Essay on Sumitranandan Pant in Hindi : स्टूडेंट्स के लिए ‘सुमित्रानंदन पंत’ पर निबंध

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सुमित्रानंदन पंत पर निबंध (1)

Essay on Sumitranandan Pant in Hindi : सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावाद (रोमांटिक) आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे। पंत का प्रकृति के साथ गहरा संबंध और विशद वर्णन छात्रों को पर्यावरणीय सुंदरता की सराहना करने और प्रकृति के प्रति प्रेम पैदा करने में मदद करता है। उनकी रचनाएं अक्सर मानवीय भावनाओं, आदर्शवाद और सामाजिक मुद्दों की खोज करती है। सुमित्रानंदन पंत के बारे में जानने से छात्रों को हिंदी कविता के एक महत्वपूर्ण युग की जानकारी मिलती है और यही वजह है कि छात्रों को सुमित्रानंदन पंत पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इसलिए इस ब्लाॅग में आपके लिए सुमित्रानंदन पंत पर निबंध (Essay on Sumitranandan Pant in Hindi) के सैंपल दिए जा रहे हैं।

सुमित्रानंदन पंत पर 100 शब्दों में निबंध

100 शब्दों में सुमित्रानंदन पंत पर निबंध (Essay on Sumitranandan Pant in Hindi) इस प्रकार है:

सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के नाम से भी जाना जाता है। सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखण्ड के बागेश्वर ज़िले के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। पंत के जन्म से कुछ घंटों बाद उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। सुमित्रानंदन पंत की दादी ने उनका पालन पोषण किया था। उनके बचपन का नाम गोसाईं दत्त था। 

जब वे प्रयाग में 1921 अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तो असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी का सहयोग करते हुए उन्होंने अपना महाविद्यालय छोड़ दिया था। उसके बाद में पंत ने हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य को स्वाध्याय करके पूर्ण किया। वे एक अच्छे लेखक थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में पर्यावरणीय सुंदरता की सराहना करने और प्रकृति के प्रति प्रेम को बढ़ावा दिया है। उनकी कविताएं अक्सर मानवीय भावनाओं, आदर्शवाद और सामाजिक मुद्दों की भी खोज करती थीं।

यह भी पढ़ें: सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय 

सुमित्रानंदन पंत पर 200 शब्दों में निबंध

200 शब्दों में सुमित्रानंदन पंत पर निबंध यहां दिया गया है:

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के अनमोल कवियों में से एक थे। सुमित्रानंदन पंत ने हिंदी साहित्य में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। सुमित्रानंदन पंत को ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ भी कहा जाता है। सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर ज़िले के कौसानी में हुआ था। सुमित्रानंदन पंत के जन्म के बाद ही उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। उनकी माता की मृत्यु के बाद उनका लालन-पालन की दादी ने किया था। सुमित्रानंदन पंत के बचपन का नाम गोसाईं दत्त था। 

सुमित्रानंदन पंत ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। 1921 में उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करते समय गांधीजी के बहिष्कार के आह्वान का समर्थन किया था। उन्होंने उस समय अपना महाविद्यालय छोड़ दिया था। अपने महाविद्यालय को छोड़ने के बाद में पंत ने हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का स्वाध्याय किया। 

सुमित्रानंदन पंत की काव्य-चेतना का विकास प्रयाग में ही हुआ था। पंत अपनी किशोर आयु से ही कविताएं लिखा करते थे। सुमित्रानंदन पंत का रचनाकाल 1916 से 1977 तक था। सुमित्रानंदन पंत ने अपने जीवन में हिन्दी साहित्य के लिए लगभग 60 वर्षों तक अपना योगदान दिया है। सुमित्रानंदन पंत जी की काव्य-यात्रा को तीन प्रमुख चरणों में देखा जा सकता है। 28 दिसंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सुमित्रानंदन पंत जी का निधन हो गया। पंत जी की रचनाओं ने  समाज को जागृत रखने में अपना योगदान दिया है।

यह भी पढ़ें: सुमित्रानंदन पंत की कविताएं 

सुमित्रानंदन पंत पर 500 शब्दों में निबंध

500 शब्दों में सुमित्रानंदन पंत पर निबंध (Essay on Sumitranandan Pant in Hindi) यहां दिया जा रहा है:

