Basant Panchami Poem in Hindi: प्रकृति की सुंदरता और उल्लास का उत्सव मनाती बसंत पंचमी पर कविता

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Basant Panchami Poem in Hindi

Basant Panchami Poem in Hindi: बसंत पंचमी का पर्व हमारे जीवन में खुशियों का संचार करता है। भारतीय संस्कृति में इस दिन का विशेष महत्व होता है, जिसमें विशेष तौर पर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बता दें कि देवी सरस्वती, ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं। बसंत पंचमी का पर्व भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और यह दिन हमें नए सिरे से जीवन में उमंग और ऊर्जा का अहसास कराता है। इस दिन प्रकृति के रंग बदलते हैं, और हरियाली की छटा चारों ओर फैल जाती है। बसंत पंचमी पर विशेष रूप से पीले रंग की अहमियत है, जो खुशी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस लेख में आपके लिए बसंत पंचमी पर कविता (Basant Panchami Poem in Hindi) दी गई हैं, जो आपको इस पर्व की महिमा के बारे में बताता है।

बसंत पंचमी पर कविता – Basant Panchami Poem in Hindi

बसंत पंचमी पर कविता (Basant Panchami Poem in Hindi) पढ़कर आप इस ऋतु के बारे में जान पाएंगे। बसंत पंचमी पर कविता की सूची निम्नलिखित हैं –

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
बसंत पंचमीमयंक विश्नोई
आज बसंत पंचमी का दिनसरोजिनी कुलश्रेष्ठ
नवजीवनमयंक विश्नोई
बसन्त पंचमीनित्यानंद पांडेय
संगीत की मधुरतामयंक विश्नोई
बसन्त पंचमीकृष्णदेव प्रसाद
ज्ञान का दीपकमयंक विश्नोई
नई शुरुआतमयंक विश्नोई

बसंत पंचमी

बसंत पंचमी का पर्व ज्ञान का प्रतीक है
खुशहाली का आगमन है, बसंत की बहार है

उत्सव का स्वागत भव्य और सटीक है
ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित संसार है

मानव को मानवता का पाठ पढ़ाता है
यही वो पर्व है जो करता जग का उद्धार है

अज्ञानता का नाश कर ज्ञान को बढ़ाता है
बसंत ऋतु का अपना सकारात्मक व्यवहार है

विद्या के बल पर साहस का सृजन करता है
सनातन है-शाश्वत है, यही पुण्य संस्कार है

परिश्रम की माटी में सफलता का बीज बोता है
खुशियों का यह पर्व मानो जय की पुकार है

यह पर्व निरंतर प्रकृति की महिमा गाता है
आशाओं का नया आयाम है, यह सृष्टि का श्रृंगार है...”

- मयंक विश्नोई

आज बसंत पंचमी का दिन

जागो बेटी देखो उठकर
कैसा उजला हुआ सवेरा
कोयल कुह-कुह बेल रही है
स्वागत करती है यह तेरा

आज बसंत पंचमी का दिन
पूजेंगे सब सरस्वती को
विद्या कि देवी है यह तो
देती है वरदान सभी को

उठो अभी मंजन कर लो तुम
फिर तुमको नेहलाऊँगी
बासनती कपड़े पहनकर
चन्दन तिलक लगाऊँगी

पूजा करके हम तीनों ही
पीले चावल खायेंगे
दादा बांटेंगे प्रसाद तो
सब ही मिलकर पायेंगे।

उसके बाद सैर करने को
हम बगिया में जायेंगे
सरसों फूली बौर आम में
देख देख सुख पायेंगे

नीलकंठ पक्षी भी हमको
दर्शन देने आयेगा।
आज बसन्त पंचमी का दिन
तभी सफल हो पायेगा।

- सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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नवजीवन

बसंत पंचमी पर कविता
अज्ञानता का तमस मिटाकर
जग को ज्ञान का मार्ग दिखाकर
यह पर्व है नवजीवन जैसा,
जो बनाता विचारों को अमृत का पेय पिलाकर

अतीत के साए को त्यागकर
आशाओं के साथ नींदों से जागकर
यह पर्व है नवजीवन जैसा,
जो लाता है खुशियां सीमाएं सारी लांघकर

बसंत ऋतु एक उत्सव है
जो ऊर्जाओं को संगठित करता है
यह पर्व है नवजीवन जैसा,
जो सपनों में नए रंग भरता है

जीवन में मिले हर लम्हें को स्वीकार कर
उदास चेहरों पर खुशियों का श्रृंगार कर
यह पर्व है नवजीवन जैसा,
जो जगाता है समाज को एक नई हुंकार भर

