Nari Shakti Par Kavita: नारी शक्ति पर कविता पढ़कर आप अपने जीवन में नारियों के महत्व और समाज के कल्याण में उनके योगदान को समझ पाएंगे। नारी शक्ति का सम्मान करने से ही हम हमारी सनातन और पुरातन सभ्यता का सम्मान कर सकते हैं, साथ ही उनका सम्मान करना हमारे अस्तित्व को सम्मानित करने जैसा होगा। समय-समय पर ऐसे कई कवि/कवियित्री हुई हैं, जिन्होंने नारी शक्ति पर अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया है। इस लेख में, हम नारी शक्ति पर कविता (Nari Shakti Par Kavita) प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आपको नारी शक्ति के महत्व के बारे में बताएंगी।
नारी शक्ति पर कविता – Nari Shakti Par Kavita
नारी शक्ति पर कविता (Nari Shakti Par Kavita) और उनकी सूची इस प्रकार हैं:-
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
आया समय उठो तुम नारी | शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान |
नहीं हारेगी कभी | सुशीला टाकभौरे |
बच्चे, तुम अपने घर जाओ | गगन गिल |
बाग़ी | रंजना जायसवाल |
जब बन जाती हूँ नन्हीं बच्ची | रंजना जायसवाल |
नारी शक्ति | मयंक विश्नोई |
जब स्त्रियाँ नहीं होंगी | रंजना जायसवाल |
झांसी की रानी | सुभद्राकुमारी चौहान |
नारी | सुमित्रानंदन पंत |
This Blog Includes:
आया समय उठो तुम नारी
आया समय
उठो तुम नारी
युग निर्माण तुम्हें करना है
आजादी की खुदी नींव में
तुम्हें प्रगति पत्थर भरना है
अपने को
कमजोर न समझो
जननी हो संपूर्ण जगत की
गौरव हो
अपनी संस्कृति की
आहट हो स्वर्णिम आगत की
तुम्हे नया इतिहास देश का
अपने कर्मो से रचना है
दुर्गा हो तुम
लक्ष्मी हो तुम
सरस्वती हो सीता हो तुम
सत्य मार्ग
दिखलाने वाली
रामायण हो गीता हो तुम
रूढ़ि विवशताओं के बंधन
तोड़ तुम्हें आगे बढ़ना है
साहस , त्याग
दया ममता की
तुम प्रतीक हो अवतारी हो
वक्त पड़े तो
लक्ष्मीबाई
वक्त पड़े तो झलकारी हो
आँधी हो तूफान घिरा हो
पथ पर कभी नहीं रूकना है
शिक्षा हो या
अर्थ जगत हो
या सेवाएं हों
सरकारी
पुरूषों के
समान तुम भी हो
हर पद की सच्ची अधिकारी
तुम्हें नये प्रतिमान सृजन के
अपने हाथों से गढ़ना है
– शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
नहीं हारेगी कभी
कितनी कन्याएँ जन्म लेती हैं
कितनी वृद्धाएँ मरती हैं
पर
कितनों को संसार जानता
कितनी मरती हैं अपनी जमात के लिए?
घर-परिवार के छोटे घेरे में
घिरी औरत पहुँच रही है
रोज़ी-रोटी तक
जीवन को धन्य मानती
पर देश समाज
और ख़ुद अपने से
बेख़बर
पर अब वह सजग है
और सतर्क भी
कि कोई नहीं पाये उसके
बढ़ते क़दमों के रफ़्तार
वह बदलेगी अब
सदियों की परिपाटी
नहीं हारेगी हिम्मत
नहीं हारेगी कभी
नहीं हारेगी!
– सुशीला टाकभौरे
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बच्चे, तुम अपने घर जाओ
बच्चे, तुम अपने घर जाओ
घर कहीं नहीं है?
तो वापस कोख़ में जाओ
मां की कोख नहीं है?
पिता के वीर्य में जाओ
पिता कहीं नहीं है?
तो मां के गर्भ में जाओ
गर्भ का अण्डा बंजर?
