शैल चतुर्वेदी की कविताएं पढ़कर युवाओं को हिंदी साहित्य की गहराई से समझ हो सकती है, सही मायनों में आज भी शैल चतुर्वेदी की कविताएं समाज का मार्गदर्शन करने का कार्य करती है। शैल चतुर्वेदी एक ऐसे कवि हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। यह कहना कुछ गलत न होगा कि कविताएं समाज को साहसिक और निडर बनाती हैं, कविताएं मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। इस ब्लॉग में आपको Shail Chaturvedi ki Kavitayen (शैल चतुर्वेदी की कविताएं) पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, उनकी कविताएं आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी, जिसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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कौन हैं शैल चतुर्वेदी?
Shail Chaturvedi ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको शैल चतुर्वेदी का जीवन परिचय होना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कवि शैल चतुर्वेदी जी भी थे, शैल चतुर्वेदी एक हिंदी कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार और अभिनेता भी थे। इनका लेखन विषम से विषम परिस्थितियों पर व्यंगात्मक वार करता है। शैल चतुर्वेदी का जन्म 29 जून 1936 को, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में हुआ था।
शैल चतुर्वेदी जी को 70 और 80 के दशक में अपने राजनीतिक व्यंग्य के लिए खूब ख्याति प्राप्त थी। उनकी कविताएं उस समय के माहौल में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणी करती थीं। इसी क्रम में उन्होंने कई हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियलों में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया, जिनमें “उपहार”, “चितचोर”, “चमेली की शादी” और “श्रीमान श्रीमती” प्रमुख थे।
शैल चतुर्वेदी जी का हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान रहा है, जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें “साहित्य अकादमी पुरस्कार” और “पद्मश्री” प्रमुख हैं। एक महान व्यक्तित्व वाले आशावादी कवि और कलाकार शैल चतुर्वेदी जी के जीवन का अभिनय 29 अक्टूबर 2007 को पूरा हुआ और इस दिन वह सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए।
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कार सरकार
Shail Chaturvedi ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, शैल चतुर्वेदी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “कार सरकार” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
नए-नए मंत्री ने अपने ड्राइवर से कहा— ‘आज कार हम चलाएँगे।’ ड्राइवर बोला— ‘हम उतर जाएँगे हुज़ूर, चलाकर तो देखिए आपकी आत्मा हिल जाएगी यह कार है, सरकार नहीं जो भगवान के भरोसे चल जाएगी।’
-शैल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि अपनी व्यंग से भारतीय राजनीति के उस दौर का चित्रण करते हैं, जिस दौर में गठजोड़ की सरकारें भारत जैसे महान राष्ट्र के लिए नीतियां तैयार करतीं थी। कवि ने कविता में बताया है कि अपनी महत्वकांक्षा के चलते नेताओं में देश को पीछे रखकर सरकार चलाने की होड़ का मचना गलत बात है क्योंकि नेताओं को सरकारों को भगवान भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। यह कविता लोकतंत्र को मजबूत करने और लोकतंत्र में बहुमत के महत्व को बताने के लिए लिखी गई है।
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भविष्य
