जानिए विश्व के सबसे पुराने ‘जैन धर्म’ के बारे में

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Jainism in Hindi

जैन धर्म भारत के श्रमन परंपराओं में से निकला प्राचीन्न धर्मों में से एक धर्म है, जैन धर्म का अर्थ होता है। जैन धर्म उस दर्शन में निहित है, जो सभी जीवित प्राणियों को अनुशासित, अहिंसा के माध्यम से मुक्ति का मार्ग एवं आध्यात्मिक शुद्धता और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलन सिखाता है। जैन धर्म ने गैर धार्मिक विचारधारा के माध्यम से रूढ़िवादी, धार्मिक प्रथाओं पर जबर्दस्त प्रहार किया था। जैन धर्म लोगों की सुविधा हेतु मोक्ष के एक सरल लघु सुगम रास्ते की पैरवी करता है। जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा होता है। इस ब्लॉग में आपको Jainism in Hindi के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी।

सूर्यकांत त्रिपाठी

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जैन धर्म
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जैन धर्म की उत्पत्ति

जैन धर्म सनातन संस्कृति के शास्वत ज्ञान की ही एक शाखा है, जिसका उद्देश्य मानव को समय-समय पर उत्पन्न होने वाली रूढ़िवादी विचारधारा को त्याग कर, अहिंसा और अध्यात्म के मार्ग के लिए प्रेरित करना होता है। जैन धर्म की उत्पत्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भगवान महावीर जी द्वारा हुई थी।

मानव को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए भगवान महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया, उन्हीं के अथक प्रयासों और उनके द्वारा प्रवाहित ज्ञान की अविरल धाराओं से ही जैन धर्म का उदय हुआ। जैन धर्म में मुख्यतः 24 महान शिक्षक हुए, जिनमें से अंतिम भगवान महावीर थे। इन 24 महान शिक्षकों को तीर्थंकर कहा जाता है, तीर्थंकर वह होते हैं जिन्होंने अपने जीवन में सभी ज्ञान (मोक्ष) को प्राप्त कर लिया होता है, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे। जैन शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ ‘विजेता’ होता है, यानि कि जिसने अपने ज्ञान से स्वयं पर विजय प्राप्त की हो।

जैन के तीर्थ

णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥’
ऊपर दिए गए वाक्यों का हिंदी में यह  अर्थ होता है कि:
अरिहंतो ,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सभी साधुओ को नमस्कार।

ऊपर दिए गए वाक्यों का जैन शब्द में अर्थ होता है कि जीन शब्द जीन शब्द से बना हुआ है ‘जि’ धातु जिसका अर्थ है कि जितना , जीतने वाला और जिसने स्वयं को जीत लिया उसे जितेंद्रिय कहा जाता है।

  • श्री सम्मेद शिखरजी ( गिरिडीह झारखंड)
  • अयोध्या Ayodhya
  •  कैलाश पर्वत Kailash parvat
  • वाराणसी Varanasi
  •  तीर्थराज कुंडलपुर (महावीर जी का जन्म स्थल ) tirtharaj kundalpur
  • पावापुरी (महावीर जी का निर्माण स्थल  ) pavapuri
  • गिरनार पर्वत Girnar parvat
  • चंपापुरी champapuri
  • बावन गजा (चूलगिरी) bawan gaja
  •  श्रवणबेलगोला shravanabelagola
  • पालीताणा Palitana
  •  चांदखेड़ी Chand khedi

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तिरसठ शलाका पुरुष

  • 24 तीर्थंकर
  • 12 चक्रवर्ती
  • 9 बलभद्र
  • नो वासुदेव
  • नो प्रति वासुदेव

ऊपर दिए गए सभी संख्या को मिलाकर 63 महान पुरुष हुए हैं। इन सभी पुरुषों का जैन धर्म और दर्शन को विकसित व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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24 तीर्थंकर

