मनुष्य के शरीर में बहुत सारी तंत्रिका प्रणाली हैं। जिनके अलग-अलग काम होते हैं और यह शरीर को आगे बढ़ने में मदद करती है। शरीर का सबसे महत्वपूर्ण तंत्र है मानव पाचन तंत्र। यह शरीर में जाने वाले भोजन को पचाने में सहायता करता है और देखता है कि पाचन कार्य ठीक से हो रहा है या नहीं। तो आइए, हम आपको Manav Pachan Tantra के बारे में देंगे विस्तार से जानकारी।
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मानव पाचन तंत्र की परिभाषा
मानव पाचन तंत्र में एक आहार नाल और सहयोगी ग्रंथियां होती हैं। आहार नाल मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र, बृहदान्त्र, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत (पित्ताशय सहित) और अग्नाशय हैं।
मनुष्यों के पाचन तंत्र में विभिन्न प्रकार के अंग और उप-प्रक्रियाएँ होती हैं जो मिलकर भोजन को पचाना संभव बनाती हैं। पाचन तंत्र के लिए आहार नहर और संबंधित ग्रंथियां बनाती हैं। आहार नली (पाचन पथ) में ट्यूब जैसी संरचनाएं होती हैं जो मुंह से गुदा तक मार्ग बनाती हैं।
मानव पाचन तंत्र का चित्र
पाचन तंत्र के प्रमुख अंग
पाचन तंत्र के प्रमुख अंगों की लिस्ट नीचे दी गई है :
- मुंह (Mouth)
- ग्रासनली (Esophagus)
- पेट (Stomach)
- अग्नाशय (Pancreatic)
- यकृत या जिगर (Liver)
- पित्ताशय (Gallbladder)
- छोटी आंत (Small intestine)
- बड़ी आंत (Large intestine)
- मलाशय (Rectum)
पित्ताशयी ग्रंथि (गॉल ब्लैडर)
Manav Pachan Tantra में पित्ताशयी ग्रंथि (गॉल ब्लैडर) पेट में होती है। यह ग्रंथियां हाइड्रोक्लोरिक एसिड और पित्ताशय रस का डिस्चार्ज करती हैं और हाइड्रोक्लोरिक एसिड भोजन को अम्लीय (एसिडिक) बनाता है।
लार ग्रंथि (सैलिवैरी ग्लैंड)
लार ग्रंथि (सैलिवैरी ग्लैंड) मुंह में होती है। मनुष्य में तीन प्रकार की लार ग्रंथियां होती हैं जिनसे लार का डिस्चार्ज होता है। लार में उपस्थित एन्जाइम (एंजाइम) को लार अमालेस (सैलिवैरी एमिलेस) कहते हैं, जो मुंह से स्टार्च के टुकड़े करती है। Manav Pachan Tantra में लार ग्रास नली को जाते हुए भोजन को भी नम करता है।
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आंत्रिक ग्रंथियां (इंटेस्टिनल ग्लैंड्स)
छोटी आंत की दीवार में कई प्रकार की ग्रंथियां होती हैं। इन ग्रंथियों से बहने वाला एन्जाइम (Enzyme) भोजन के पाचक के लिए जिम्मेदार होते हैं।
यकृत (लिवर)
यह मनुष्य में पाई जाने वाली सबसे बड़ी ग्रंथी (ग्लैंड) होती है। यकृत (लिवर) में से बाइल द्रव (बाइल फ्लूइड) का डिस्चार्ज होता है जो कि पित्ताशय में होता है। यह पाचन में सहायक है। बाइल द्रव का मुख्य कार्य वसा (चर्बी) को छोटे भागों में बांटकर उसे पाचक बनाता है, जिससे वह आसानी से पच सके। Manav Pachan Tantra में पेट का अम्लीय भोजन अब क्षारीय (एल्कलाइन) हो जाता है।
अग्नाशय (पैंक्रियाटिक)