प्रस्तावना

सुमित्रानंदन पंत हिन्द साहित्य के महान कवियों में से एक थे। सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता है। सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक जीवन लगभग 60 वर्ष का था। सुमित्रानंदन पंत ने कई उपन्यासों, कविताओं और कहानियों की रचना की थी। इनके लिए सुमित्रानंदन पंत को पुरस्कार व सम्मान भी मिले थे। इसमें उन्होंने कई विशिष्ट काव्य रचनाएँ की थी। 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में सुमित्रानंदन पंत सदैव के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए। 

सुमित्रानंदन पंत कौन थे?

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि थे। उन्हें छायावादी युग के चार प्रमुख कवियों में से एक माना जाता है। सुमित्रानंदन पंत की कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य, और मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण मिलता है। हिंदी साहित्य में आने के बाद उन्होंने अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया। प्रयागराज के विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए चले गए। 

अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने कविता लिखना शुरू किया था। सुमित्रानंदन पंत का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव था। उन्होंने हिंदी कविता में छायावादी युग की पहचान को मजबूती दी थी। उनकी कविताएँ आज भी हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों और प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं। अनूठी काव्यशैली और छायावादी प्रवृत्ति के कारण सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के अमर कवि बन गए।

सुमित्रानंदन पंत का शुरुआती जीवन

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कौसानी गाँव में हुआ था। जन्म के कुछ घंटों बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था। उनके लालन-पोषण उनकी का कार्य उनकी दादी ने किया। सुमित्रानंदन पंत का बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। सुमित्रानंदन पंत अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव में हुई जिसके बाद में वे वाराणसी आ गए थे। वाराणसी में उन्होंने जयनारायण हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त की थी। हाईस्कूल के बाद सुमित्रानंदन पंत वर्ष 1918 में  प्रयागराज चले गए थे। उन्होंने म्योर कॉलेज में बारहवीं कक्षा में दाखिला ले लिया। 

साल 1921 में गांधी जी के द्वारा शुरू किए गए अहसयोग आंदोलन में हजारों लोगों ने सरकारी स्कूलों, विश्वविद्यालयों, कार्यालयों और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया था। उस समय सुमित्रानंदन पंत ने भी इसका समर्थन करते हुए अपना महाविद्यालय छोड़ दिया था। महाविद्यालय छोड़ने के बाद उन्होंने हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का स्वाध्याय किया और अपनी कविताएं लिखना जारी रखा। 

सुमित्रानंदन पंत की साहित्यिक रचनाएं 

सुमित्रानंदन पंत की साहित्यिक रचनाओं में काव्य, उपन्यास, कहानी संग्रह एवं नाट्य कृतियां शामिल हैं। सुमित्रानंदन पंत की काव्य रचनाओं में वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, उत्तरा, युगपथ, चिदंबरा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन और गीतहंस शामिल हैं। सुमित्रानंदन पंत ने साल 1960 में हार नामक उपन्यास की भी रचना की थी। सुमित्रानंदन पंत के कहानी संग्रह में पाँच कहानियाँ शामिल है। उनकी नाट्य कृतियों में परी, ज्योत्स्ना, जिंदगी का चौराहा, अस्पृश्या, स्रष्टा, करमपुर की रानी, चौराहा, शकुंतला, युग पुरुष और छाया शामिल हैं। उन्होंने साठ वर्ष : एक रेखांकन नामक आत्मकथात्मक संस्मरण भी लिखा था।

सुमित्रानंदन पंत को मिले पुरस्कार व सम्मान

सुमित्रानंदन पंत को कई पुरस्कार व सम्मान मिले थे। पंत को साल 1960 में उनके काव्य संग्रह कला और बूढ़ा चाँद के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। साल 1961 में भारत सरकार ने साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पंत जी को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। वर्ष 1968 में चिदंबरा काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया हैं। भारत सरकार की ओर से सुमित्रानंदन पंत के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था।