  1. ऋषभ
  2. अभिनंदन
  3. अजीत
  4. संभव
  5. धर्म
  6. पद्मप्रभ
  7.  सुपार्श्व, 
  8. चंद्रप्रभ, 
  9. पुष्पदंत, 
  10. शीतल, 
  11. श्रेयांश, 
  12. वासुपूज्य, 
  13. विमल, 
  14. अनंत, 
  15.  शांति,
  16.  कुन्थु, 
  17. अरह, 
  18. मल्लि, 
  19. मुनिव्रत, 
  20. नमि, 
  21. नेमि,
  22.  पार्श्वनाथ
  23. महावीर
  24.  सुमती
जैन धर्म
Source – pintrest

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जैन त्रिरत्न

सम्यक्‌दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। 

नीचे दिए गए तीरथ का मोक्ष का द्वार खोलते हैं, यह कैवलय मार्ग भी कहलाता है।

  • सम्यक्‌ दर्शन 
  • सम्यक्‌ ज्ञान
  • सम्यक्‌ चारित्र। 

जैन संप्रदाय के बारे में

अशोक के अभिलेखों से हमें यह पता चलता है कि उस समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार हुआ करता था। इसी समय मठों में बसने वाले जैन मुनियों ने यह मतभेद शुरू हुआ था कि चित्रकारों की मूर्तियां कपड़े पहना कर रखी जानी चाहिए यह नग्न अवस्था में है। मतभेद इस बात पर हुआ था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए यहां नहीं। फिर धीरे-धीरे आगे चलकर यह मतभेद बहुत बढ़ गया। फिर ईशा सदी की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए।

  1. श्वेतांबर
  2. दिगंबर

श्वेतांबर दल वह कहलाए जिनके साधु सफेद वस्त्र कपड़े पहनते थे, तो वहीं दिगंबर दल वह कहलाए जिनके साधु बिना कपड़े के रहते थे यानी कि निर्वस्त्र रहते थे। अभी के समय में यह माना जाता है कि दोनों संप्रदाय में दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर मतभेद है। दिगंबर दल के लोग आश्रम पालन में अधिक कठोर होते हैं, यह सभी नियम केवल मुनियों पर ही लागू होते हैं।

दिगंबर दल की तीन शाखा है:

  • मंदिर मार्गी
  • मूर्ति पूजक
  • तेरापंथी

श्वेतांबर दाल की दो शाखा है:

  •  मंदिर मार्गी
  • स्थानकवासी

करीब 300 साल पहले श्वेतांबर दल में एक नई शाखा प्रकट हुई वह स्थानकवासी से कहलाई। स्थानकवासी शाखा के लोग मूर्तियों को नहीं पूजते, जैन धर्म की विभिन्न उप शाखाएं हैं जैसे

  • तेरहपंथी
  • बीसपंथी
  • तारण पंथी
  • यापनीय

जैन धर्म मैं सभी शाखाओं में कुछ न कुछ थोड़ा बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर अहिंसा, संयम, अनेकांतवाद में भी सभी को समान स्थान देने के साथ ही, सभी को उचित सम्मान देते थे।

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जैन धर्म ग्रंथ

भगवान महावीर के उपदेश दिए गए थे ,उन्हें बाद में उनके गद्दारों ने ,प्रमुख शिष्यों ने संग्रह कर लिया था ,मूल साहित्य प्राकृत और विशेष रूप में मगधी में है। महावीर भगवान से पूर्व के जैन साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम में संकलित किया था जिसे’ पूर्व ‘नाम से माना जाता है। इसी प्रकार Jainism in Hindi के इस ब्लॉग मेंं आपको 14 पूर्व का उल्लेख मिलता है।

46 ग्रंथ Jain धर्म के सबसे पुराने आगम ग्रंथ माने जाते हैं। समस्त ग्रंथों को चार भागों में बांटा गया है:

  1. करनानुयोग
  2. प्रथमनुयोग
  3. चरनानूयोग
  4. द्रव्यानुयोग

Jainism in Hindi के इस ब्लॉग में दिए गए सभी उप ग्रंथ है, फिर चार मुख्य पुराण ,आदि पुराण, पद्म पुराण ,हरिवंश पुराण और उत्तर पुराण है।

महावीर स्वामी

भगवान महावीर स्वामी का जन्म 27 मार्च 598 ई पू का वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के घर में हुआ था।  महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला लिच्छवी, वह राजा चैटकी की पुत्र थीं। महावीर स्वामी का सिद्धार्थ मिश्रा की तीसरी संतान के रूप में चित्र शुक्ला को जन्म हुआ था। Jainism in Hindi के इस ब्लॉग के बारें अधिक जानते हैं।