Manav Pachan Tantra में लिवर के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा ग्लैंड है। यह ग्रहणी (डुओडेनम) के रिंग में होती है। इसमें अग्नाशय रस का स्राव होता है जिसमें काफी सारे पाचक एंजाइम होते हैं। ट्रिपसिन (ट्रिप्सिन) और कोमोट्रिपसिन (काइमोट्रिप्सिन) प्रोटीन के बिखराव में सहायक होते हैं। अमीलेस, पॉलीसैकराइड (पॉलिसैचेराइड) का विघटन करता है। लीपेस वसा (लाइपास फैट) का और न्यूक्लिएसिक न्यूक्लिक एसिड के बिखराव में सहायक होते हैं। अग्नाशय U आकार के ग्रहणी के बीच स्थिति एक लंबी ग्रंथि है जो बहिःस्रावी (exocrine) और अंतःस्रावी (एंडोस्रिन), दोनों ही ग्रंथियों की तरह कार्य करती है।
बहिःस्राव भाग से क्षारीय अग्नाशयी स्राव निकलता है, जिसमें एंजाइम होते हैं और अतःस्रावी भाग से इंसुलिन और ग्लूकागन नामक हार्मोन का स्राव होता है।
- जो पाचक एंजाइम ड्यूडनम और इलियम में लाए जाते हैं वो एल्कलाइन खाद्य पदार्थ के विघटन में उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) होते हैं।
- आंत्रिक ग्रंथियां आंत्रिक (इंटेस्टिनल) रस का स्राव करती हैं।
- यकृत की कोशिकाओं से पित्त (बाइल) का स्राव होता है जो यकृत नलिका से होते हुए एक पतली पेशीय थैली-पित्ताशय में कंसन्ट्रेट व जमा होता है।
मुखगुहा (बक्कल कैविटी)
यह एक छोटी ग्रसनी (pharynx) में खुलती है जो वायु एवं भोजन का मार्ग है। एक उपास्थिमय घाटी (cartilaginous valley), भोजन को निगलते समय श्वासनली (ट्रेकिया) में प्रवेश करने से रोकती है। ग्रसिका (ऐसोफेगस) एक पराली (स्ट्रॉ) लंबी नली है, जो गर्दन एवं मध्यपट (डायफ्राम) से होते हुए पीछे के भाग में थैलीनुमा पेट में खुलती है।
Manav Pachan Tantra में छोटी आंत के तीन भाग होते हैं–
- J’ आकार की ग्रहणी
- कुंडलित मध्यभाग अग्रक्षुद्रांत्र (कोइल्ड मिड सेक्शन इंटीरियर स्क्रोटम)
- लंबी कुडलित (क्लमप्ल्ड) क्षुद्रांत्र
पेट का ग्रहणी में निकास जठरनिर्गम अवरोधिनी (प्य्लोरिक ब्लॉक) द्वारा नियंत्रित होता है। क्षुदांत्र (आंत) बड़ी आंत में खुलती है जो अंधनाल (कैकम), बृहदांत्र (कोलन) और मलाशय (रेक्टम) से बनी होती है।
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आहारनाल (एलिमेंटरी कैनाल)
आहारनाल आगे के भाग में मुंह से शुरू होकर पिछले भाग में स्थित गुदा, जो 9 मीटर लंबी होती है, द्वार बाहर की ओर खुलता है। मुंह, मुखगुहा में खुलता है। मुखगुहा में 32 दांत और एक पेशीय जिहा (मस्कुलर टोन) होती है। प्रत्येक दांत जबड़े में बने एक सांचे (मोल्ड) में स्थित होता है। Manav Pachan Tantra में इस तरह की व्यवस्था को गर्तदंती (ट्रफ) कहते हैं।
मनुष्य सहित अधिकांश स्तनधारियों (मैमल्स) के जीवन में दो तरह के दांत आते हैं। अस्थायी दंत समूह अथवा दूध के दांत जो वयस्कों में स्थायी दांतों से बदल जाते हैं। इस तरह की दंत-व्यवस्था को द्विबारदंती (डाइफ्योडोन्ट) कहते हैं। Manav Pachan Tantra में वयस्क मनुष्य में 32 स्थायी दांत होते हैं, जिनके चार प्रकार होते हैं, जैसे –
- कृतक (इन्सिजर्स)
- रदनक (कैनाइन)
- अचवर्गक (प्रीमॉलर्स)
- चवर्णक (मोलर्स)
ऊपरी एवं निचले जबड़ों के प्रत्येक आधे भाग में दांतों की व्यवस्था इन्सिजर्स, कैनाइन, प्रीमॉलर्स, मोलर्स में एक दंतसूत्र (denticle) के अनुसार होती है जो मनुष्य के लिए है।
