जानिए होली का उत्सव सुरक्षित और पर्यावरण के साथ कैसे मनायें

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Holi ka utsav surskit aur paryavaran ke sath kaise manaye

भारत जो कि त्योहारों का देश है जहाँ पग-पग पर बोलियां, भाषाएं और वेशभूषायें बदलती है। इसी देश में चाहें कोई धार्मिक उत्सव हो या कोई राष्ट्रीय पर्व हो यहाँ के नागरिक बड़े हर्षोल्लास के साथ मानते है। इन्हीं त्योहारों में से एक त्यौहार होली है जो कि फागुन माह में आता है जिसमें लोग रंगों के साथ इस पर्व को आनंदित होकर मानते है। 

“बेरंग सी उदासी में आओ खुशियों के रंग भरे 
आशाओं को थामकर निराशाओं को तंग करे
जीवन एक उत्सव है, उत्सव की तरह मनाएं आप
रंग बिरंगे रंगों से दुनियां को रंग जाएं आप…”

होली का उत्सव सुरक्षित और पर्यावरण के साथ कैसे मनायें?

होली एक ऐसा उत्सव है जो उदास चेहरों को भी रंग बिरंगे रंगों से खिलखिला सकता है इसीलिए हमें इस पर्व की मर्यादा और गरिमा दोनों को समझना आवश्यक है, इस बात का यह उद्देश्य कतई नहीं है कि आप त्यौहार ही न मनाएं या कोई त्यौहार बुरा है। इस बात का केवल एक लक्ष्य है कि आप अपनी खुशियों के साथ-साथ समाज की खुशी, अपने हितों के साथ-साथ समाजहित, राष्ट्रहित, लोकहित और प्रकृतिहित के बारें में भी सोचें क्योंकि प्रकृति हम सभी की माँ है और माँ के स्वास्थ का ध्यान रखने की जिम्मेदारी संतान की होती है।

Holi ka utsav surskit aur paryavaran ke sath kaise manaye

होली मानते समय ध्यान रखने वाली बातें

होली  मानते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखें क्योंकि यह पर्व खुशियों का पर्व है, इस पर्व को मनाने के लिए हमें हमारी सनातन धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक के लिए संरक्षित रखना चाहिए तांकि आने वाली पीढ़ियां भी इस पर्व का आनंद उठा सकें : 

  1. रंगों के इस महान पर्व पर हमें केवल ऑर्गेनिक रंग जैसे: लाल, पीला, हरा या नीला गुलाल आदि का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ऑर्गेनिक रंगों के अलावा यदि आप अन्य किसी भी रंग का प्रयोग करेंगे तो आपकी त्वचा के लिए यह हानिकरक हो सकता है।
  2. स्वस्थ और सुरक्षित तरीके से होली मनाने के लिए आवश्यक है कि आप किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई जबरदस्ती न करे और रंग लगाते समय विशेष सावधानी बरतें क्योंकि इससे रंगों के आँखों में जाने का खतरा हो सकता है।
  3. प्रकृति हम सभी की माँ है और चाहे कोई भी त्यौहार जैसे: होली, ईद या क्रिसमस ही क्यों न हो हमें अपनी प्रकृति और पर्यावरण का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  4. होली पर आप पानी से भी खेल सकते है पर याद रखें कि पानी की बर्बादी न हो क्योंकि कई लोगों को पीने योग्य पानी भी नसीब नहीं होता है।
  5. जनसंख्या के बढ़ने के कारण कटते पेड़ों और सूखती नदियों से वैसे ही प्रकृति का दोहन हो रहा है तो हम पानी का दुरपयोग करने से बचे यही हम सबके लिए उचित होगा।
  6. एक-दूसरे पर गन्दा पानी न डाले या बची कुचि कुछ नदियों को भी गन्दा न होने दें।
  7. होली का महान पर्व हर जाति,मत,पंथ और मजहब से बड़ा है रंगों से वैर न करें, स्वस्थ होली खेलते समय आपसी मतभेद या किसी भी तरह के विवाद को न होने दें।