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महावीर स्वामी के कार्य

अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर, तीर्थंकरों के धर्म और परंपराओं को सुव्यवस्थित ग्रुप दिया था। केवल का राज पथ निर्मित भी किया था और साथ ही एवं संघ व्यवस्था का निर्माण किया था। जिसके अंदर मुनि ,श्राविका, आर्यिका और श्राविका थे यह सब उनका चतुर्भुज संघ कहलाए थे। Jainism in Hindi के इस ब्लॉग में जाने महावीर स्वामी के मूल आधार को विस्तार से –

यह सभी के लिए उन्होंने धर्म का मूल आधार इंशा को बनाया था और विस्तार रूप पंच महाव्रत जैसे

  • अहिंसा
  • अमृषा
  • अचौर्य
  • अपरिग्रह
  • अमेथुन

और यम ओ का पालन करने के लिए मुनियों का उपदेश भी किया था। रोज तो के लिए स्कूल रूप अनुव्रत रूप निर्मित भी किया था उन्होंने श्रद्धान मात्रा के लिए कोपेन मात्रा धारी होने के 11 दर्जे नियत भी किए थे साथ ही दोष और अपराधों को निर्माण नाथ नियमित प्रतिक्रमण पर जोर भी दिया था।

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जैन धर्म की शिक्षाएं

1. अहिंसा – किसी भी जीवित प्राणी को घायल नहीं करना।
2. सत्य – सत्य बोलना
3. अस्तेय – चोरी न करना
4. त्याग – संपत्ति का मालिक नहीं
5. ब्रह्मचर्य – सदाचारी जीवन जीने के लिए

जैन धर्म के सिद्धांत

Jain धर्म ने भी मोक्ष प्राप्त करने के तरीकों की सलाह दी है। इस संदर्भ में नौ तत्त्वों का उल्लेख है। इन नौ सिद्धांतों को कर्म के सिद्धांत के साथ जोड़ा गया है, वे हैं “जीव, अजिव, पुण्य, पाप, अश्रव, बंध, समवारा, निर्जरा और मोक्ष”।

भगवान महावीर के 34 भव जन्म

  1. पूरुरवा भील
  2. पहले स्वर्ग में देव,
  3. भरत पुत्र मरीच, 
  4. पांचवें स्वर्ग में देव, 
  5. जटिल ब्राह्मण, 
  6. पहले स्वर्ग में देव, 
  7. पुष्यमित्र ब्राह्मण, 
  8. पहले स्वर्ग में देव, 
  9. अग्निसम ब्राह्मण, 
  10. तीसरे स्वर्ग में देव, 
  11. अग्निमित्र ब्राह्मण, 
  12. चौथे स्वर्ग में देव, 
  13. भारद्वाज ब्राह्मण, 
  14. चौथे स्वर्ग में देव, 
  15. मनुष्य (नरकनिगोदआदि भव), 
  16. स्थावर ब्राह्मण, 
  17. चौथे स्वर्ग में देव, 
  18. विश्वनंदी, 
  19. दसवें स्वर्ग में देव, 
  20. त्रिपृष्‍ठ नारायण, 
  21. सातवें नरक में, 
  22. सिंह, 
  23. पहले नरक में, 
  24. सिंह, 
  25. पहले स्वर्ग में, 
  26. कनकोज्जबल विद्याधर, 
  27. सातवें स्वर्ग में,
  28. हरिषेण राजा, 
  29. दसवें स्वर्ग में, 
  30. चक्रवर्ती प्रियमित्र, 
  31. बारहवें स्वर्ग में, 
  32. राजा नंद, 
  33. सोलहवें स्वर्ग में,
  34. तीर्थंकर महावीर

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जैन धर्म की प्राचीनता इतिहास