Shail Chaturvedi ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, शैल चतुर्वेदी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “भविष्य” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
डाक्टर ने पोपटलाल से कहा- "आप लाल तिकोन के पक्ष में हैं ये मैंने माना मगर अभी तो आपके दो ही बच्चे हैं तीसरा हो लेने दो तब आना।" भविष्य पोपटलाल बोला- "डाक्टर साहब, बचाइए दो ही काफ़ी हैं तीसरा नहीं चाहिए एक मीर ज़ाफर और दूसरा जयचंद है एक नेता और दूसरा जेल में बंद है मैंने औलाद का कोई सुख नहीं भोगा और ज्योतिषी ने बताया है तीसरा कवि होगा।
-शैल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि शैल चतुर्वेदी भविष्य के प्रति मनुष्य की जिज्ञासा, अनिश्चितता और आशंकाओं को व्यक्त करने का सफल प्रयास करते हैं। यह कविता मानव को निरंतर संघर्ष करने अथवा निरंतर कर्म करने के लिए प्रेरित करती है, इस कविता में कवि ने कविता जीवन के अनिश्चित स्वरूप और भविष्य के प्रति मनुष्य के द्वंद्वात्मक भावों को दर्शाया है। यह कविता मानव को भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।
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शायरी का इंक़लाब
Shail Chaturvedi ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, शैल चतुर्वेदी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “शायरी का इंक़लाब” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
एक दिन अकस्मात एक पुराने मित्र से हो गई मुलाकात कहने लगे-"जो लोग कविता को कैश कर रहे है वे ऐश कर रहे हैं लिखने वाले मौन है श्रोता तो यह देखता है कि पढ़ने वाला कौन है लोग-बाग चार-ग़ज़लें और दो लोक गीत चुराकर अपने नाम से सुना रहे हैं भगवान ने उन्हे ख़ूबसूरत बनाया है वे ज़माने को बेवकूफ़ बना रहे हैं सूरत और सुर ठीक हो तो कविता लाजवाब है यही शायरी का इंक़लाब है उर्दू का रिजेक्टेड माल हिन्दी में चल रहा है चोरों के भरोसे ख़ानदान पल रहा है ग़ज़ल किसी की फ़सल किसी की भला किसी का एक लोकल कवि की लाइन अखिल भारतीय ने मार दी लोकल चिल्लाया "अबे, चिल्लाता क्यों है तेरी लोकल लाइन को अखिल भारतीय बना दिया सारे देश में घुमा दिया
-शैल चतुर्वेदी
भावार्थ : यह कविता एक व्यंगात्मक ढंग से लिखी गयी एक ऐसी कविता है जो शायरी का इंकलाब बनने का प्रयास करती है। यह कविता एक ऐसी परिस्थिति को दर्शाती है जहाँ साहित्य का सही क्रेडिट एक सही साहित्यकार को नहीं देना पड़ता है। यह कविता नए लेखकों को इस क्षेत्र की अधिक जानकारी देगा और उन्हें प्रेरित करने का कार्य करेगा।
एक से एक बढ़ के
Shail Chaturvedi ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, शैल चतुर्वेदी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “एक से एक बढ़ के” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
“हमारे एक फ्रैंड हैं सूरत-शक्ल से बिल्कुल इंग्लैंड हैं एक दिन बोले- "यार तीन लड़के हैं एक से एक बढ़ के हैं एक नेता है हर पाँचवें साल दस-बीस हज़ार की चोट देता है पिछले दस साल से चुनाव लड़ रहा है नहीं बन पाया सड़ा-सा एम.एल.ए. बोलो तो कहता है- "अनुभव बढ़ रहा है।" पालिटिक्स के चक्कर में बन गया पोलिटिकल घनचक्कर और दूसरा ले रहा है कवियों से टक्कर कविताएँ बनाता है न सुनो तो चाय पिलाकर सुनाता है तीसरा लड़का डॉक्टर है कई मरीज़ो को छूते ही मार चुका है बाहर तो बाहर घर वालों को तार चुका है हरा भरा घर था दस थे खाने वाले कुछ और थे आने वाले केवल पांच रह गए बाकी के सब दवा के साथ बह गए मगर हमारी काकी बड़े-बूढ़ों के नाम पर वही थी बाकी चल फिर लेती थी कम से कम घर का काम तो कर लेती थी जैसे-तैसे जी रही थी कम से कम पानी तो पी रही थी मगर हमारे डॉक्टर बेटे का लगते ही हाथ हो गया सन्निपात बिना जल की मछली-सी फडफडाती रही दो ही दिनों में सिकुड़कर हाफ़ हो गई और तीसरे दिन साफ़ हो गई दुख तो इस बात का है कि हमारी ग़ैरहाज़िरी में मर गई पाला हमने और वसीयत दूसरे के नाम कर गई।"