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहवारी में
जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे, तुम अपने घर जाओ।
– गगन गिल
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बाग़ी
हाँ, मैं बागी हूँ
विद्रोही हूँ
मैंने पिता की बात गलत साबित की
कि अक्षर ज्ञान से अधिक नहीं पढ़ सकती
भाई का अभिमान तोड़ा
कि सिर्फ चूल्हा-चौका ही मेरी नियति है
हाँ, मैं बागी हूँ
समाज के बनाये चौखटों में फिट न हो सकी
पति के चरणोदक न ले सकी
नहीं चाहा देह के बदले
नाम, रोटी और सुरक्षा
चाहा प्रेम के बदले प्रेम
समर्पण के बदले समर्पण
मैं विद्रोही हूँ
मैंने मित्रों की बात नहीं मानी
कि नारी की स्वतन्त्रता स्वच्छन्दता है
प्रेमी की बात नहीं मानी
उसने भी मुझे शरीर-मात्र समझा
और प्रेम के नाम पर कैद करना चाहा
उसी अँधेरी गुफा में
जहाँ से मैं निकली थी
मेरे हृदय में है
सम्मान, स्नेह, प्रेम, समर्पण
करुणा, दया, ममता
मेरा युद्ध पुरुष जाति से नहीं उस साँचे से है
जिसमें फिट होना बना दी गयी है
स्त्री की नियति
मैं मनुष्य हूँ
और इसी रूप में व्याकुल हूँ
पहचान के लिए
सम्मान के लिए
शायद इसीलिए मैं बागी हूँ
विद्रोही हूँ
– रंजना जायसवाल
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जब बन जाती हूँ नन्हीं बच्ची
मैं
एक समर्थ माँ
चलती हूँ उठाकर
ढेर-सी जिम्मेदारियाँ
घर और बाहर की
थक जाती हूँ जब
लेटकर कुछ क्षण
तुम्हारे पास
लिपटा लेती हूँ तुम्हें
तुम्हारी नन्हीं अंगुलियाँ
सहलाने लगती हैं
मेरे गालों और बालों को
तब अनायास
फुर्र हो जाती है थकान
बन जाती हूँ
मैं… एक नन्हीं बच्ची
और तुम…
मेरी माँ…।
– रंजना जायसवाल
नारी शक्ति
सृष्टि की जननी है वह
मानव जीवन का आधार है
उसके साहस को अपनाकर,
हुआ विश्व का उद्धार है
सहनशीलता है अपार उसमें
वह अन्याय का प्रतिकार है
आँचल में रहकर उसके,
हुआ विश्व का कल्याण है
रिश्तों की मर्यादा है
वह प्रेम की परिभाषा है
उसकी कहानी का किरदार बन,
हुआ सभ्यताओं का श्रृंगार है
परिवर्तन की पुकार है
वह आदर्शवादी विचार है
उसके चरणों की रज छूकर,
मनुष्य का हर सपना साकार है
शीतलता है उसकी ममता में
उसके क्रोध में प्रेम अपार है
मानवता की हर विजय पर,
नारी शक्ति का उपकार है…
नारी शक्ति का उपकार है…”
– मयंक विश्नोई
नारी शक्ति पर कविता हिंदी में
नारी शक्ति पर कविता हिंदी में (Nari Shakti Par Kavita) पढ़कर आप समाज में नारी के अस्तित्व के महत्व को जान पाएंगे।
जब स्त्रियाँ नहीं होंगी
पार्टी
झण्डे
विचाराधारा
कोई भी हो
धर्म
जाति
सम्प्रदाय
जो भी हो
देश
काल
स्थान
अलग-अलग हो भले
व्यक्ति
मन
मुँह
बातें एक जैसी ही स्त्री के बारे में
रात तो रात
दिन में भी
फुरसत के क्षणों में
वही बातें एक जैसी
लाम पर बंदूकें साफ करते फौजी हो
या थाने पर गपियाते सिपाही
साहित्य कला संस्कृत कर्मी हो
या दफ्तर के कर्मचारी
गाड़ीवान हों या मिस्त्री-मजदूर
सबका मनोरंजन स्त्री, उसकी देह
और उसके झूठे-सच्चे किस्से
कितना रंगीन है
उनका चेहरा
दिन
और जीवन
स्त्री के होने से
क्या कभी ये भी सोचते हैं
स्त्री की बात करने वाले
जिस दिन नहीं होंगी स्त्रियाँ
कैसी होगी यह दुनिया?
– रंजना जायसवाल
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झांसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
– सुभद्राकुमारी चौहान
नारी
हाय, मानवी रही न नारी लज्जा से अवगुंठित,
वह नर की लालस प्रतिमा, शोभा सज्जा से निर्मित!
युग युग की वंदिनी, देह की कारा में निज सीमित,
वह अदृश्य अस्पृश्य विश्व को, गृह पशु सी ही जीवित!
सदाचार की सीमा उसके तन से है निर्धारित,
पूत योनि वह: मूल्य चर्म पर केवल उसका अंकित;
अंग अंग उसका नर के वासना चिह्न से मुद्रित,
वह नर की छाया, इंगित संचालित, चिर पद लुंठित!
वह समाज की नहीं इकाई,–शून्य समान अनिश्चित,
उसका जीवन मान मान पर नर के है अवलंबित।
मुक्त हृदय वह स्नेह प्रणय कर सकती नहीं प्रदर्शित,
दृष्टि, स्पर्श संज्ञा से वह होजाती सहज कलंकित!
योनि नहीं है रे नारी, वह भी मानवी प्रतिष्ठित,
उसे पूर्ण स्वाधीन करो, वह रहे न नर पर अवसित।
द्वन्द्व क्षुधित मानव समाज पशु जग से भी है गर्हित,
नर नारी के सहज स्नेह से सूक्ष्म वृत्ति हों विकसित।
आज मनुज जग से मिट जाए कुत्सित, लिंग विभाजित
नारी नर की निखिल क्षुद्रता, आदिम मानों पर स्थित।
सामूहिक-जन-भाव-स्वास्थ्य से जीवन हो मर्यादित,
नर नारी की हृदय मुक्ति से मानवता हो संस्कृत।
– सुमित्रानंदन पंत
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