Jainism in Hindi: धर्म, दर्शन और विज्ञान का अलौकिक संगम

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Jainism in Hindi

Jainism in Hindi: जैन धर्म विश्व के उन सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, जिसकी मूल जड़ें भारत में हैं। जैन धर्म उस दर्शन में निहित है, जो सभी जीवित प्राणियों को अनुशासित, अहिंसा के माध्यम से मुक्ति का मार्ग एवं आध्यात्मिक शुद्धता और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलन सिखाता है। इसे ‘जिन धर्म’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह धर्म ‘जिन’ अर्थात् आत्मा को जीतने वाले महापुरुषों की शिक्षाओं पर आधारित है। जैन धर्म ने ने सदैव ही समाज की रूढ़िवादी, धार्मिक प्रथाओं पर जबर्दस्त प्रहार किया है। इस ब्लॉग में आपके लिए जैन धर्म (Jainism in Hindi) के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसके माध्यम से आप इस धर्म के बारे में बेहतर ढंग से जान पाएंगे।

जैन धर्म के बारे में – Jain Dharm in Hindi

जैन धर्म सनातन संस्कृति के शास्वत ज्ञान की ही एक शाखा है, जिसका उद्देश्य मानव को समय-समय पर उत्पन्न होने वाली रूढ़िवादी विचारधारा को त्याग कर, अहिंसा और अध्यात्म के मार्ग के लिए प्रेरित करना होता है। जैन धर्म (Jain Dharm in Hindi) की उत्पत्ति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भगवान महावीर जी द्वारा हुई थी।

मानव को मानवता का पाठ पढ़ाने के लिए भगवान महावीर ने जैन धर्म का प्रचार किया, उन्हीं के अथक प्रयासों और उनके द्वारा प्रवाहित ज्ञान की अविरल धाराओं से ही जैन धर्म का उदय हुआ। जैन धर्म में मुख्यतः 24 महान शिक्षक हुए, जिनमें से अंतिम भगवान महावीर थे। इन 24 महान शिक्षकों को तीर्थंकर कहा जाता है, तीर्थंकर वह होते हैं जिन्होंने अपने जीवन में सभी ज्ञान (मोक्ष) को प्राप्त कर लिया होता है, जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे। जैन शब्द जिन या जैन से बना है जिसका अर्थ ‘विजेता’ होता है, यानि कि जिसने अपने ज्ञान से स्वयं पर विजय प्राप्त की हो।

जैन धर्म का इतिहास

दुनिया की सबसे प्राचीन धर्म में से जैन धर्म को श्रमणो का धर्म कहा जाता है। Jainism in Hindi के इस ब्लॉग में आपको वेदों में प्रथम तीर्थ कार में ऋषभ नाथ का उल्लेख किया गया है। यह माना जाता है कि वैदिक साहित्य में जिन यात्रियों और प्रकारों का उल्लेख किया गया है और वह ब्राह्मण परंपरा के न होकर श्रमण परंपरा के थे। मनुस्मृति में लिच्छवी, नाथ, मल्ल और शत्रुओं का वृत्तियो में गिना गया है। सामानों की परंपरा वेदों को मानने वालों के साथ ही चल रही थी, भगवान पार्श्वनाथ यह परंपरा कभी संगठन ग्रुप में अस्तित्व में आ ही नहीं। पारसनाथ भगवान से पारसनाथ संप्रदाय की शुरुआत हुई थी फिर एक संगठित रूप में मिली और भगवान महावीर पार्श्वनाथ संप्रदाय से थे।