-शैल चतुर्वेदी
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यहाँ कौन सुखी है
Shail Chaturvedi ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, शैल चतुर्वेदी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “यहाँ कौन सुखी है” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
हमारी शादी को बरसों बीत गए लोग-बाग तो शराब पीना सीख गए मगर हमारी पत्नी ने चाय तक नहीं छुई हमने ज़िद की तो वो बोली- "चाय भी कोई चीज़ है मुई ज़हर है ज़हर है वो भी गिलास भर पीने बैठते हो तो घंटो में खत्म करते हो भगवान जाने कैसे हज़म करते हो पचास बार कहा चाय हज़मा बिगाडती है भूख को मारती है चालीस के हो गए दो रोटी खाते हो मैं ठीक खाती हूँ तो मुझे चिढ़ाते हो क्या इसलिए पंचो के सामने प्रतिज्ञा की थी हमारे बाप ने गाय समझकर दी थी।" हम बैलों की तरह चुपचाप खड़े थे दुम हिलाकर बोले- "चाय नहीं तो दूध ही पिया करो सबेरे-सबेरे कुछ तो लिया करो।" वे बोलीं-"दूध! चाय तो रो-रो कर बनती है आधी दूध और आधी, पानी में छनती है फिल हैं तुम्हारे दूध की भूखी नहीं हूँ गाँव की हूँ गाय और भैसों के बीच में रही हूँ फिर कभी चाय की मत कहना हरग़िज़ नहीं पिउँगी अगर अपनी पर आ गई तो सब की बन्द कर दूंगी।" पिछले साल गर्मियों में दो माह की छुट्टियों में हम जा रहे थे उनके साथ बस में दिल्ली से देहरादून तारीख़ थी दो जून सामने वली सीट पर एक नई नवेली बैठी थी अकेली उदास खिड़की के पास सब आँखे सेंक रहे थे हम तो बस सहानुभूतीवश देख रहे थे तभी पत्नी ने हमें कुहनी मारी हमने सोचा धोखे से लगी है मगर थोड़ी देर बाद उसने हमें नोचा हमने कटकर पीछे पलटकर कहा पत्नी से-"बेचारी दुखी है।" पत्नी बोली-"यहाँ कौन सुखी है ख़बरदार जो उधर देखो देखना है तो इधर देखो।" हम चुप हो गये और आँखे मून्दकर सामने वाली के दुख में खो गए किसी बस स्टाप पर आँख खुली इधर उठी उधर गिरी पत्नी सो रहीं थी और सामने वाली आंसुओ से अपना मुख धो रही थी हम बस से उतरे चाय लेकर वापस लौटे सामने वाली से बोले-"लीजिए रोइए मत चाय पीजिए।" हमारी पत्नी बोली- "मैं इधर हूँ मुझे दीजिए।" हमने पूछा-"चाय और तुम?" वो बोली-"हुम ज़रा सी आँख लग गई तो बात चाय तक पहुँच गई माना की मैं चाय नहीं पीती पानी की पूछते मुँह बांधे बैठी हूँ कुछ तो सोचते खाने हो नहीं मरती मगर ज़िद करते तो ना भी नहीं करती घुमाने लाए हो तो अहसान नहीं किया सभी घुमाते है औरते मुँह से नहीं कहतीं ज़बरदस्ती खिलाते है।" फिर सामने वाली को अंगूठा दिखाकर चाय का कप मुँह से लगाकर चाय! उनके शब्द में ज़हर एक साँस में पी ली बात है साल भर पहले की अब तक पी रहीं है।
-शैल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से शैल चतुर्वेदी जी सांसारिक जीवन में सुख की क्षणभंगुरता और असारता को दर्शाते हैं। यह कविता एक विचारोत्तेजक कविता है, जो हमें जीवन के सच्चे अर्थ पर प्रश्न चिह्न लगाने के लिए मजबूर करती है। इस कविता के माध्यम से कवि मानव को जीवन के वास्तविक मूल्यों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह कविता हमें सिखाती है कि भौतिक सुख क्षणभंगुर होते हैं, जबकि सच्चा सुख आत्मिक शांति और संतोष में मिलता है।
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