इनैमल से बनी दांतों की चबाने वाली सख्त सतह भोजन को चबाने में मदद करती है। जीभ स्वतंत्र रूप से घूमने योग्य एक पेशीय अंग है जो फैनुलम द्वारा मुखगुहा के आधार से जुड़ी होती है। जीभ की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे उभार के रूप में पिप्पल और पैपिला होते हैं, जिनमें कुछ पर स्वाद कलिकाएं (टेस्ट बड्स) होती हैं।
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अवशोष (अब्सॉर्प्शन)
पाचन के बाद भोजन के कण छोटे हो जाते हैं और छोटी आंत से होते हुए हमारे रक्त (खून) में जाते हैं। छोटी आंत पचाए हुए भोजन के अवशोषण करती है। छोटी आंत की अंदरूनी सतह में लाखों, उंगलियों जैसे लांच होते हैं जिन्हें विली कहा जाता है। Manav Pachan Tantra में ये अवशोषण के लिए बड़ा सतह क्षेत्र प्रदान करते हैं और पचा हुआ भोजन हमारे खून में जाता है।
समावेश (ऐसीमिलेशन)
खून पचे और घुले हुए भोजन को शरीर के सभी अंगों तक ले जाता है, जहां यह कोशिका के रूप में समावेशित होता है। शरीर की कोशिकाएं समावेशित भोजन का प्रयोग ऊर्जा प्राप्त करने के साथ – साथ शरीर के विकास और मरम्मत के लिए भी करती हैं। अपचा भोजन यकृत में कार्बोहाइड्रेट के रूप में जमा होता है जिसे ग्लाइकोजेन (ग्लाइकोजन) कहते हैं और जरूरत पड़ने पर शरीर इसका उपयोग कर सकता है।
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पाचन तंत्र के 5 कार्य क्या हैं?
पाचन तंत्र निम्नलिखित 5 कार्य करता है :
- यांत्रिक प्रसंस्करण
- पाचन
- भोजन का अवशोषण
- पानी का स्राव
- एसिड, एंजाइम, बफर, नमक और अपशिष्ट उत्पादों का उत्सर्जन
FAQs
मानव पाचन तंत्र में एक आहार नाल और सहयोगी ग्रंथियां होती हैं। आहार नाल मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र, बृहदान्त्र, मलाशय और मलद्वार से बनी होती है। सहायक पाचन ग्रंथियों में लार ग्रंथि, यकृत (पित्ताशय सहित) और अग्नाशय हैं।
यकृत या जिगर या कलेजा (लिवर) शरीर का एक अंग है, जो केवल कशेरुकी प्राणियों में पाया जाता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को डिटॉक्सीफाई करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए आवश्यक जैव रासायनिक बनाना है।
छोटी आंत मानव पाचन तंत्र का एक हिस्सा है जहाँ भोजन का पाचन होता है। यह जठरांत्र संबंधी मार्ग में एक अंग है जहां भोजन से अधिकांश पोषक तत्व और खनिज अवशोषण समाप्त हो जाता है। यह पेट और बड़ी आंत के बीच स्थित है और अग्नाशयी नलिका के माध्यम से पाचन में मदद करने के लिए पित्त और अग्नाशयी रस को अवशोषित करता है।
Manav Pachan Tantra के इसं ब्लॉग में आपने जाना शरीर में पाचन तंत्र कैसे काम करता है। यदि आपको यह ब्लॉग पसंद आया है, तो इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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भोजन पचने में कितना समय लेता है?
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योगेश जी, इसमें 4-5 घंटे लगते हैं।
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भोजन पचने में कितना समय लेता है?
योगेश जी, इसमें 4-5 घंटे लगते हैं।