उपसंहार 

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के स्तंभों में से एक माने जाते हैं। सुमित्रानंदन पंत ने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय साहित्य को नए आयाम दिए हैं। सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम, मानवीय संवेदनाओं की गहराई और भाषा की मधुरता उनकी कविताओं को ओर अधिक अनूठा बनाती है। उन्हें अपनी रचनाओं में न केवल प्रकृति की सुंदरता और जीवन के रहस्यों का भली भांति वर्णन किया है। उनकी कविताओं में जीवन, सौंदर्य, और संवेदनाओं का महत्व दिखता है। उनके साहित्यिक योगदान ने हिंदी कविता को समृद्ध किया है। साहित्य जगत में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और उनकी कविताएँ सदैव हिंदी साहित्य प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेंगी।

सुमित्रानंदन पंत पर 10 लाइन

सुमित्रानंदन पंता पर 10 लाइन यहां दी जा रही हैं जिनसे आपको निबंध लिखने में आसानी रहेगी-

  1. सुमित्रानंदन पंत एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे। वे अपनी रोमांटिक और प्रकृति-प्रेरित कविताओं के लिए जाने जाते हैं।
  2. सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को उत्तराखंड के कौसानी में हुआ था।  
  3. सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावाद आंदोलन के अग्रदूत थे। 
  4. सुमित्रानंदन अक्सर अपनी कविताओं में सौंदर्य, प्रकृति और रहस्यवाद पर जोर दिया करते थे। 
  5. सुमित्रानंदन पंत ने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करते समय गांधीजी के असहयोग आंदोलन का समर्थन करते है अपना महाविद्यालय छोड़ दिया था। 
  6. सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध रचनाओं में पल्लव, गुंजन, स्वर्गभूमि और ग्राम्या शामिल हैं। 
  7. सुमित्रानंदन पंत की भाषा कल्पना से भरपूर है और दार्शनिक विषयों को दर्शाती है। 
  8. पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 
  9. पंत की कविताओं ने कई लोगों को प्रभावित किया है और हिंदी साहित्य पर अमिट छाप छोड़ी है।  
  10. पंत का काम उनकी गीतात्मकता, गहराई और प्राकृतिक दुनिया के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।

FAQs 

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं क्या हैं?

सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि।

सुमित्रानंदन पंत का पहला काव्य संग्रहकौन सा है?

पन्त जी का पहला काव्य संग्रह वीणा है।

पंत के बचपन का नाम क्या था?

उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। पंत जी का बचपन में गोसाईं दत्त नाम रखा गया था। प्रयाग में उच्च शिक्षा के दौरान 1921 के असहयोग आंदोलन में महात्मा गाँधी के बहिष्कार के आह्वान पर उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य के स्वाध्याय में लग गए।

पंत का जीवन काल क्या था?

सुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 – 28 दिसंबर 1977) एक भारतीय कवि थे। वे हिंदी भाषा के 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक थे और अपनी कविताओं में रोमांटिकता के लिए जाने जाते थे जो प्रकृति, लोगों और सुंदरता से प्रेरित थीं।

सुमित्रानंदन पंत का उपनाम क्या है?

छायावादी कवि सुमित्रनंदन पंत को उन्होंने द्रोणाचार्य और खुद को एकलव्य माना। इन्हीं से प्रेरित होकर अपना उपनाम ‘परदेशी’ रखा था।

सुमित्रानंदन पंत के महाकाव्य का नाम क्या है?

लोकायतन – ‘लोकायतन छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत का महाकाव्य है। पंत जी की कृति ‘लोकायतन’ में भारतीय जीवन की स्वतंत्रता के पहले और बाद की कथा को काव्य रूप दिया गया है। इसका प्रकाशन 1964 हुआ था।

सुमित्रानंदन पंत की पहली कविता कौन सी थी?

गा तू स्वागत का गाना, किसने तुझको अंतर्यामिनि। सुमित्रानंदन पंत की ‘प्रथम रश्मि’ कविता 1919 में लिखी गयी थी और ‘वीणा’ (1927) में संगृहीत हुई थी।

सुमित्रानंदन पंत किस काल के कवि थे?

सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के श्रेष्ठ कवि थे। 

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आशा हैं कि आपको इस ब्लाॅग में सुमित्रानंदन पंत पर निबंध (Essay on Sumitranandan Pant in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य निबंध लेखन पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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