- मयंक विश्नोई

बसन्त पंचमी

आ गये बसंत पंचमी, तोर मान बड़ाई कोन करै
द्वापरजुग के कुरक्षेत्र होईस एक महाभारत
कौरव मन के नाश कर देईस अर्जुन वान मा मारत।
बड़का बड़का का बीर ढलंग गे बेच बचाव ल कौन करे।।

तहूं सुने होवे भारत म रेल मा कतका मारिन मनखे
ओकर दुख ल नई भुलायेन भुईया धसकगे मरंगे मनखे।
बरफ गिरे ले अकड़िन कतका, तेकर गिनती कौन करै।।

अर्जुन नई हे अब द्वापर के शब्द ला सुन के मारै बान
कलिजुग के अर्जुन लंग नई हे ओ गांडीव तीर कमान।
बान चलावत बाया भुलागे, दांवाला कोन शांत करै।।

चारो कती ले देश घेराये, जगह जगह मां कांटा हे
राजनीति के हार जीत मा काकर कतका बांटा है।
तहीं बता अब बसन्त पंचमी तोर मान बड़ाई कौन करै।।

शिशिर लगे, सिसियात हे कोईली ठंडा मा कठुवाये
सेम्हर अभी न फूले संगी मौहा नई कुचियाये।
मलयागिर के पवन महकही तब मान बड़ाई नित्य करै
आ गये बसन्त पंचमी तोर मान बड़ाई कौन करै।।

- नित्यानंद पांडेय

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संगीत की मधुरता

वातावरण में संगीत की मधुरता है
रिश्तों में घुली है आनंद की मिठास
बसंत ऋतु का आगमन है ऐसा
कि दिशाएं दिलाती है जग को विशवास

माँ सरस्वती की वंदना में डूबा समाज है
ज्ञान की प्राप्ति के लिए जिसका पवित्र एहसास है

खुशहाली है हर कहीं आशाओं का पवित्र आयाम है
बसंत पंचमी का पर्व सृष्टि के लिए बहुत खास है

समाज को ज्ञान मार्ग दिखाता है
समर्पण का यह पर्व मानव को खुश रहना सिखाता है
संगीत की मधुरता के साथ-साथ,
यह पवित्र पर्व अज्ञानता के अंधकार मिटाता है

ऋतुओं के माध्यम से ही
मानव भावनाओं की अनुभूति कर पाता है
संभावनाओं में बढ़ोत्तरी कर,
यह पर्व मानव को संगठित कर पाता है

- मयंक विश्नोई

बसन्त पंचमी

सिसिर के हो गेल अन्त,
कोइलिया कुंहुकि पुकारे॥

माघ पंचमी सुदि पहुंचल आ
आज से होत बसन्त॥

तृन तरु डोले पंछी बोले
पवन किलोले दिगन्त॥

कुरचइ चिंउँ चिंउँ मुदित मयनमा
जग में सुखी सब जन्त॥

स्वागत रितु, वन, पवन, पखेरु
स्वागत सबके अनन्त॥

नर नारी मिल फाग जगावे
होली चाहे बसन्त॥

कृष्ण अबीर गुलाल उड़ावे
सुख प्रगटे एही पंथ॥

- कृष्णदेव प्रसाद

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ज्ञान का दीपक

Basant Panchami Poem in Hindi
ज्ञान का दीपक करता है मानव का कल्याण
इसी दीपक से होता है नर के सपनों का निर्माण

ज्ञान का दीपक बनता प्रतीक खुशहाली का
ज्ञान के दीपक से होता है नाश बदहाली का

आशावादी उमंगों होता है जिससे संचार
वही ज्ञान का दीपक करता है प्रबल विचार

जिसके प्रकाशित होने से होता है अज्ञानता का नाश
उसी ज्ञान के दीपक का पवित्र होता प्रकाश

जीवन में समृद्धि लाता बसंत पंचमी का त्यौहार
इसी पर्व के उत्साह में मगन रहता है ये संसार

- मयंक विश्नोई

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नई शुरुआत

पतझड़ ऋतु के बाद ही समय बसंत का आता है
बसंत पंचमी में प्रकृति का कोना-कोना गुनगुनाता है

शाखाओं पर पत्ते आते हैं, सुमन आशाओं के खिल जाते हैं
मिल जाता है जीवन का लक्ष्य नया, अपनों से सपने मिल जाते हैं

मौसम भी जैसे कोई मधुर संगीत सुनाता है
जीवन का हर लम्हा इसका मोल चुकाता है

मौसम बसंत का निराशाओं को निगलता है
आशाओं का आँचल प्रकृति से जा मिलता है

सपनों को नई उड़ान देता है, यह त्यौहार खुशियों को पहचान देता है
ये एक नई शुरुआत है, जिसमें मौसम सफलताओं को सम्मान देता है

- मयंक विश्नोई

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