दुनिया की सबसे प्राचीन धर्म में से Jain धर्म को  श्रमणो का धर्म कहा जाता है। Jainism in Hindi के इस ब्लॉग में आपको वेदों में प्रथम तीर्थ कार में ऋषभ नाथ का उल्लेख किया गया है। यह माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यात्रियों और प्रकारों का उल्लेख किया गया है और वह ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के थे। मनुस्मृति में लिच्छवी, नाथ, मल्ल और शत्रुओं का वृत्तियो में गिना गया है। सामानों की परंपरा वेदों को मानने वालों के साथ ही चल रही थी, भगवान पार्श्वनाथ यह परंपरा कभी संगठन ग्रुप में अस्तित्व में आ ही नहीं। पारसनाथ भगवान से पारसनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई थी फिर एक संगठित रूप में मिली और भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से थे। भारत की प्राचीन पर आओ में जैन धर्म का मूल धर्म रहा है।आ रहे हो के काल में ऋषभदेव और अरिष्ठनेमी को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन दिया गया है साथ ही महाभारत काल में Jain धर्म के प्रमुख नेमिनाथ भी थे।जैन धर्म के 12 तीर्थंकर अरिष्ठनेमी नाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे और जैन धर्म ने कृष्णा को अनेक प्रश्न शलाका पुरुषों में शामिल भी किया है जो बार-बार नारायण में से एक प्रसिद्ध है। ऐसे माना तो मैं अगली चौबीसी में कृष्णा जैनियों का प्रथम तीर्थ कार भी होंगे। ईपु 8 वीं सदी में 23 में तीर्थ कार पारसनाथ हुए थे जिनका जन्म काशी जिले में हुआ था।काशी के पास ही घर में तीर्थ कार शेषनाथ का जन्म भी वहीं पर हुआ था। इसी से नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित हुआ है। ईसवी पूर्व 599 में अंतिम  भगवान महावीर ने 30 कारों का धर्म और परंपराओं को सुव्यवस्थित रुप दिया था।  72 वर्ष की आयु में भगवान महावीर ने अपना देह त्याग किया था।

जैन धर्म के स्वर्णिम काल के अंत का आरंभ

Jain धर्म भारत में एक समय में काफी महत्त्वपूर्ण धर्म माना जाता था। महावीर स्वामी के जीवन काल में इस धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार हुआ। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद कुछ दिनों तक ही Jain धर्म का प्रचार–प्रसार चलता रहा, बाद में इस धर्म के अनुयायियों की संख्या सिमित होती चली गई।

