रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कभी रचना के समय रहीं होंगी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य की एक ऐसी अनमोल मणि रहें हैं, जिन्होंने युवाओं को हिंदी साहित्य के प्रति आकर्षित किया है। रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं हमेशा से ही समाज को एक दर्पण दिखाने, युवाओं को साहस की भाषा सिखाने और बच्चों के सपनों को सजाने का काम करती आई हैं। इस ब्लॉग में लिखित रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं अवश्य पढ़नी चाहिए, ताकि उनका परिचय देशभक्ति की परिभाषा से हो सके। इस ब्लॉग के माध्यम से आप रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं पढ़ पाएंगे, जो आपको देशहित में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी।
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रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं एक ऐसा माध्यम है, जो युवाओं का परिचय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के लेखन से करवाती हैं। रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं समाज के हर पहलू पर बेबाकी से कवि का पक्ष रखती हैं, लेकिन रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं मजबूती से राष्ट्रहित सर्वोपरि के मंत्र को आत्मसात करती हैं।
कविता का नाम | कवि का नाम |
जवानी का झंडा | रामधारी सिंह दिनकर |
कलम, आज उनकी जय बोल | रामधारी सिंह दिनकर |
वसंत के नाम पर | रामधारी सिंह दिनकर |
प्रभाती | रामधारी सिंह दिनकर |
फलेगी डालों में तलवार | रामधारी सिंह दिनकर |
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जवानी का झंडा
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं युवाओं में देशभक्ति के भाव का सृजन करती हैं, इन कविताओं की सूची में लोकप्रिय कविता “जवानी का झंडा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
घटा फाड़कर जगमगाता हुआ आ गया देख, ज्वाला का बान; खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! सहम करके चुप हो गए थे समुंदर अभी सुनके तेरी दहाड़, ज़मीं हिल रही थी, जहाँ हिल रहा था, अभी हिल रहे थे पहाड़; अभी क्या हुआ? किसके जादू ने आकार के शेरों की सी दी ज़बान? खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! खड़ा हो कि पच्छिम के कुचले हुए लोग उठने लगे ले मशाल, खड़ा हो कि पूरब की छाती से भी फूटने को है ज्वाला कराल! खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा धुर्जटी ने बजाया विषान, खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! गरजकर बता सबको, मारे किसी के मरेगा नहीं हिंद-देश, लहू की नदी तैरकर आ गया है, कहीं से कहीं हिंद-देश! लड़ाई के मैदान में चल रहे लेके हम उसका उड़ता निशान, खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! आह! जगमगाने लगी रात की माँग में रौशनी की लकीर, अहा! फूल हँसने लगे, सामने देख, उड़ने लगा वह अबीर! अहा! यह उषा होके उड़ता चला आ रहा देवता का विमान, खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा, ओ मेरे देश के नौजवान! -रामधारी सिंह दिनकर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि युवाओं को निडरता और उत्साह का मार्ग दिखाने का प्रयास करते हैं, जहाँ से युवाओं को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान हो सके। कविता में कवि जवानी को शक्ति और उत्साह का प्रतीक मानते हैं, जो सभी बाधाओं को पार कर सकती है। इस कविता के माध्यम से कवि अंधविश्वासों और रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़ने तथा नए युग का निर्माण करने के लिए युवाओं का आह्वान करते हैं। इस कविता को ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त करने के लिए आजादी की लड़ाई दौरान वर्ष 1942 में लिखा गया था।
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कलम, आज उनकी जय बोल