भारत के प्राचीन इतिहास में जैन धर्म का एक विशेष स्थान रहा है, जिसमें ऋषभदेव और अरिष्ठनेमी को लेकर जैन धर्म की परंपरा का वर्णन दिया गया है साथ ही महाभारत काल में जैन धर्म के प्रमुख नेमिनाथ भी थे। जैन धर्म के 12 तीर्थंकर अरिष्ठनेमी नाथ भगवान कृष्ण के चचेरे भाई थे और जैन धर्म ने कृष्णा को अनेक प्रश्न शलाका पुरुषों में शामिल भी किया है जो बार-बार नारायण में से एक प्रसिद्ध है। ईपु 8 वीं सदी में 23 में तीर्थ कार पारसनाथ हुए थे, जिनका जन्म काशी जिले में हुआ था। तीर्थंकर शेषनाथ का जन्म भी वहीं पर हुआ था, जिनके नाम पर सारनाथ का नाम प्रचलित हुआ। 599 ईसवी पूर्व में अंतिम भगवान महावीर ने 30 कारों का धर्म और परंपराओं को सुव्यवस्थित रुप दिया था।  72 वर्ष की आयु में भगवान महावीर ने अपना देह त्याग किया था।

जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत

जैन धर्म (Jain Dharm in Hindi) के प्रमुख सिद्धांत नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार हैं-

  • जैन धर्म का मुख्य आधार अहिंसा है, जिसमें न केवल शारीरिक हिंसा बल्कि मानसिक और वाणी की हिंसा से भी बचने का आग्रह किया गया है।
  • इस धर्म में सत्य बोलने और हर स्थिति में सत्य का पालन करने पर विशेष रूप से जोर दिया जाता है।
  • इस धर्म में अस्तेय का भी सिद्धांत है। इसके अनुसार जो वस्तु आपकी नहीं है, उसे लेने से बचना चाहिए।
  • यह धर्म मानव को शारीरिक और मानसिक रूप से संयमित जीवन जीने का संदेश देता है, जिसके लिए इस धर्म में ब्रह्मचर्य का पालन करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • अनावश्यक चीज़ों का संग्रह न करना और भौतिक इच्छाओं को नियंत्रित करना भी जैन धर्म का महत्वपूर्ण पहलू है। इसे अपरिग्रह के नाम से परिभाषित या जाना जाता है।

जैन धर्म से जुड़े प्रसिद्ध तीर्थ

णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥’
ऊपर दिए गए वाक्यों का हिंदी में यह  अर्थ होता है कि:
अरिहंतो ,सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सभी साधुओ को नमस्कार।

ऊपर दिए गए वाक्यों का जैन शब्द में अर्थ होता है कि जीन शब्द जीन शब्द से बना हुआ है ‘जि’ धातु जिसका अर्थ है कि जितना , जीतने वाला और जिसने स्वयं को जीत लिया उसे जितेंद्रिय कहा जाता है।

  • श्री सम्मेद शिखरजी ( गिरिडीह झारखंड)
  • अयोध्या
  •  कैलाश पर्वत
  • वाराणसी
  •  तीर्थराज कुंडलपुर (महावीर जी का जन्म स्थल)
  • पावापुरी (महावीर जी का निर्माण स्थल)
  • गिरनार पर्वत
  • चंपापुरी
  • बावन गजा (चूलगिरी)
  •  श्रवणबेलगोला
  • पालीताणा
  •  चांदखेड़ी

जैन धर्म के तिरसठ शलाका पुरुष

  • 24 तीर्थंकर
  • 12 चक्रवर्ती
  • 9 बलभद्र
  • नो वासुदेव
  • नो प्रति वासुदेव

ऊपर दिए गए सभी संख्या को मिलाकर 63 महान पुरुष हुए हैं। इन सभी पुरुषों का जैन धर्म और दर्शन को विकसित व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर – 24 Tirthankar Ke Naam

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर (24 Tirthankar Ke Naam) के नाम निम्नलिखित हैं –