होली पर्व क्या है और इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

होली रंगों का त्यौहार कहा जाता है, यह पर्व विश्व की प्राचीन भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति के अनुयायियों या इस महान संस्कृति के प्रति आस्था व विश्वास रखने वाले लोगों के द्वारा मनाया जाता है। रंग जीवन के लिए बेहद आवश्यक है पर क्या कभी आपने सोचा है कि यदि जीवन में रंग न हो, विश्वास और प्रेम का रस न हो तो जीवन कैसा रहेगा? भारतीय सनातन इतिहास एक गौरवमयी इतिहास रहा है जिसने विश्व को सदैव कल्याण का सद्मार्ग दिखाया है, इसी क्रम में होली पर्व भी आता है जिसने विश्व को धर्म की जय और अधर्म के विनाश का मार्ग दिखाया है।

होली एक ऐसा पर्व है जिसमें आप और हम मिलकर रंगों से मिलने वाली खुशियों से परिचित होते है। जिसमें हर बार जात-पात, ऊंच-नीच का मतभेद भुलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है।

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होली मनाने के पीछे की कथाएं

होली से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं और कथाएं प्रचलित है जिनमें से कुछ की जानकारी निम्नलिखित है:

  1.  प्राचीनकाल में असुर कुल में जन्मा हरिण्यकश्यपु नाम का राजा था, जिसका पुत्र प्रह्लाद बहुत बड़ा विष्णुभक्त था जो अपने अहंकारी पिता की वंदना न करके भगवान श्रीहरि विष्णु जी की उपासना करता था। इसी से तंग आकर और प्रह्लाद को दंड देने के लिए हरिण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर लकड़ियों में आग लगा देता है (यह कुछ इस प्रकार था कि जैसे चिता जलाई जाती है क्योंकि होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान था), अग्नि देव होलिका के प्राण हर लेते है और प्रह्लाद सकुशल अग्नि से निकल जाते है बस इसी ख़ुशी में लोग होलिका के दहन के अगले दिन रंगों से होली खेलते है। हरिण्यकश्यपु की क्रूरता जब अति से ज्यादा हो जाती है तो भगवन स्वयं नरसिंह रूप धारण करके उसकी क्रूरता का अंत करते है। 
  1. एक कथा भगवन श्री कृष्ण को लेकर है कि कृष्ण जी ने जब अपनी माँ यशोदा से बालपन में राधा रानी के गोरे रंग पर सवाल किया था जिस पर उनकी माँ ने उत्तर दिया कि वह राधा जी को अपने रंग में रंग दे। यही सुन भगवान ने राधा जी संग गोपियों को जब रंग लगाया तो वह फागुन का महीना और होली का दिन था। प्रभु की भक्ति करने वाले, अलौकिक प्रेम में आस्था रखने वाले लोगो ने बड़े धूमधाम से इस दिन को मनाया और तभी से व्रज क्षेत्र के लोग भगवान के प्रति अपना समर्पण और भक्ति भाव व्यक्त करने के लिए उसी प्रकार की वेशभूषा पहनते है जो भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी जी पहन कर होली खेलते थे। 

होली का पर्व सनातन धर्म की अवधारणा को व्यक्त करता है जिसके अनुसार आपका जीवन सदैव आपके कर्मों पर आधारित है और हमें परेशानियों या संकट की घड़ी में उदास होकर धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि खुशियों के माध्यम से ही आप जीवन को स्वर्ग बना सकते है।

सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार यह पृथ्वी अपना घर है और इसमें रहने वाला हर जीव प्राणी अपना परिजन है, प्रकृति अपनी माँ है। इन्हीं वाक्यों को आधार पर हम विश्वगुरु भारत कहलाते है इसीलिए हमें धर्म से विमुख हुए बिना हर त्यौहार को हर्षोल्लास के साथ मानना चाहिए।

आशा है कि आपको  इसके माध्यम से होली के बारें में कुछ अहम जानकारी मिली होगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स के लिए हमारे साथ बनें रहें। 

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