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं समाज में राष्ट्रवाद का बीज बोन का सफल प्रयास करती हैं। इस श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “कलम, आज उनकी जय बोल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
जला अस्थियां बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल कलम, आज उनकी जय बोल। जो अगणित लघु दीप हमारे तूफानों में एक किनारे, जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल कलम, आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएं उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल कलम, आज उनकी जय बोल। -रामधारी सिंह 'दिनकर'
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत करने का सफल प्रयास करते हैं। कवि ने इस कविता में उन वीर शहीदों का गुणगान किया है, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। इस कविता में कवि कहते हैं कि कलम, आज उन वीर शहीदों की जय बोल, जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान करके क्रांति की भावना जागृत की और देश में नई चेतना फैलाई। इन शहीदों ने बिना किसी मूल्य के कर्तव्य की पुण्यवेदी पर स्वयं को न्योछावर कर दिया, जिस कारण हम सभी स्वतंत्र हवाओं में सांस ले पा रहे हैं।
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वसंत के नाम पर
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं भारत राष्ट्र को अखंड, सशक्त और समृद्ध करने का प्रयास करती हैं। इस श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “वसंत के नाम पर” भी है, जो निम्नवत है:
प्रात जगाता शिशु वसंत को नव गुलाब दे-दे ताली; तितली बनी देव की कविता वन-वन उड़ती मतवाली। सुंदरता को जगी देखकर जी करता मैं भी कुछ गाऊँ; मैं भी आज प्रकृति-पूजन में निज कविता के दीप जलाऊँ। ठोकर मार भाग्य को फोड़ें, जड़ जीवन तजकर उड़ जाऊँ; उतरी कभी न भू पर जो छवि, जग को उसका रूप दिखाऊँ। स्वप्न-बीच जो कुछ सुंदर हो, उसे सत्य में व्याप्त करूँ, और सत्य-तनु के कुत्सित मल का अस्तित्व समाप्त करूँ। क़लम उठी कविता लिखने को, अंत:स्तल में ज्वार उठा रे! सहसा नाम पकड़ कायर का पश्चिम-पवन पुकार उठा रे! देखा, शून्य कुँवर का गढ़ है, झाँसी की वह शान नहीं है। दुर्गादास-प्रताप बली का प्यारा राजस्थान नहीं है। जलती नहीं चिता जौहर की, मुट्ठी में बलिदान नहीं है। टेढ़ी मूँछ लिए रण-वन फिरना अब तो आसान नहीं है। समय माँगता मूल्य मुक्ति का, देगा कौन मांस की बोटी? पर्वत पर आर्दश मिलेगा, खाएँ चलो घास की रोटी। चढ़े अश्व पर सेंक रहे रोटी नीचे कर भालों को, खोज रहा मेवाड़ आज फिर उन अल्हड़ मतवालों को। बात-बात पर बजीं किरीचें, जूझ मरे क्षत्रिय खेतों में; जौहर की जलती चिनगारी अब भी चमक रही रेतों में। जाग-जाग ओ धार, बता दे, कण-कण चमक रहा क्यों तेरा? बता रंचभर ठौर कहाँ वह, जिस पर शोणित बहा न मेरा? पी-पी ख़ून आग बढ़ती थी, सदियों जली होम की ज्वाला। हँस-हँस चढ़े सीस साकल-से, बलिदानों का हुआ उजाला। सुंदरियों को सौंप अग्नि पर, निकले समय-पुकारों पर। बाल, वृद्ध औ' तरुण विहँसते खेल गए तलवारों पर। हाँ, वसंत की सरस घड़ी है, जी करता, मैं भी कुछ गाऊँ; कवि हूँ, आज प्रकृति-पूजन में, निज कविता के दीप जलाऊँ। क्या गाऊँ? सतलज रोती है, हाय! खिली बेलियाँ किनारे। भूल गए ऋतुपति, बहते हैं, यहाँ रुधिर के दिव्य पनारे। बहनें चीख़ रहीं रावी-तट, बिलख रहे बच्चे बेचारे, फूल-फूल से पूछ रहे हैं—'कब लौटेंगे पिता हमारे? उफ़, वसंत या मदन-बाण है? वन-वन रूप-ज्वार आया है। सिहर रही वसुधा रह-रहकर, यौवन में उभार आया है। कसक रही सुंदरी—'आज मधु-ऋतु में मेरे कंत कहाँ? दूर द्वीप में प्रतिध्वनि उठती, 'प्यारी, और वसंत कहाँ'? -रामधारी सिंह दिनकर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि वसंत ऋतु का मनोरम चित्रण प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। कविता के माध्यम से कवि प्रकृति के सौंदर्य और जीवन के उत्साह का वर्णन करते हैं। साथ ही कविता में कवि देश की हालात को देख कर अंतर्मन से पीड़ित हैं, कवि मातृभूमि की रक्षा को लेकर इतिहास में हुए बलिदानों को भी याद करते हैं।