  1. ऋषभ
  2. अभिनंदन
  3. अजीत
  4. संभव
  5. धर्म
  6. पद्मप्रभ
  7.  सुपार्श्व, 
  8. चंद्रप्रभ, 
  9. पुष्पदंत, 
  10. शीतल, 
  11. श्रेयांश, 
  12. वासुपूज्य, 
  13. विमल, 
  14. अनंत, 
  15.  शांति,
  16.  कुन्थु, 
  17. अरह, 
  18. मल्लि, 
  19. मुनिव्रत, 
  20. नमि, 
  21. नेमि,
  22.  पार्श्वनाथ
  23. महावीर
  24.  सुमती

जैन त्रिरत्न

सम्यक्‌दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। 

नीचे दिए गए तीरथ का मोक्ष का द्वार खोलते हैं, यह कैवलय मार्ग भी कहलाता है।

  • सम्यक्‌ दर्शन 
  • सम्यक्‌ ज्ञान
  • सम्यक्‌ चारित्र। 

जैन संप्रदाय के बारे में

अशोक के अभिलेखों से हमें यह पता चलता है कि उस समय में मगध में जैन धर्म का प्रचार हुआ करता था। इसी समय मठों में बसने वाले जैन मुनियों ने यह मतभेद शुरू हुआ था कि चित्रकारों की मूर्तियां कपड़े पहना कर रखी जानी चाहिए यह नग्न अवस्था में है। मतभेद इस बात पर हुआ था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए यहां नहीं। फिर धीरे-धीरे आगे चलकर यह मतभेद बहुत बढ़ गया। फिर ईशा सदी की पहली सदी में आकर जैन धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए।

  1. श्वेतांबर
  2. दिगंबर

श्वेतांबर दल वह कहलाए जिनके साधु सफेद वस्त्र कपड़े पहनते थे, तो वहीं दिगंबर दल वह कहलाए जिनके साधु बिना कपड़े के रहते थे यानी कि निर्वस्त्र रहते थे। अभी के समय में यह माना जाता है कि दोनों संप्रदाय में दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर मतभेद है। दिगंबर दल के लोग आश्रम पालन में अधिक कठोर होते हैं, यह सभी नियम केवल मुनियों पर ही लागू होते हैं।

दिगंबर दल की तीन शाखा है:

  • मंदिर मार्गी
  • मूर्ति पूजक
  • तेरापंथी

श्वेतांबर दाल की दो शाखा है:

  •  मंदिर मार्गी
  • स्थानकवासी

करीब 300 साल पहले श्वेतांबर दल में एक नई शाखा प्रकट हुई वह स्थानकवासी से कहलाई। स्थानकवासी शाखा के लोग मूर्तियों को नहीं पूजते, जैन धर्म की विभिन्न उप शाखाएं हैं जैसे

  • तेरहपंथी
  • बीसपंथी
  • तारण पंथी
  • यापनीय

जैन धर्म मैं सभी शाखाओं में कुछ न कुछ थोड़ा बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर अहिंसा, संयम, अनेकांतवाद में भी सभी को समान स्थान देने के साथ ही, सभी को उचित सम्मान देते थे।

जैन धर्म ग्रंथ

भगवान महावीर के उपदेश दिए गए थे ,उन्हें बाद में उनके गद्दारों ने ,प्रमुख शिष्यों ने संग्रह कर लिया था ,मूल साहित्य प्राकृत और विशेष रूप में मगधी में है। महावीर भगवान से पूर्व के जैन साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम में संकलित किया था जिसे’ पूर्व ‘नाम से माना जाता है। इसी प्रकार Jainism in Hindi के इस ब्लॉग मेंं आपको 14 पूर्व का उल्लेख मिलता है।

46 ग्रंथ Jain धर्म के सबसे पुराने आगम ग्रंथ माने जाते हैं। समस्त ग्रंथों को चार भागों में बांटा गया है:

  1. करनानुयोग
  2. प्रथमनुयोग
  3. चरनानूयोग
  4. द्रव्यानुयोग

Jainism in Hindi के इस ब्लॉग में दिए गए सभी उप ग्रंथ है, फिर चार मुख्य पुराण ,आदि पुराण, पद्म पुराण ,हरिवंश पुराण और उत्तर पुराण आते हैं।

