासी आंदोलनकारी और क्रांतिकारी थे। वे छोटी आयु से ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ बोलने लगे थे। वे बचपन से ही ब्रिटिश शासन विरोधी गतिविधियों में भाग लेने लगे थे। यहाँ बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। 

बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था? 

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची के पास उलिहातु नामक गांव में हुआ था। वे आदिवासी समुदाय से आते थे। उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया था। उनका नाम देश के महान स्वतंत्रता वीरों में लिया जाता है। 

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आज़ादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा का योगदान  

बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था में अब जानिए बिरसा मुंडा का आज़ादी की लड़ाई में योगदान: 

  • जनजातीय अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए उन्होंने आन्दोलनों का नेतृत्व किया। 
  • उन्होंने धार्मिक आन्दोलनों का भी नेतृत्व किया। 
  • उन्हें 1900 में अंग्रेजों के द्वारागिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। 
  • उनकी विरासत भारत में जनजातीय अधिकारों और सामाजिक न्याय पर चर्चा को प्रेरित और आकार देती रही है।

बिरसा मुंडा का विद्रोह 

बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था में अब जानिए बिरसा मुंडा के विद्रोह के बारे में: 

  • बिरसा मुंडा ने आदिवासी युवाओं को इकठ्ठा करके अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया था। 
  • उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए पारंपरिक हथियारों और गुरिल्ला युद्ध नीति का प्रयोग किया था 
  • उन्होंने समय के साथ साथ बड़ी संख्या में अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी युवाओं को संगठित कर लिया और स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती प्रदान की। 

बिरसा मुंडा की मृत्यु 

बिरसा मुंडा का जन्म कब हुआ था में अब जानिए बिरसा मुंडा की मृत्यु कैसे हुई: 

  • बिरसा मुंडा के सक्रीय नेतृत्व ने अंगरेजी शासन की नींद हराम कर दी थी। वर्ष 1900 में अंग्रेजों ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। 
  • उन्हें कारावास की सजा दी गई और रांची जेल में भेज दिया गया। 
  • जेल में वे गंभीर रूप से बीमार हो गए और ठीक से उपचार न मिल पाने के कारण वर्ष 1901 में केवल 25 वर्ष की युवा अवस्था में इस महान क्रांतिकारी ने देश की सेवा करते हुए जेल में ही पाने प्राणों का बलिदान दे दिया। 

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