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प्रभाती
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं समाज को साहसी बनाती हैं। इस श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “प्रभाती” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया। भेदमय संदेश सुन पुलकित खगों ने चंचु खोली; प्रेम से झुक-झुक प्रणति में पादपों की पंक्ति डोली; दूर प्राची की तटी से विश्व के तृण-तृण जगाता; फिर उदय की वायु का वन में सुपरिचित नाद आया। रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया। व्योम-सर में हो उठा विकसित अरुण आलोक-शतदल; चिर-दुखी धरणी विभा में हो रही आनंद-विह्वल। चूमकर प्रति रोम से सिर पर चढ़ा वरदान प्रभु का, रश्मि-अंजलि में पिता का स्नेह-आशीर्वाद आया। रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया। सिंधु-तट का आर्य भावुक आज जग मेरे हृदय में, खोजता, उद्गम विभा का दीप्त-मुख विस्मित उदय में; उग रहा जिस क्षितिज-रेखा से अरुण, उसके परे क्या? एक भूला देश धूमिल, सा मुझे क्यों याद आया? रे प्रवासी, जाग, तेरे देश का संवाद आया। -रामधारी सिंह दिनकर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि युवाओं को जगाने और उन्हें प्रेरित करने का प्रयास करते हैं। कविता में कवि युवाओं को सोने से उठकर नए दिन की शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह कविता मानव को आलस्य त्याग कर कर्मठ बनने का आह्वान करती है। यह कविता देश के युवाओं को सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने का उद्देश्य देती है। यह कविता वर्ष 1935 में लिखी गई थी जो युवाओं को प्रतीकात्मक रूप से स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने का आवाह्न करती है।
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फलेगी डालों में तलवार
रामधारी सिंह दिनकर की देशभक्ति कविताएं आपका परिचय देश में हुए कड़े संघर्षों से भी करवाती हैं। इस श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता “फलेगी डालों में तलवार” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
धनी दे रहे सकल सर्वस्व, तुम्हें इतिहास दे रहा मान; सहस्रों बलशाली शार्दूल चरण पर चढ़ा रहे हैं प्राण। दौड़ती हुई तुम्हारी ओर जा रहीं नदियाँ विकल, अधीर; करोड़ों आँखें पगली हुईं, ध्यान में झलक उठी तस्वीर। पटल जैसे-जैसे उठ रहा, फैलता जाता है भूडोल। हिमालय रजत-कोष ले खड़ा, हिंद-सागर ले खड़ा प्रवाल, देश के दरवाज़े पर रोज़ खड़ी होती ऊषा ले माल। कि जाने तुम आओ किस रोज़ बजाते नूतन रुद्र-विषाण, किरण के रथ पर हो आसीन लिए मुट्ठी में स्वर्ण-विहान। स्वर्ग जो हाथों को है दूर, खेलता उससे भी मन लुब्ध। धनी देते जिसको सर्वस्व, चढ़ाते बली जिसे निज प्राण, उसी का लेकर पावन नाम क़लम बोती है अपने गान। गान, जिनके भीतर संतप्त जाति का जलता है आकाश; उबलते गरल, द्रोह, प्रतिशोध, दर्प से बलता है विश्वास। देश की मिट्टी का असि-वृक्ष, गान-तरु होगा जब तैयार, खिलेंगे अंगारों के फूल, फलेगी डालों में तलवार। चटकती चिनगारी के फूल, सजीले वृंतों के शृंगार, विवशता के विषजल में बुझी, गीत की, आँसू की तलवार। -रामधारी सिंह दिनकर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से युवाओं को प्रेरित करती है कि वे निडरता और उत्साह के साथ जीवन का सामना करें। यह कविता एक वीर रस की कविता है, कवि युवा पीढ़ी को समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ लड़ने और नए युग का निर्माण करने का आह्वान करते हैं। कविता के माध्यम से कवि युवाओं में आत्मविश्वास और साहस को जगाते हैं। इस कविता में कवि युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में अंतिम योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं, यह कविता वर्ष 1946 में प्रकाशित हुई थी।
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