जैन धर्म के स्वर्णिम काल के अंत का आरंभ निम्नलिखित कारणों से होना शुरू हुआ-

  • ब्राह्मण धर्म से गहरा मतभेद- Jain धर्म का ब्राह्मण धर्म से गहरा विरोध था तथा ब्राह्मणों ने भी इस धर्म का सदैव विरोध किया उनके विरोध के कारण जैन धर्म का महत्त्व समाप्त हो गया। अजयपाल के शासनकाल(1174-76) तक जैनियों के मंदिर अपनी गरिमा को पूर्णतया समाप्त कर दिया था।
  • सिद्धांतों की कठोरता- इस धर्म के सिद्धांत अत्यंत कठोर थे, जिनका सर्वसाधारण लोग सुगमतापूर्वक पालन नहीं कर सकते थे। उदाहरणार्थ- अहिंसा का कठोर सिद्धांत सभी नहीं अपना सकते थे। कठोर तप करके सभी शारीरिक कष्टों को सहन नहीं कर सकते थे।
  • राजकीय आश्रय का अभाव- अशोक, कनिष्क आदि जैसे अनेक महान नरेश हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना जी-जान लगा दिया। लेकिन Jain धर्म को ऐसे महान नरेश नहीं मिले । Jain धर्म के पतन का प्रमुख कारण यही था कि इस धर्म को राजकीय आश्रय नहीं मिला।
  • अहिंसा – Jain धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण उसके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का अव्यवहारिक स्वरूप था। जिस रूप में अहिंसा के प्रतिपालन का विचार प्रस्तुत किया गया था। उसका पालन जनसाधारण के लिए कठिन था। फलतः कृषि प्रधान भारतीय जनता Jain धर्म के प्रति उदासीन होने लगी। केवल नगर में रहने वाले व्यापारी वर्ग के लोग ही उसके प्रति आकर्षित रहे।
  • कठोर तपस्या- Jain धर्म में व्रत, काया- क्लेश, त्याग, अनशन, केशकुंचन, वस्र त्याग, अपरिग्रहण आदि के अनुसरण पर जोर दिया गया। किन्तु सामान्य गृहस्थ व्यक्ति को इस प्रकार का तपस्वी जीवन जीना संभव नहीं था।
  • संघ का संघठन- जैन संघों की संगठनात्मक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी। उसमें धर्माचार्यों और सामान्य सदस्यों के विचारों तथा इच्छा की अवहेलना होती थी। जिसके फलस्वरूप सामान्य जनता की अभिरुचि कम हो गई।
  • प्रचारकों की कमजोर भूमिका- किसी भी धर्म के प्रसार में उसके प्रचारकों की अहम भूमिका होती है। Jain धर्म में बाद में अच्छे धर्म प्रचारकों का अभाव हो गया तथा Jain धर्म के प्रसार का मार्ग अवरुद्ध हो गया। प्रचार के लिए सतत् संगठित प्रयत्न नहीं हुए जिससे Jain धर्म भारत तक ही सिमित रह गया।
  • भेदभाव की भावना- महावीर स्वामी ने Jain धर्म के द्वार सभी जातियों तथा धर्मों के लिए खोल रखे थे, लेकिन बाद में भेदभाव की भावना विकसित हो गई थी।
  • जैन धर्म में विभाजन- महावीर की मृत्यु के बाद Jain धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया था-दिगंबर एवं श्वेतांबर । इन वर्गों में मतभेद के चलते इस धर्म के बचे-खुचे अवशेष भी नष्ट हो गये थे।
  • मुस्लमान शासकों का शासन- मुसलमान शासकों ने भारत पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल कर जैन मंदिरों की नींव पर मस्जिदों और मकबरों का निर्माण किया। अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसे अनेक जैन मंदिरों को धराशायी किया।अधिकांश जैनी तलवार के घाट उतार दिये गये तथा जैन पुस्तकालय नष्ट कर दिये गये। इन सभी कारणों के चलते Jain धर्म का विनाश हो गया।

Jainism Quotes in Hindi

  1. किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को ना पहचानना है , और यह केवल आत्म ज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है
  2. सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं
  3. आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है , न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है
  4. वो जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं
  5. किसी जीवित प्राणी को मारे नहीं. उन पर शाशन करने का प्रयास नहीं करें
  6. जो सुख और दुःख के बीच में समनिहित रहता है वह एक श्रमण है, शुद्ध चेतना की अवस्था में रहने वाला।
  7. किसी को चुगली नहीं करनी चाहिए और ना ही छल-कपट में लिप्त होना चाहिए.
  8.  एक कामुक व्यक्ति, अपने वांछित वस्तुओं को प्राप्त करने में नाकाम रहने पर पागल हो जाता है और किसी भी तरह से आत्महत्या करने के लिए तैयार भी हो जाता है।

FAQ

Jain धर्म की विशेषता क्या है?

जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है। … जैन दर्शन में परमात्मा अकर्ता है। प्रत्येक जीव, आत्मा को कर्मफल अच्छे—बुरे स्वतंत्र रूप में भोगने पड़ते हैं। परमात्मा को, कर्मों को क्षय कर तथा आत्म स्वरूप प्राप्त करने के बाद परमात्म पद प्राप्त होता है।

जैन धर्म का मूल सिद्धांत क्या है?

अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌। जैन दर्शन में भगवान से कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।

जैन धर्म में किसकी पूजा करते हैं?

1300 साल पुरानी तीर्थंकर भगवान महावीर की प्रतिमा की जहां जैन धर्म के लोग पूजा करते हैं, वहीं हिंदू इसे हनुमानजी और बौद्ध धर्म के लोग इन्हें भगवान गौतम बुद्ध के रूप में पूजते हैं।

जैन धर्म की पवित्र पुस्तक कौन सी है?

जैन धर्म की पवित्र पुस्तक आगम साहित्य या आगम सूत्र के रूप में जाना जाता है। जैन इन ग्रंथों को देखते हैं, जो भगवान महावीर के उपदेशों, अस्मिताओं के दस्तावेज़ हैं।

Education Quotes in Hindi

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