जैन वास्तुकला के प्रकार

जैन वास्तुकला के प्रकार निम्नलिखित हैं –

  • मूर्तियां
  • लाना/गुम्फा (गुफाएँ)
  • गजपंथ गुफा- महाराष्ट्र
  • मांगी तुंगी गुफा- महाराष्ट्र
  • एलोरा गुफाएँ (गुफा संख्या 30-35)- महाराष्ट्र
  • उदयगिरि-खंडगिरि गुफाएँ- ओडिशा
  • सित्तनवसल गुफा- तमिलनाडु
  • हाथी-गुम्फा गुफा- ओडिशा
  • गोमेतेश्वर/बाहुबली प्रतिमा- श्रवणबेलगोला, कर्नाटक
  • अहिंसा की मूर्ति (ऋषभनाथ) – मांगी-तुंगी पहाड़ियाँ, महाराष्ट्र
  • बसदी: कर्नाटक में जैन मठों की स्थापना या मंदिर
  • दिलवाड़ा मंदिर- माउंट आबू, राजस्थान
  • गिरनार और पलिताना मंदिर- गुजरात
  • मुक्तागिरि मंदिर- महाराष्ट्र
  • जियानलय (मंदिर) .

जैन धर्म के प्रसार का कारण

जैन धर्म के प्रसार के मुख्य कारणों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, प्रकार हैं –

  • जैन धर्म के प्रसार में 24 तीर्थंकरों का सदैव ही प्रभाव रहा है।
  • इस धर्म के मुख्य सिद्धांत अहिंसा ने इसे हर वर्ग में लोकप्रिय बनाया, जिसके प्रति समर्पण और सम्मान का भाव रखने के बाद समाज ने शांति के मार्ग को अपनाया।
  • समाज के हर वर्ग को समावेशित करने से इस धर्म का बहुत प्रसार हुआ।
  • व्यापारिक समुदाय के अपार समर्थन और उनके योगदान से भी इस धर्म का बहुत प्रसार हुआ।
  • मौर्य साम्राज्य के चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर खारवेल जैसे कई शासकों ने जैन धर्म को संरक्षण दिया, जिससे उनके शासनकाल में जैन मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण हुआ, जिसने धर्म के प्रसार में एक विशेष भूमिका निभाई।
  • जैन धर्म ने कर्म सिद्धांत, आत्मशुद्धि और आत्मनियंत्रण की शिक्षा दी, जो हर व्यक्ति के लिए समझने और अपनाने में आसान थीं। इसी कारण से इस धर्म की लोकप्रियता वृद्धि आई।
  • भारत में कई पवित्र जैन तीर्थस्थलों, जैसे शिखरजी, पावापुरी और श्रवणबेलगोला, की स्थापना ने धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • आचार्यों और संतों ने विभिन्न भाषाओं में जैन धर्म का खूब प्रचार किया। उन्होंने लोकभाषा में प्रवचन और ग्रंथ लिखे, जिससे धर्म जन-जन तक पहुँचा।
  • जैन धर्म का शाकाहार और प्रकृति के प्रति सम्मान का सिद्धांत न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी प्रासंगिक था। इन सिद्धांतों ने समाज को इस धर्म के प्रति आकर्षित किया।
  • जैन व्यापारियों के कारण इस धर्म का विस्तार भारत से बाहर विशेषकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में हुआ।

जैन धर्म के स्वर्णिम काल के अंत का आरंभ

Jain धर्म भारत में एक समय में काफी महत्त्वपूर्ण धर्म माना जाता था। महावीर स्वामी के जीवन काल में इस धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार हुआ। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद कुछ दिनों तक ही Jain धर्म का प्रचार–प्रसार चलता रहा, बाद में इस धर्म के अनुयायियों की संख्या सिमित होती चली गई।

