जानिए गागरोन का युद्ध इतिहास और इस युद्ध में मातृभूमि पर मिटने वाले वीरों की वीरगाथा के बारे में

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गागरोन का युद्ध

भारत वीरों की जननी कही जाती है, समय-समय पर हजारों विदेशी आक्रमणकारियों के क्रूरता से भरे आक्रमण देखने के बाद भी पुण्यभूमि भारत के संरक्षण हेतु इस महान धरती पर कई वीरों ने जन्म लिया। इन्हीं वीरों में से एक शूरवीर राणा सांगा भी थे, जिनकी वीरता की गाथाएं आज भी जन-जन को प्रेरित करती हैं। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए तो भारत की पुण्य धरा पर एक ऐसा भी युद्ध हुआ, जिसने न केवल राणा सांगा की वीरता और यश का विस्तार किया बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों से मातृभूमि और मानवता का संरक्षण किया। इस पोस्ट के माध्यम से आप आसानी से जान पाएंगे कि गागरोन का युद्ध किस किस के बीच हुआ और इस युद्ध में किसकी जीत हुई।

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कब हुआ था गागरोन का युद्ध?

भारत की भूमि ने सदियों तक नरसंहार की पीड़ा को झेला है, कई युद्ध ऐसे थे जिन्होंने मानवता का समूल नाश किया। क्रूरता से पीड़ित चीखों और अत्याचारों का अंत करने के लिए वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि को सुरक्षित रखना उचित समझा। इतिहास में हुए भीषण युद्धों में से एक गागरोन का युद्ध भी था, जो कि 1519 ई. में हुआ था।

किन-किन के बीच हुआ गागरोन का युद्ध?

1519 ई. में हुआ गागरोन का युद्ध मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय एवं मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा के बीच हुआ था। यह एक ऐसा युद्ध था, जिसने मेवाड़ की माटी में जन्मे शूरवीरों का रण-कौशल देखा था। इसी युद्ध में मालवा के सयुंक्त मुस्लिम बलों ने रजपूती तलवारों का लोहा माना था, और भारत भूमि की रक्षा के लिए प्राण देने वाले योद्धाओं का भी बलिदान देखा था। इस युद्ध को राजपूत संघ की ओर से मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा के नेतृत्व में मालवा के क्रूर सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के खिलाफ लड़ा गया था।

किन कारणों से हुआ था गागरोन का युद्ध?

महाराणा सांगा एक ऐसे महाराणा थे, जिन्होंने अपनी दूरगामी सोच के परिणामों के चलते मातृभूमि की रक्षा को ध्यान में रखते हुए, अपने हर शत्रु से युद्ध लड़े। महाराणा सांगा ने अपने जीवन में हर युद्ध को जीता, इसी क्रम में गागरोन का युद्ध भी गिना जाता है, जिसके पीछे का मुख्य कारण यह था कि महाराणा सांगा ने मालवा से निष्कासित सरदार मेदिनीराय की सहायता करके, उसे चंदेरी एवं गागरोण की जागीर प्रदान की। जिससे तिलमिलाए महमूद खिलजी द्वितीय ने मेवाड़ के साथ युद्ध करने का ठाना और इस कारण को मेवाड़ तक अपनी सीमाएं फ़ैलाने का अवसर समझा। अंततः मालवा के सुलतान के संयुक्त मोर्चे ने 1519 ई. में गागरोण पर आक्रमण कर दिया और एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें सुल्तान का पुत्र आसफखां भी मारा गया।

क्या रहा गागरोन का युद्ध का परिणाम?

हर युद्ध में विजय रहे मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा ने अपने नेतृत्व करने की कुशलता से इस युद्ध को भी जीत लिया। इस युद्ध के परिणाम कुछ यूँ रहे कि मेवाड़ नरेश महाराणा सांगा ने इस युद्ध को जीतकर, मालवा के सुलतान महमूद खिलजी द्वितीय को बंदी बनाया और अपने साथ चित्तौड़ ले गए, जहाँ सुलतान को तीन माह तक कैद में रखा गया। कैद में होते हुए भी महाराणा ने सुल्तान को युद्धबंदी के रूप में सम्मान दिया, जो उनके उदार व्यवहार को दर्शाया।

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आशा है कि आपको इस ब्लॉग के माध्यम से गागरोन का युद्ध का इतिहास जानने को मिला होगा। साथ ही यह ब्लॉग आपको जानकारी से भरपूर लगा होगा। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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