क्या आप जानते हैं पानीपत का दूसरा युद्ध किसके बीच हुआ?

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पानीपत का दूसरा युद्ध

पानीपत एक ऐसा स्थान जिसने भारतीय इतिहास में अनेकों युद्ध देखें, जिनके परिणामों ने भारतीय राजनीति और शासन तंत्र में अपनी गहरी छाप छोड़ी। पानीपत जिसका पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही रूपों में बड़ा महत्व हैं। प्राचीनकाल में पानीपत महाभारत के समय पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित पांच शहरों (प्रस्थ) में से एक था, इसका ऐतिहासिक नाम पांडुप्रसथ है। पानीपत ने इतिहास भारतीय इतिहास में तीन प्रमुख लड़ाइयों / युद्धों की क्रूरता, नरसंहार और इससे होने वाली पीड़ाओं को झेला है। इस पोस्ट के माध्यम से आपको पानीपत का द्वितीय युद्ध किसके बीच हुआ और इस युद्ध के क्या परिणाम रहे, इसके बारे में जानने को मिलेगा।

यह एक ऐसा युद्ध था जिसने दिल्ली के अफगानियों और मुगलों के बीच निरंतर चल रहे संघर्षों को समाप्त किया था, साथ ही इस युद्ध के बाद दिल्ली ने भीषण नरसंहार के साथ-साथ सत्ता का परिवर्तन दिया था। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो युद्धों ने सभ्यताओं के साथ-साथ, मानवता और मानव-जाति को भी उजाड़ने का काम किया है। यह युद्ध दिल्ली की सत्ता परिवर्तन का प्रतीक बना।

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पानीपत का दूसरा युद्ध किसके बीच हुआ?

आरंभ से ही भारत एक समृद्ध और सम्पन्न देश रहा है, भारत को विश्व की सत्ता का केंद्र बिंदु कहना कुछ अनुचित नहीं होगा। इसी कारण से भारत पर अनेकों बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा क्रूर आक्रमण हुए। भारत के इतिहास में पानीपत के तीनों युद्ध निर्णायक भूमिका में उभर कर आए, जिन्होंने भारत के अधिकांश भू-भाग को प्रभावित किया।

पानीपत का दूसरे युद्ध में एक ओर उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (लोकप्रिय नाम- हेमू ) थे, जो कि मातृभूमि की रक्षा करने हेतु बलिदान देने को तैयार थे। वहीं दूसरी ओर अकबर की सेना थी, जिसका मकसद दिल्ली सल्तनत पर अपना कब्ज़ा करना था। यह युद्ध हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य और अकबर के बीच पानीपत के मैदान में लड़ा गया था।

कब हुआ था पानीपत का द्वितीय युद्ध?

इतिहासकारों की माने तो पानीपत का दूसरा युद्ध 5 नवंबर, 1556 को हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य और अकबर की मुग़ल सेना के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने खुद से नेतृत्व किया तो वहीं अकबर इस युद्ध में सीधे तौर पर नेतृत्व की स्तिथि में नहीं था। यह युद्ध भी पानीपत के प्रथम युद्ध की तरह ही भीषण था, जिसमें भीषण रक्तपात और भयंकर नरसंहार हुआ।

क्या रहे पानीपत के द्वितीय युद्ध के परिणाम?

पानीपत का दूसरा युद्ध हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के युद्ध कौशल और शूरवीरता का प्रमाण बना। हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के कुशल नेतृत्व में सम्राट हेमू की सेना विजय श्री की ओर लगातार आगे बढ़ रही थी, कि तभी मात्र एक तीर ने युद्ध का परिणाम बदल दिया।

अकबर की सेना से लड़ते-लड़ते सम्राट हेमू की आँख में एक तीर जा लगा, जिसने जीती-जिताई बाजी को पलट कर रख दिया। पानीपत के दूसरे युद्ध में सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य पराजित हुए, परिणाम स्वरुप मुग़ल सत्ता दिल्ली सल्तनत पर काबिज़ हुई। इस युद्ध के बाद से 300 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता पर मुगल सम्राज्य का शासन रहा।

पानीपत के द्वितीय युद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें

पानीपत के द्वितीय युद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें भी है जो आपके ज्ञान को बढ़ाएंगी। जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है;

  • 5 नवंबर, 1556 को उत्तर भारत के हिंदू शासक सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) और अकबर की सेना के बीच आज के हरियाणा के पानीपत में लड़ा गया था।
  • हेमू वर्तमान हरियाणा के रेवाड़ी के थे, जिन्हें दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजाओं में से एक थे।
  • 24 जनवरी, 1556 में मुगल शासक हुमायूँ की दिल्ली में मृत्यु के बाद तेरह वर्ष के अकबर को सत्ता पर बैठाया गया, जिसका संरक्षण बैरम खान की देख रेख में हुआ।
  • 14 फरवरी, 1556 में पंजाब के कलानौर में अकबर के राज्याभिषेक के दौरान, मुग़ल सत्ता केवल काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब के कुछ हिस्सों तक सीमित थी।
  • अकबर और उसके संरक्षक बैरम खान ने इस युद्ध में प्रतिभाग नहीं किया था, युद्धभूमि से पांच कोस यानि कि 8 मील की दूरी पर थे। जिसमें बैरम खान ने पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और अपने सबसे वफादार सैनिकों द्वारा अकबर को सुरक्षा प्रदान की गई थी।
  • मुगलों की सेना में 10,000 घुड़सवार और 5000 अनुभवी सैनिक थे, जबकि हेमू की सेना में 1500 से अधिक गज सेना भी थी।

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आशा है कि आप पानीपत का द्वितीय युद्ध किसके बीच हुआ का कारण, इस ब्लॉग के माध्यम से जान पाए होंगे और यह ब्लॉग आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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