जैन धर्म के स्वर्णिम काल के अंत का आरंभ निम्नलिखित कारणों से होना शुरू हुआ-

  • ब्राह्मण धर्म से गहरा मतभेद- Jain धर्म का ब्राह्मण धर्म से गहरा विरोध था तथा ब्राह्मणों ने भी इस धर्म का सदैव विरोध किया उनके विरोध के कारण जैन धर्म का महत्त्व समाप्त हो गया। अजयपाल के शासनकाल(1174-76) तक जैनियों के मंदिर अपनी गरिमा को पूर्णतया समाप्त कर दिया था।
  • सिद्धांतों की कठोरता- इस धर्म के सिद्धांत अत्यंत कठोर थे, जिनका सर्वसाधारण लोग सुगमतापूर्वक पालन नहीं कर सकते थे। उदाहरणार्थ- अहिंसा का कठोर सिद्धांत सभी नहीं अपना सकते थे। कठोर तप करके सभी शारीरिक कष्टों को सहन नहीं कर सकते थे।
  • राजकीय आश्रय का अभाव- अशोक, कनिष्क आदि जैसे अनेक महान नरेश हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना जी-जान लगा दिया। लेकिन Jain धर्म को ऐसे महान नरेश नहीं मिले । Jain धर्म के पतन का प्रमुख कारण यही था कि इस धर्म को राजकीय आश्रय नहीं मिला।
  • अहिंसा – Jain धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण उसके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का अव्यवहारिक स्वरूप था। जिस रूप में अहिंसा के प्रतिपालन का विचार प्रस्तुत किया गया था। उसका पालन जनसाधारण के लिए कठिन था। फलतः कृषि प्रधान भारतीय जनता Jain धर्म के प्रति उदासीन होने लगी। केवल नगर में रहने वाले व्यापारी वर्ग के लोग ही उसके प्रति आकर्षित रहे।
  • कठोर तपस्या- Jain धर्म में व्रत, काया- क्लेश, त्याग, अनशन, केशकुंचन, वस्र त्याग, अपरिग्रहण आदि के अनुसरण पर जोर दिया गया। किन्तु सामान्य गृहस्थ व्यक्ति को इस प्रकार का तपस्वी जीवन जीना संभव नहीं था।
  • संघ का संघठन- जैन संघों की संगठनात्मक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी। उसमें धर्माचार्यों और सामान्य सदस्यों के विचारों तथा इच्छा की अवहेलना होती थी। जिसके फलस्वरूप सामान्य जनता की अभिरुचि कम हो गई।
  • प्रचारकों की कमजोर भूमिका- किसी भी धर्म के प्रसार में उसके प्रचारकों की अहम भूमिका होती है। Jain धर्म में बाद में अच्छे धर्म प्रचारकों का अभाव हो गया तथा Jain धर्म के प्रसार का मार्ग अवरुद्ध हो गया। प्रचार के लिए सतत् संगठित प्रयत्न नहीं हुए जिससे Jain धर्म भारत तक ही सिमित रह गया।
  • भेदभाव की भावना- महावीर स्वामी ने Jain धर्म के द्वार सभी जातियों तथा धर्मों के लिए खोल रखे थे, लेकिन बाद में भेदभाव की भावना विकसित हो गई थी।
  • जैन धर्म में विभाजन- महावीर की मृत्यु के बाद Jain धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया था-दिगंबर एवं श्वेतांबर । इन वर्गों में मतभेद के चलते इस धर्म के बचे-खुचे अवशेष भी नष्ट हो गये थे।
  • मुस्लमान शासकों का शासन- मुसलमान शासकों ने भारत पर आक्रमण किया तथा विजय हासिल कर जैन मंदिरों की नींव पर मस्जिदों और मकबरों का निर्माण किया। अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसे अनेक जैन मंदिरों को धराशायी किया।अधिकांश जैनी तलवार के घाट उतार दिये गये तथा जैन पुस्तकालय नष्ट कर दिये गये। इन सभी कारणों के चलते Jain धर्म का विनाश हो गया।

UPSC के लिए जैन धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण विषय

UPSC के लिए जैन धर्म से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है –

  • जैन धर्म के सिद्धांतों की विशेषताएं
  • महावीर स्वामी के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन
  • जैन धर्म और बौद्ध धर्म में समानताएं और भिन्नताएं
  • जैन धर्म का भारतीय समाज और राजनीति पर प्रभाव

FAQ

जैन धर्म की विशेषता क्या है?

जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है। … जैन दर्शन में परमात्मा अकर्ता है। प्रत्येक जीव, आत्मा को कर्मफल अच्छे—बुरे स्वतंत्र रूप में भोगने पड़ते हैं। परमात्मा को, कर्मों को क्षय कर तथा आत्म स्वरूप प्राप्त करने के बाद परमात्म पद प्राप्त होता है।

जैन धर्म का मूल सिद्धांत क्या है?

अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। इसे बड़ी सख्ती से पालन किया जाता है खानपान आचार नियम मे विशेष रुप से देखा जा सकता है‌। जैन दर्शन में भगवान से कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ताधर्ता नही है। सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।

जैन धर्म में किसकी पूजा करते हैं?

1300 साल पुरानी तीर्थंकर भगवान महावीर की प्रतिमा की जहां जैन धर्म के लोग पूजा करते हैं, वहीं हिंदू इसे हनुमानजी और बौद्ध धर्म के लोग इन्हें भगवान गौतम बुद्ध के रूप में पूजते हैं।

जैन धर्म की पवित्र पुस्तक कौन सी है?

जैन धर्म की पवित्र पुस्तक आगम साहित्य या आगम सूत्र के रूप में जाना जाता है। जैन इन ग्रंथों को देखते हैं, जो भगवान महावीर के उपदेशों, अस्मिताओं के दस्तावेज़ हैं।

जैन धर्म की स्थापना कब और किसने की?

जैन धर्म की स्थापना किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं की गई, यह प्राचीन धर्म है। इसके 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर (599 ईसा पूर्व – 527 ईसा पूर्व) को इसके अंतिम सुधारक और प्रचारक के रूप में जाना जाता है।

जैन धर्म के प्रमुख 3 नियम क्या हैं?

जैन धर्म के प्रमुख 3 नियम सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन तथा सम्यक कर्म हैं ।

जैन धर्म का मुख्य ग्रंथ कौन-सा है?

जैन धर्म के मुख्य ग्रंथ आगम ग्रंथ हैं, जो तीर्थंकरों और उनके अनुयायियों की शिक्षाओं पर आधारित हैं।

जैन धर्म में तीर्थंकर कौन होते हैं?

जैन धर्म में तीर्थंकर वे महान व्यक्तित्व होते हैं जिन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त कर दूसरों को मोक्ष का मार्ग दिखाया है। बता दें कि जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं, जिनमें पहले ऋषभदेव और अंतिम भगवान महावीर हैं।

UPSC परीक्षा के लिए जैन धर्म क्यों महत्वपूर्ण है?

UPSC परीक्षा में इतिहास, दर्शनशास्त्र, और सांस्कृतिक धरोहर के विषय के अंतर्गत जैन धर्म का विशेष महत्व है। इस विषय की जानकारी इसलिए भी आवश्यक हो जाती है क्योंकि एथिक्स (नैतिकता) के पेपर में इससे संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।

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आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग में Jainism in Hindi की पूरी जानकारी मिल गई होगी। भारत के अन्य धर्म के बारे में जानकारियां प्राप्त कर सके। Jain Dharm in Hindi के इस ब्लॉग को अपने दोस्तों के साथ साझा करें, साथ ही ऐसे ही UPSC एग्जाम से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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    1. हमारे लेखन को सराहने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। इसी तरह के और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी साइट पर बने रहें।

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